चीन के भारत पर आक्रमण का कारण
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संग्रीला घाटी सामान्य जन के लिए अनजान जगह हो सकती है ,किन्तु उच्च स्तरीय अध्यात्म क्षेत्र से जुड़ा व्यक्ति इससे अनजान नहीं रह सकता ,फिर वह चाहे वह व्यक्ति योग से जुड़ा हो ,tantra से जुड़ा हो अथवा किसी तरह के अध्यात्म क्षेत्र से जुड़ा हो ,हाँ उसकी स्थिति उच्च अवश्य होनी चाहिए |यह घाटी भारत ही नहीं पूरे विश्व के अध्यात्म जगत का नियंत्रण और पथ प्रदर्शक क्षेत्र है ,साथ ही यह सामान्य व्यक्ति की दृष्टि से देखा भी नहीं जा सकता | न इसे कोई देख सकता है न वहां जा सकता है ,जब तक की वहां रहने वाले सिद्ध न चाहें |यहाँ तक की पूरी चीनी सेना खोज कर थक गई किन्तु इस क्षेत्र को न खोज पायी |जिस प्रकार वायु मंडल में बहुत से स्थान हैं जहाँ वायु शून्यता रहती है,उसी प्रकार इस धरती पर अनेक ऐसे स्थान है जो भू हीनता के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। भू हीनता और वायु शून्यता वाले स्थान चौथे आयाम से प्रभावित होते हैं। ऐसे स्थान देश और काल से परे होते हैं। यदि उनमें कोई वस्तु या व्यक्ति अनजाने में चला जाय तो इस तीन आयाम वाले स्थूल जगत में उसका अस्तित्व लुप्त हो जाता है। वह वस्तु इस दुनिया से गायब हो जाती है।
आपने सुना होगा ,समाचार पत्रों में पढ़ा होगा की बरमूढा त्रिकोनाकृति एक ऐसा समुद्र में स्थान है जहाँ कोई पानी का जहाज चला जाय या उसके ऊपर आकाश में हवाई जहाज़ चला जाय तो एकाएक वह गायब हो जायेगा। वह स्थान भू हीनता के क्षेत्र में आता है। ऐसी ही तिब्बत और अरुणांचल की सीमा स्थित संग्रिला घाटी है। लेकिन भू हीनता और चौथे आयाम से प्रभावित होने के कारण वह घाटी अभी तक रहस्यमयी बानी हुई है। वह इन चर्म चक्षुओं से दिखाई नहीं देती है। ऐसा माना जाता है कि इस घाटी का सम्बन्ध अंतरिक्ष के किसी लोक से है।
इस विषय से सम्बंधित एक प्राचीन पुस्तक है-काल विज्ञान। तिब्बती भाषा में लिखी यह पुस्तक तवांग मठ के पुस्तकालय में विद्यमान है। काल विज्ञान के अनुसार इस तीन आयाम वाली दुनियां की हर चीज़ देश,काल और निमित्त से बंधी हुई है। लेकिन संग्रीला घाटी में काल नगण्य है। वहां प्राण,मन और विचार की शक्ति एक विशेष सीमा तक बढ़ जाती है। शारीरिक क्षमता और मानसिक चेतना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। काल की नगण्यता के फलस्वरूप वहां आयु अति धीमी गति से बढ़ती है। यदि किसी व्यक्ति ने उसमे 25 वर्ष की उम्र में प्रवेश किया है तो उसका शरीर लंबे समय तक युवा बना रहेगा। स्वर्ग जैसी वातावरण में डूबी हुई यह घाटी एक कालंजयी की इच्छा सृष्टि है। जो लोग इस घाटी से परिचित हैं उनका कहना है कि प्रसिद्द योगी श्यामा चरण लाहिड़ी के गुरु अवतारी बाबा जिन्होंने आदि शंकराचार्य को भी दीक्षा दी थी,संग्रीला घाटी के किसी सिद्ध आश्रम में अभी भी निवास कर रहे हैं। जब कभी आकाश मार्ग से चल कर अपने शिष्यों को दर्शन भी देते हैं।
