Monday, 13 April 2020

अप्सरा साधना असफल क्यों हो जाती है ?

अप्सरा साधना असफल क्यों हो जाती है 
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                       अक्सर लोग हमसे सम्पर्क करते हैं की उन्होंने अप्सरा साधनाएं की लेकिन न तो अप्सरा सिद्ध हुई न ही कोई अनुभूति हुई ,ज्यादातर लोगों को विपरीत परिणाम ही मिले |लाभ तो कुछ नहीं हुआ परेशानी और महसूस हुई |इसके बाद भी लोगों में चाहत इतनी है की हर कोई अप्सरा सिद्ध करना चाहता है ,यक्षिणी सिद्ध करना चाहता है ,बेताल ,जिन्न सिद्ध करना चाहता है ,कर्ण पिशाचिनी ,कर्ण मातंगी ,स्वप्नेश्व्री और पंचंगुली सिद्ध करना चाहता है |सबके उद्देश्य भौतिक होते हैं और धन अथवा शारीरिक सुख की चाह ही इनमे अधिक होती है |हर कोई ऐसी शक्ति चाहता है जो उनके सारे काम भी कर दे और धन समृद्धि ,सौन्दर्य ,शक्ति भी दे दे |आज के युवा और सामान्य लोग इसके पीछे पागल हुए पड़े हैं |इन्हें देखकर इनको बेचने की हजारों दुकाने खुली पड़ी हैं जहाँ यहाँ तक दावा किया जा रहा की इतने पैसे दे दो हम तुम्हे अप्सरा ,परी ,यक्षिणी ,जिन्न ,बेताल ,पिशाचिनी ,पंचंगुली ,भुतेश्वरी दे देते हैं ,दिला देते हैं ,सिद्ध करा देते हैं |लोग पैसे दे भी रहे और ठगे भी जा रहे |लोग यह नहीं सोचते की जिसके पास ऐसी शक्ति होगी वह इंटरनेट पर ,सोशल मिडिया पर यह क्यों कहेगा की वह आपको सिद्ध करा देगा ,सिद्धि दे देगा ,कोई शक्ति आपको दे देगा ,क्योंकि उसके काम तो वह शक्ति ही कर देगी तो उसे आपसे पैसे लेने की क्या जरूरत |अब यह सभी मोक्ष ,मुक्ति की शक्तियाँ तो हैं नहीं ,यह सभी तो भौतिक सुख वाली ही शक्तियाँ हैं |
                   लोगो में सबसे अधिक चाहत अप्सरा और कर्ण पिशाचिनी को लेकर होती है |कर्ण पिशाचिनी भूत काल और वर्त्तमान बताती है जिससे लोग चाहते हैं किसी का भूत काल और आज का बता सके ,भविष्य का तुक्का लगा सकें और पैसे कमा सकें |लोग यह भी सोचते हैं की कर्ण पिशाचिनी से वह शारीरिक सुख भी प्राप्त कर सकते हैं |ऐसा ही कुछ अप्सरा के बारे में लोग सोचते हैं |लोगों की मान्यता है की अप्सरा उनके सारे काम कर देगी ,भौतिक सुख सुविधाएं दे देगी ,आरोग्य और सुन्दरी दे देगी ,यौवन देगी |अप्सरा शारीरिक सुख भी देगी ऐसा लोग सोचते हैं |इनमे कुछ बातें सही भी हैं किन्तु दोनों ही शक्तियों में शारीरिक सुख की बात पूरी तरह सही नहीं है |जिस सुख की बात इनके सम्बन्ध में कही जाती है वह एक अलग सुख है |हमें इससे मतलब नहीं की यह क्या देती है क्या नहीं देती हमारा विषय यह मात्र है की अप्सरा की सिद्धि होती क्यों नहीं |
