किसको मिल रहा हैं पति-पत्नी के व्रत-उपवास-पूजा का फल
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क्या कभी सोचा है ?
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पति या पत्नी अक्सर व्रत -उपवास रखते हैं ,पूजा -पाठ करते हैं ,अपने लिए और अपने प्रियजनों के लिए | पत्नियाँ अथवा महिलायें व्रत-उपवास में अधिक लिप्त होती हैं ,कुछ वास्तविक श्रद्धा से कुछ सामाजिक और सांस्कारिक दायित्वों के निर्वहन के लिए |पति अथवा पुरुष पूजा-पाठ-अनुष्ठान अधिक करवाते हैं या करते हैं |सामान्य धारणा है की पत्नी द्वारा रखे गए व्रत उपवास का परिणाम बच्चों और पति को ही मिलता है ,जबकि पति द्वारा किये जा रहे पूजा-पाठ का परिणाम परिवार-बच्चो और पत्नी को मिल रहा है ,,पर क्या वास्तव में यही सच्चाई है |कभी यह सच था ,उस समय की नैतिकता और सामाजिक परिवेश के अनुसार ,,पर क्या आज भी वही माहौल है ,वही नैतिकता और संस्कार बचे हैं ,उसी तरह व्यक्ति पति या पत्नी के प्रति समर्पित है ,जो आज भी वही परिणाम मिल रहे हैं |गंभीरता से सोचने पर और तार्किक विश्लेषण करने पर स्थिति बिलकुल उलटी नजर आती है ,जो एक अलग ही दृश्य दिखाती है |
सामान्य धारणा है की पति -पत्नी मन्त्रों और सामाजिक संस्कारों से बंधे होते हैं इसलिए उनके द्वारा किया जाने वाला पुण्य या पाप अथवा व्रत-उपवास ,पूजा-पाठ का परिणाम स्वयमेव पति या पत्नी को आधा मिल जाता है और स्वयमेव बच्चों को भी लाभ होता है |किन्तु यहाँ सोचने वाली बात यह है की विवाह के जिस बंधन से आज हम बंधते हैं ,उसकी परिकल्पना तो सामाजिक उश्रीन्खलता को रोकने के लिए हुई थी |यह नैसर्गिक नियम तो है नहीं ,अगर नैसर्गिक नियम होता तो हर प्राणी में यह नियम होता |मनुष्य विकसित और बुद्धिमान जीव है अतः उसने जब देखा की स्त्रियों के लिए हर समुदायों में युद्ध और मारकाट हो रही है तो विवाह की अवधारणा के साथ एक स्त्री और एक पुरुष को साथ में विभिन्न संस्कारों के साथ बांधकर साथ रहने के लिए कहा ,जिससे एक स्त्री पर एक पुरुष का अधिकार हो और उस स्त्री के लिए मारकाट नहीं हो | नैसर्गिक रूप से तो प्रकृति में मादा और नर स्वतंत्र उत्पन्न होते हैं और स्वतंत्र सम्भोग के साथ विकास करते हैं ,सभी जीवों-वनस्पतियों में ऐसा ही होता है |जीवमात्र की आत्मा अकेले और स्वतंत्र रूप से शरीर में जन्म लेती है और अकेले शरीर त्याग करती है |फिर यह साथ तो जीवन भर के मात्र आपसी सहयोग के लिए ही होता है |भावनात्मक अनुभूतियों के कारण रिश्ते भले प्रगाढ़ हो जाएँ पर फिर भी आना और जाना अकेले ही पड़ता है ,क्योकि प्रकृति के नियम में युगल की अवधारणा नहीं है ,,हाँ आत्मा की युगालता होती अवश्य है ,पर प्रकृति के संपर्क में वह भी बिखर जाती है और युगल आत्मा अलग अलग उत्पन्न होती है ,|जब कभी यह मिल जाती है तब तो इस प्रकृति के खेल और जनम -मरण से ही मुक्त हो जाती है |कहने का तात्पर्य यह की प्रकृति में सभी स्वतंत्र उत्पन्न होते हैं धनात्मक अथवा ऋणात्मक प्रकृति के साथ [नर अथवा मादा प्रकृति के साथ ]इनमे आपसी बंधन बाद में सामाजिक संरचना को स्थिर और व्यवस्थित रखने के लिए बनाया गया |ऐसे में जब तक भावनात्मक लगाव न हो ,आतंरिक जुड़ाव न हो ,केवल मन्त्रों से आपसी पूजा-पाठ अथवा व्रत -उपवास का परिणाम एक-दुसरे को मिल जाय संभव नहीं लगता |हां अगर भावनात्मक लगाव है ,आपसी प्रेम है ,आतंरिक जुड़ाव है तो इनके परिणाम एक दुसरे को अवश्य मिल सकते हैं |