यहाँ के तीन साधना केंद्र प्रसिद्द हैं। पहला है-"ज्ञानगंज मठ", दूसरा है-"सिद्ध विज्ञान आश्रम" और तीसरा है-" योग सिद्धाश्रम"। यहाँ पर दीर्घजीवी,कालंजयी योगी अपने आत्म शरीर से निवास करते हैं ।सूक्ष्म शरीर से विचरण करते हैं और कभी कदा स्थूल शरीर भी धारण कर लेते हैं। स्वामी विशुद्धानन्द परमहंस जो सूर्य विज्ञान में पारंगत थे ज्ञानगंज मठ से जुड़े हुए थे। इस संग्रीला घाटी में रहने वाले योगी आचार्य गण संसार के योग्य शिष्यों को खोज खोज कर इस घाटी में लाते हैं और उन्हें दीक्षा देकर पारंगत बना कर फिर इसी संसार में ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए भेज देते हैं। इन तीनों आश्रमों के आलावा वहाँ तंत्र के भी अनेक केंद्र हैं जहाँ उच्च कोटि के कापालिक और शाक्त साधक निवास करते हैं। इसी प्रकार बौद्ध लामाओं के भी वहां मठ हैं। उनमें रहने वाले साधक स्थूल जगत के निवासियों से अपने को गुप्त रखे हुए हैं।
संग्रीला घाटी में प्रवेश करने वाले एक योगी साधक के अनुभव के अनुसार--
वहां न सूर्य का प्रकाश है और न चाँद की चांदनी। वातावरण में एक दूधिया प्रकाश फैला हुआ है जो कहाँ से आ रहा है इसका पता किसी को नहीं है। एक अनिर्वचनीय सुंदरता और शांति का साम्राज्य है वहां। यह सम्पूर्ण घाटी एक महान योगी की इच्छा शक्ति के वशीभूत है। " मैंने लामा के साथ उस आश्रम में प्रवेश किया तो मुंह बाये उस महान् योगी की कृति देखता ही रह गया। तभी वहां एक अद्भुत घटना घटी। मैंने देखा कि न जाने कहाँ से दर्जनों युवतियां वहां आ गईं। आश्चर्य की बात यह थी कि सभी की आयु बराबर थी। रूप,रंग और कद भी समान था। 16 वर्ष की आयु से अधिक की नहीं थी वे। सभी के बाल खुले हुए थे ।शरीर पर गेरुये रंग की रेशमी साड़ियां थी और गले में स्फटिक की मालाएं पड़ी हुई थी। सभी के चहरे अपूर्व तेज से दमक रहे थे और एक विलक्षण शांति छाई थी वहां पर। " युवतियों के हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि वे किसी के आने की प्रतीक्षा कर रही हैं। मेरा अनुमान गलत नहीं था। थोड़ी ही देर बाद देखा की एक तेज पुंज सहसा वहां प्रकट हुआ। अद्भुत था वह प्रकाश पुंज! प्रकाश पुंज धीरे धीरे आश्रम के भीतर के ओर जाने लगा। युवतियां भी उसके पीछे पीछे चलने लगीं। मेरे उस लामा से पूछने पर उसने बताया कि यह आत्म शरीर है। योगियों का आत्म शरीर ऐसा ही होता है। यह आत्म शरीर उसी परम योगी का है जिसकी यह अलौकिक सृष्टि है यह घाटी ! ये युवतियां योग कन्यायें हैं। कई जन्मों की साधना के बाद इन्होंने इस दिव्य अवस्था को प्राप्त किया है। योग में इसी को कैवल्य अवस्था कहते हैं। ये सब भी आत्म शरीर धारिणी हैं। लेकिन विशेष अवसर के कारण इन्होंने भौतिक देह की रचना कर ली है।"आत्म शरीर को उपलब्ध योगत्माएँ इच्छा अनुसार कभी भी भौतिक देह की रचना कर सकती हैं।
यह एक सामान्य विवरण है |इस घाटी के सम्बन्ध में अनेक लेखकों ने ,योगियों ने चर्चा की है ,किन्तु वास्तव में यहाँ से जुड़ने वाला इसके बारे में नहीं बताता |भारत के कुछ तथाकथित स्वयंभू गुरुओं -लेखकों ने तो खुद को इस घाटी अथवा इसमें स्थित आश्रमों से जोडकर अनेक कहानियां प्रचारित कर राखी हैं ,अथवा खुद को वर्षों वहां साधना किया हुआ बताया है अपनी पुस्तकों में |पर यह उनकी आत्म प्रशंशा मात्र है |सोचने वाली बात है जिस जगह को कोई सामान्य साधक जान नहीं सकता ,उच्च साधक भी अपनी इच्छा से देखा नहीं सकता ,ऐसी जगह ये लेखक और मामूली साधक जाकर साधना कर आयें और बताते भी रहें ,बात कुछ हजम नहीं होती |इस अवस्था को पहुंचा साधक जो वहां जा सके और साधना कर सके ,वापस आकर ज्ञान और साधना का प्रकाश फैलाएगा जरुर किन्तु आत्म प्रशंशा अथवा उस जगह के बारे में कदापि नहीं बताएगा |कुछ लोगों ने तो इन आश्रमों से मिलते जुलते नाम वाले आश्रम भी बना रखे हैं ,जबकि इन्हें गुरु तक की मान्यता नहीं मिली |खैर यह एक अलग विषय है |
