मंत्र जप सवा लाख ,मिला कुछ नहीं [ समय -श्रम दोनों बर्बाद ]
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आज के समय में साधकों की बाढ़ आई हुई है ,ज्योतिषियों की बाढ़ आई हुई है |ज्योतिषी सलाह देता है ,अमुक मंत्र इतना संख्या में जपो ,अमुक पूजा करो ,आपकी समस्या हल हो जायेगी |उसके बारे में बताया कुछ नहीं की कैसे करें ,पद्धति-तरीका क्या हो ,बस जप लो |आधे को तो खुद पता नहीं होता ,कुछ को पता होता है तो समय बचाने के लिए बस मंत्र बता कर छुट्टी कर लेते हैं |मंत्र जपने वाल दुगुना जप लेता है पर उसे कोई परिणाम समझ नहीं आता ,तो वह सोचता है की ज्योतिषी सही नहीं ,पूजा -मंत्र जप से कुछ नहीं होता |उसकी गलती भी नहीं होती |उसे जितना पता होता है वह करता तो है ही |
ऐसा ही नवागंतुक साधकों के साथ होता है ,तंत्र अथवा मंत्र -यन्त्र के क्षेत्र में अधिकतर आते हैं शक्ति पाने ,चमत्कार करने के लालच में ,कुछ अपनी समस्या दूर करने चक्कर में और कुछ वास्तव में मुक्ति की इच्छा से ,पर ९९ प्रतिशत को अपेक्षित सफलता नहीं मिलती |कारण सही पद्धति -सही ज्ञान -सही तरीका नहीं पता |या तो किताब से कुछ करने का प्रयास करते हैं या अधकचरे ज्ञान वाले गुरुओं के चक्कर में पड़ जाते हैं जिन्हें या तो खुद कुछ आता नहीं या एकाध मंत्र अपने गुरु से पाकर कुछ सिद्धियाँ करके गुरु बन बैठते हैं |साधक बेचारे क्या करेंगे जब गुरु ही उन्हें सही मार्गदर्शन नहीं दे पाता |गुरु जी को मंत्र का विज्ञान पता ही नहीं है |कैसे काम करता है ,कहाँ किस मंत्र का क्या प्रभाव होता है |कैसे इसकी ऊर्जा साधक तक आती है ,कहाँ से आती है |कैसे इस ऊर्जा को प्राप्त किया जाए |कैसे मंत्र को जपा जाए |कैसे उसका उच्चारण हो |कहाँ आरोह अवरोह हो |कहाँ नाद हो |किस मंत्र को करने में कितना समय लें |आदि आदि [[व्यक्तिगत विचार अलौकिक शक्तियां पेज के पाठकों के लिए ]]
अधिकतर व्यक्ति या साधक मंत्र जप करते समय जप की संख्या पर ध्यान देते हैं |अधिकतर का ध्यान होता है की इतनी संख्या करनी है या इतनी संख्या करेंगे तो इतने दिन में इतना हो जाएगा और साधना या अनुष्ठान या संकल्प पूरा हो जाएगा |रेट रटाये ढंग से जल्दबाजी में मंत्र जप करते हैं ,करते रोज हैं और निश्चित संख्या के दिनों तक भी करते हैं पर जब कर चुकते हैं और जितनी जानकारी है उस हिसाब से हवन आदि भी कर लेते हैं तो परिणाम की प्रतीक्षा करते हैं पर समझ में कुछ नहीं आता |अब उनमे अविश्वास जन्म लेता है की किया तो इतना दिन ,इतनी तपस्या की कुछ नहीं हुआ ,मंत्र जप पूजा आदि से कुछ नहीं होता जो भाग्य में लिखा है वाही होता है |आदि आदि |
लोग यह ध्यान नहीं देते की वह जिस मंत्र का जप कर रहे हैं वह सही है की नहीं ,शुद्ध है की नहीं ,सही लक्ष्य के लिए सही मंत्र है की नहीं |मंत्र का उच्चारण क्या होना चाहिए ,मंत्र कितने समय में होना चाहिए या कितना लम्बा या किस स्वर में होना चाहिए |इसका समय क्या होना चाहिए |आदि |अधिकतर का ध्यान मंत्र जप के समय कहीं और घूमता रहता है |अधिकतर जल्दबाजी में होते हैं की कब जप पूरा हो और अमुक कार्य किया जाए |जैसे साधना -पूजा न कर रहे हों एक जिम्मेदारी पूरी कर रहे हों |जैसे पहाडा रत रहे हों देवता को नहीं सूना रहे होते या बुला रहे होते वह तो कर्त्तव्य की आईटीआई श्री कर रहे होते हैं |देवता या ईष्ट की ओर ध्यान एकाग्र होता ही नहीं |भावहीनता में होते हैं ,एकमात्र अपना