Thursday, 26 March 2020

त्रिपुरसुन्दरी :: श्री विद्या

श्री विद्या, महा त्रिपुरसुन्दरी
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                  महाविद्याओं में तीसरी श्री विद्या महा त्रिपुर सुन्दरी, तीनो लोको में सर्व गुण सम्पन्न या सर्व प्रकार से पूर्ण।आद्या शक्ति माँ, अपने तीसरे महाविद्या के रूप में श्री विद्या, महा त्रिपुरसुन्दरी के नाम से जानी जाती हैं, देवी अत्यंत सुन्दर रूप वाली सोलह वर्षीय कन्या रूप में विद्यमान हैं। तीनो लोको ( स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी ) में देवी सर्वाधिक सुन्दर, मनोहर रूप वाली तथा चिर यौवन हैं। देवी आज भी यौवनावस्था धारण की हुई है तथा सोलह कला सम्पन्न है। सोलह अंक जो की पूर्णतः का प्रतिक है (सोलह की संख्या में प्रत्येक तत्व पूर्ण मानी जाती हैं, जैसे १६ आना एक रूपया होता हैं), सोलह प्रकार के कलाओं तथा गुणों से परिपूर्ण, देवी का एक अन्य नाम षोडशी विख्यात हैं। देवी प्रत्येक प्रकार कि मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं, मुख्यतः सुंदरता तथा यौवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के परिणामस्वरूप, मोहित कार्य और यौवन स्थाई रखने हेतु, इनकी साधना उत्तम मनी जाती हैं। ये ही धन, संपत्ति, समृद्धि दात्री श्री शक्ति के नाम से भी जानी जाती है, इन्हीं देवी की आराधना कर कमला नाम से विख्यात दसवी महाविद्या, धन, सुख तथा समृद्धि की देवी महा लक्ष्मी हुई।
                        देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध पारलौकिक शक्तियों से हैं, समस्त प्रकार की दिव्य, अलौकिक तंत्र तथा मंत्र शक्तिओ की ये अधिष्ठात्री हैं। तंत्रो में उल्लेखित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्थम्भन इत्यादि (जादुई शक्ति) या इंद्रजाल विद्या, देवी कि कृपा के बिना पूर्ण नहीं होते हैं। योनि पीठ 'कामाख्या', देवी श्री विद्या महा त्रिपुरसुंदरी, षोडशी से सम्बंधित सर्वश्रेष्ठ तंत्र पीठ या तीर्थ।काम देव द्वारा सर्वप्रथम तथा समस्त देवताओं द्वारा पूजित देवी की योनि पीठ, कामाख्या नाम से विख्यात हैं। यहाँ शिव पत्नी सती कि योनि गिरी थी, यह आदि काल से ही सिद्धि दायक शक्ति पीठ रहा हैं। यह पीठ नीलाचल पर्वत श्रेणी के ऊपर विद्यमान हैं तथा इस प्रान्त को आदि काल मैं प्रागज्योतिषपुर के नाम से जाना जाता था। आज यहाँ देवी का एक भव्य मंदिर विद्यमान है, जिसे कूचबिहार के राज वंश ने बनवाया था तथा ये भारत वर्ष के असम राज्य में अवस्थित हैं। आदि काल से ही यह पीठ समस्त प्रकार के आगमोक्त तांत्रिक, पारा विद्या तथा गुप्त साधनाओ हेतु श्रेष्ठ माना जाता हैं तथा आदि कल से ही प्रयोग किया जाता हैं। त्रेता तथा द्वापर युग में इस पीठ पर देवी की आराधना नरकासुर करते थे, इस प्रान्त के विभिन्न स्थानों का उल्लेख महाभारत ग्रन्थ से प्राप्त होता हैं। वाराणसी में विद्यमान राज राजेश्वरी मंदिर में देवी राज राजेश्वरी ( तीनो लोको की रानी ) के रूप में पूजिता हैं। कामाक्षी स्वरूप में देवी तमिलनाडु के कांचीपुरम में पूजी जाती हैं। मीनाक्षी स्वरुप में देवी का विशाल तथा भव्य मंदिर तमिलनाडु के मदुरै में हैं। बंगाल के हुगली जिले में बाँसबेरिआ नमक स्थान में देवी हंशेश्वरी नाम से पूजित हैं।