यह घाटी तो है ,क्योकि अनेकानेक योगियों और tantra गुरुओं द्वारा इनका कहीं न कहीं उल्लेख मिलता है |यह घाटी ही चीन के भारत पर आक्रमण का कारण रही है ,अन्यथा चीन को पहाड़ों में क्या मिलता ,वह उतने के बाद ही क्यों रुक जाता |कमजोर भारतीय सेना को कुचलते वह भारत पर भी नियंत्रण कर सकता था ,हिमांचल ,अरुणांचल तो कम से कम ले ही सकता था ,किन्तु उसने कोई राज्य नहीं लिया ,उन क्षेत्रों पर ही आधिपत्य किया जहाँ इस क्षेत्र के होने की समभावना है |माओ को अपनी आयु बढाने और चिरंजीवी होने की सनक थी और वह इस क्षेत्र पर कब्जा करके मृत्यु मुक्त होना चाहता था |
विवरण के अनुसार चीन को पता था की संगरीला घाटी सिद्ध लामाओं ,तांत्रिकों ,योगियों का केंद्र है |यह जो चाहते हैं वही होता है |अतः वह बलात इसपर नियंत्रण करना चाहता था |उसकी सेना एक लामा का पीछ करते हुए भारत में घुसी थी |जिस क्षेत्र में उस लामा के गायब होने की आशंका थी वहां वहां चीन ने आक्रमण कर दिया क्योकि उसका मानना था की वह लामा इस क्षेत्र को जानता है |बहुत दिनों चीन की सेना ने इन क्षेत्रों के चप्पे चप्पे को छाना किन्तु यह उनकी दृष्टि में नहीं आया |उन क्षेत्रों पर आजतक उसने कब्जा जमाये रखा है |जब वहां यह क्षेत्र नहीं मिल रहा तो उसका संदेह है की सिक्किन अथवा अरुणांचल में यह क्षेत्र हो सकता है ,अतः गाहे बगाहे इन क्षेत्रों को अपना बताता रहता है |
यह संग्रीला घाटी की अलौकिकता है जो चीन को परेशान किये हुए है |यहाँ केवल भारत ,तिब्बत ,चीन ही नहीं पूरे विश्व के अलौकिक ऊर्जा संपन्न साधकों को मार्गदर्शन मिलता है ,चाहे वह किसी धर्म के हों |यहाँ अनेकानेक ऐसे साधक -योगी होते हैं जो हजारों हजार साल से साधना रत होते हैं |उन पर आयु का कोई प्रभाव नहीं होता |हम सब ने अनेक कथाओं कहानियों में सुना है की अमुक योगी -महात्मा -साधू हिमालय पर तप करने चला गया |सोचिये वह हिमालय के बर्फ में कहाँ जाएगा |वह एक निश्चित योग्यता प्राप्त कर यहाँ बुला लिया जाता है आगे की साधना और मार्गदर्शन के लिए |यहाँ से पूर्णता प्राप्त कर कुछ वापस भी लौट आते हैं और यहाँ के साधकों का मार्गदर्शन करते हैं |यह क्षेत्र मानसरोवर -कैलाश के आसपास है ,जिसे शिव का वासस्थान माना जाता है |किन्तु दृष्टव्य नहीं है |अलौकिकउर्जा से घिरा और अदृश्य है |दृष्टव्य क्षेत्र में स्वर्ग की सीढियां भी मिली हैं |महाभारत बाद इसी क्षेत्र में पांडव भी गए |संभव है उस क्षेत्र में ही गए हों |जो भी हो पर निर्विवाद रूप से यह क्षेत्र तो है जो हरेक उच्च स्तर के साधकों का मार्गदर्शक होता है और जिन्हें इस घाटी के सिद्ध स्वयं खोज लेते हैं |..............................................................हर-हर महादेव