लक्ष्य दिखाई देता है |देवता से मानसिक जुड़ाव हुआ ही नहीं होता |परिणाम होता है की प्रकृति की सम्बंधित ऊर्जा मंत्र के द्वारा व्यक्ति से जुड़ पाती ही नहीं |देवता को मंत्र सुनाई देता ही नहीं |मंत्र जप मात्र रटने से ,बिना नाद के जपने से उसमे कोई ऊर्जा उत्पन्न नहीं होती ,वह आपके ही चक्रों को आंदोलित नहीं करता तो प्रकृति की ऊर्जा से क्या जुड़ पायेगा और उन्हें आकर्षित कर पायेगा |यहाँ तक की शाबर मन्त्र जिनमे न अर्थ होते हैं न नाद वह भी बिना भाव के काम नहीं करते |बिना भाव और आत्मबल के आप शाबर मंत्र भी रटेंगे तो आपको परिणाम मुश्किल है मिलना |
ध्यान दीजिये हर मंत्र की एक विशिष्ट नाद होती है ,विशिष्ट उच्चारण होता है ,विशिष्ट देवता होते हैं |विशिष्ट मंत्र का विशिष्ट चक्र से सम्बन्ध होता है |विशिष्ट मंत्र प्रकृति के विशिष्ट प्रकार की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है और उसे आकर्षित करता है ,साधक या मंत्र जपने वाले से जोड़ता है |अतः उसका पाठ उसी तरह के भाव ,नाद ,उच्चारण के साथ होना चाहिए |आपका मानसिक तारतम्य सम्बंधित शक्ति और मंत्र की ऊर्जा से बना होना चाहिए |नहीं तो वह अगर आकर्षित हो भी गई तो आपसे जुड़ नहीं पाएगी और वातावरण में पुनः बिखर जायेगी |महत्त्व मंत्र की संख्या जपने का नहीं होता ,सही उच्चारण ,सही नाद का होता है |सही भाव का होता है ,सही भावना का होता है |सही तरीके और पद्धति का होता है |सही समय का होता है .एकाग्रता का होता है |अगर यह सब नहीं है तो आप कई लाख भी जप कर लीजिये आपको परिणाम मिलना मुश्किल है |मंत्र असंदिग्ध रूप से काम करते हैं बशर्ते आप सही ढंग से उन्हें जप सकें |अगर रटंत जप करेंगे तो कुछ नहीं मिलेगा ,इससे तो अच्छा होगा की आप कोई जप न करो और केवल सम्बंधित देवता के रूप -गुण -भाव में ही डूबिये आपको जरुर लाभ मिलेगा |अगर मंत्र कर रहे हैं तो ढंग से कीजिये |
सवा लाख ,लाखों लाख या निश्चित संख्या में जप करना कोई मायने नहीं रखता |आप कुछ हजार ही जप कर लीजिये और सही ढंग से कर लीजिये तो आपको लाखों लाख से अधिक लाभ हो जाएगा |उदाहरण के लिए ॐ का जप कुछ लोग करते हैं ,अधिकतर ॐ को मंत्र के आगे लगाते हैं |पर बहुत कम को पता है की अगर ॐ का सही ढंग से जप कर दिया जाए तो दीवार टूट जाती है ,यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चूका है |हम क्या करते हैं ॐ को लगाया या ॐ ॐ करते चले गए ,न नाद न समयांतराल न उच्चारण न गूँज किसी पर ध्यान नहीं दिया |ऊर्जा उत्पन्न हुई ही नहीं ,आपके चक्र को आन्दोलित की ही नहीं |प्रकृति की ऊर्जा से जुडी ही नहीं तो लाभ क्या होगा |ॐ का जप जब भी हो एक गूँज पैदा होनी चाहिए ,जो आपको और वातावरण को गुंजित करें |इसकी गूँज ह्रदय में गुंजित होनी चाहिए |तभी यह आंदोलित करेगा आपके सम्बंधित चक्र को और वहां से तरंग उत्पादन बढ़ेगा और वातावरण की ऊर्जा को आकर्षित करेगा |ऐसा ही सभी मन्त्रों में है |अगर ऐसा न होता तो अलग बीज और बिन्दुओं का प्रयोग क्यों होता |हर बीज का हर मंत्र का अपना उच्चारण ,नाद है उसे उसी ढंग से किया जाना चाहिए |सही ढंग से कर दीजिये कुछ हजार में आपको लाभ मिल जाएगा |रोज हजारों जप मत कीजिये कुछ सौ कीजिये पर आराम से धीरे धीरे पूरी एकाग्रता ,ध्यान ,भाव ,नाद ,उच्चारण से कीजिये देवता प्रसन्न हो जाएगा |[[व्यक्तिगत विचार ब्लॉग पाठकों के लिए ]]…………………………………………………………….हर -हर महादेव
