कभी जुड़वाँ आत्मा या आत्मा युगल के बारे में सोचा है ?,क्या है आत्मा युगल या जुड़वाँ आत्मा [twin soul]
=====================================================================
यह ब्रह्माण्ड एक निर्विकार -निर्गुण परम तत्व से उत्पन्न होता है और उसी में समाहित होता है ,इसे सदाशिव-परमेश्वर-परब्रह्म-परम तत्व आदि के नाम से जाना जाता है |इस तत्व से जब सृष्टि उत्पन्न होती है तो वह द्विगुणात्मक हो जाती है ,अर्थात शिव ,अर्धनारीश्वर हो दो गुणों का प्रतिनिधित्व करने लगते हैं ,एक धनात्मक और दूसरा ऋणात्मक,,इसीलिए सम्पूर्ण प्रकृति द्विगुणात्मक होती है |स्त्री ऋणात्मक ऊर्जा और पुरुष धनात्मक ऊर्जा का प्रतिरूप होता है |समस्त संसार की उत्पत्ति इस धनात्मक और ऋणात्मक के आपसी संयोग से होती है ,मनुष्यों में भी ऐसा है ,किन्तु मनुष्यों में विवाह की अवधारणा है जबकि प्रकृति के अन्य किसी जीव या पदार्थ में यह व्यवस्था नहीं है |अर्थात यह मनुष्य द्वारा अपने लिए बनाई गयी एक व्यवस्था है ,प्रकृति ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनाई ,अपने आपसी लाभ और सुरक्षा के दृष्टिगत यह व्यवस्था विकसित हुई है | किन्तु इसके पीछे गंभीर रहस्य भी हो सकते हैं ,जिसके बारे में सामान्य मनुष्य नहीं सोचता |
विचारणीय है की जब सदाशिव ,सृष्टि उत्पन्न करने के लिए दो विपरीत गुणों में अपने को परिवर्तित करते है ,जब ब्रह्माण्ड की प्रत्येक चीज इन्ही मूल दो गुणों का प्रतिनिधित्व करती है ,जब हर जीव -वनस्पति ,पदार्थ यहाँ तक की परमाणु में भी मूल रूप से यही दो गुण धनात्मक और ऋणात्मक होते हैं ,इन्ही से सृष्टि उत्पन्न होती है ,इन्ही से बनती है तो यह कैसे हो सकता है की उसी सदाशिव के अंश से उत्पन्न आत्मा केवल एक गुण वाली हो या अकेले उत्पन्न होती हो |जब स्त्री -पुरुष ,नर-मादा अलग अलग उत्पन्न होते हैं तो इनमे बसने वाली आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती होगी |गंभीर सोचनीय बात है |प्रकृति में सब कुछ द्विगुनात्मक है ,इन दो के मिलने से ही पूर्णता आती है ,इन दो के मिलने से ही तीसरे की उत्पत्ति होती है ,तब आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती होगी और उसकी पूर्णता अकेले कैसे संभव होगी |अवतार और ईश्वर तक दो गुणों में परिभाषित होते हैं तब आत्मा क्यों नहीं |एक बात और सोचने वाली है की कभी कभी सुना जाता है की अमुक योनी वाला इतने वषों तक किसी का इंतज़ार करता रहा ,और उससे मिलने पर ही उसकी मुक्ति हुई |यह सब क्या है ,और क्यों होता है |
कभी किसी के बहुत कम आयु में मुक्त या मोक्ष हो जाने की बात सुनाई देती है ,कभी सुनते हैं की कुछ संत हजारों वर्षों तक तप कर रहे हैं |कभी ऐसा भी सुनने में आता है की अमुक व्यक्ति-संत-महात्मा- महापुरुष हजारों वर्षों तक कहीं कहीं कभी कभी अपने से जुड़े लोगों को दीखता है ,क्यों होता है ऐसा या यह सब |कहीं इनका कोई सम्बन्ध आत्मा के युगल में उत्पन्न होने से तो नहीं ,,जब सभी कुछ युगल में उत्पन्न होती है तब आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती है |जब किसी भी पदार्थ- जीव -वनस्पति की पूर्णता दो विपरीत प्रकृतियों के आपसी मिलन से ही पूर्ण होती है ,तब आत्मा की पूर्णता कैसे अकेले होती है ,यहाँ तक की सबसे छोटे कण परमाणु का भी स्थायित्व धन और ऋण के परस्पर संतुलन से ही है अन्यथा यह भी बिखर जाता है या दुसरे से सम्बंधित हो जाता है |
