Tuesday 14 April 2020

नवरात्र में देवी की शक्ति कैसे पायें ?

दिव्य गुटिका धारकों के लिए
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                             नवरात्र को भगवती दुर्गा की पूजा /आराधना  का समय माना जाता है ,यद्यपि वास्तव में यह शक्ति साधना का समय होता है ,फिर वह शक्ति चाहे दस महाविद्या हो ,दुर्गा हो अथवा कोई भी शक्ति |साधकों की और कर्मकांडियों की अपनी तकनीक और अपनी पद्धति होती है जिस पर वह चलते हुए शक्ति साधना करते हैं और अपनी क्षमता -पद्धति अनुसार शक्ति प्राप्त करते हैं ,किन्तु जन सामान्य को नवरात्र बड़े धूमधाम से मनाने ,व्रत -उपवास रखने ,कलश स्थापना आदि करने ,सप्तशती पाठ करवाने आदि के बाद भी बहुत लाभ होता महसूस नहीं होता |बहुत से लोग कहते मिलते हैं नवरात्र में कलश रखते हैं ,सप्तशती करते हैं अथवा पंडित से करवाते हैं ,व्रत रहते हैं ,पूर्ण परहेज बरतते हैं |जब इनके सामान्य समस्या का आकलन किया जाता है तो इनमे से अधिकतर अनेक समस्याओं से ग्रस्त ही मिलते हैं जबकि बहुत सी समस्याएं नवरात्र के पाठ आदि से समाप्त हो जानी चाहिए |दुर्गा सर्वशक्तिशाली शक्ति हैं फिर भी इन लोगों की वह समस्याएं भी हल नहीं होती जो सामान्य सी पूजा से हो जानी चाहिए |नकारात्मक ऊर्जा ,छोटी -मोटी भूत -प्रेत बाधा ,अमंगल ,अकारण रोग -दुर्घटना आदि समाप्त हो जानी चाहिए ,किन्तु बहुत से मामलों में ऐसा नहीं होता |उसके बाद यह लोग किस्मत की बात मान कर खुद को संतोष देते हैं की किस्मत ही खराब हो तो दुर्गा क्या करेंगी |
                                जब हम इन बातों पर गंभीरता से सोचते हैं तो पाते हैं की वास्तव में दुर्गा की शक्ति तो आपको मिल ही नहीं रही ,जो ऊर्जा आनी चाहिए आई ही नहीं इसलिए आपकी समस्याएं यथावत हैं ,जो बाधाएं आपके लिए रुकावट हैं वह ही नहीं हट पा रही तो पूरा भाग्य का भी नहीं मिल पा रहा इसलिए कोई सुधार नहीं हुआ |शक्ति साधना ,मात्र भावना का पर्व या अवसर नहीं होता ,इसकी अपनी विशिष्टता अपनी तकनीक होती है |इस समय मात्र व्रत ,उपवास ,कलश रखने ,पाठ करवाने से बहुत कुछ होने वाला नहीं ,महत्त्व यह होता है की आप कितना खुद प्रयास कर रहे ,आपने कितना खुद में शक्ति लाने की कोशिश की |दुर्गा देवी या ऊर्जा या शक्ति है ,स्त्री नहीं ,स्त्री रूप तो कल्पना है ,उन्हें मनुष्य या स्त्री मान मात्र पूजन से बहुत कुछ नहीं होना ,उन्हें ब्रह्माण्ड में फैली विशेष ऊर्जा मान खुद में लाने का प्रयास होता है तभी वास्तविक शक्ति प्राप्त होती है और लाभ महसूस होता है |