आज के समय में हम देखते हैं की विवाहेत्तर सम्बन्ध बहुत बनते हैं ,,विवाह पूर्व भी आजकल अधिकतर लोग सम्बन्ध बना चुके होते है |ऐसे में एक कटु सत्य हम कहना चाहेंगे की आप अगर भ्रम पाले हुए हैं की आपके ऐसे पति या पत्नी के व्रत-उपवास, पूजा-पाठ का परिणाम आपको मिल रहा है या मिल जाएगा तो आप भारी भ्रम में हैं |व्यक्ति का भावनात्मक जुड़ाव जहां कही भी अधिक होगा वहां ही उसके द्वारा अर्जित सकारात्मक ऊर्जा का स्थानान्तरण होगा भले वह किसी से भी जुड़ा हो , किसी भी सामाजिक बंधन में न बंधा हो |अगर पति या पत्नी किसी भी अन्य से विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाते हैं या किसी अन्य से प्यार करते हैं तो स्वयमेव उनके द्वारा किये जा रहे पूजा-पाठ, व्रत उपवास का परिणाम उस व्यक्ति तक पहुँच जाएगा |क्योकि यह सब मानसिक तरंगों का खेल है और अर्जित ऊर्जा मानसिक तरंगों के माध्यम से सर्वाधिक जुड़े व्यक्ति तक स्थानांतरित होकर उसे लाभ पहुचाती है |,उसके बाद उससे कम जुड़े व्यक्ति तक थोडा कम लाभ पहुचता है ,|फिर सबसे कम जुड़े व्यक्ति तक सबसे कम लाभ पहुचता है |अगर आपकी पत्नी या पति आपको प्यार नहीं करता /करती तो निश्चित मानिए की उसके द्वारा किये गए किसी भी ऐसे कार्य का परिणाम आपको नहीं मिलने वाला ,भले ही वह संकल्प ही क्यों न ले सार्वजनिक रूप से |वह सार्वजनिक रूप से भी संकल्प लेगा तो उसके मन में तो लगाव नहीं ही होगा फिर आने वाली ऊर्जा स्थानांतरित कैसे होगी ,या तो वह नष्ट हो जायेगी या जिसके प्रति मन में लगाव होगा उस और मुड़ जायेगी |ऐसे में भले पति-पत्नी कुछ भी दिखावा करें ,परिणाम किसी और को मिलेगा |
हमारी बात बहुत लोगों की समझ में नहीं आएगी ,कुछ लोगों को बुरी भी लग सकती है ,पर यह सच्चाई है |इस मामले में बहुत चरित्रहीन व्यक्ति कभी अधिक लाभान्वित हो सकता है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष |ऐसा व्यक्ति अगर कईयों से जुड़ा है और वह लोग उसके सच्चाई को न जानते हुए उसे बहुत प्यार करते हों और लगाव रखते हों तो उनके द्वारा अर्जित सकारात्मक ऊर्जा उस चरित्रहीन व्यक्ति तक भी पहुच जाती है और उसके पापों में दुसरे के पुण्य से कमी आ जाती है |इसलिए कभी कभी हम देखते हैं की बहुत पापी और चरित्रहीन व्यक्ति भी बहुत उन्नति करता जाता है और बहुत सुखी भी होता है |यह सब मानसिक तरंगों से ऊर्जा स्थानान्तरण का खेल है |यह कुछ उसी तरह है जैसे पहले राजे महाराजे हजारों रानियाँ रखते थे ,किन्तु फिर भी सुखी रहते थे ,क्योकि सभी रानियों के व्रत-उपवास ,धर्म -कर्म के परिणाम उन्हें मिलते रहते थे और उनके पापों में कमी आती रहती थी |