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आज के समय में साधकों की बाढ़ आई हुई है ,ज्योतिषियों की बाढ़ आई हुई है |ज्योतिषी सलाह देता है ,अमुक मंत्र इतना संख्या में जपो ,अमुक पूजा करो ,आपकी समस्या हल हो जायेगी |उसके बारे में बताया कुछ नहीं की कैसे करें ,पद्धति-तरीका क्या हो ,बस जप लो |आधे को तो खुद पता नहीं होता ,कुछ को पता होता है तो समय बचाने के लिए बस मंत्र बता कर छुट्टी कर लेते हैं |मंत्र जपने वाल दुगुना जप लेता है पर उसे कोई परिणाम समझ नहीं आता ,तो वह सोचता है की ज्योतिषी सही नहीं ,पूजा -मंत्र जप से कुछ नहीं होता |उसकी गलती भी नहीं होती |उसे जितना पता होता है वह करता तो है ही |
ऐसा ही नवागंतुक साधकों के साथ होता है ,तंत्र अथवा मंत्र -यन्त्र के क्षेत्र में अधिकतर आते हैं शक्ति पाने ,चमत्कार करने के लालच में ,कुछ अपनी समस्या दूर करने चक्कर में और कुछ वास्तव में मुक्ति की इच्छा से ,पर ९९ प्रतिशत को अपेक्षित सफलता नहीं मिलती |कारण सही पद्धति -सही ज्ञान -सही तरीका नहीं पता |या तो किताब से कुछ करने का प्रयास करते हैं या अधकचरे ज्ञान वाले गुरुओं के चक्कर में पड़ जाते हैं जिन्हें या तो खुद कुछ आता नहीं या एकाध मंत्र अपने गुरु से पाकर कुछ सिद्धियाँ करके गुरु बन बैठते हैं |साधक बेचारे क्या करेंगे जब गुरु ही उन्हें सही मार्गदर्शन नहीं दे पाता |गुरु जी को मंत्र का विज्ञान पता ही नहीं है |कैसे काम करता है ,कहाँ किस मंत्र का क्या प्रभाव होता है |कैसे इसकी ऊर्जा साधक तक आती है ,कहाँ से आती है |कैसे इस ऊर्जा को प्राप्त किया जाए |कैसे मंत्र को जपा जाए |कैसे उसका उच्चारण हो |कहाँ आरोह अवरोह हो |कहाँ नाद हो |किस मंत्र को करने में कितना समय लें |आदि आदि [[व्यक्तिगत विचार अलौकिक शक्तियां पेज के पाठकों के लिए ]]
अधिकतर व्यक्ति या साधक मंत्र जप करते समय जप की संख्या पर ध्यान देते हैं |अधिकतर का ध्यान होता है की इतनी संख्या करनी है या इतनी संख्या करेंगे तो इतने दिन में इतना हो जाएगा और साधना या अनुष्ठान या संकल्प पूरा हो जाएगा |रेट रटाये ढंग से जल्दबाजी में मंत्र जप करते हैं ,करते रोज हैं और निश्चित संख्या के दिनों तक भी करते हैं पर जब कर चुकते हैं और जितनी जानकारी है उस हिसाब से हवन आदि भी कर लेते हैं तो परिणाम की प्रतीक्षा करते हैं पर समझ में कुछ नहीं आता |अब उनमे अविश्वास जन्म लेता है की किया तो इतना दिन ,इतनी तपस्या की कुछ नहीं हुआ ,मंत्र जप पूजा आदि से कुछ नहीं होता जो भाग्य में लिखा है वाही होता है |आदि आदि |
लोग यह ध्यान नहीं देते की वह जिस मंत्र का जप कर रहे हैं वह सही है की नहीं ,शुद्ध है की नहीं ,सही लक्ष्य के लिए सही मंत्र है की नहीं |मंत्र का उच्चारण क्या होना चाहिए ,मंत्र कितने समय में होना चाहिए या कितना लम्बा या किस स्वर में होना चाहिए |इसका समय क्या होना चाहिए |आदि |अधिकतर का ध्यान मंत्र जप के समय कहीं और घूमता रहता है |अधिकतर जल्दबाजी में होते हैं की कब जप पूरा हो और अमुक कार्य किया जाए |जैसे साधना -पूजा न कर रहे हों एक जिम्मेदारी पूरी कर रहे हों |जैसे पहाडा रत रहे हों देवता को नहीं सूना रहे होते या बुला रहे होते वह तो कर्त्तव्य की आईटीआई श्री कर रहे होते हैं |देवता या ईष्ट की ओर ध्यान एकाग्र होता ही नहीं |भावहीनता में होते हैं ,एकमात्र अपना लक्ष्य दिखाई देता है |देवता से मानसिक जुड़ाव हुआ ही नहीं