                                हम आपको बताना चाहेंगे की अप्सरा की सिद्धि और साधना मुख्यतया सामान्य लोगों के लिए थी ही नहीं |यह उच्च स्तर के साधकों नें अपनी सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए विकसित की थी जिससे वह अपनी साधना में रमे रहें और कोई शक्ति ऐसी उनके पास रहे जो उनके लिए सुविधाएं उपलब्ध कराती रहे |बाद इनका प्रसार सामान्य लोगों में भी हो गया |ऐसा नहीं की किसी को यह सिद्ध होती ही नहीं किन्तु अधिकतर सामान्य लोग इसकी सिद्धि में असफल ही होते हैं कारण अनेक होते हैं जिनका विश्लेषण हम आगे करेंगे |सबसे पहले तो हम यह देखते हैं की अप्सरा आखिर है क्या |हम आपको बताना चाहेंगे की अप्सरा नाम की दो तरह की शक्तियाँ होती हैं ,एक तो स्वर्ग लोग अथवा उच्चस्तर के लोक से सम्बन्धित पारलौकिक शक्ति अप्सरा होती है जो बहुत ही मुश्किल से सिद्ध होती है ,बहुत ही उच्च स्तर के साधक को ही |दूसरी पृथ्वी की सतह से सम्बन्धित शक्ति जो अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न होती है |यही अधिकतर अघोरियों ,साधकों और किसी किसी सामान्य व्यक्ति को सिद्ध होती है जिसकी गति मात्र पृथ्वी की सतह तक ही होती है और केवल कुछ हद तक ही यह भविष्य में गति कर सकती है |यह सतही अप्सरा पृथ्वी लोक में ही रहती और विचरण करती है जिसका भौतिक प्रमाण भी मिलता रहा है |यह सुख सुविधाएं जुटा सकती है ,सौन्दर्य ज्ञान दे सकती है ,आरोग्य में सहायक हो सकती है ,रसायनों की जानकारी दे उन्हें उपलब्ध करा सकती है और ज्ञानवान बना सकती है |
                 भारतीय संस्कृति में अप्सरा एक जाना -पहचाना नाम है ,यह नाम वैदिक युग से ही विभिन्न कारणों से जाना जाता है ,,तंत्र जगत में कई धर्मो -सम्प्रदायों में अप्सरा की साधना की जाती है विभिन्न नामों से |अप्सरा देवलोक में रहने वाली अनुपम, अति सुंदर, अनेक कलाओं में दक्ष, तेजस्वी और अलौकिक दिव्य स्त्री है। वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है कि देवी, परी, अप्सरा, यक्षिणी, इन्द्राणी और पिशाचिनी आदि कई प्रकार की स्त्रियां हुआ करती थीं। उनमें अप्सराओं को सबसे सुंदर और जादुई शक्ति से संपन्न माना जाता है। अप्सराओं को इस्लाम में हूर अथवा परि कहा गया है। भारतीय पुराणों में यक्षों, गंधर्वों और अप्सराओं का जिक्र आता रहा है। यक्ष, गंधर्व और अप्सराएं देवताओं की इतर श्रेणी में माने गए हैं। कहते हैं कि इन्द्र ने 108 ऋचाओं की रचना कर अप्सराओं को प्रकट किया। मंदिरों के कोने-कोने में आकर्षक मुद्रा में अंकित अप्सराओं की ‍मूर्तियां सुंदर देहयष्टि और भाव-भंगिमाओं से ध्यान खींच लेती हैं।
            वेद और पुराणों की गाथाओं में उर्वशी, मेनका, रम्भा, घृताची, तिलोत्तमा, कुंडा आदि नाम की अप्सराओं का जिक्र होता रहा है। सभी अप्सराओं की विचित्र कहानियां हैं। माना जाता है कि ये अप्सराएं गंधर्व लोक में रहती थीं। ये देवलोक में नृत्य और संगीत के माध्यम से देवताओं का मनोरंजन करती थीं।