कोई महिला करवा चौथ का व्रत करती है ,अपने पति के लिए ,पर उसके किस पति को इसका फल मिलेगा |क्या केवल इसलिए यह साथ रह रहे पति को मिल जायेगा की उसने मंत्र से साथ सात फेरे लिए हैं ,या इसलिए मिल जायेगा की वह उसे जल पिलाएगा |ऐसा कुछ नहीं होता ,यदि उस पत्नी में अपने पति के प्रति ,समर्पण ,प्यार ,एकनिष्ठा नहीं है तो पति को ही पूर्ण फल नहीं मिलेगा ,बल्कि हर उस व्यक्ति को मिलेगा जो उस महिला से शारीरिक और भावनात्मक रूप से पति जैसा जुड़ा हो ,भले उस व्यक्ति ने उससे शादी नहीं की हो |सोचने वाली बात है की अगर अफ़्रीकी महिला अथवा अंग्रेज महिला जिसने भारतीय मंत्र से फेरे नहीं लिए ,किसी के साथ मात्र रह रही है और करवा चौथ का व्रत करती है तो क्या उसके साथ के व्यक्ति को फल नहीं मिलेगा ,,अवश्य मिलेगा क्योकि वह पति जैसा ही है ,शारीरिक और भावनात्मक रूप से जुड़ा है ,इसलिए ऊर्जा का स्थानान्तरण उस तक मात्र उस स्त्री के सोचने से ही होने लगेगा |यहाँ पति को बिलकुल ही बहुत कम फल मिल सकता है या नहीं भी मिल सकता है ,अगर स्त्री उसे नहीं पसंद करती ,या उससे भावनात्मक रूप से नहीं जुडी है ,या किसी अन्य पुरुष से भावनात्मक रूप से जुडी है और किसी अन्य को मानसिक रूप से अपना पति मानती है |भले वह सामाजिक दिखावे के लिए व्रत रखे और पति भ्रम पाले रहे की उसे तो फल मिलेगा ही ,जो करेगी मुझे ही मिलेगा ,पर ऐसा नहीं होता ,जिससे वह मानसिक जुड़ाव रखेगी ,यहाँ तक की जिससे -जिससे जुड़ाव रखेगी उसे या उन सभी को फल स्वयमेव मिलेगा ,भले वह उसका विवाह पूर्व प्रेमी ही क्यों न हो |
सोचिये पत्नी व्रत के समय दिमाग में अपने विवाह पूर्व के प्रेमी का ध्यान करती है और उसे मानसिक रूप से पति मानती है अथवा उसकी ही याद में खोई है या आज पति के अतिरिक्त किसी अन्य से जुडी है और वह याद आता रहता है ,,आज की शादी को विवशता मान रही है तो क्या तब भी पति को उसके व्रत का फल मिलेगा |वह शारीरिक और मानसिक रूप से कुछ अन्य से भी जुडी है पर सामाजिक मर्यादा के कारण उनमे शादी संभव नहीं ,तब भी क्या पति को ही फल मिलेगा ,नहीं मिलेगा क्योकि यह प्रकृति के नैसर्गिक नियमों और ईश्वर के नियमो के ही विरुद्ध हो जाएगा |जब आप ईश्वरीय या प्रकृति की ऊर्जा का आह्वान करते हैं तो वह आपके मानसिक तरंगों से ही क्रिया करती है और जिस दिशा में या जिस एकाग्रता से आप सोचते हैं उसी दिशा में वह घूमती है ,वह आपके बोले शब्दों को नहीं सुनती वह मन के वाणी को सुनती है ,इसलिए वहां जाती है जहाँ मानसिक तरंगे पहुचती है |ऐसे ही इश्वर भी मिलता है ,ऐसे ही उसकी ऊर्जा भी मिलती है ,ऐसे ही वह ऊर्जा उन जगहों पर पहुचती है |
ऐसा ही पतियों के साथ होता है |उनके पूजा पाठ का सकारात्मक प्रभाव वहां अधिक जाता है जिसको वह अधिक चाहता है |भले पत्नी कोई भी हो पर अगर वह उससे मानसिक लगाव और प्यार नहीं रखता तो उसके पूजा-पाठ का परिणाम बहुत कम पत्नी को मिल पाता है |वह जिन -जिन से सम्बंधित होता है शारीरिक और मानसिक रूप से उन सभी को परिणाम मिलता है ,जिसे वह अधिक चाहता है उसे अधिक मिलता है |ऐसा ही संतानों के मामले में होता है |सामने एक संतान है जो वैध रूप से पैदा है ,पर कुछ अवैध भी