आपकी सफलता पर यंत्रों -ताबीजों का प्रभाव
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आपकी सफलता -असफलता आपकी योग्यता ,व्यवहार और सोच पर निर्भर करती है ,ऐसा सामान्य स्थिति में होता है |यह भाग्य पर भी काफी कुछ निर्भर करता है जिसके अनुसार आपकी क्षमता–सोच–व्यक्तित्व का निर्धारण हुआ होता है |अर्थात जब भाग्य पूरा साथ दे तो आपकी नैसर्गिक क्षमता -व्यक्तित्व के अनुसार आपको सफलता मिलती है |किन्तु यह तब होता है जब आप किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा से ग्रस्त न हों |आप अगर किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा से ग्रस्त हों तो आपके सोच -कर्म– व्यवहार -क्षमता बदल जाते है अथवा कम हो जाते हैं |यह नकारात्मक ऊर्जा ग्रह की सामयिक दोष हो सकती है ,वास्तु दोष -स्थान दोष हो सकता है ,किसी द्वारा किया गया अभिचार हो सकता है ,आप द्वारा की गई गलती और श्राप का परिणाम हो सकता है ,पित्र दोष के कारण हो सकता है ,कहीं से आई वायव्य बाधा के कारण हो सकता है ,कुलदेवता/देवी दोष के कारण हो सकता है ,परिवार के मुखिया की विपरीत ग्रह स्थितियों के कारण हो सकता है |ऐसे में जब आप इन किसी भी नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में आते हैं तो जो नैसर्गिक आपके भाग्य से मिलता है उसमे भी रुकावट उत्पन्न हो जाती है और जो जितना मिलना चाहिए नहीं मिल पाता ,अपितु बुरे प्रभाव की मात्रा बढ़ जाती है |कारण यह होता है की नकारात्मक प्रभाव आपकी सोच ,स्वास्थ्य ,पारिवारिक माहौल ,लोगों का सहयोग ,आपका व्यवहार बदल देता है जिससे जितनी क्षमता और योग्यता से सम्बंधित दिशा में कार्य होना चाहिए नहीं हो पाता और सफलता की मात्रा प्रभावित हो जाती है |
ताबीज धारण करने पर चमत्कार कहीं और से नहीं होता ,आप द्वारा ही होता है |ताबीज धारण से अगर चमत्कार होता भी है तो उसके लिए लिए चमत्कारी सिद्ध का मिलना आवश्यक होता है |ऐसा तब तक नहीं होगा जब तक की आप नकारात्मकता से मुक्त न हों और आपका भाग्य साथ न दे रहा हो |भाग्य साथ देने पर ही आपको भाग्यवश चमत्कारी सिद्ध मिल जाता है की उसके दिए ताबीज से चमत्कार होने लगता है |सामान्य स्थिति में ऐसा संभव नहीं होता |सामान्य स्थिति में आप द्वारा ही चमत्कार होता है |जब आपको आपकी आवश्यकतानुसार ऐसी ताबीज धारण करा दी जाती है जो आपकी सम्बंधित क्षेत्र में सफलता बढ़ा दे तो होता यह है की वह ताबीज आपके आसपास और शरीर से सम्बंधित क्षेत्र को प्रभावित कर रही नकारात्मक ऊर्जा हटा देती है ,साथ ही आपकी सोच और कार्यक्षमता और व्यवहार उस क्षेत्र के अनुकूल कर देती है |सम्बंधित देवता और उसके ऊर्जा चक्र को प्रभावित कर देती है ,जहाँ से तरंगों का उत्पादन बढ़ जाता है |फलतः आपकी सफलता बढ़ जाती है |आपके भाग्य का पूरा लाभ सम्बंधित क्षेत्र में मिलने लगता है |यह सब उर्जा का प्रक्षेपण है जो आपके शरीर और वातावरण को प्रभावित करके आपमें और आसपास बदलाव ला देता है |
