Thursday 26 March 2020

शिवलिंग का अर्थ क्या है ?

शिवलिंग का अर्थ
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 अन्य धर्म के लोग अथवा नास्तिक अथवा नासमझ लोग शिवलिंग की पूजा की आलोचना करते है.. छोटे छोटे बच्चो को बताते है कि हिन्दू लोग लिंग और योनी की पूजा करते है..इन नासमझों को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता है..हिन्दुओ के प्रति नफ़रत पैदा करने अथवा हिन्दुओं में ही अविश्वास और संदेह उत्पन्न करने के लिए इस तरह की बातें उड़ाई जाती हैं |हमारे तथाकथित विद्वान् भी उनकी सोच का खंडन अधिकतर नहीं कर पाते क्योकि उनमे से सब को इसके सही अर्थ का खुद ज्ञान नहीं होता | इसका अर्थ इस प्रकार है..
पहले भाषा का ज्ञान ले......
लिंग>>> लिंग का संस्कृत भाषा में चिन्ह ,प्रतीक अर्थ होता है… जबकी जनर्नेद्रीय (मानव अंग ) को संस्कृत भाषा मे (शिशिन) कहा जाता है..
शिवलिंग >>> शिवलिंग का अर्थ शिव का प्रतीक….
" शिवलिंग " शब्द में ' लिंग ' शब्द दो शब्दों से बना है, " लीन + गा (गति) " अर्थात, शिव में लीन होकर ही मनुष्य को गति प्राप्त होता है;  यानी, शिव के निराकार स्वरूप में ध्यान-मग्न आत्मा सद्गति को प्राप्त होती है, उसे परब्रह्म की प्राप्ति होती है।
तात्पर्य यह है कि हमारी आत्मा का मिलन परमात्मा के साथ कराने का माध्यम-स्वरूप है, शिवलिंग! 
शिवलिंग साकार एवं निराकार ईश्वर का 'प्रतीक' मात्र है, जो परमात्मा - आत्म-लिंग का द्योतक है। 
शिवलिंग शाश्वत-आत्मा का स्वरूप है, जो न जल से प्रभावित होता है, न अग्नि से, न पृथ्वी से, न किसी अस्त्र-शस्त्र से... जो अजित है, अजेय है! शिव और शक्ति का पूर्ण स्वरूप है, शिवलिंग।
>>पुरुषलिंग का अर्थ पुरुष का प्रतीक  इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ स्त्री का प्रतीक और  नपुंसकलिंग का अर्थ है ..नपुंसक का प्रतीक —-
अब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य के जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है..तो वे बताये ”स्त्री लिंग ”’के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए… और खुद अपनी औरतो के लिंग को बताये फिर आलोचना करे—-
”शिवलिंग”’क्या है >>>>>
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। 
स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है। शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है नाही शुरुवात | जो शाश्वत है |
ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ |  हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है|
इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है | ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है. (The universe is a sign of Shiva Lingam.) शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है
अब बात करते है योनि शब्द पर —- मनुष्ययोनि ”पशुयोनी”पेड़-पौधों की योनि”’पत्थरयोनि”’ >>>> योनि का संस्कृत में प्रादुर्भाव ,प्रकटीकरण अर्थ होता है.. जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है.. कुछ धर्म में पुर्जन्म की मान्यता नहीं है ..इसीलिए योनि शब्द के संस्कृत अर्थ को नहीं जानते है जबकी हिंदू धर्म मे ८४ लाख योनी यानी ८४ लाख प्रकार के जन्म है अब तो वैज्ञानिको ने भी मान लिया है कि धरती मे ८४ लाख प्रकार के जीव (पेड, कीट,जानवर,मनुष्य आदि) है…. मनुष्य योनी >>>>पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनि होता है..अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनि शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता है।
शिव लिंग ऊर्जा ब्रह्मांडीय ऊर्जा प्राप्ति का माध्यम
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भारत का रेडियोएक्टिविटी मैप उठा लो तो हैरान हो जाओगे। क्योंकि भारत सरकार के नुक्लिएर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगो के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है |यहाँ रेडियेशन नहीं होता किन्तु रेडियेशन चित्र में रेडियेशन दिखता है अर्थात यहाँ ऊर्जा उत्पन्न होती है | शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि एक प्रकार के न्यूक्लिअर रिएक्टर्स ही हैं एक उर्जा स्रोत है ,जिनका सम्बन्ध ब्रह्मांडीय ऊर्जा धाराओं से होता है ,iइन ज्योतिर्लिंगों से ऊर्जा निकलती है जो अभिषेक करने वालों और आसपास आने वालों को प्रभावित करती है ,ज्योर्लिंगों पर अनवरत जल धारा डाली जाती है ,उनपर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे।
महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं | क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है तभी जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता |
भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिव लिंग की तरह है |शिव लिंग से सम्बन्धित हम जिस रेडियो एक्टिविटी या रिएक्टिव जल की बात कर रहे वह वास्तव में युरेनियम ,थोरियम ,प्लुटोनियम रेडियेशन या एटामिक रिएक्टर्स जैसा रेडियेशन नहीं अपितु प्रबल उर्जा का प्रवाह है जो बिलकुल भिन्न होता है और चढ़ाया जल भी ऊर्जा संतृप्त होता है |शिवलिंग जिस वस्तु का बना होगा ऊर्जा की प्रकृति भिन्न होगी तभी कहा जाता है की कुछ विशेष प्रकार के शिवलिंग पर चढ़ाया प्रसाद ही खाया जा सकता है सभी शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद और जल नहीं ग्रहण किया जा सकता |यहाँ तक की शिवलिंग पर चढ़ी वस्तुएं भी तीव्र प्रभावकारी हो जाती है जैसे फल फूल पत्र आदि |इनसे अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के प्रयोग तांत्रिक कर डालते हैं |
                    शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिल कर औषधि का रूप ले लेता है | तभी हमारे बुजुर्ग हम लोगों से कहते कि महादेव शिव शंकर अगर नराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी |
ज़रा गौर करो, हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है  | आज इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए ,जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते | जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है वो सनातन है,, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें |हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों द्वारा हजारों लाखों वर्ष पूर्व जिस वैज्ञानिक संस्कृति ,पंरम्परा को नियम बनाकर मानवजीवन का एक अभिन्न अंग बना दिया है |उसे देख कर ही आज के वैज्ञानिक दाँतो तले अंगुली दबा लेते है।.सोचिये शिव की पूजा तो आप करते हैं किन्तु शिवलिंग पूरे विश्व में पाए जाते हैं ,क्यों ,दुसरे धर्मों ,सम्प्रदायों में यह कहाँ से आया ,किसी न किसी रूप में अन्य स्थानों पर क्यों इनकी प्रतिष्ठा है |इससे आपको समझ आ जाएगा की शिवलिंग इतना महान क्यों हैं |....................................................................हर-हर महादेव 

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