हैं ,तो जब भी पति या पत्नी कोई पूजा-पाठ-व्रत-उपवास संतान के नाम पर करेंगे उसका परिणाम या पुण्य सभी संतानों में स्वयमेव वितरित हो जाएगा क्योकि वह सभी इसी शरीर से उत्पन्न हैं और उनमे आतंरिक जुड़ाव [खून-क्रोमोसोम-जीन] है |पति या पत्नी किसी अन्य से अवैध रूप से जुड़े हैं और उससे संतान है तो सम्बंधित व्यक्ति के पुण्य और पाप दोनों का परिणाम उस संतान को भुगतना होता है ,भले सार्वजनिक रूप से किसी का भी नाम पिता या माता के रूप में चल रहा हो |इसलिए यदि कोई यह समझे की पति या पत्नी की पूजा-आराधना-व्रत-उपवास-पुण्य-पाप का परिणाम उसे मिल रहा है तो यह खुद को धोखा देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है |यदि सम्बंधित व्यक्ति ]पति या पत्नी ]पूर्ण समर्पित नहीं है और वास्तविक प्यार नहीं करता या वास्तविक रूप से भावनात्मक नहीं जुड़ा है तो उसका परिणाम नहीं मिलने वाला ,वह अगर ऐसा करता है तो सकारात्मक ऊर्जा तो उत्पन्न होती है किन्तु जिसको वह चाहता है उस दिशा में घूम जाती है और व्यक्ति यहाँ भ्रम पाले रहते हैं की वह हमारे लिए कर रहा है हमें परिणाम मिलेगा |
अतः हमारा विनम्र निवेदन है की यदि आप अपनी पत्नी या पति से वास्तविक प्रेम नहीं करते ,भावनात्मक लगाव नहीं है ,आप अपने पति या पत्नी के प्रति पूर्ण एकनिष्ठ समर्पित नहीं है तो यह दिखावा मत कीजिये ,उसे बार -बार धोखा जीवन भर मत दीजिये क्योकि आपका सारा किया धरा उसके लिए एक धोखा मात्र है ,उसे तो कुछ मिलने ही वाला नहीं है |अगर आप विवाह पूर्व या बाद में किसी अन्य से भी शारीरिक सम्बन्ध रख चुके हैं या रख रहे हैं ,भावनात्मक लगाव अन्य से भी रखते हैं तब भी परिणाम पति या पत्नी को बहुत अल्प ही मिलता है और आपका किया हुआ कार्य उसके लिए धोखा देना ही है |पूर्व के पाप कभी भी आपके किसी भी पुण्य को पूर्णता के साथ आपके पति तक नहीं पहुचने देंगे जीवन भर ,क्योकि आपको वह व्यक्ति भूलेगा नहीं और आपका पुण्य स्थानांतरित होता रहेगा |जैसे कहा जाता है की पहला प्यार भूलता नहीं है तो यहाँ भी यह होता है की आपका किया धरा अपने आप पहले प्यार तक पहुचता रहता है भले ही उसने धोखे से ही सब कुछ किया हो अथवा आपके सम्बन्ध समाप्त हो गए हों ,पर अगर वह याद आता है और प्यार आपके मन में उत्पन्न होता है तो उस तक भी लाभ स्थानांतरित होता ही होता है |आपकी एक गलती पूरे जीवन आपको किसी का पूर्ण रूप से होने नहीं देगी ,भले आप बाद में किसी के प्रति पूर्ण समर्पित ही क्यों हो जाएँ |अतएव अगर कोई ऐसा पाठक हमारी अलौकिक शक्तियां अथवा Tantramarg नामक फेसबुक पेजों को या हमारे इस blog को पढ़ रहा हो, जिसने जीवन में किसी अन्य से सम्बन्ध नहीं रखे तो वह ध्यान दे और कभी पति या पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य से सम्बन्ध न रखे ,क्योकि आपकी एक गलती जीवन भर आपके कर्मों को अधूरा कर देगी ,बाद में पछता कर भी आप कुछ नहीं कर पायेंगे | ………..[व्यक्तिगत विचार और चिंतन ]……………………………………………..हर-हर महादेव
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क्या कभी सोचा है ?