                 पुराणों के अनुसार देवताओं के राजा इन्द्र ने सिंहासन की रक्षा के लिए अनेक बार संत-तपस्वियों के कठोर तप को भंग करने के लिए अप्सराओं का इस्तेमाल किया है। वेद-पुराण में कई स्थानों में इन अप्सराओं के नाम आए हैं, जहां इन्होंने घोर तपस्या में लीन ऋषियों के तप को भंग किया।
           अपनी व्युत्पति (अप्सु सरत्ति गच्छतीति अप्सरा:) के अनुसार ही अप्सरा जल में रहने वाली मानी जाती है। अथर्ववेद तथा यजुर्वेद के अनुसार ये पानी में रहती हैं। अथर्ववेद के अनुसार ये अश्वत्थ तथा न्यग्रोध वृक्षों पर रहती हैं, जहां ये झूले में झूला करती हैं और इनके मधुर वाद्यों (कर्करी) की मीठी ध्वनि सुनी जाती है। ये नाच-गान तथा खेलकूद में निरत होकर अपना मनोविनोद करती हैं। अप्सराओं की कोई उम्र निर्धारित नहीं है। ये सभी अजर-अमर हैं। शास्त्रों के अनुसार देवराज इन्द्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं प्रमुख सेविका थीं। ये 11 अप्सराएं हैं-कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रम्भा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्तमा। इन सभी अप्सराओं की प्रधान अप्सरा रम्भा थी। अलग-अलग मान्यताओं में अप्सराओं की संख्या 108 से लेकर 1008 तक बताई गई है।
          अप्सराएँ देवलोक से इतर योनी की हैं अर्थात देवता या देवी नहीं है ,मनुष्य यह हैं नहीं |इस प्रकार यह बीच की योनी है जो देवताओं की इच्छा से और मनुष्यों की आराधना से कार्य सम्पादन करती हैं |इस तात्विक दृष्टि से देखें तो इनका स्थान बीच का आता है ,,अर्थात पृथ्वी से ऊपर और देलोक से नीचे |पृथ्वी की सतह पर नैसर्गिक नकारात्मक शक्तियां रहती हैं यथा पिशाच-पिशाचिनी आदि किन्तु अप्सरा नकारात्मक शक्तियां नहीं हैं इसलिए इनका स्थान सतह से कुछ ऊपर होता है और मूलतः इन्हें ऋणात्मक शक्तियों की श्रेणी में रखा जा सकता है |अप्सराएँ सहायिका की भूमिका निभाती है और भौतिक सुख-समृद्धि दे सकती है ,चुकी इनमे विलक्षण जादुई या अलुकिक शक्तियां होती हैं अतः साधकों या मनुष्यों के लिए बहुत प्रकार से लाभदायक होती हैं |इसी कारण बहुत से साधक इनकी साधना करके इन्हें अपने वशीभूत कर लेते हैं जिससे उन्हें अपनी उच्च साधनाएं निर्विघ्न से संपन्न करने में सहायत मिले |यद्यपि इनकी साधना बेहद कठिन होती है किन्तु देव-देवी जितनी नहीं ,,चुकी ऋणात्मक शक्तियां हैं अतः सामान्य रूप से तामसिक प्रवृत्ति की और शीघ्र आकृष्ट होती हैं और नियंत्रित हो सकती हैं |
 कुछ नाम और- अम्बिका, अलम्वुषा, अनावद्या, अनुचना, अरुणा, असिता, बुदबुदा, चन्द्रज्योत्सना, देवी, घृताची, गुनमुख्या, गुनुवरा, हर्षा, इन्द्रलक्ष्मी, काम्या, कर्णिका, केशिनी, क्षेमा, लता, लक्ष्मना, मनोरमा, मारिची, मिश्रास्थला, मृगाक्षी, नाभिदर्शना, पूर्वचिट्टी, पुष्पदेहा, रक्षिता, ऋतुशला, साहजन्या, समीची, सौरभेदी, शारद्वती, शुचिका, सोमी, सुवाहु, सुगंधा, सुप्रिया, सुरजा, सुरसा, सुराता, उमलोचा आदि।