कार्य प्रणाली अगर ताबीज की देखें तो टोने–टोटके–ताबीज में प्राणी के शारीर औरप्रकृति की उर्जा संरचनाही कार्य करती है | ,इनका मुख्य आधार मानसिक शक्ति काकेंद्रीकरण और भावना होता है ,|,,,प्रकृति में उपस्थितवनस्पतियों और जन्तुओ में एक उर्जापरिपथ कार्य करता है |,मृत्यु के बाद भी इनमे तरंगे कार्य करती है और ऊर्जा भिन्न रूप में बनी रहती है | ,,,,इनमे विभिन्न तरंगे ली जाती है और निष्कासित की जाती रहती है जब तक किसी भी रूप में उसका अस्तित्व है | जब किसी वास्तु या पदार्थ पर मानसिक शक्तिऔर भावना को केंद्रीकृत करके विशिष्टक्रिया की जाती है तो उस पदार्थ से तरंगों काउत्सर्जन होने लगता है ,,|यह कुछ वैसा ही होता है जैसे सामने बैठे व्यक्ति को आदेश देना अथवा दृष्टि से वस्तुओं को हिलाना |,,जिस भावना से उनका प्रयोग जिसके लिएकियाजाता है ,वह इच्छित स्थान पर वैसा कार्य करने लगता है ,| कोई पदार्थ अच्छी भावनासे मानसिक शक्ति केंद्रित करकेविशिष्ट क्रिया करके दी जाये तो प्राप्तकर्ता की उर्जापरिपथ पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और उसे लाभ होता है |सभीजगह उर्जा ही कार्य करतीहै |मानसिक शक्तियों द्वारा उन्हें परिवर्तित अवश्य किया जा सकता है
. ताबीज बनाने वाला जब अपने ईष्ट में सचमुच डूबता है तो वह अपने ईष्टके अनुसार भाव को प्राप्तहोता है अर्थात उसका ईष्ट की ऊर्जा से सामंजस्य बैठता है | ,,भावगहन है तो मानसिक शक्ति एकाग्र होती है,जिससे वह शक्तिशाली होती है ,यह शक्तिशालीहुई तो उसके उर्जा परिपथ का आंतरिक तंत्र शक्तिशाली होता है औरशक्तिशाली तरंगेउत्सर्जित करता है |ये शक्तिशाली तरंगे ईष्ट को आकर्षित कर उसकी ऊर्जा से संतृप्त करने लगती हैं साधक को और यह साधक के मानसिक बल के अनुसार काम करने लगती हैं तथा स्थिर होने लगती हैं |ऐसा व्यक्तियदि किसी विशेष समय,ऋतू–मॉस में विशेष तरीके से,विशेष पदार्थो को लेकर अपनी मानसिक शक्ति और मन्त्र सेउसे सिद्ध करता है तो वहताबीज धारक व्यक्ति को अच्छे–बुरे भाव की तरंगों से लिप्त कर देता है |
यह समस्त क्रिया शारीर के उर्जा चक्र को प्रभावित करती है और तदनुसार व्यक्ति कोउनका प्रभाव दिखाईदेता है |इसमें प्रयुक्त पदार्थ की ऊर्जा ,मॉस–ऋतू की ऊर्जा की विशेषता ,तिथि के अनुसार ग्रहों की विशेषता ,साधक की ऊर्जा ,विशिष्ट मन्त्र और यन्त्र की ऊर्जा एक साथ मिलकर साधक के मानसिक बल से संयुक्त हो जाती हैं और अभिमंत्रित करते ही वह वस्तु विशेष में स्थिर हो जाती हैं |इससे तरंगों का उत्सर्जन होता रहता है जो धारण करने वाले के मष्तिष्क ,वातावरण ,शरीर ,ऊर्जा परिपथ को प्रभावित करता है और कुछ सामय में अनुकूल रासायनिक परिवर्तन भी होने लगता है जिससे व्यक्ति की सोच ,क्रिया कलाप ,सब बदल जाते हैं ,औरा बदल जाती है ,वातावरण में जहाँ वह रहता है तदनुरूप परिवर्तन हो सकते हैं |यह सामान्य क्रिया प्रणाली है |उच्च साधक और सिद्ध के लिए मानसिक बल और इच्छा ही पर्याप्त होती है ,,ऋतू–मॉस–मुहूर्त–पदार्थ तक का महत्त्व नहीं रहा जाता ,,,वह जिस भी वस्तु को अभिमंत्रित कर दे वाही ताबीज और सिद्द हो जाती है |सामान्य रूप में किसी साधक को किसी यन्त्र अथवा ताबीज को सिद्ध करने के लिए सम्बंधित शक्ति या देवता का सिद्ध होना आवश्यक है |ऐसा नहीं की कोई भी किसी भी देवता या शक्ति के यन्त्र को सिद्ध कर सकता है और सभी कामों में उपयोगी यंत्रों को बना सकता है |जिसकी जैसी क्षमता वह वाही काम कर सकता है |इसलिए यह देखना आवश्यक हो जाता है की सम्बंधित साधक के पास वह क्षमता है भी की नहीं ,नहीं तो उपयुक्त लाभ प्राप्त नहीं होंगे |……………………………..………हर–हरमहादेव