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पति या पत्नी अक्सर व्रत -उपवास रखते हैं ,पूजा -पाठ करते हैं ,अपने लिए और अपने प्रियजनों के लिए | पत्नियाँ अथवा महिलायें व्रत-उपवास में अधिक लिप्त होती हैं ,कुछ वास्तविक श्रद्धा से कुछ सामाजिक और सांस्कारिक दायित्वों के निर्वहन के लिए |पति अथवा पुरुष पूजा-पाठ-अनुष्ठान अधिक करवाते हैं या करते हैं |सामान्य धारणा है की पत्नी द्वारा रखे गए व्रत उपवास का परिणाम बच्चों और पति को ही मिलता है ,जबकि पति द्वारा किये जा रहे पूजा-पाठ का परिणाम परिवार-बच्चो और पत्नी को मिल रहा है ,,पर क्या वास्तव में यही सच्चाई है |कभी यह सच था ,उस समय की नैतिकता और सामाजिक परिवेश के अनुसार ,,पर क्या आज भी वही माहौल है ,वही नैतिकता और संस्कार बचे हैं ,उसी तरह व्यक्ति पति या पत्नी के प्रति समर्पित है ,जो आज भी वही परिणाम मिल रहे हैं |गंभीरता से सोचने पर और तार्किक विश्लेषण करने पर स्थिति बिलकुल उलटी नजर आती है ,जो एक अलग ही दृश्य दिखाती है |
सामान्य धारणा है की पति -पत्नी मन्त्रों और सामाजिक संस्कारों से बंधे होते हैं इसलिए उनके द्वारा किया जाने वाला पुण्य या पाप अथवा व्रत-उपवास ,पूजा-पाठ का परिणाम स्वयमेव पति या पत्नी को आधा मिल जाता है और स्वयमेव बच्चों को भी लाभ होता है |किन्तु यहाँ सोचने वाली बात यह है की विवाह के जिस बंधन से आज हम बंधते हैं ,उसकी परिकल्पना तो सामाजिक उश्रीन्खलता को रोकने के लिए हुई थी |यह नैसर्गिक नियम तो है नहीं ,अगर नैसर्गिक नियम होता तो हर प्राणी में यह नियम होता |मनुष्य विकसित और बुद्धिमान जीव है अतः उसने जब देखा की स्त्रियों के लिए हर समुदायों में युद्ध और मारकाट हो रही है तो विवाह की अवधारणा के साथ एक स्त्री और एक पुरुष को साथ में विभिन्न संस्कारों के साथ बांधकर साथ रहने के लिए कहा ,जिससे एक स्त्री पर एक पुरुष का अधिकार हो और उस स्त्री के लिए मारकाट नहीं हो | नैसर्गिक रूप से तो प्रकृति में मादा और नर स्वतंत्र उत्पन्न होते हैं और स्वतंत्र सम्भोग के साथ विकास करते हैं ,सभी जीवों-वनस्पतियों में ऐसा ही होता है |जीवमात्र की आत्मा अकेले और स्वतंत्र रूप से शरीर में जन्म लेती है और अकेले शरीर त्याग करती है |फिर यह साथ तो जीवन भर के मात्र आपसी सहयोग के लिए ही होता है |भावनात्मक अनुभूतियों के कारण रिश्ते भले प्रगाढ़ हो जाएँ पर फिर भी आना और जाना अकेले ही पड़ता है ,क्योकि प्रकृति के नियम में युगल की अवधारणा नहीं है ,,हाँ आत्मा की युगालता होती अवश्य है ,पर प्रकृति के संपर्क में वह भी बिखर जाती है और युगल आत्मा अलग अलग उत्पन्न होती है ,|जब कभी यह मिल जाती है तब तो इस प्रकृति के खेल और जनम -मरण से ही मुक्त हो जाती है |कहने का तात्पर्य यह की प्रकृति में सभी स्वतंत्र उत्पन्न होते हैं धनात्मक अथवा ऋणात्मक प्रकृति के साथ [नर अथवा मादा प्रकृति के साथ ]इनमे आपसी बंधन बाद में सामाजिक संरचना को स्थिर और व्यवस्थित रखने के लिए बनाया गया |ऐसे में जब तक भावनात्मक लगाव न हो ,आतंरिक जुड़ाव न हो ,केवल मन्त्रों से आपसी पूजा-पाठ अथवा व्रत -उपवास का परिणाम एक-दुसरे को मिल जाय संभव नहीं लगता |हां अगर भावनात्मक लगाव है ,आपसी प्रेम है ,आतंरिक जुड़ाव है तो इनके परिणाम एक दुसरे को अवश्य मिल सकते हैं |