होता |परिणाम होता है की प्रकृति की सम्बंधित ऊर्जा मंत्र के द्वारा व्यक्ति से जुड़ पाती ही नहीं |देवता को मंत्र सुनाई देता ही नहीं |मंत्र जप मात्र रटने से ,बिना नाद के जपने से उसमे कोई ऊर्जा उत्पन्न नहीं होती ,वह आपके ही चक्रों को आंदोलित नहीं करता तो प्रकृति की ऊर्जा से क्या जुड़ पायेगा और उन्हें आकर्षित कर पायेगा |यहाँ तक की शाबर मन्त्र जिनमे न अर्थ होते हैं न नाद वह भी बिना भाव के काम नहीं करते |बिना भाव और आत्मबल के आप शाबर मंत्र भी रटेंगे तो आपको परिणाम मुश्किल है मिलना |
ध्यान दीजिये हर मंत्र की एक विशिष्ट नाद होती है ,विशिष्ट उच्चारण होता है ,विशिष्ट देवता होते हैं |विशिष्ट मंत्र का विशिष्ट चक्र से सम्बन्ध होता है |विशिष्ट मंत्र प्रकृति के विशिष्ट प्रकार की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है और उसे आकर्षित करता है ,साधक या मंत्र जपने वाले से जोड़ता है |अतः उसका पाठ उसी तरह के भाव ,नाद ,उच्चारण के साथ होना चाहिए |आपका मानसिक तारतम्य सम्बंधित शक्ति और मंत्र की ऊर्जा से बना होना चाहिए |नहीं तो वह अगर आकर्षित हो भी गई तो आपसे जुड़ नहीं पाएगी और वातावरण में पुनः बिखर जायेगी |महत्त्व मंत्र की संख्या जपने का नहीं होता ,सही उच्चारण ,सही नाद का होता है |सही भाव का होता है ,सही भावना का होता है |सही तरीके और पद्धति का होता है |सही समय का होता है .एकाग्रता का होता है |अगर यह सब नहीं है तो आप कई लाख भी जप कर लीजिये आपको परिणाम मिलना मुश्किल है |मंत्र असंदिग्ध रूप से काम करते हैं बशर्ते आप सही ढंग से उन्हें जप सकें |अगर रटंत जप करेंगे तो कुछ नहीं मिलेगा ,इससे तो अच्छा होगा की आप कोई जप न करो और केवल सम्बंधित देवता के रूप -गुण -भाव में ही डूबिये आपको जरुर लाभ मिलेगा |अगर मंत्र कर रहे हैं तो ढंग से कीजिये |
सवा लाख ,लाखों लाख या निश्चित संख्या में जप करना कोई मायने नहीं रखता |आप कुछ हजार ही जप कर लीजिये और सही ढंग से कर लीजिये तो आपको लाखों लाख से अधिक लाभ हो जाएगा |उदाहरण के लिए ॐ का जप कुछ लोग करते हैं ,अधिकतर ॐ को मंत्र के आगे लगाते हैं |पर बहुत कम को पता है की अगर ॐ का सही ढंग से जप कर दिया जाए तो दीवार टूट जाती है ,यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चूका है |हम क्या करते हैं ॐ को लगाया या ॐ ॐ करते चले गए ,न नाद न समयांतराल न उच्चारण न गूँज किसी पर ध्यान नहीं दिया |ऊर्जा उत्पन्न हुई ही नहीं ,आपके चक्र को आन्दोलित की ही नहीं |प्रकृति की ऊर्जा से जुडी ही नहीं तो लाभ क्या होगा |ॐ का जप जब भी हो एक गूँज पैदा होनी चाहिए ,जो आपको और वातावरण को गुंजित करें |इसकी गूँज ह्रदय में गुंजित होनी चाहिए |तभी यह आंदोलित करेगा आपके सम्बंधित चक्र को और वहां से तरंग उत्पादन बढ़ेगा और वातावरण की ऊर्जा को आकर्षित करेगा |ऐसा ही सभी मन्त्रों में है |अगर ऐसा न होता तो अलग बीज और बिन्दुओं का प्रयोग क्यों होता |हर बीज का हर मंत्र का अपना उच्चारण ,नाद है उसे उसी ढंग से किया जाना चाहिए |सही ढंग से कर दीजिये कुछ हजार में आपको लाभ मिल जाएगा |रोज हजारों जप मत कीजिये कुछ सौ कीजिये पर आराम से धीरे धीरे पूरी एकाग्रता ,ध्यान ,भाव ,नाद ,उच्चारण से कीजिये देवता प्रसन्न हो जाएगा |[[व्यक्तिगत विचार ब्लॉग पाठकों के लिए ]]…………………………………………………………….हर -हर महादेव
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