Tuesday 14 April 2020

कथा कहानी के रहस्य और विज्ञान को समझिये

कथाओ-कहानियों-मिथकों में भटकेंगे तो भटकते रह जायेंगे 
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                                 हमें बचपन से ही विभिन्न कथाएं -कहानियां -मिथक सुनाये जाते रहे है ,,जिनके कारण हमारे अन्दर एक निश्चित विचार बने हुए हैं की अमुक देवी-या देवता ऐसा है ,,इस आकृति का है ,आकार का है ,प्रकृति का है ,गुणों का है ,अमुक जगह रहता है ,अमुक का संहार करता है ,,अमुक को वरदान देता है ,अमुक को सुरक्षा देता है | यह सब सत्य हो सकता है ,किन्तु देवी-देवता व्यक्ति रूप में व्यक्ति की कल्पनाओं के अनुसार आकार ग्रहण करते हैं ,उनका निश्चित आकार हो यह आवश्यक नहीं है ,उनके गुण जरुर मन्त्रों-भावनाओं के अनुसार बनते है |बहुत से लोग शायद न माने किन्तु सच्चाई यह है की ईश्वर-देवी-देवता ऊर्जा रूप हैं ,जो सर्वत्र फैले हैं ,कहीं किसी विशेष की उर्जा अधिक होती है ,कहीं कम ,,अगर ऐसा नहीं होता तो बहुतेरे लोगों द्वारा एक साथ भिन्न जगहों पर एक ही देवता कए पूजे जाने पर वह हर जगह एक ही समय नहीं पहुच सकता |वह सर्वत्र है |वह व्यक्ति की भावनाओं से उत्पन्न तरंगों और आकार की कल्पना के साथ आकृति ग्रहण कर लेता है |तभी तो जिसके सामने वह आकृति ग्रहण करता है केवल वाही उसे देख पता है अन्य केवल यह महसूस कर पाते हैं की कुछ परिवर्तन हुआ ,किन्तु क्या परिवर्तन हुआ यह उनकी समझ में नहीं आता ,,अन्य लोग देवता को नहीं देख पाते ,,,बहुर सिद्ध व्यक्ति हो तो अपनी शक्ति से किसी को किसी देवता या शक्ति के साक्षात्कार करा सकता है ,पर उस देवता की शक्ति देखने वाले को मिल ही जाए जरुरी नहीं ,जब तक की दिखने वाला न चाहे |यह सब उर्जाओं का खेल है |और हम भटकते है कहानियों-मिथकों में |
                            अधिकतर कहानियाँ-मिथक-कथाएं लोगों को समझाने के लिए बनाये गए थे |जिस समय इनकी रचना की गयी थी ,बहुसंख्यक लोग अशिक्षित थे ,केवल कुछ शिक्षित लोग थे जो सब जानते थे ,सामान्य जन को समझाने के लिए कथाओं की कल्पना की गयी ,मिथक शुरू हुए ,कहानियां बने गयी की इन्हें किसी तरह लोगों को समझाया जा सके ,साथ ही यह भी ध्यान रखा गया की धार्मिक भावनाओं से यह जुड़े रहे ,कोई व्यतिक्रम न फैले |कुछ हद तक सत्यता छिपी भी रहे और स्वार्थ सिद्धि भी होती रहे |आतंरिक रूप से कामान्धता से उत्पन्न होने वाले उग्रता को महिसासुर नामक राक्षस आदि के रूप में समझाया गया ,जो उत्पन्न होने पर रिश्ते भूल जाता है |यह सब समझाने के लिये अधिक था की लोग समझ सके और अपने में सुधार कर सके ,नियंत्रण कर सके |किन्तु दुर्भाग्य की समय के साथ मिथकों -कहानियों को ही सच मान लिया गया ,गूढ़ निहितार्थों से लोगो का ध्यान हट गया और कल्पना को ही सच्चाई मान लिया गया |वेद चार है जबकि उपनिषद् छः हैं ,पुराण