आज के समय में हम देखते हैं की विवाहेत्तर सम्बन्ध बहुत बनते हैं ,,विवाह पूर्व भी आजकल अधिकतर लोग सम्बन्ध बना चुके होते है |ऐसे में एक कटु सत्य हम कहना चाहेंगे की आप अगर भ्रम पाले हुए हैं की आपके ऐसे पति या पत्नी के व्रत-उपवास, पूजा-पाठ का परिणाम आपको मिल रहा है या मिल जाएगा तो आप भारी भ्रम में हैं |व्यक्ति का भावनात्मक जुड़ाव जहां कही भी अधिक होगा वहां ही उसके द्वारा अर्जित सकारात्मक ऊर्जा का स्थानान्तरण होगा भले वह किसी से भी जुड़ा हो , किसी भी सामाजिक बंधन में न बंधा हो |अगर पति या पत्नी किसी भी अन्य से विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाते हैं या किसी अन्य से प्यार करते हैं तो स्वयमेव उनके द्वारा किये जा रहे पूजा-पाठ, व्रत उपवास का परिणाम उस व्यक्ति तक पहुँच जाएगा |क्योकि यह सब मानसिक तरंगों का खेल है और अर्जित ऊर्जा मानसिक तरंगों के माध्यम से सर्वाधिक जुड़े व्यक्ति तक स्थानांतरित होकर उसे लाभ पहुचाती है |,उसके बाद उससे कम जुड़े व्यक्ति तक थोडा कम लाभ पहुचता है ,|फिर सबसे कम जुड़े व्यक्ति तक सबसे कम लाभ पहुचता है |अगर आपकी पत्नी या पति आपको प्यार नहीं करता /करती तो निश्चित मानिए की उसके द्वारा किये गए किसी भी ऐसे कार्य का परिणाम आपको नहीं मिलने वाला ,भले ही वह संकल्प ही क्यों न ले सार्वजनिक रूप से |वह सार्वजनिक रूप से भी संकल्प लेगा तो उसके मन में तो लगाव नहीं ही होगा फिर आने वाली ऊर्जा स्थानांतरित कैसे होगी ,या तो वह नष्ट हो जायेगी या जिसके प्रति मन में लगाव होगा उस और मुड़ जायेगी |ऐसे में भले पति-पत्नी कुछ भी दिखावा करें ,परिणाम किसी और को मिलेगा |
हमारी बात बहुत लोगों की समझ में नहीं आएगी ,कुछ लोगों को बुरी भी लग सकती है ,पर यह सच्चाई है |इस मामले में बहुत चरित्रहीन व्यक्ति कभी अधिक लाभान्वित हो सकता है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष |ऐसा व्यक्ति अगर कईयों से जुड़ा है और वह लोग उसके सच्चाई को न जानते हुए उसे बहुत प्यार करते हों और लगाव रखते हों तो उनके द्वारा अर्जित सकारात्मक ऊर्जा उस चरित्रहीन व्यक्ति तक भी पहुच जाती है और उसके पापों में दुसरे के पुण्य से कमी आ जाती है |इसलिए कभी कभी हम देखते हैं की बहुत पापी और चरित्रहीन व्यक्ति भी बहुत उन्नति करता जाता है और बहुत सुखी भी होता है |यह सब मानसिक तरंगों से ऊर्जा स्थानान्तरण का खेल है |यह कुछ उसी तरह है जैसे पहले राजे महाराजे हजारों रानियाँ रखते थे ,किन्तु फिर भी सुखी रहते थे ,क्योकि सभी रानियों के व्रत-उपवास ,धर्म -कर्म के परिणाम उन्हें मिलते रहते थे और उनके पापों में कमी आती रहती थी |