                            आपने व्रत रखा ,शरीर शुद्ध हुआ ,आपने कलश रखा ,परहेज किया ,भावना शुद्ध हुआ ,आपने मांस -मदिरा ,तामसिक का परित्याग किया ,सात्विकता का संचार हुआ किन्तु मात्र इतना करने से दुर्गा की शक्ति आपमें तो नहीं आ गयी |सप्तशती पंडित से कराई ,अगर उन्होंने शुद्ध भी किया तो अधिकतर ऊर्जा अंश उन्हें मिली और कुछ अंश आपके पूजा स्थान पर व्याप्त हुई |अगर थोड़ी गलती या अशुद्धि हुई तो नुक्सान आपका |आपने सप्तशती पढ़ी और शुद्ध पढ़ी तो आपको अच्छी ऊर्जा मिली पर अगर कहीं प्रिंटिंग में अशुद्धि हुई अथवा आपको पढने नहीं आया तो उच्चारण -नाद दोष के कारण ऊर्जा विकृत हुई और आपको उलटे परिणाम मिलने निश्चित |भूल जाइए की माँ है और माँ सब क्षमा करती है |यही गलती सोचते तो आपके कष्ट कम नहीं हो रहे |माँ एक शक्ति है और एक सर्वत्र व्याप्त ऊर्जा है वह तभी अनुकूल होगी जब उसके अनुकूल प्रयास होगा |आपकी गलती उसको गाली देकर बुलाने सा हो जाएगा और वह रुष्ट होगी खुश नहीं ,फिर आप कितना भी पाठ के बाद गलती की क्षमा मांगे ,विकृत ऊर्जा नहीं सुधरने वाली |यह कुछ वैसा ही हो जाता है जैसे आप किसी को गाली देकर बुलाते हैं ,बार बार बुलाते हैं फिर क्षमा मांगते हैं ,क्या वह इससे खुश होगा या आपको थप्पड़ मारेगा |यही कारण है शक्ति उपासना में थोड़ी भी गलती के परिणाम कई गुना अधिक कष्टकारक हो जाते हैं |इसलिए अगर ज़रा भी अपने पाठ की शुद्धता पर संदेह हो या लगे की पंडित जी जल्दबाजी कर रहे खाना पूर्ती कर रहे तो आप बचिए |पद्धति ठीक से पता न हो तो मत अपनाइए मात्र भावना से हाथ जोड़ काम चला लीजिये कम से कम नुक्सान तो नहीं होगा |
                           जो सामान्य लोग हैं अगर वास्तव में कल्याण चाहते हैं ,नवरात्र में शक्ति अनुभव करना चाहते हैं तो रात्री में अधिक देर जागरण करें ,भगवती का चिंतन करें और रात्री में मंत्र जप करें ,अगर शुद्ध पाठ कर सकते तो खुद से पाठ -स्तोत्र करें |मंत्र जप करें |सुबह सामान्य पूजा करें |महत्त्व संख्या को न दें ,महत्त्व शुद्धता ,सही उच्चारण और एकाग्रता को दें |आपको अधिक आभ होगा |जो हमारे दिव्य गुटिका /डिब्बी के धारक हैं उनके लिए हम एक सामान्य सी उपासना पद्धति बता रहे हैं जो किसी भी साधना से अधिक प्रभावकारी साबित होगी और उन्हें वास्तव में नवरात्र में शक्ति अनुभव होगा |उनके बहुत से कष्ट -समस्याएं समाप्त हो जायेगी |किसी कर्मकांड की जरूरत नहीं ,किसी व्रत की जरूरत नहीं ,किसी विशेष पद्धति की जरूरत नहीं ,किसी विशेष कलश स्थापना की जरूरत नहीं ,[[यदि कलश रखते हैं तो भी कोई दिक्कत नहीं ,अगर पाठ आपके यहाँ चलता है तो उसे चलने दे ]]दैनिक कार्य करते हुए आप इसे कर सकते हैं और आपको ऊर्जा /शक्ति उतनी ही मिलेगी जितनी किसी सामान्य साधक को मिलती है |