क्यों साधना में पुरुष शक्ति के साथ स्त्री शक्ति का और स्त्री शक्ति के साथ पुरुष शक्ति का मंत्र जप अथवा पूजा आवश्यक होता है ,क्यों शक्ति त्रिकोण के साथ भैरवों का जुड़ाव है ,,क्यों शिवलिंग में योनी है ,क्यों विष्णु के साथ लक्ष्मी ,ब्रह्मा के साथ सरस्वती और शिव के साथ शिवा हैं |क्या यह कोई संकेत है या केवल मनुष्य की परिकल्पना ,,क्यों नहीं जीवों -वनस्पतियों में एक लिंगी व्यवस्था है ,क्यों द्वि लिंगी या उभय लिंगी व्यवस्था है ,,इन सबके पीछे कारण हैं |जब इनके अपने कारण हैं तो आत्मा में भी ऐसा हो सकता है |,है ना गंभीरता से सोचने वाली बात |आत्मा के साथ उसके जोड़े के भी उत्पन्न होने की पूर्ण सम्भावना है ,तभी तो उसकी पूर्णता होगी |कभी कहीं कुछ इस सम्बन्ध में पढ़ा था ,उस लेख ने आंदोलित किया हमारे विचारों को और हम यह सोचने पर विवश हुए की ऐसा बिलकुल संभव है और शायद इसका व्यक्ति के मोक्ष आदि से गंभीर सम्बन्ध है |इसका सम्बन्ध जीवों के एक दुसरे के लिए आपसी आकर्षण और पागलपन से भी हो सकता है ,|हमें लगता है हमारे आत्मा के जन्म के साथ ही उसका धनात्मक या ऋणात्मक भी उसी समय उत्पन्न होता है, यह आपका पति या पत्नी ही हो जरुरी नहीं |आपको क्या लगता है ,सोचिये……[व्यक्तिगत विचार ] …………………………………………………..हर-हर महादेव
=====================================================================
यह ब्रह्माण्ड एक निर्विकार -निर्गुण परम तत्व से उत्पन्न होता है और उसी में समाहित होता है ,इसे सदाशिव-परमेश्वर-परब्रह्म-परम तत्व आदि के नाम से जाना जाता है |इस तत्व से जब सृष्टि उत्पन्न होती है तो वह द्विगुणात्मक हो जाती है ,अर्थात शिव ,अर्धनारीश्वर हो दो गुणों का प्रतिनिधित्व करने लगते हैं ,एक धनात्मक और दूसरा ऋणात्मक,,इसीलिए सम्पूर्ण प्रकृति द्विगुणात्मक होती है |स्त्री ऋणात्मक ऊर्जा और पुरुष धनात्मक ऊर्जा का प्रतिरूप होता है |समस्त संसार की उत्पत्ति इस धनात्मक और ऋणात्मक के आपसी संयोग से होती है ,मनुष्यों में भी ऐसा है ,किन्तु मनुष्यों में विवाह की अवधारणा है जबकि प्रकृति के अन्य किसी जीव या पदार्थ में यह व्यवस्था नहीं है |अर्थात यह मनुष्य द्वारा अपने लिए बनाई गयी एक व्यवस्था है ,प्रकृति ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनाई ,अपने आपसी लाभ और सुरक्षा के दृष्टिगत यह व्यवस्था विकसित हुई है | किन्तु इसके पीछे गंभीर रहस्य भी हो सकते हैं ,जिसके बारे में सामान्य मनुष्य नहीं सोचता |