कोई महिला करवा चौथ का व्रत करती है ,अपने पति के लिए ,पर उसके किस पति को इसका फल मिलेगा |क्या केवल इसलिए यह साथ रह रहे पति को मिल जायेगा की उसने मंत्र से साथ सात फेरे लिए हैं ,या इसलिए मिल जायेगा की वह उसे जल पिलाएगा |ऐसा कुछ नहीं होता ,यदि उस पत्नी में अपने पति के प्रति ,समर्पण ,प्यार ,एकनिष्ठा नहीं है तो पति को ही पूर्ण फल नहीं मिलेगा ,बल्कि हर उस व्यक्ति को मिलेगा जो उस महिला से शारीरिक और भावनात्मक रूप से पति जैसा जुड़ा हो ,भले उस व्यक्ति ने उससे शादी नहीं की हो |सोचने वाली बात है की अगर अफ़्रीकी महिला अथवा अंग्रेज महिला जिसने भारतीय मंत्र से फेरे नहीं लिए ,किसी के साथ मात्र रह रही है और करवा चौथ का व्रत करती है तो क्या उसके साथ के व्यक्ति को फल नहीं मिलेगा ,,अवश्य मिलेगा क्योकि वह पति जैसा ही है ,शारीरिक और भावनात्मक रूप से जुड़ा है ,इसलिए ऊर्जा का स्थानान्तरण उस तक मात्र उस स्त्री के सोचने से ही होने लगेगा |यहाँ पति को बिलकुल ही बहुत कम फल मिल सकता है या नहीं भी मिल सकता है ,अगर स्त्री उसे नहीं पसंद करती ,या उससे भावनात्मक रूप से नहीं जुडी है ,या किसी अन्य पुरुष से भावनात्मक रूप से जुडी है और किसी अन्य को मानसिक रूप से अपना पति मानती है |भले वह सामाजिक दिखावे के लिए व्रत रखे और पति भ्रम पाले रहे की उसे तो फल मिलेगा ही ,जो करेगी मुझे ही मिलेगा ,पर ऐसा नहीं होता ,जिससे वह मानसिक जुड़ाव रखेगी ,यहाँ तक की जिससे -जिससे जुड़ाव रखेगी उसे या उन सभी को फल स्वयमेव मिलेगा ,भले वह उसका विवाह पूर्व प्रेमी ही क्यों न हो |
सोचिये पत्नी व्रत के समय दिमाग में अपने विवाह पूर्व के प्रेमी का ध्यान करती है और उसे मानसिक रूप से पति मानती है अथवा उसकी ही याद में खोई है या आज पति के अतिरिक्त किसी अन्य से जुडी है और वह याद आता रहता है ,,आज की शादी को विवशता मान रही है तो क्या तब भी पति को उसके व्रत का फल मिलेगा |वह शारीरिक और मानसिक रूप से कुछ अन्य से भी जुडी है पर सामाजिक मर्यादा के कारण उनमे शादी संभव नहीं ,तब भी क्या पति को ही फल मिलेगा ,नहीं मिलेगा क्योकि यह प्रकृति के नैसर्गिक नियमों और ईश्वर के नियमो के ही विरुद्ध हो जाएगा |जब आप ईश्वरीय या प्रकृति की ऊर्जा का आह्वान करते हैं तो वह आपके मानसिक तरंगों से ही क्रिया करती है और जिस दिशा में या जिस एकाग्रता से आप सोचते हैं उसी दिशा में वह घूमती है ,वह आपके बोले शब्दों को नहीं सुनती वह मन के वाणी को सुनती है ,इसलिए वहां जाती है जहाँ मानसिक तरंगे पहुचती है |ऐसे ही इश्वर भी मिलता है ,ऐसे ही उसकी ऊर्जा भी मिलती है ,ऐसे ही वह ऊर्जा उन जगहों पर पहुचती है |
ऐसा ही पतियों के साथ होता है |उनके पूजा पाठ का सकारात्मक प्रभाव वहां अधिक जाता है जिसको वह अधिक चाहता है |भले पत्नी कोई भी हो पर अगर वह उससे मानसिक लगाव और प्यार नहीं रखता तो उसके पूजा-पाठ का परिणाम बहुत कम पत्नी को मिल पाता है |वह जिन -जिन से सम्बंधित होता है शारीरिक और मानसिक रूप से उन सभी को परिणाम मिलता है ,जिसे वह अधिक चाहता है उसे अधिक मिलता है |ऐसा ही संतानों के मामले में होता है |सामने एक संतान है जो वैध रूप से पैदा है ,पर कुछ अवैध भी हैं ,तो जब भी