देवी श्री विद्या त्रिपुरसुन्दरी के स्वरूप का वर्णन।
महाविद्याओं में तीसरे स्थान पर विद्यमान महा शक्ति त्रिपुर सुंदरी, तीनो लोकों में, सोलह वर्षीय कन्या स्वरूप में सर्वाधिक मनोहर तथा सुन्दर रूप से सुशोभित हैं। देवी का शारीरक वर्ण हजारों उदयमान सूर्य के कांति कि भाति है, देवी की चार भुजाये तथा तीन नेत्र ( त्रि-नेत्रा ) हैं। अचेत पड़े हुए सदाशिव के ऊपर कमल जो सदाशिव के नाभि से निकली है, के आसन पर देवी विराजमान हैं। देवी अपने चार हाथों में पाश, अंकुश, धनुष तथा बाण से सुशोभित है। देवी षोडशी पंचवक्त्र है अर्थार्त देवी के पांच मस्तक या मुख है, चारो दिशाओं में चार तथा ऊपर की ओर एक मुख हैं। देवी के पांचो मस्तक या मुख तत्पुरुष, सद्ध्योजात, वामदेव, अघोर तथा ईशान नमक पांच शिव स्वरूपों के प्रतिक हैं क्रमशः हरा, लाल, धूम्र, नील तथा पीत वर्ण वाली हैं। देवी दस भुजाओ वाली हैं तथा अभय, वज्र, शूल, पाश, खड़ग, अंकुश, टंक, नाग तथा अग्नि धारण की हुई हैं। देवी अनेक प्रकार के अमूल्य रत्नो से युक्त आभूषणो से सुशोभित हैं तथा देवी ने अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण कर रखा हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा यम देवी के आसन को अपने मस्तक पर धारण करते हैं।
श्री विद्या, महा त्रिपुर सुंदरी की प्रादुर्भाव से सम्बंधित कथा।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी त्रिपुरसुंदरी के उत्पत्ति का रहस्य; सती वियोग के पश्चात् भगवान शिव सर्वदा ध्यान मग्न रहते थे। उन्होंने अपने संपूर्ण कर्म का परित्याग कर दिया था, परिणामस्वरूप तीनो लोको के सञ्चालन में व्याधि उत्पन्न हो रही थी। उधर तारकासुर ब्रह्मा जी से वार प्राप्त कर, कि उसकी मृत्यु शिव के पुत्र द्वारा ही होगी। एक प्रकार से अमर हो, तारकासुर ने तीनो लोको पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया, समस्त देवताओं को प्रताड़ित कर स्वर्ग से निकल दिया तथा समस्त भोगो को वो स्वयं ही भोगने लगा। समस्त देवताओ ने भगवान शिव को ध्यान से जगाने हेतु, कामदेव तथा उन की पत्नी रति देवी को कैलाश भेजा। (सती हिमालय राज के यहाँ पुनर्जन्म ली चुकी थी तथा भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिया वो नित्य शिव के सन्मुख जा उन की साधना करती थी।) काम देव ने कुसुम सर नमक वाण से भगवान शिव पर प्रहार किया, परिणामस्वरूप शिव जी का ध्यान भंग हो गया। देखते ही देखते काम देव, भगवान शिव के तीसरे नेत्र से उत्पन्न क्रोध अग्नि में जल कर भस्म हो गया। तदनंतर भगवान शिव के एक गण द्वारा काम देव के भस्म से मूर्ति निर्मित की गई तथा उस निर्मित मूर्ति से एक परुष का प्राकट्य हुआ। उस प्राकट्य पुरुष ने भगवान शिव कि, अति उत्तम स्तुति की तथा स्तुति से प्रसन्न हो भगवान शिव ने भांड (अच्छा)! भांड! कहा। तदनंतर भगवान शिव द्वारा उस पुरुष का नाम भांड रखा गया तथा तथा उसे ६० हजार वर्षों कर राज दे दिया गया। शिव के क्रोध से उत्पन्न होने के परिणामस्वरूप वो तमो गुण सम्पन्न था तथा वो धीरे धीरे तीनो लोको पर भयंकर उत्पात मचाने लगा।देवराज इंद्र के राज्य के समान ही, भाण्डासुर ने स्वर्ग जैसे राज्य का निर्माण किया तथा राज करने लगा। तदनंतर, भाण्डासुर ने स्वर्ग लोक पर अपना अधिकार आक्रमण कर देवराज इन्द्र तथा स्वर्ग राज्य को चारो ओर से घेर लिया। भयभीत इंद्र, नारद मुनि के शरण में गए तथा इस समस्या के निवारण हेतु उपाए पूछा। देवर्षि नारद ने, आद्या शक्ति की यथा विधि अपने रक्त तथा मांस से आराधना करने का परामर्श दिया। देवराज इंद्र ने देवर्षि नारद द्वारा बताये हुए साधना पथ का अनुसरण कर, देवी की आराधना की तथा देवी ने त्रिपुरसुंदरी स्वरूप से प्रकट हो भाण्डासुर का वध कर देवराज पर कृपा की तथा समस्त देवताओं को भय मुक्त किया।