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संग्रीला घाटी सामान्य जन के लिए अनजान जगह हो सकती है ,किन्तु उच्च स्तरीय अध्यात्म क्षेत्र से जुड़ा व्यक्ति इससे अनजान नहीं रह सकता ,फिर वह चाहे वह व्यक्ति योग से जुड़ा हो ,tantra से जुड़ा हो अथवा किसी तरह के अध्यात्म क्षेत्र से जुड़ा हो ,हाँ उसकी स्थिति उच्च अवश्य होनी चाहिए |यह घाटी भारत ही नहीं पूरे विश्व के अध्यात्म जगत का नियंत्रण और पथ प्रदर्शक क्षेत्र है ,साथ ही यह सामान्य व्यक्ति की दृष्टि से देखा भी नहीं जा सकता | न इसे कोई देख सकता है न वहां जा सकता है ,जब तक की वहां रहने वाले सिद्ध न चाहें |यहाँ तक की पूरी चीनी सेना खोज कर थक गई किन्तु इस क्षेत्र को न खोज पायी |जिस प्रकार वायु मंडल में बहुत से स्थान हैं जहाँ वायु शून्यता रहती है,उसी प्रकार इस धरती पर अनेक ऐसे स्थान है जो भू हीनता के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। भू हीनता और वायु शून्यता वाले स्थान चौथे आयाम से प्रभावित होते हैं। ऐसे स्थान देश और काल से परे होते हैं। यदि उनमें कोई वस्तु या व्यक्ति अनजाने में चला जाय तो इस तीन आयाम वाले स्थूल जगत में उसका अस्तित्व लुप्त हो जाता है। वह वस्तु इस दुनिया से गायब हो जाती है।
आपने सुना होगा ,समाचार पत्रों में पढ़ा होगा की बरमूढा त्रिकोनाकृति एक ऐसा समुद्र में स्थान है जहाँ कोई पानी का जहाज चला जाय या उसके ऊपर आकाश में हवाई जहाज़ चला जाय तो एकाएक वह गायब हो जायेगा। वह स्थान भू हीनता के क्षेत्र में आता है। ऐसी ही तिब्बत और अरुणांचल की सीमा स्थित संग्रिला घाटी है। लेकिन भू हीनता और चौथे आयाम से प्रभावित होने के कारण वह घाटी अभी तक रहस्यमयी बानी हुई है। वह इन चर्म चक्षुओं से दिखाई नहीं देती है। ऐसा माना जाता है कि इस घाटी का सम्बन्ध अंतरिक्ष के किसी लोक से है।
इस विषय से सम्बंधित एक प्राचीन पुस्तक है-काल विज्ञान। तिब्बती भाषा में लिखी यह पुस्तक तवांग मठ के पुस्तकालय में विद्यमान है। काल विज्ञान के अनुसार इस तीन आयाम वाली दुनियां की हर चीज़ देश,काल और निमित्त से बंधी हुई है। लेकिन संग्रीला घाटी में काल नगण्य है। वहां प्राण,मन और विचार की शक्ति एक विशेष सीमा तक बढ़ जाती है। शारीरिक क्षमता और मानसिक चेतना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। काल की नगण्यता के फलस्वरूप वहां आयु अति धीमी गति से बढ़ती है। यदि किसी व्यक्ति ने उसमे 25 वर्ष की उम्र में प्रवेश किया है तो उसका शरीर लंबे समय तक युवा बना रहेगा। स्वर्ग जैसी वातावरण में डूबी हुई यह घाटी एक कालंजयी की इच्छा सृष्टि है। जो लोग इस घाटी से परिचित हैं उनका कहना है कि प्रसिद्द योगी श्यामा चरण लाहिड़ी के गुरु अवतारी बाबा जिन्होंने आदि शंकराचार्य को भी दीक्षा दी थी,संग्रीला घाटी के किसी सिद्ध आश्रम में अभी भी निवास कर रहे हैं। जब कभी आकाश मार्ग से चल कर अपने शिष्यों को दर्शन भी देते हैं।