                                  आप नवरात्र में सुबह अपने पूजा स्थान में दुर्गा जी की चित्र लगाएं |सामने अपनी दिव्य गुटिका /डिब्बी स्थापित करें |यह प्राण प्रतिष्ठित है ,प्राण प्रतिष्ठा आदि की जरूरत नहीं |हाथ में जल अक्षत पुष्प और एक सिक्का लेकर संकल्प करें ,संस्कृत नहीं आती तो शुद्ध हिंदी में कि-  मैं [अपना नाम ] पुत्र [पिता का नाम ] स्थान [अपना पता ] आज सम्बत [२०७४ ] में चैत्र मॉस के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि अर्थात नवरात्र के पहले दिन ,दिन [बुधवार ] को यह संकल्प लेता हु की में आज से पूरे नवरात्र में प्रतिदिन ११ माला भगवती दुर्गा का मंत्र जप करूँगा |भगवती मेरे परिवार की सुरक्षा करें ,मेरा कल्याण करे ,मेरे समस्त कष्टों दुखों का नाश करें ,मेरे अथवा मेरे परिवार में व्याप्त बाधाओं का शमन करें ,मेरे सर्वविध उन्नति में सहायता करें | अब जल अक्षत पुष्प आदि उनके सामने छोड़ दें |अब गुटिका और भगवती की सामान्य पूजा करें ,अगर षोडशोपचार पूजा आता है तो वह करें अन्यथा जितना आता है मात्र उतना करें |कोई आडम्बर नहीं ,कोई भ्रम न पालें और खुद का दिमाग न उलझाएँ |पूजन बाद आप आरती कर उठ जाए |अब आपका जप रात में होगा |
                          रात के समय १० बजे के बाद आप पुनः स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहन दुर्गा जी और गुटिका के सामने धुप अगर बत्ती लगाकर ,घी का दीपक जलाएं और सामने उनी कम्बल बिछाकर बैठ जाएँ |हाथ में जल लेकर भावना करें की भगवती आपको शुद्ध पवित्र करें और जल आप खुद पर और आसपास छिडक लें |अब एक रुद्राक्ष की माला लेकर [[ रुद्राक्ष की माला या लाल चन्दन की माला की व्यवस्था पहले से रखें ,साथ ही माला करना भी सीख लें ,अंगूठे -मध्यमा -अनामिका इन्ही अँगुलियों के माध्यम से माला फेरें ,तर्जनी और कनिष्ठिका का स्पर्श न हो ]], पहले एक माला महामृत्युंजय मंत्र का जप करें |इसके बाद आप ११ माला दूर्गा जी के नवार्ण मंत्र का जप करें |आपका ध्यान पूरी तरह दुर्गा जी पर एकाग्र हो | रोज ११ माला करें ,एक माला पूर्व में महामृत्युंजय का जरूर रोज करें |पहले दिन अधिक श्रम जरुर लगेगा किन्तु अगले दिन से आदत हो जायेगी |नावें दिन जप के बाद अथवा १० वें दिन आम की लकड़ी पर हवन सामग्री से हवन करें |रोज जप के बाद अपने जप को भगवती के बाएं हाथ में समर्पित करें |समर्पित करने के बाद क्षमा मांग आरती करें और उठ जाएँ |रोज इतना ही करना है |
                          हवन के बाद हवन की राख अपने घर में चारो कोनों में गमलों में डाल सकते हैं अथवा उन्हें प्रवाहित कर दें अन्य पूजन सामग्रियों के साथ |किसी सात्विक -सदाचारी ब्राह्मण को दक्षिणा प्रदान करें |दिव्य गुटिका और दुर्गा जी का चित्र पूजन स्थान पर ही लगा रहने दें और रोज पूजन मात्र करते रहें |या जो अन्य प्रयोग हैं वह आप दिव्य गुटिका पर करने को स्वतंत्र हैं |मात्र इतने जप और हवन से आप खुद में और अपने घर में एक अलौकिक ऊर्जा का अनुभव करेंगे जो आपको बहुत से कर्मकांड करने के बाद भी महसूस होना मुश्किल है |......................................................हर-हर महादेव 


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