अट्ठारह हैं ,,वेदों में सूत्र हैं मूल ऊर्जा ,मूल प्रकृति के ,,इन्हें ही पुरानों में समझाया गया है विभिन्न प्रकारों में |पुरानों की रचना बाद में ऋषियों द्वारा विस्तार से समझाने के लिए हुई |इनके कुछ कल्पनाओं का भी समावेश हुआ |कालान्तर में इनमे अन्यान्य कथाएं जुडती गयी ,इनसे छेड़छाड़ भी हुए ,कुछ के हिस्से गायब भी हुए ,मूल प्रकृति में बदलाव भी आ गये |इसके बाद के समय में हर विद्वान् ने अपने हिसाब से इनकी विवेचना कर डाली ,अपनी कल्पनाएँ जोड़ते चले गए |कुल मिलाकर समय क्रम में इनकी मूल प्रकृति ही बदल गयी और शास्त्र कथाओ-मिथकों-कहानियों के संग्रह बन गए |मूल सूत्र या तो गयब हो गए या ध्यान नहीं दिए गए |परिणाम यह हुआ की हम आज कथाओं में जी रहे है ,एक काल्पनिक दुनियां बना रखी है ,जिसमे भटकते रहते हैं |
                        यद्यपि कथाओं-कहानियों-मिथकों का एक फायदा तो होता है की धार्मिकता की वृद्धि होती है ,,आस्था उत्पन्न होती है ,,श्रद्धा बनती है ,भाव उत्पन्न होते हैं ,किन्तु इससे अंधविश्वास भी हो सकते हैं ,मन भटकता रह सकता है कहानियों में ही |मीरा ने कृष्ण को पति-प्रेमी रूप में चाहा ,उन्हें मिले भी ,राम के समय के बानर -रीछ अपनी कल्पना के अनुसार कृष्ण की पत्नी या गोपियाँ तक बने ,किन्तु आज की कहानियों में उलझा व्यक्ति कभी सोच भी नहीं सकता की वह किसी देवी को पत्नी या प्रेमिका के रूप में कल्पना भी कर सके ,सभी माँ के रूप में और देवता को पिता रूप में ही कल्पित करते मिल जायेंगे [केवल तंत्र को छोड़कर ],यह सब धर्म और शक्ति से भय के कारण होता है ,जबकि शक्ति तो सबमे सब जगह है ,जिसे आप पति या पत्नी रूप में पाते है ,क्या उस मनुष्य में वह देवता या देवी नहीं होती ,वाही आपमें भी है और वाही उसमे भी है ,बस अंतर भावनाओं का हो जाता है |इश्वर तो हर जगह है वह व्यक्ति में पदार्थ में कण-कण में है |यह सब भय और अति के कारण हो सकता है |हम कहानियों के काल्पनिक व्यक्तियों के जगह खुद को क्यों नहीं रख सकते |हम खुद अर्जुन की तरह कृष्ण के मित्र हो सकते हैं ,हम बलराम की जगह उनके भाई हो सकते हैं ,हम हनुमान की तरह राम के भक्त हो सकते हैं |
                                 आज जरुरत कहानियों-मिथकों-कथाओं के मूल अर्थ को समझने की है ,क्यों और किसलिए यह सब कहे गए ,क्या कहना चाहते थे हमारे ऋषि -मुनि ,क्या होता है इनका अर्थ ,क्या संकेत देते हैं यह सब |कथाएं-प्रवचन सुनकर उनमे डूबे रहने के साथ उनके अर्थ और गूढ़ निहितार्थ पर चिंतन करने की भी आवश्यकता है |हमेशा कल्पनाये करते हुए भटकते रहने की बजाय उस भाव में डूबने की आवश्यकता है जिस भाव के लिए ,जिस अर्थ के लिए यह कहानियां बने गयी है |............................................................................हर-हर महादेव

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