यहाँ के तीन साधना केंद्र प्रसिद्द हैं। पहला है-"ज्ञानगंज मठ", दूसरा है-"सिद्ध विज्ञान आश्रम" और तीसरा है-" योग सिद्धाश्रम"। यहाँ पर दीर्घजीवी,कालंजयी योगी अपने आत्म शरीर से निवास करते हैं ।सूक्ष्म शरीर से विचरण करते हैं और कभी कदा स्थूल शरीर भी धारण कर लेते हैं। स्वामी विशुद्धानन्द परमहंस जो सूर्य विज्ञान में पारंगत थे ज्ञानगंज मठ से जुड़े हुए थे। इस संग्रीला घाटी में रहने वाले योगी आचार्य गण संसार के योग्य शिष्यों को खोज खोज कर इस घाटी में लाते हैं और उन्हें दीक्षा देकर पारंगत बना कर फिर इसी संसार में ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए भेज देते हैं। इन तीनों आश्रमों के आलावा वहाँ तंत्र के भी अनेक केंद्र हैं जहाँ उच्च कोटि के कापालिक और शाक्त साधक निवास करते हैं। इसी प्रकार बौद्ध लामाओं के भी वहां मठ हैं। उनमें रहने वाले साधक स्थूल जगत के निवासियों से अपने को गुप्त रखे हुए हैं।
संग्रीला घाटी में प्रवेश करने वाले एक योगी साधक के अनुभव के अनुसार--
वहां न सूर्य का प्रकाश है और न चाँद की चांदनी। वातावरण में एक दूधिया प्रकाश फैला हुआ है जो कहाँ से आ रहा है इसका पता किसी को नहीं है। एक अनिर्वचनीय सुंदरता और शांति का साम्राज्य है वहां। यह सम्पूर्ण घाटी एक महान योगी की इच्छा शक्ति के वशीभूत है। " मैंने लामा के साथ उस आश्रम में प्रवेश किया तो मुंह बाये उस महान् योगी की कृति देखता ही रह गया। तभी वहां एक अद्भुत घटना घटी। मैंने देखा कि न जाने कहाँ से दर्जनों युवतियां वहां आ गईं। आश्चर्य की बात यह थी कि सभी की आयु बराबर थी। रूप,रंग और कद भी समान था। 16 वर्ष की आयु से अधिक की नहीं थी वे। सभी के बाल खुले हुए थे ।शरीर पर गेरुये रंग की रेशमी साड़ियां थी और गले में स्फटिक की मालाएं पड़ी हुई थी। सभी के चहरे अपूर्व तेज से दमक रहे थे और एक विलक्षण शांति छाई थी वहां पर। " युवतियों के हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि वे किसी के आने की प्रतीक्षा कर रही हैं। मेरा अनुमान गलत नहीं था। थोड़ी ही देर बाद देखा की एक तेज पुंज सहसा वहां प्रकट हुआ। अद्भुत था वह प्रकाश पुंज! प्रकाश पुंज धीरे धीरे आश्रम के भीतर के ओर जाने लगा। युवतियां भी उसके पीछे पीछे चलने लगीं। मेरे उस लामा से पूछने पर उसने बताया कि यह आत्म शरीर है। योगियों का आत्म शरीर ऐसा ही होता है। यह आत्म शरीर उसी परम योगी का है जिसकी यह अलौकिक सृष्टि है यह घाटी ! ये युवतियां योग कन्यायें हैं। कई जन्मों की साधना के बाद इन्होंने इस दिव्य अवस्था को प्राप्त किया है। योग में इसी को कैवल्य अवस्था कहते हैं। ये सब भी आत्म शरीर धारिणी हैं। लेकिन विशेष अवसर के कारण इन्होंने भौतिक देह की रचना कर ली है।"आत्म शरीर को उपलब्ध योगत्माएँ इच्छा अनुसार कभी भी भौतिक देह की रचना कर सकती हैं।
यह एक सामान्य विवरण है |इस घाटी के सम्बन्ध में अनेक लेखकों ने ,योगियों ने चर्चा की है ,किन्तु वास्तव में यहाँ से जुड़ने वाला इसके बारे में नहीं बताता |भारत के कुछ तथाकथित स्वयंभू गुरुओं -लेखकों ने तो खुद को इस घाटी अथवा इसमें स्थित आश्रमों से जोडकर अनेक कहानियां प्रचारित कर राखी हैं ,अथवा खुद को वर्षों वहां साधना किया हुआ बताया है अपनी पुस्तकों में |पर यह उनकी आत्म प्रशंशा मात्र है |सोचने वाली बात है जिस जगह को कोई सामान्य साधक जान नहीं सकता ,उच्च साधक भी अपनी इच्छा से देखा नहीं सकता ,ऐसी जगह ये लेखक और मामूली साधक जाकर साधना कर आयें और बताते भी रहें ,बात कुछ हजम नहीं होती |इस अवस्था को पहुंचा साधक जो वहां जा सके और साधना कर सके ,वापस आकर ज्ञान और साधना का प्रकाश फैलाएगा जरुर किन्तु आत्म प्रशंशा अथवा उस जगह के बारे में कदापि नहीं बताएगा |कुछ लोगों ने तो इन आश्रमों से मिलते जुलते नाम वाले आश्रम भी बना रखे हैं ,जबकि इन्हें गुरु तक की मान्यता नहीं मिली |खैर यह एक अलग विषय है |
