Thursday, 26 March 2020

शिवलिंग अभिषेक से मनोकामना पूर्ति होती है

शिवलिंग पूजा और शिवलिंग के अभिषेक से मनोकामना पूर्ती 
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शिवलिंग भगवान् शिव का स्वरुप माना जाता है |शिव अर्थात समस्त ब्रह्माण्ड जिसमे समाया है |अर्थात शिवलिंग समस्त ब्रह्माण्ड की स्थूल प्रतिकृति यानी शिव की प्रतिकृति |शिव के इस स्वरुप को शिवलिंग के रूप में परिभाषित किया गया है |इसके गंभीर और गूढ़ निहितार्थ भी हैं और मिथकीय कहानियां भी |यह आस्था का केंद्रबिंदु भी है और मनोकामना पूर्ती का सर्वोच्च साधन भी क्योकि यह उस सर्वोच्च सत्ता का प्रतिनिधित्व करता है ,जो समस्त का नियंता है |इस शिवलिंग की पूजा की विशिष्ट पद्धति है और इस पर विशिष्ट वस्तुओं के लेप अथवा अभिषेक का भिन्न प्रभाव भी होता है |
- जब किसी का मन विचलित हो, अवसाद से भरा हो, परिवार में कलह हो रहा हो, अनचाहे दु:ख और कष्ट मिल रहे हो तब शिव लिंग पर दूध की धारा चढ़ाना सबसे अच्छा उपाय है। इसमें भी शिव मंत्रों का उच्चारण करते रहना चाहिए।
- कुल की वृद्धि के लिए शिवलिंग पर शिव सहस्त्रनाम बोलकर घी की धारा अर्पित करें।
- शिव पर जलधारा से अभिषेक मन की शांति के लिए श्रेष्ठ मानी गई है।
- भौतिक सुखों को पाने के लिए इत्र की धारा से शिवलिंग का अभिषेक करें।
- रोग मुक्ति के लिए शहद की धारा से शिव पूजा करें।
- गन्ने के रस की धारा से अभिषेक करने पर हर सुख और आनंद मिलता है।
- सभी धाराओं से श्रेष्ठ है गंगाजल की धारा। शिव को गंगाधर कहा जाता है। शिव को गंगा की धार बहुत प्रिय है। गंगा जल से शिव अभिषेक करने पर चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है। इससे अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मन्त्र जरुर बोलना चाहिए। सावन माह में शिव का ऐसी धाराओं से अभिषेक व पूजा से भगवान शिव के साथ शक्ति, श्री गणेश और धनलक्ष्मी का आशीर्वाद भी मिलता हैI
शिवलिंग पूजा मन से कलह को मिटाकर जीवन में हर सुख और खुशियाँ देने वाली मानी गई है। हर देव पूजा के समान शिवलिंग पूजा में भी श्रद्धा और आस्था महत्व रखती है। किंतु इसके साथ शास्त्रोंक्त नियम-विधान अनुसार शिवलिंग पूजा शुभ फल देने वाली मानी गई है। इन नियमों में एक है शिवलिंग पूजा के समय भक्त का बैठने की दिशा। जानते हैं शिवलिंग पूजा के समय किस दिशा और स्थान पर बैठना कामनाओं को पूरा करने की दृष्टि से विशेष फलदायी है।
- जहां शिवलिंग स्थापित हो, उससे पूर्व दिशा की ओर चेहरा करके नहीं बैठना चाहिये। क्योंकि यह दिशा भगवान शिव के आगे या सामने होती है और धार्मिक दृष्टि से देव मूर्ति या प्रतिमा का सामना या रोक ठीक नहीं होती।
- शिवलिंग से उत्तर दिशा में भी न बैठे। क्योंकि इस दिशा में भगवान शंकर का बायां अंग माना जाता है, जो शक्तिरुपा देवी उमा का स्थान है।
- पूजा के दौरान शिवलिंग से पश्चिम दिशा की ओर नहीं बैठना चाहिए। क्योंकि वह भगवान शंकर की पीठ मानी जाती है। इसलिए पीछे से देवपूजा करना शुभ फल नहीं देती।
- इस प्रकार एक दिशा बचती है - वह है दक्षिण दिशा। इस दिशा में बैठकर पूजा फल और इच्छापूर्ति की दृष्टि से श्रेष्ठ मानी जाती है। सरल अर्थ में शिवलिंग के दक्षिण दिशा की ओर बैठकर यानि उत्तर दिशा की ओर मुंह कर पूजा और अभिषेक शीघ्र फल देने वाला माना गया है। इसलिए उज्जैन के दक्षिणामुखी महाकाल और अन्य दक्षिणमुखी शिवलिंग पूजा का बहुत धार्मिक महत्व है।
शिवलिंग पूजा में सही दिशा में बैठक के साथ ही भक्त को भस्म का त्रिपुण्ड़् लगाना, रुद्राक्ष की माला पहनना और बिल्वपत्र अवश्य चढ़ाना चाहिए। अगर भस्म उपलब्ध न हो तो मिट्टी से भी मस्तक पर त्रिपुण्ड्र लगाने का विधान शास्त्रों में बताया गया है।...........................................................हर-हर महादेव

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