कहा जाता हैं, भण्डासुर तथा देवी त्रिपुर सुंदरी ने अपने चार-चार अवतारी स्वरूपों को युद्ध लड़ने हेतु अवतरित किया। भाण्डासुर ने हिरण्यकश्यप दैत्य का अवतार धारण किया तथा देवी ललित प्रह्लाद स्वरूप में प्रकट हो, हिरण्यकश्यप का वध किया। भाण्डासुर ने महिषासुर का अवतार धारण किया तथा देवी त्रिपुरा, दुर्गा अवतार धारण कर महिषासुर का वध किया। भाण्डासुर, रावण अवतार धारण कर, देवी के नखो द्वारा अवतार धारण करने वाले राम के हाथों मारा गया। अंततः देवी त्रिपुरा ने, भाण्डासुर का वध किया।
देवी श्री विद्या त्रिपुरसुंदरी से सम्बंधित अन्य तथ्य।
समस्त तंत्र और मंत्र देवी कि आराधना करते है तथा वेद भी इनकी महिमा करने में असमर्थ हैं। अपने भक्तों के सभी प्रार्थना स्वीकार कर, देवी भक्त के प्रति समर्पित रहती है। भक्त पर प्रसन्न हो देवी सर्वस्व प्रदान करती हैं। देवी की साधना, आराधना योनि रूप में भी की जाती है, देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध काम उत्तेजना से हैं, इस स्वरूप में देवी कामेश्वरी नाम से पूजित हैं।
देवी काली की समान ही देवी त्रिपुर सुंदरी चेतना से सम्बंधित हैं। देवी त्रिपुरा ब्रह्मा, शिव, रुद्र तथा विष्णु के शव पर आरूढ़ हैं, तात्पर्य, चेतना रहित देवताओं के देह पर देवी चेतना रूप से विराजमान हैं तथा ब्रह्मा, शिव, विष्णु, लक्ष्मी तथा सरस्वती द्वारा पूजिता हैं। कुछ शास्त्रों के अनुसार, देवी कमल के आसन पर भी विराजमान हैं, जो अचेत शिव के नाभि से निकलती हैं तथा शिव, ब्रह्मा, विष्णु तथा यम, चेतना रहित शिव को अपने मस्तक पर धारण किये हुए हैं।
श्री यन्त्र और श्री विद्या - यंत्रो में श्रेष्ठ श्री यन्त्र या श्री चक्र, साक्षात् देवी त्रिपुरा का ही स्वरूप हैं तथा श्री विद्या या श्री संप्रदाय, पंथ या कुल का निर्माण करती हैं। देवी त्रिपुरा आदि शक्ति हैं, कश्मीर, दक्षिण भारत तथा बंगाल में आदि काल से ही, श्री संप्रदाय विद्यमान हैं तथा देवी अराधना की जाती हैं, विशेषकर दक्षिण भारत में देवी, श्री विद्या नाम से विख्यात हैं। मदुरै में विद्यमान मीनाक्षी मंदिर, कांचीपुरम में विद्यमान कामाक्षी मंदिर, दक्षिण भारत में हैं तथा यहाँ देवी श्री विद्या के रूप में पूजिता हैं। वाराणसी मैं विद्यमान राजराजेश्वरी मंदिर, देवी श्री विद्या से ही सम्बंधित हैं तथा आकर्षण सम्बंधित विद्याओ की प्राप्ति हेतु प्रसिद्ध हैं।