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आपकी सफलता -असफलता आपकी योग्यता ,व्यवहार और सोच पर निर्भर करती है ,ऐसा सामान्य स्थिति में होता है |यह भाग्य पर भी काफी कुछ निर्भर करता है जिसके अनुसार आपकी क्षमता–सोच–व्यक्तित्व का निर्धारण हुआ होता है |अर्थात जब भाग्य पूरा साथ दे तो आपकी नैसर्गिक क्षमता -व्यक्तित्व के अनुसार आपको सफलता मिलती है |किन्तु यह तब होता है जब आप किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा से ग्रस्त न हों |आप अगर किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा से ग्रस्त हों तो आपके सोच -कर्म– व्यवहार -क्षमता बदल जाते है अथवा कम हो जाते हैं |यह नकारात्मक ऊर्जा ग्रह की सामयिक दोष हो सकती है ,वास्तु दोष -स्थान दोष हो सकता है ,किसी द्वारा किया गया अभिचार हो सकता है ,आप द्वारा की गई गलती और श्राप का परिणाम हो सकता है ,पित्र दोष के कारण हो सकता है ,कहीं से आई वायव्य बाधा के कारण हो सकता है ,कुलदेवता/देवी दोष के कारण हो सकता है ,परिवार के मुखिया की विपरीत ग्रह स्थितियों के कारण हो सकता है |ऐसे में जब आप इन किसी भी नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में आते हैं तो जो नैसर्गिक आपके भाग्य से मिलता है उसमे भी रुकावट उत्पन्न हो जाती है और जो जितना मिलना चाहिए नहीं मिल पाता ,अपितु बुरे प्रभाव की मात्रा बढ़ जाती है |कारण यह होता है की नकारात्मक प्रभाव आपकी सोच ,स्वास्थ्य ,पारिवारिक माहौल ,लोगों का सहयोग ,आपका व्यवहार बदल देता है जिससे जितनी क्षमता और योग्यता से सम्बंधित दिशा में कार्य होना चाहिए नहीं हो पाता और सफलता की मात्रा प्रभावित हो जाती है |
ताबीज धारण करने पर चमत्कार कहीं और से नहीं होता ,आप द्वारा ही होता है |ताबीज धारण से अगर चमत्कार होता भी है तो उसके लिए लिए चमत्कारी सिद्ध का मिलना आवश्यक होता है |ऐसा तब तक नहीं होगा जब तक की आप नकारात्मकता से मुक्त न हों और आपका भाग्य साथ न दे रहा हो |भाग्य साथ देने पर ही आपको भाग्यवश चमत्कारी सिद्ध मिल जाता है की उसके दिए ताबीज से चमत्कार होने लगता है |सामान्य स्थिति में ऐसा संभव नहीं होता |सामान्य स्थिति में आप द्वारा ही चमत्कार होता है |जब आपको आपकी आवश्यकतानुसार ऐसी ताबीज धारण करा दी जाती है जो आपकी सम्बंधित क्षेत्र में सफलता बढ़ा दे तो होता यह है की वह ताबीज आपके आसपास और शरीर से सम्बंधित क्षेत्र को प्रभावित कर रही नकारात्मक ऊर्जा हटा देती है ,साथ ही आपकी सोच और कार्यक्षमता और व्यवहार उस क्षेत्र के अनुकूल कर देती है |सम्बंधित देवता और उसके ऊर्जा चक्र को प्रभावित कर देती है ,जहाँ से तरंगों का उत्पादन बढ़ जाता है |फलतः आपकी सफलता बढ़ जाती है |आपके भाग्य का पूरा लाभ सम्बंधित क्षेत्र में मिलने लगता है |यह सब उर्जा का प्रक्षेपण है जो आपके शरीर और वातावरण को प्रभावित करके आपमें और आसपास बदलाव ला देता है |