विचारणीय है की जब सदाशिव ,सृष्टि उत्पन्न करने के लिए दो विपरीत गुणों में अपने को परिवर्तित करते है ,जब ब्रह्माण्ड की प्रत्येक चीज इन्ही मूल दो गुणों का प्रतिनिधित्व करती है ,जब हर जीव -वनस्पति ,पदार्थ यहाँ तक की परमाणु में भी मूल रूप से यही दो गुण धनात्मक और ऋणात्मक होते हैं ,इन्ही से सृष्टि उत्पन्न होती है ,इन्ही से बनती है तो यह कैसे हो सकता है की उसी सदाशिव के अंश से उत्पन्न आत्मा केवल एक गुण वाली हो या अकेले उत्पन्न होती हो |जब स्त्री -पुरुष ,नर-मादा अलग अलग उत्पन्न होते हैं तो इनमे बसने वाली आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती होगी |गंभीर सोचनीय बात है |प्रकृति में सब कुछ द्विगुनात्मक है ,इन दो के मिलने से ही पूर्णता आती है ,इन दो के मिलने से ही तीसरे की उत्पत्ति होती है ,तब आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती होगी और उसकी पूर्णता अकेले कैसे संभव होगी |अवतार और ईश्वर तक दो गुणों में परिभाषित होते हैं तब आत्मा क्यों नहीं |एक बात और सोचने वाली है की कभी कभी सुना जाता है की अमुक योनी वाला इतने वषों तक किसी का इंतज़ार करता रहा ,और उससे मिलने पर ही उसकी मुक्ति हुई |यह सब क्या है ,और क्यों होता है |
कभी किसी के बहुत कम आयु में मुक्त या मोक्ष हो जाने की बात सुनाई देती है ,कभी सुनते हैं की कुछ संत हजारों वर्षों तक तप कर रहे हैं |कभी ऐसा भी सुनने में आता है की अमुक व्यक्ति-संत-महात्मा- महापुरुष हजारों वर्षों तक कहीं कहीं कभी कभी अपने से जुड़े लोगों को दीखता है ,क्यों होता है ऐसा या यह सब |कहीं इनका कोई सम्बन्ध आत्मा के युगल में उत्पन्न होने से तो नहीं ,,जब सभी कुछ युगल में उत्पन्न होती है तब आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती है |जब किसी भी पदार्थ- जीव -वनस्पति की पूर्णता दो विपरीत प्रकृतियों के आपसी मिलन से ही पूर्ण होती है ,तब आत्मा की पूर्णता कैसे अकेले होती है ,यहाँ तक की सबसे छोटे कण परमाणु का भी स्थायित्व धन और ऋण के परस्पर संतुलन से ही है अन्यथा यह भी बिखर जाता है या दुसरे से सम्बंधित हो जाता है |
क्यों साधना में पुरुष शक्ति के साथ स्त्री शक्ति का और स्त्री शक्ति के साथ पुरुष शक्ति का मंत्र जप अथवा पूजा आवश्यक होता है ,क्यों शक्ति त्रिकोण के साथ भैरवों का जुड़ाव है ,,क्यों शिवलिंग में योनी है ,क्यों विष्णु के साथ लक्ष्मी ,ब्रह्मा के साथ सरस्वती और शिव के साथ शिवा हैं |क्या यह कोई संकेत है या केवल मनुष्य की परिकल्पना ,,क्यों नहीं जीवों -वनस्पतियों में एक लिंगी व्यवस्था है ,क्यों द्वि लिंगी या उभय लिंगी व्यवस्था है ,,इन सबके पीछे कारण हैं |जब इनके अपने कारण हैं तो आत्मा में भी ऐसा हो सकता है |,है ना गंभीरता से सोचने वाली बात |आत्मा के साथ उसके जोड़े के भी उत्पन्न होने की पूर्ण सम्भावना है ,तभी तो उसकी पूर्णता होगी |कभी कहीं कुछ इस सम्बन्ध में पढ़ा था ,उस लेख ने आंदोलित किया हमारे विचारों को और हम यह सोचने पर विवश हुए की ऐसा बिलकुल संभव है और शायद इसका व्यक्ति के मोक्ष आदि से गंभीर सम्बन्ध है |इसका सम्बन्ध जीवों के एक दुसरे के लिए आपसी आकर्षण और पागलपन से भी हो सकता है ,|हमें लगता है हमारे आत्मा के जन्म के साथ ही उसका धनात्मक या ऋणात्मक भी उसी समय उत्पन्न होता है, यह आपका पति या पत्नी ही हो जरुरी नहीं |आपको क्या लगता है ,सोचिये……[व्यक्तिगत विचार ] …………………………………………………..हर-हर महादेव
No comments:
Post a Comment