देवी की उपासना श्री चक्र में होती है, श्री चक्र से सम्बंधित मुख्य शक्ति देवी त्रिपुर सुंदरी ही हैं। देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध गुप्त अथवा परा शक्तियों, विद्याओं से हैं, तन्त्रो की ये अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। समस्त प्रकार के तांत्रिक कर्म देवी की कृपा के बिना सफल नहीं होते हैं। तंत्र में वर्णित मरण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तंभन इत्यादि प्रयोगों की देवी अधिष्ठात्री है। आदि काल से ही देवी के पीठ कामाख्या में, समस्त तंत्र साधनाओ का विशेष विधान हैं। देवी आज भी वर्ष में एक बार ऋतु वत्सला होती है जो ३ दिन का होता है, इस काल में असंख्य भक्त तथा साधु, सन्यासी देवी कृपा प्राप्त करने हेतु कामाख्या आते हैं। देवी कि रक्त वस्त्र जो ऋतुस्रव के पश्चात् प्राप्त होता है, प्रसाद के रूप में प्राप्त कर उसे अपनी सुरक्षा हेतु अपने पास रखते हैं। देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध गुप्त अथवा परा शक्तियों, विद्याओं से हैं, तन्त्रो की ये अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। समस्त प्रकार के तांत्रिक कर्म देवी की कृपा के बिना सफल नहीं होते हैं।
देवी त्रिपुरा या त्रिपुर सुंदरी, श्री यंत्र तथा श्री मंत्र के स्वरूप से समरसता रखती हैं, जो यंत्रो-मंत्रो में सर्वश्रेष्ठ पद पर आसीन हैं, यन्त्र शिरोमणि हैं, देवी साक्षात् श्री चक्र के रूप में यन्त्र के केंद्र में विद्यमान हैं। श्री विद्या के नाम से देवी, एक अलग संप्रदाय का भी निर्माण करती हैं, जो श्री कुल के नाम से विख्यात हैं तथा देवी श्री कुल की अधिष्ठात्री हैं। देवी श्री विद्या, स्थूल, सूक्ष्म तथा परा, तीनो रूपों में 'श्री चक्र' में विद्यमान हैं, चक्र स्वरूपी देवी त्रिपुरा, श्री यन्त्र के केंद्र में निवास करती हैं तथा चक्र ही देवी का अराधना स्थल हैं, चक्र के रूप में देवी श्री विद्या की पूजा आराधना होती हैं। श्री यन्त्र, सर्व प्रकार के कामनाओ को पूर्ण करने की क्षमता रखती हैं, इसे त्रैलोक्य मोहन यन्त्र भी कहाँ जाता हैं। श्री यन्त्र को महा मेरु, नव चक्र के नाम से भी जाना जाता हैं।
यह यन्त्र देवी लक्ष्मी से भी समरसता रखती हैं,| देवी श्री लक्ष्मी जो धन, सौभाग्य, संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं, उन की आराधना श्री यन्त्र के मध्य में होती हैं| सामान्यतः धन तथा सौभाग्य की दात्री होने के परिणामस्वरूप, श्री चक्र में देवी की आराधना, पूजा होती हैं, |सामान्य लोगो के पूजा घरों से कुछ विशेष मंदिरों में देवी इसी श्री चक्र के रूप में ही पूजिता हैं || कामाक्षी मंदिर, कांचीपुरम, तमिलनाडु, अम्बाजी मंदिर, गब्बर पर्वत, गुजरात (सती पीठो), देवी की पूजा श्री चक्र के रूप में ही होती हैं| शास्त्रों में यंत्रो को देवताओं का स्थूल देह माना गया हैं,| श्री यन्त्र की मान्यता सर्वप्रथम यन्त्र के से भी हैं,| यह सर्वरक्षा कारक, सौभाग्य प्रदायक, सर्व सिद्धि प्रदायक तथा सर्वविघ्न नाशक हैं | निर्धनता तथा ऋण से मुक्ति हेतु, श्री यन्त्र की स्थापना तथा पूजा अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं,| श्री यन्त्र के स्थापना मात्र से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती हैं |
श्री यंत्र के मध्य या केन्द्र या में एक बिंदु है, इस बिंदु के चारों ओर ९ अंतर्ग्रथित त्रिभुज हैं जो ९ शक्तिओ का प्रतिनिधित्व करती हैं। १. बिंदु, २. त्रिकोण, ३. अष्टकोण, ४. दशकोण, ५. बहिर्दर्शरा, ६. चतुर्दर्शारा, ७. अष्ट दल, ८. षोडश दल, ९. वृत्तत्रय, १०. भूपुर से श्री यन्त्र का निर्माण हुआ हैं, ९ त्रिभुजों के अन्तःग्रथित होने से कुल ४३ लघु त्रिभुज बनते हैं तथा अपने अंदर समस्त प्रकार के अलौकिक तथा दिव्या शक्ति समाये हुए हैं। ९८ शक्तिओ की अराधना श्री चक्र में की जाती हैं तथा समस्त शक्तियां सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का नियंत्रण तथा सञ्चालन करती हैं।