कार्य प्रणाली अगर ताबीज की देखें तो टोने–टोटके–ताबीज में प्राणी के शारीर औरप्रकृति की उर्जा संरचनाही कार्य करती है | ,इनका मुख्य आधार मानसिक शक्ति काकेंद्रीकरण और भावना होता है ,|,,,प्रकृति में उपस्थितवनस्पतियों और जन्तुओ में एक उर्जापरिपथ कार्य करता है |,मृत्यु के बाद भी इनमे तरंगे कार्य करती है और ऊर्जा भिन्न रूप में बनी रहती है | ,,,,इनमे विभिन्न तरंगे ली जाती है और निष्कासित की जाती रहती है जब तक किसी भी रूप में उसका अस्तित्व है | जब किसी वास्तु या पदार्थ पर मानसिक शक्तिऔर भावना को केंद्रीकृत करके विशिष्टक्रिया की जाती है तो उस पदार्थ से तरंगों काउत्सर्जन होने लगता है ,,|यह कुछ वैसा ही होता है जैसे सामने बैठे व्यक्ति को आदेश देना अथवा दृष्टि से वस्तुओं को हिलाना |,,जिस भावना से उनका प्रयोग जिसके लिएकियाजाता है ,वह इच्छित स्थान पर वैसा कार्य करने लगता है ,| कोई पदार्थ अच्छी भावनासे मानसिक शक्ति केंद्रित करकेविशिष्ट क्रिया करके दी जाये तो प्राप्तकर्ता की उर्जापरिपथ पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और उसे लाभ होता है |सभीजगह उर्जा ही कार्य करतीहै |मानसिक शक्तियों द्वारा उन्हें परिवर्तित अवश्य किया जा सकता है
. ताबीज बनाने वाला जब अपने ईष्ट में सचमुच डूबता है तो वह अपने ईष्टके अनुसार भाव को प्राप्तहोता है अर्थात उसका ईष्ट की ऊर्जा से सामंजस्य बैठता है | ,,भावगहन है तो मानसिक शक्ति एकाग्र होती है,जिससे वह शक्तिशाली होती है ,यह शक्तिशालीहुई तो उसके उर्जा परिपथ का आंतरिक तंत्र शक्तिशाली होता है औरशक्तिशाली तरंगेउत्सर्जित करता है |ये शक्तिशाली तरंगे ईष्ट को आकर्षित कर उसकी ऊर्जा से संतृप्त करने लगती हैं साधक को और यह साधक के मानसिक बल के अनुसार काम करने लगती हैं तथा स्थिर होने लगती हैं |ऐसा व्यक्तियदि किसी विशेष समय,ऋतू–मॉस में विशेष तरीके से,विशेष पदार्थो को लेकर अपनी मानसिक शक्ति और मन्त्र सेउसे सिद्ध करता है तो वहताबीज धारक व्यक्ति को अच्छे–बुरे भाव की तरंगों से लिप्त कर देता है |
यह समस्त क्रिया शारीर के उर्जा चक्र को प्रभावित करती है और तदनुसार व्यक्ति कोउनका प्रभाव दिखाईदेता है |इसमें प्रयुक्त पदार्थ की ऊर्जा ,मॉस–ऋतू की ऊर्जा की विशेषता ,तिथि के अनुसार ग्रहों की विशेषता ,साधक की ऊर्जा ,विशिष्ट मन्त्र और यन्त्र की ऊर्जा एक साथ मिलकर साधक के मानसिक बल से संयुक्त हो जाती हैं और अभिमंत्रित करते ही वह वस्तु विशेष में स्थिर हो जाती हैं |इससे तरंगों का उत्सर्जन होता रहता है जो धारण करने वाले के मष्तिष्क ,वातावरण ,शरीर ,ऊर्जा परिपथ को प्रभावित करता है और कुछ सामय में अनुकूल रासायनिक परिवर्तन भी होने लगता है जिससे व्यक्ति की सोच ,क्रिया कलाप ,सब बदल जाते हैं ,औरा बदल जाती है ,वातावरण में जहाँ वह रहता है तदनुरूप परिवर्तन हो सकते हैं |यह सामान्य क्रिया प्रणाली है |उच्च साधक और सिद्ध के लिए मानसिक बल और इच्छा ही पर्याप्त होती है ,,ऋतू–मॉस–मुहूर्त–पदार्थ तक का महत्त्व नहीं रहा जाता ,,,वह जिस भी वस्तु को अभिमंत्रित कर दे वाही ताबीज और सिद्द हो जाती है |सामान्य रूप में किसी साधक को किसी यन्त्र अथवा ताबीज को सिद्ध करने के लिए सम्बंधित शक्ति या देवता का सिद्ध होना आवश्यक है |ऐसा नहीं की कोई भी किसी भी देवता या शक्ति के यन्त्र को सिद्ध कर सकता है और सभी कामों में उपयोगी यंत्रों को बना सकता है |जिसकी जैसी क्षमता वह वाही काम कर सकता है |इसलिए यह देखना आवश्यक हो जाता है की सम्बंधित साधक के पास वह क्षमता है भी की नहीं ,नहीं तो उपयुक्त लाभ प्राप्त नहीं होंगे |……………………………..………हर–हरमहादेव
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