पति या पत्नी कोई पूजा-पाठ-व्रत-उपवास संतान के नाम पर करेंगे उसका परिणाम या पुण्य सभी संतानों में स्वयमेव वितरित हो जाएगा क्योकि वह सभी इसी शरीर से उत्पन्न हैं और उनमे आतंरिक जुड़ाव [खून-क्रोमोसोम-जीन] है |पति या पत्नी किसी अन्य से अवैध रूप से जुड़े हैं और उससे संतान है तो सम्बंधित व्यक्ति के पुण्य और पाप दोनों का परिणाम उस संतान को भुगतना होता है ,भले सार्वजनिक रूप से किसी का भी नाम पिता या माता के रूप में चल रहा हो |इसलिए यदि कोई यह समझे की पति या पत्नी की पूजा-आराधना-व्रत-उपवास-पुण्य-पाप का परिणाम उसे मिल रहा है तो यह खुद को धोखा देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है |यदि सम्बंधित व्यक्ति ]पति या पत्नी ]पूर्ण समर्पित नहीं है और वास्तविक प्यार नहीं करता या वास्तविक रूप से भावनात्मक नहीं जुड़ा है तो उसका परिणाम नहीं मिलने वाला ,वह अगर ऐसा करता है तो सकारात्मक ऊर्जा तो उत्पन्न होती है किन्तु जिसको वह चाहता है उस दिशा में घूम जाती है और व्यक्ति यहाँ भ्रम पाले रहते हैं की वह हमारे लिए कर रहा है हमें परिणाम मिलेगा |
अतः हमारा विनम्र निवेदन है की यदि आप अपनी पत्नी या पति से वास्तविक प्रेम नहीं करते ,भावनात्मक लगाव नहीं है ,आप अपने पति या पत्नी के प्रति पूर्ण एकनिष्ठ समर्पित नहीं है तो यह दिखावा मत कीजिये ,उसे बार -बार धोखा जीवन भर मत दीजिये क्योकि आपका सारा किया धरा उसके लिए एक धोखा मात्र है ,उसे तो कुछ मिलने ही वाला नहीं है |अगर आप विवाह पूर्व या बाद में किसी अन्य से भी शारीरिक सम्बन्ध रख चुके हैं या रख रहे हैं ,भावनात्मक लगाव अन्य से भी रखते हैं तब भी परिणाम पति या पत्नी को बहुत अल्प ही मिलता है और आपका किया हुआ कार्य उसके लिए धोखा देना ही है |पूर्व के पाप कभी भी आपके किसी भी पुण्य को पूर्णता के साथ आपके पति तक नहीं पहुचने देंगे जीवन भर ,क्योकि आपको वह व्यक्ति भूलेगा नहीं और आपका पुण्य स्थानांतरित होता रहेगा |जैसे कहा जाता है की पहला प्यार भूलता नहीं है तो यहाँ भी यह होता है की आपका किया धरा अपने आप पहले प्यार तक पहुचता रहता है भले ही उसने धोखे से ही सब कुछ किया हो अथवा आपके सम्बन्ध समाप्त हो गए हों ,पर अगर वह याद आता है और प्यार आपके मन में उत्पन्न होता है तो उस तक भी लाभ स्थानांतरित होता ही होता है |आपकी एक गलती पूरे जीवन आपको किसी का पूर्ण रूप से होने नहीं देगी ,भले आप बाद में किसी के प्रति पूर्ण समर्पित ही क्यों हो जाएँ |अतएव अगर कोई ऐसा पाठक हमारी अलौकिक शक्तियां अथवा Tantramarg नामक फेसबुक पेजों को या हमारे इस blog को पढ़ रहा हो, जिसने जीवन में किसी अन्य से सम्बन्ध नहीं रखे तो वह ध्यान दे और कभी पति या पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य से सम्बन्ध न रखे ,क्योकि आपकी एक गलती जीवन भर आपके कर्मों को अधूरा कर देगी ,बाद में पछता कर भी आप कुछ नहीं कर पायेंगे | ………..[व्यक्तिगत विचार और चिंतन ]……………………………………………..हर-हर महादेव
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