कामेश्वरी की स्वारसिक समरसता को प्राप्त परातत्व ही महा त्रिपुर सुंदरी के रूप में विराजमान हैं तथा यही सर्वानन्दमयी, सकलाधिष्ठान ( सर्व स्थान में व्याप्त ) देवी ललिताम्बिका हैं। देवी में सभी वेदांतो का तात्पर्य-अर्थ समाहित हैं तथा चराचर जगत के समस्त कार्य इन्हीं देवी में प्रतिष्ठित हैं। देवी में न शिव के प्रधानता हैं और न ही शक्ति की, अपितु शिव तथा शक्ति, दोनों की समानता हैं। समस्त तत्वों के रूप में विद्यमान होते हुए भी, देवी सबसे अतीत हैं, परिणामस्वरूप इन्हें ‘तात्वातीत’ कहा जाता हैं, देवी जगत के प्रत्येक तत्व में व्याप्त भी हैं और पृथक् भी, परिणामस्वरूप इन्हें ‘विश्वोत्तीर्ण’ भी कहा जाता हैं। ये ही परा ( जिसे हम देख नहीं सकते ) विद्या भी कही गए हैं, ये दृश्यमान प्रपंच इनका केवल उन्मेष मात्र हैं , देवी चर तथा अचर दोनों तत्वों के निर्माण करने में समर्थ हैं तथा निर्गुण तथा सगुण दोनों रूप में अवस्थित हैं। ऐसे ही परा शक्ति, नाम रहित होते हुए भी अपने साधको पर कृपा कर, सगुण रूप धारण करती हैं, देवी विविध रूपों में अपने रूपों का अवतरण कर विश्व का कल्याण करती हैं, तथा श्री विद्या के नाम से विख्यात हैं। देवी ब्रह्माण्ड की नायिका हैं तथा विभिन्न प्रकार के असंख्य देवताओं, गन्धर्वो, राक्षसों इत्यादि द्वारा सेवित तथा वन्दित हैं। देवी त्रिपुरा, चैतान्यरुपा चिद शक्ति तथा चैतन्य ब्रह्म हैं। भंडासुर की संहारिका, त्रिपुर सुंदरी, सागर के मध्य में स्थित मणिद्वीप का निर्माण कर चित्कला के रूप में विद्यमान हैं। तदनंतर, तत्वानुसार अपने त्रिविध रूप को व्यक्त करती हैं, १. अत्मतत्व, २. विद्यातत्व, ३. शिवतत्व, इन्हीं तत्वत्रय के कारण ही देवी १. शाम्भवी २. श्यामा तथा ३. विद्या के रूप में त्रिविधता प्राप्त करती हैं। इन तीनो शक्तिओ के पति या भैरव क्रमशः परमशिव, सदाशिव तथा रूद्र हैं।
देवी त्रिपुरसुन्दरी के पूर्व भाग में श्यामा और उत्तर भाग में शाम्भवी विराजित हैं तथा इन्हीं तीन विद्याओं के द्वारा अन्य अनेक विद्याओं का प्राकट्य या प्रादुर्भाव हुआ हैं तथा श्री विद्या परिवार का निर्माण करती हैं। भक्तों को अनुग्रहीत करने की इच्छा से, भंडासुर का वध करने के निमित्त एक होना महाशक्ति का वैविध्य हैं।
संक्षेप में देवी श्री विद्या त्रिपुर सुंदरी से सम्बंधित मुख्य तथ्य।
मुख्य नाम : महा त्रिपुर सुंदरी।
अन्य नाम : श्री विद्या, त्रिपुरा, श्री सुंदरी, राजराजेश्वरी, ललित, षोडशी, कामेश्वरी, मीनाक्षी।
भैरव : कामेश्वर।
तिथि : मार्गशीर्ष पूर्णिमा।
भगवान विष्णु के २४ अवतारों से सम्बद्ध : भगवान परशुराम।
कुल : श्री कुल ( इन्हीं के नाम से उत्पन्न तथा संबंधित )।
दिशा : उत्तर पूर्व।
स्वभाव : सौम्य।
सम्बंधित तीर्थ स्थान या मंदिर : कामाख्या मंदिर, ५१ शक्ति पीठो में सर्वश्रेष्ठ, योनि पीठ गुवहाटी, आसाम।
कार्य : सम्पूर्ण या सभी प्रकार के कामनाओं को पूर्ण करने वाली।
शारीरिक वर्ण : उगते हुए सूर्य के समान।…………………………………………………..हर-हर महादेव

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