यह घाटी तो है ,क्योकि अनेकानेक योगियों और tantra गुरुओं द्वारा इनका कहीं न कहीं उल्लेख मिलता है |यह घाटी ही चीन के भारत पर आक्रमण का कारण रही है ,अन्यथा चीन को पहाड़ों में क्या मिलता ,वह उतने के बाद ही क्यों रुक जाता |कमजोर भारतीय सेना को कुचलते वह भारत पर भी नियंत्रण कर सकता था ,हिमांचल ,अरुणांचल तो कम से कम ले ही सकता था ,किन्तु उसने कोई राज्य नहीं लिया ,उन क्षेत्रों पर ही आधिपत्य किया जहाँ इस क्षेत्र के होने की समभावना है |माओ को अपनी आयु बढाने और चिरंजीवी होने की सनक थी और वह इस क्षेत्र पर कब्जा करके मृत्यु मुक्त होना चाहता था |
विवरण के अनुसार चीन को पता था की संगरीला घाटी सिद्ध लामाओं ,तांत्रिकों ,योगियों का केंद्र है |यह जो चाहते हैं वही होता है |अतः वह बलात इसपर नियंत्रण करना चाहता था |उसकी सेना एक लामा का पीछ करते हुए भारत में घुसी थी |जिस क्षेत्र में उस लामा के गायब होने की आशंका थी वहां वहां चीन ने आक्रमण कर दिया क्योकि उसका मानना था की वह लामा इस क्षेत्र को जानता है |बहुत दिनों चीन की सेना ने इन क्षेत्रों के चप्पे चप्पे को छाना किन्तु यह उनकी दृष्टि में नहीं आया |उन क्षेत्रों पर आजतक उसने कब्जा जमाये रखा है |जब वहां यह क्षेत्र नहीं मिल रहा तो उसका संदेह है की सिक्किन अथवा अरुणांचल में यह क्षेत्र हो सकता है ,अतः गाहे बगाहे इन क्षेत्रों को अपना बताता रहता है |
यह संग्रीला घाटी की अलौकिकता है जो चीन को परेशान किये हुए है |यहाँ केवल भारत ,तिब्बत ,चीन ही नहीं पूरे विश्व के अलौकिक ऊर्जा संपन्न साधकों को मार्गदर्शन मिलता है ,चाहे वह किसी धर्म के हों |यहाँ अनेकानेक ऐसे साधक -योगी होते हैं जो हजारों हजार साल से साधना रत होते हैं |उन पर आयु का कोई प्रभाव नहीं होता |हम सब ने अनेक कथाओं कहानियों में सुना है की अमुक योगी -महात्मा -साधू हिमालय पर तप करने चला गया |सोचिये वह हिमालय के बर्फ में कहाँ जाएगा |वह एक निश्चित योग्यता प्राप्त कर यहाँ बुला लिया जाता है आगे की साधना और मार्गदर्शन के लिए |यहाँ से पूर्णता प्राप्त कर कुछ वापस भी लौट आते हैं और यहाँ के साधकों का मार्गदर्शन करते हैं |यह क्षेत्र मानसरोवर -कैलाश के आसपास है ,जिसे शिव का वासस्थान माना जाता है |किन्तु दृष्टव्य नहीं है |अलौकिकउर्जा से घिरा और अदृश्य है |दृष्टव्य क्षेत्र में स्वर्ग की सीढियां भी मिली हैं |महाभारत बाद इसी क्षेत्र में पांडव भी गए |संभव है उस क्षेत्र में ही गए हों |जो भी हो पर निर्विवाद रूप से यह क्षेत्र तो है जो हरेक उच्च स्तर के साधकों का मार्गदर्शक होता है और जिन्हें इस घाटी के सिद्ध स्वयं खोज लेते हैं |..............................................................हर-हर महादेव
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