Thursday 26 March 2020

ॐ की साधना से क्या क्या लाभ होते हैं ?

:::::::::::ॐ अथवा ओंकार साधना ::::::::::::
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"ॐ" (ओ३म्) सबसे बड़ा बीज मन्त्र है, अन्य सब मन्त्रों की उत्पत्ति इसी मन्त्र से हुई है, सृष्टि की उत्पत्ति भी इसी मंत्र से हुई है |"ॐ" (ओ३म् ) और तारक मन्त्र "राम" दोनों एक ही हैं| दोनों का फल भी एक ही है| वैसे तो ओंकार की चेतना में निरंतर रहें पर विधिवत् साधना में कुछ बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है ---
(1) ओंकार का ध्यान करते समय कमर सीधी रहे यानि मेरु दंड उन्नत रहे|
(2) दृष्टी भ्रूमध्य में रहे| जो उन्नत साधक है उनकी दृष्टी भ्रूमध्य और सहस्त्रार पर एक साथ रहे|
(3) आसन ऊनी हो जिस पर एक रेशम का वस्त्र विछा हो|
(4) मुँह पूर्व या उत्तर दिशा में हो|
(5) जो दायें हाथ से लिखते हैं उनको दायें कान में व जो बाएँ हाथ से लिखते हैं उनको बाँयें कान में ओंकार की ध्वनी सुनेगी| कुछ समय पश्चात ओंकार की ध्वनी खोपड़ी के पीछे के भाग, शिखास्थान से नीचे, मेरुशीर्ष (medulla) जहां मस्तिष्क से मेरुदंड की नाड़ियाँ मिलती हैं, वहाँ सुननी आरम्भ हो जायेगी और उसका विस्तार सारे ब्रह्माण्ड में होने लगेगा| एक विराट ज्योति का प्रादुर्भाव भी यहीं से होगा जो भ्रूमध्य में प्रतिबिंबित होगी| यह मेरुशीर्ष यानि मस्तक ग्रंथि ही वास्तविक आज्ञाचक्र है| भ्रूमध्य तो दर्पण की तरह है जहाँ गुरु की आज्ञा से ध्यान करते हैं|
(6) आरम्भ में लकड़ी के "T" के आकार के लकड़ी के एक हत्थे को सामने रखकर उस पर अपनी कोहनियाँ टिका दें, अंगूठों से कान बंद कर लें और ओंकार की ध्वनी को सुनें| साथ साथ मानसिक रूप से ओ३म् ओ३म् ओ३म् का जाप करते रहें| "ॐ" यह लिखने में प्रतीकात्मक है, और "ओ३म्" यह ध्वन्यात्मक है| इस की लिखावट पर कोई विवाद ना करें| महत्व उस का है जो सुनाई देता है, न कि कैसे लिखा गया है|
आरम्भ में जब कान बंद करेंगे तो कई प्रकार की ध्वनियाँ सुनेंगी| जो सबसे तीब्र है उसी पर ध्यान दें|
(7) कुछ धर्मगुरुओं के अनुसार ॐ के जाप का अधिकार मात्र सन्यासियों को है, गृहस्थों को नहीं| गृहस्थ ॐ के साथ भगवान के अन्य किसी नाम का सम्पुट लगाएँ| पर मैं इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता क्योंकि यह वेदविरुद्ध है| सारे उपनिषद् और भगवद्गीता "ओंकार' की महिमा से भरे पड़े हैं| जो उपनिषदों में यानि वेदों में है वही प्रमाण है, वही मान्य है| जो वेदविरुद्ध है वह अमान्य है|
(8) भ्रूमध्य में ज्योतिर्मय ब्रह्म के दर्शन, और कानों से ओंकार की ध्वनी यानि नादब्रह्म को सुनते रहें व मन में ओंकार का जप करते रहें| किसी भी तरह के वाद-विवाद में ना पड़ें| आपका लक्ष्य परमात्मा है, ना कि कोई सिद्धांत या बौद्धिकता|
(9) उपरोक्त साधना की सफलता एक ही तथ्य पर निर्भर है की आपके ह्रदय में कितनी भक्ति है| बिना भक्ति के कोई लाभ नहीं होगा और आप कुछ कर भी नहीं पाएँगे| जितनी गहरी भक्ति होगी उतनी ही अच्छी साधना होगी, उतना ही गहरा समर्पण होगा| कर्ताभाव ना आने दें| सब कुछ प्रभु के चरणों में समर्पित कर दें| कर्ता भी वे ही है और भोक्ता भी वे हैं| आप तो उनके एक उपकरण मात्र हैं|
अपना सब कुछ, अपना सम्पूर्ण अस्तित्व उन्हें समर्पित कर दें| इसकी इतनी महिमा है कि उसे बताने की सामर्थ्य मेरी क्षमता से परे है|
(10) ज्योतिर्मय नाद ब्रह्म की सर्वव्यापक चेतना और उस में विलय होकर उससे एकाकार होना ही 'कूटस्थ चैतन्य' है और यह कूटस्थ ही आत्मगुरु है और यही गुरुतत्व है|
 ॐ के उच्चारण के शारीरिक लाभ 
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ॐ अर्थात् ओउम् तीन अक्षरों से बना है, जो सर्व विदित है । अ उ म् । "अ" का अर्थ है उत्पन्न होना, "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है।
 [1] अनेक बार ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है|
 [2] अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।