       सभी अप्सराओं के गुण ,प्रकृति और साधना विधियाँ अलग अलग होती हैं |मुख्यतः इनकी साधनाओं में असफलता पूर्ण नियमों का और पूर्ण पद्धति का ज्ञान न होने से ही होती है |अप्सराएं तामसिक प्रवृत्ति से आकर्षित जरुर होती हैं किन्तु गंदे वातावरण में इन्हें सिद्ध नहीं किया जा सकता |यह पवित्रता और शुद्धता का वातावरण भी चाहती हैं |जब आप किसी भी अलैकिक ऊर्जा सम्पन्न शक्ति को नियंत्रित अथवा वशीभूत करने का प्रयत्न करते हैं तो वह तीव्र प्रतिक्रिया करती है |कोई भी शक्ति अपनी इच्छा से किसी के नियंत्रण में नहीं आना चाहती तो यह तो बहुत बड़ी शक्ति होती है |अक्सर लोगों को मंत्र दे दिए जाते हैं किन्तु पूर्ण पद्धति का ज्ञान नहीं होता ,या तो देने वाले को ही पूरा ज्ञान नहीं होता या वह जानबूझकर नहीं देता ,किताबों में तो तकनिकी और पूर्ण ज्ञान होता ही नहीं |इनसे या वातावरण की अन्य नकारात्मक शक्तियों से जितनी मजबूत सुरक्षा की आवश्यकता होती है वह नहीं की गयी होती है |इस तरह से जब साधना की जाती है तो जब ऊर्जा प्रतिक्रिया करती है तो गंभीर विक्षोभ उत्पन्न होता है और सबकुछ असता व्यस्त हो जाता है |पहले तो शक्ति आकर्षित ही नहीं होती और अगर हो भी गयी तो जरा सी चूक और हानि ही देती है |अधिकतर लोग आ रही शक्ति को सम्भाल ही नहीं पाते जिससे उनमे और घर परिवार में दूसरी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है |हमारे संपर्क में अनेक ऐसे लोग आये हैं जिन्होंने साधनाए तो की किताबों या विभिन्न गुरुओं को पैसे देकर मंत्र लेकर किन्तु साधना के बाद शारीरिक ,मानसिक अथवा आर्थिक हानियाँ हो गयी |
         हमने अप्सरा साधना के नियम अलग विडिओ में और लेख में प्रकाशित कर रखे हैं इसलिए यहाँ उन्हें फिर से देने का कोई औचित्य नहीं किन्तु नियम पालन न होने ,तकनिकी जानकारी न होने ,भाव शुद्ध न होने से ही असफलता मिलती है वर्ना यह इतनी भी बड़ी शक्तियाँ नहीं जिन्हें सिद्ध न किया जा सके |जब देवी देवताओं की सिद्धियाँ की जा सकती हैं तो यह तो उनसे बहुत नीचे की शक्तियाँ हैं |इनकी साधना में प्रत्यक्षीकरण तो किसी किसी को ही होता है किन्तु सिद्ध तो यह बहुतों को हो सकती हैं |सही गुरु ,सही मार्गदर्शन ,सुरक्षा की पूर्ण व्यवस्था ,पूर्ण तकनिकी जानकारी ,अनवरत साधना ,समय समय पर निर्देशन इनकी सिद्धि करा सकता है |गलत उद्देश्य न हो यह आवश्यक है क्योंकि यह अलौकिक शक्तियाँ हैं जो मन पढ़ लेती हैं और तब विपरीत प्रतिक्रिया करती हैं जिन्हें संभालना ही मुश्किल होता है |जब भी जो भी करें स्थिर मन ,मजबूत आत्मबल और शुद्ध सही लक्ष्य और भावना के साथ |.......................................हर हर महादेव 

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