Thursday 16 April 2020

आत्मा युगल [twin soul] की अवधारणा ,विवाह तथा अंतर्संबंध

क्या यह सत्य है की आत्मा का मोक्ष युगल मिलने पर ही होता है
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विवाह और आत्मा युगल [twin soul] की अवधारणा तथा अंतर्संबंध 
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                             यह ब्रह्माण्ड एक निर्विकार - निर्गुण परम तत्व से उत्पन्न होता है और उसी में समाहितहोता है ,इसे सदाशिव- परमेश्वर- परब्रह्म- परम तत्व आदि के नाम से जाना जाता है | इस तत्व से जब सृष्टि उत्पन्न होती है तो वह द्विगुणात्मक हो जाती है ,अर्थात शिव,अर्धनारीश्वर हो दो गुणों का प्रतिनिधित्व करने लगते हैं ,एक धनात्मक और दूसरा ऋणात्मक,,इसीलिए सम्पूर्ण प्रकृति द्विगुणात्मक होती है | स्त्री ऋणात्मक ऊर्जा और पुरुषधनात्मक ऊर्जा का प्रतिरूप होता है | समस्त संसार की उत्पत्ति इस धनात्मक औरऋणात्मक के आपसी संयोग से होती है ,मनुष्यों में भी ऐसा है ,किन्तु मनुष्यों में विवाह कीअवधारणा है जबकि प्रकृति के अन्य किसी जीव या पदार्थ में यह व्यवस्था नहीं है | अर्थात यह मनुष्य द्वारा अपने लिए बनाई गयी एक व्यवस्था है ,प्रकृति ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनाई ,अपने आपसी लाभ और सुरक्षा के दृष्टिगत यह व्यवस्था विकसित हुई है | किन्तुइसके पीछे गंभीर रहस्य भी हो सकते हैं ,जिसके बारे में सामान्य मनुष्य नहीं सोचता |
                        यद्यपि विवाह की व्यवस्था एक सामाजिक कृत्रिम व्यवस्था है ,जिसके शुरू होने के पीछेअपने कारण थे |वास्तव में इस प्रथा के शुरू होने कारण था की प्राचीन काल में स्त्रियाँअसुरक्षित थी ,उनके लिए पुरुषों में मारकाट मची रहती थी ,इसलिए एक ऐसी विधि बना दीगयी ,जिससे जिस युवती के साथ उस विधि को पूरा किया गया हो ,वह उस पुरुष कीसंपत्ति बन जाती थी ,दूसरा कोई उसको प्रणय का अधिकारी नहीं होता था | यह व्यवस्थावास्तव में एक पुरुष को एक स्त्री के साथ जोड़ने ,संतानोत्पत्ति ,काम वासना की शांति,मार- काट से बचने के लिए की गयी और इसे धर्म से बाद में जोड़ दिया गया ,साथ ही बादमें रचित कथाओं- मिथकों में व्यवस्था अनंत कालीन बना दी गयी |प्रकृति में प्राकृतिक तौरपर किसी भी जीव जंतु में विवाह की व्यवस्था नहीं है |मनुष्यों में विवाह की व्यवस्था कायह एक सामान्य कारण माना जाता है और है भी ,पर ऋषि- मुनि- तत्व वेत्ता- ब्रह्म ज्ञानी इसके पीछे के मूल कारण को भी जानते थे ,इसलिए इसे सामाजिक के साथ ही धार्मिक औरतात्विक महत्व प्राप्त हुआ |
                            विचारणीय है की जब सदाशिव ,सृष्टि उत्पन्न करने के लिए दो विपरीत गुणों में अपने कोपरिवर्तित करते है ,जब ब्रह्माण्ड की प्रत्येक चीज इन्ही मूल दो गुणों का प्रतिनिधित्व करतीहै ,जब हर जीव - वनस्पति ,पदार्थ यहाँ तक की परमाणु में भी मूल रूप से यही दो गुणधनात्मक और ऋणात्मक होते हैं ,इन्ही से सृष्टि उत्पन्न होती है ,इन्ही से बनती है तो यहकैसे हो सकता है की उसी सदाशिव के अंश से उत्पन्न आत्मा केवल एक गुण वाली हो याअकेले उत्पन्न होती हो | जब स्त्री - पुरुष ,नर- मादा अलग अलग