प्राण रक्षक मृत्युंजय यंत्र
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यन्त्र चिंतामणि में भगवान् शिव ने प्राणों की रक्षा के लिए मृत्युंजय यन्त्र का विधान बतलाया है |जब कोई क्रुद्ध शासक अहित करना चाहता हो अथवा कोई शत्रु घात करना चाहता हो ,रात दिन पीछे पडा रहता हो ,तो आत्मरक्षा के लिए लोहे की कलम से यक्ष कर्दम से इस यन्त्र को दो भोजपत्रों पर लिखे |
दोनों यंत्रों को शिव के चरणों में रखकर पूजा करें और तंत्रोक्त प्राण प्रतिष्ठा करें |इसके बाद महामृत्युंजय मंत्र का तीन दिनों में ११ हजार जप कर हवन करें |एक यन्त्र वहीँ रखा रहने दें तथा दुसरे को ताम्बे के कवच में भरकर धारण करें |इसके प्रभाव से शत्रु अनुकूल होगा |
यदि किसी का क्रोध शांत करना हो ,तो दुसरे यन्त्र को एक शिला पर रखकर ,दूसरी भारी शिला से दबा दें |यन्त्र में शत्रु का नाम लिखें |यह यन्त्र प्राणों की रक्षा करने वाला है |इसका प्रताप एक बार तो काल के क्रोध को भी शांत कर देता है |
यदि कुंडली में मृत्यु भय हो अथवा किसी गंभीर रोग की अवस्था हो जहाँ प्राणों पर संकट आ सकता हो ,अथवा मृत्यु की आशंका हो किसी भी कारण से ,अथवा कोई ऐसा योग बन रहा हो ज्योतिषीय दृष्टि से की दुर्घटना की संभावना हो तो यन्त्र का निर्माण विशेष शुभ मुहूर्त में शुद्ध असली केशर ,कस्तूरी और गोरोचन के मिश्रण से ,कनेर की लकड़ी की कलम से करें और एक ही यन्त्र का निर्माण करें |यन्त्र के बीच उस व्यक्ति का नाम लिखें जिसकी सुरक्षा की भावना हो |यन्त्र के चारो ओर महामृत्युंजय मंत्र लिख सको वेष्ठित करें यन्त्र निर्माण के बाद पूर्ण तंत्रोक्त विधिविधान से उसकी प्राण प्रतिष्ठा करें |प्राण प्रतिष्ठा के बाद विधिवत पूजन करें और ११ दिन में ११ हजार महामृत्युंजय मंत्र का जप करें और तब हवन कर उसके धुएं में यन्त्र को धूपित करें |इसके बाद चांदी के कवच में यन्त्र को भरकर पुनः पूजन कर गले में धारण करें |यह यन्त्र /कवच व्यक्ति की रोग ,बीमारी ,नकारात्मक शक्ति ,भूत -प्रेत -उपरी हवा ,नकारात्मक प्रभाव ,गृह दोष ,वास्तु दोष ,स्थान दोष से पूर्ण सुरक्षा देता है |इसके प्रभाव से नकारात्मक प्रभाव रुकते हैं और जो वास्तविक भाग्य में होता है वह होता है |....................................................हर-हर महादेव
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यन्त्र चिंतामणि में भगवान् शिव ने प्राणों की रक्षा के लिए मृत्युंजय यन्त्र का विधान बतलाया है |जब कोई क्रुद्ध शासक अहित करना चाहता हो अथवा कोई शत्रु घात करना चाहता हो ,रात दिन पीछे पडा रहता हो ,तो आत्मरक्षा के लिए लोहे की कलम से यक्ष कर्दम से इस यन्त्र को दो भोजपत्रों पर लिखे |
दोनों यंत्रों को शिव के चरणों में रखकर पूजा करें और तंत्रोक्त प्राण प्रतिष्ठा करें |इसके बाद महामृत्युंजय मंत्र का तीन दिनों में ११ हजार जप कर हवन करें |एक यन्त्र वहीँ रखा रहने दें तथा दुसरे को ताम्बे के कवच में भरकर धारण करें |इसके प्रभाव से शत्रु अनुकूल होगा |
यदि किसी का क्रोध शांत करना हो ,तो दुसरे यन्त्र को एक शिला पर रखकर ,दूसरी भारी शिला से दबा दें |यन्त्र में शत्रु का नाम लिखें |यह यन्त्र प्राणों की रक्षा करने वाला है |इसका प्रताप एक बार तो काल के क्रोध को भी शांत कर देता है |
यदि कुंडली में मृत्यु भय हो अथवा किसी गंभीर रोग की अवस्था हो जहाँ प्राणों पर संकट आ सकता हो ,अथवा मृत्यु की आशंका हो किसी भी कारण से ,अथवा कोई ऐसा योग बन रहा हो ज्योतिषीय दृष्टि से की दुर्घटना की संभावना हो तो यन्त्र का निर्माण विशेष शुभ मुहूर्त में शुद्ध असली केशर ,कस्तूरी और गोरोचन के मिश्रण से ,कनेर की लकड़ी की कलम से करें और एक ही यन्त्र का निर्माण करें |यन्त्र के बीच उस व्यक्ति का नाम लिखें जिसकी सुरक्षा की भावना हो |यन्त्र के चारो ओर महामृत्युंजय मंत्र लिख सको वेष्ठित करें यन्त्र निर्माण के बाद पूर्ण तंत्रोक्त विधिविधान से उसकी प्राण प्रतिष्ठा करें |प्राण प्रतिष्ठा के बाद विधिवत पूजन करें और ११ दिन में ११ हजार महामृत्युंजय मंत्र का जप करें और तब हवन कर उसके धुएं में यन्त्र को धूपित करें |इसके बाद चांदी के कवच में यन्त्र को भरकर पुनः पूजन कर गले में धारण करें |यह यन्त्र /कवच व्यक्ति की रोग ,बीमारी ,नकारात्मक शक्ति ,भूत -प्रेत -उपरी हवा ,नकारात्मक प्रभाव ,गृह दोष ,वास्तु दोष ,स्थान दोष से पूर्ण सुरक्षा देता है |इसके प्रभाव से नकारात्मक प्रभाव रुकते हैं और जो वास्तविक भाग्य में होता है वह होता है |....................................................हर-हर महादेव
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