 [3] यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।
 [4] यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।
 [5] ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।
 [6] इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।
 [7] थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।
 [8] नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आएगी।
 [9]  कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।
 [10] ॐ के पहले शब्द का उच्चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।
 [11] ॐ के दूसरे अक्षर का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो कि थायरायड ग्रंथी पर प्रभाव डालता है।
अब हम आपको अपने व्यक्तिगत अनुभव की भी कुछ बातें बता देते हैं |ॐ केवल शरीर पर ही प्रभाव नहीं डालता और शरीर की ही समस्याएं नहीं दूर करता ,यह आपमें अलौकिकता भर देता है ,आपको अलौकिक शक्तियाँ भी प्रदान करता है आप अगर गंभीरता से प्रयास करें तो |ॐ के जप से ,ॐ के चिंतन से ,ॐ के मनन से ,ॐ को खुद में सुनने से ,ॐ का ध्यान करने से आप भूत -भविष्य -वर्त्तमान देखने की क्षमता प्राप्त कर त्रिकालज्ञ बन सकते हैं |आपमें वह शक्तियाँ आ जाती हैं की आप किसी को भी प्रभावित कर सकते हैं ,आप दुसरे के मन की बात भी जान सकते हैं और दुसरे के मन में अपनी बात भी पहुंचा सकते हैं |आपके लिए असंभव शब्द समाप्त हो जाते हैं अगर अप साधना करते हैं तो |आपका व्यक्तित्व अलौकिक और दिव्य हो जाता है जिससे आपको सांसारिक जीवन में तो सभी सुख प्राप्त होते ही हैं ,आपकी मुक्ति भी सुनिश्चित हो जाती है |
हम आपको बताना चाहेंगे की ॐ एक सर्वोच्च प्रणव है अर्थात ऐसा शब्द जो अपने आप में पूर्ण है |संसार में कुछ और शब्द प्रणव है और जिनके आगे ॐ लगाना आवश्यक नहीं होता ,जैसे ह्रीं ,श्रीं ,ऐं ,क्रीं और क्लीं |इनकी अपनी शक्ति होती है और यह खुद में प्रणव हैं जिनसे शुरू होने वाले मन्त्रों के आगे ॐ लगाना आवश्यक नहीं होता किन्तु इनके आगे भी ॐ लगाया जा सकता है और ॐ के लगते ही इनके मंत्र की ऊर्जा प्रकृति बदल जाती है |यह मंत्र एक विशेष प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न करते हैं जो विशिष्ट कार्य करते हैं और एक विशिष्ट शक्ति उत्पन्न करते हैं ,ॐ लगते ही इनमे एक ऐसी सम्पूर्णता आ जाती है की इनकी विशेषता तो बनी रहती है किन्तु इनकी शक्ति का विस्तार पूर्णता लिए हो जाता है जिससे व्ही मंत्र सभी क्षेत्रों में लाभदायक हो जाता है |
चूंकि हम स्वयं साधक हैं अतः हमारा यह मानना है की ॐ ,क्रीं ,क्लीं ,ह्रीं ,श्रीं और ऐं जैसे शब्द जो प्रणव हैं वह ब्रह्माण्ड में स्वतंत्र शक्ति रूप में प्रसारित हो रहे हैं जिससे इनका अपना स्वतंत्र प्रभाव है |अन्य शब्द तो एक विशेष शक्ति हैं किन्तु ॐ एक सम्पूर्ण ऊर्जा है जो परम सौम्य भी है इसके जुड़ते ही किसी भी अन्य प्रणव की उर्जा बदल जाती है और उसको पूर्णता प्राप्त हो जाती है |ऐं को सरस्वती का बीज ,श्रीं को महालक्ष्मी का बीज क्रीं और क्लीं को महाकाली या महागौरी का बीज कहा जाता है |एक और प्रणव ह्रीं को माया बीज कहा जाता है जो भुवनेश्वरी का भी बीज है |क्रीं ,क्लीं ,श्रीं और ऐं तो एक विशिष्ट शक्ति के प्रणव हैं किन्तु ह्रीं माया का बीज होने से यह सभी बीजों ,प्रणव ,मन्त्रों और सभी देवी देवताओं के साथ संयुक्त होता है ,साथ ही इसकी अपनी स्वतंत्र शक्ति भी होती है जिसमे सभी शक्तियाँ भी मिलती हैं भावानुसार |ह्रीं अधिकतर शक्तियों के साथ संयुक्त तो हो जाता हैं पर फिर भी ह्रीं में एक विशिष्टता बनी रहती है |ॐ ही ऐसा प्रणव है जिसमे पूर्ण सम्पूर्णता होती है इसलिए यह सभी के साथ संयुक्त भी हो जाता है और स्वतंत्र रहने पर भी वह सभी लक्ष्य देता है जिसकी भी अभिलाषा हो |इस प्रकार ॐ वह शक्ति है जिससे सब कुछ पाया जा सकता है ,भुक्ति भी और मुक्ति भी | .................................................................हर-हर महादेव

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