उत्पन्न होते हैं तो इनमेबसने वाली आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती होगी | गंभीर सोचनीय बात है | प्रकृति में सबकुछ द्विगुनात्मक है ,इन दो के मिलने से ही पूर्णता आती है ,इन दो के मिलने से ही तीसरेकी उत्पत्ति होती है ,तब आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती होगी और उसकी पूर्णता अकेलेकैसे संभव होगी | अवतार और ईश्वर तक दो गुणों में परिभाषित होते हैं तब आत्मा क्यों नहीं| एक बात और सोचने वाली है की कभी कभी सुना जाता है की अमुक योनी वाला इतने वषोंतक जीवित रहा ,क्या वह किसी का इंतज़ार करता रहा ,और उससे मिलने पर ही उसकीमुक्ति हुई |क्यों वह इतने वर्षों तक जीवित रहा ,क्या पाना चाहता था |क्यों कोई हजारों वर्षों तक तपस्या करता रहता है तो कोई महान सिद्ध अल्पायु में ही शरीर त्याग देता है |यह सब क्या है ,और क्यों होता है |हमे लगता है यह एक मुख्य कारण हो सकता है |
                               हम अक्सर देखते हैं की एक ही उम्र के एक ही समय में जन्मे दो बच्चो में जिनमे एककन्या और एक बालक होता है ,उनके आपसी गुण और स्वभाव भिन्न होते हैं ,बच्ची कोगुडिया अच्छी लगती है या बनाव श्रींगार और बच्चे को गेंद या खेलकूद के पुरुषोचित गुण,जबकि उन्हें सामान माहौल में रखा जाए तब भी | यह सब किसी भिन्न शक्ति का संकेतक है | संभवतः इन्ही सब गुणों और इसके पीछे के मूल निहितार्थों को जानते हुए विवाह कीअवधारणा विकसित की गयी | आत्मा की द्वैतता भी इसका कारण हो सकता है ,जिन्हेंप्राचीन महर्षि जानते थे | यद्यपि आज यह सामान्य और लौकिक बंधन तथा आपसी संतुलन की दृष्टि से बनाया गया रिवाज लगता है | पर संभव है इसके अन्य अर्थ भी हों | संभव है की साथ रखने की दृष्टि से महर्षियों ने सोचा हो की साथ रहते दो अधूरी आत्माओंका मिलन हो जाए जो जन्म चक्र और गर्भाधान के चलते प्रकृति वश पूर्व की बातें भूल जातेहैं |
                          संभव है की हमारे आत्मा की उत्पत्ति के समय हमारी आत्मा ने दो दो हिस्सों का रूपलिया हो ,जिनके मिलने पर ही उनकी पूर्णता और मुक्ति निर्धारित हो | संभव है विवाह कीअवधारणा के पीछे यह रहस्य हो की कभी तो वे बिछड़े हिस्से आपस में किसी जन्म में मिलजायेंगे और पूर्ण हो मुक्त हो जायेंगे | कभी कभी ऐसा भी सुनने में आता है की एक व्यक्तिको दिया कष्ट दूसरा महसूस करता है ,जैसे कहावत है की मजनू को दिया कष्ट लैलामहसूस करती थी | क्या इसका कोई अर्थ है | यद्यपि हमारी सोच अजीब लग सकती है बहुतलोगों को ,पर क्या ऐसा नहीं हो सकता | यद्यपि यह हमारे विचारों का भटकाव मात्र भी हो सकता है पर बिना कारण के कुछ नहीं होता ,कुछ तो ऐसा महसूस हुआ है जिससे यह सोचनेपर मजबूर हुए हैं ,भगवती की कुछ तो प्रेरणा लगती है |[मेरी बात किसी ज्ञानी महापुरुष को गलत लगे तो क्षमा करेंगे ,किसी की भावना को ठेस लगे तो हम क्षमा प्रार्थी हैं ,हम कोईविवाद नहीं चाहते ,यह हमारे व्यक्तिगत विचार हैं और वैचारिक आजादी का उपयोग अपनेपेज Tantra Marg ,अलौकिक शक्तियां तथा अपने blog पर हम कर रहे है] ……………………………………………………………………….हर–हर महादेव 

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