:::::::::::::::::डाकिनी ::::::::::::::::::
=======================
तंत्र जगत में डाकिनी का नाम अति प्रचलित है |सामान्यजन भी इस नाम से परिचित हैं |डाकिनी नाम आते ही एक उग्र स्वरुप की भावना मष्तिष्क में उत्पन्न होती है |वास्तव में यह ऊर्जा का एक अति उग्र स्वरुप है अपने सभी रूपों में |डाकिनी की कई परिभाषाएं हैं |डाकिनी का अर्थ है --ऐसी शक्ति जो "डाक ले जाए "|यह ध्यान रखले लायक है की प्राचीनकाल से और आज भी पूर्व के देहातों में डाक ले जाने का अर्थ है -चेतना का किसी भाव की आंधी में पड़कर चकराने लगना और सोचने समझने की क्षमता का लुप्त हो जाना |यह शक्ति मूलाधार के शिवलिंग का भी मूलाधार है | तंत्र में काली को भी डाकिनी कहा जाता है यद्यपि डाकिनी काली की शक्ति के अंतर्गत आने वाली एक अति उग्र शक्ति है |यह काली की उग्रता का प्रतिनिधित्व करती हैं और इनका स्थान मूलाधार के ठीक बीच में माना जाता है |यह प्रकृति की सर्वाधिक उग्र शक्ति है |यह समस्त विध्वंश और विनाश की मूल हैं ,|इन्ही के कारण काली को अति उग्र देवी कहा जाता है जबकि काली सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति की भी मूल देवी हैं |तंत्र में डाकिनी की साधना स्वतंत्र रूप से भी होती है और माना जाता है की यदि डाकिनी सिद्ध हो जाए तो काली की सिद्धि आसान हो जाती है और काली की सिद्धि अर्थात मूलाधार की सिद्धि हो जाए तो अन्य चक्र अथवा अन्य देवी-देवता आसानी से सिद्ध हो सकते हैं कम प्रयासों में |इस प्रकार सर्वाधिक कठिन डाकिनी नामक काली की शक्ति की सिद्धि ही है |डाकिनी नामक देवी की साधना अघोरपंथी तांत्रिकों की प्रसिद्द साधना है |हमारे अन्दर क्रूरता ,क्रोध ,अतिशय हिंसात्मक भाव ,नख और बाल आदि की उत्पत्ति डाकिनी की शक्ति से अर्थात तरंगों से होती है |डाकिनी की सिद्धि पर व्यक्ति में भूत-भविष्य-वर्त्तमान जानने की क्षमता आ जाती है ,किसी को नियंत्रित करने की क्षमता ,वशीभूत करने की क्षमता आ जाती है |यह साधक की रक्षा करती है और मार्गदर्शन भी |यह डाकिनी साधक के सामने लगभग काली के ही रूप में अवतरित होती है और स्वरुप उग्र हो सकता है |इस रूप में माधुर्य-कोमलता का अभाव होता है |सिद्धि के समय यह पहले साधक को डराती है ,फिर तरह तरह के मोहक रूपों में भोग के लिए प्रेरित करती है[यद्यपि मूल रूप से यह उग्र और क्रूर शक्ति है ,भ्रम उत्पन्न और लालच के लिए ऐसा कर सकती है ] ,इसके भय और प्रलोभन से बच गए तो सिद्ध हो सकती है |मस्तिष्क को शून्यकर इसके भाव में डूबे बिना यह सिद्ध नहीं होती |इसमें और काली में व्यावहारिक अंतर है जबकि यह काली के अंतर्गत ही आती है |इसे जगाना पड़ता है जबकि काली एक जाग्रत देवी हैं |डाकिनी की साधना में कामभाव की पूर्णतया वर्जना होती है |
तंत्र जगत में एक और डाकिनी की साधना होती है जो अधिकतर वाममार्ग में साधित होती है |यह डाकिनी प्रकृति [पृथ्वी] की ऋणात्मक ऊर्जा से उत्पन्न एक स्थायी गुण है और निश्चित आकृति में दिखाई देती है |इसका स्वरुप सुन्दर और मोहक होता है |यह पृथ्वी पर स्वतंत्र शक्ति के रूप में पाई जाती है |इसकी साधना अघोरियों और कापालिकों में अति प्रचलित है |यह बहुत शक्तिशाली शक्ति है और सिद्ध हो जाने पर साधक की राह बेहद आसान हो जाती है ,यद्यपि साधना में थोड़ी सी चूक होने अथवा साधक के साधना समय में थोडा सा भी कमजोर पड़ने पर उसे ख़त्म कर देती है |यह भूत-प्रेत-पिशाच-ब्रह्म-जिन्न आदि उन्नत शक्ति होती है |यह कभी-कभी खुद किसी पर कृपा कर सकती है और कभी किसी पर स्वयमेव आसक्त भी हो सकती है |तंत्र कहानियों में इसके किन्ही व्यक्तियों पर आसक्त होने ,विवाह करने और संतान तक उत्पन्न करने की कथाएं मिलती हैं |इसका स्वरुप एक सुन्दर ,गौरवर्णीय ,तीखे नाक नक्श [नाक कुछ लम्बी ]वाली युवती की होती है जो काले कपडे में ही अधिकतर दिखती है |काशी के तंत्र जगत में इसकी साधना ,विचरण और प्रभाव का विवरण मिलता है |इस शक्ति को केवल वशीभूत किया जा सकता है ,इसको नष्ट नहीं किया जा सकता ,यह सदैव व्याप्त रहने वाली शक्ति है जो व्यक्ति विशेष के लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी |इसे नकारात्मक नहीं कहा जा सकता अपितु यह ऋणात्मक शक्ति ही होती है यद्यपि स्वयमेव भी प्रतिक्रिया कर सकती है |सामान्यतया यहनदी-सरोवर के किनारों , घाटों ,शमशानों, तंत्र पीठों ,एकांत साधना स्थलों आदि पर विचरण कर सकती हैं ,जो उजाले की बजाय अँधेरे में होना पसंद करती हैं |इस डाकिनी और मूलाधार की डाकिनी में अंतर होता है |
मूलाधार की डाकिनी व्यक्ति के मूलाधार से जुडी होती है ,कुंडलिनी सुप्त तो वह भी सुप्त |तंत्र मार्ग से कुंडलिनी जगाने की कोसिस पर सबसे पहले इसका ही जागरण होता है |इसकी साधना स्वतंत्र रूप से भी होती है और कुंडलिनी साधना के अलावा भी यह साधित होती है |कुंडलिनी की डाकिनी शक्ति की साधना पर प्रकृति की डाकिनी का आकर्षण हो सकता है और वह उपस्थित हो सकती है, यद्यपि प्रकृति में पाई जाने वाली डाकिनी प्रकृति की स्थायी शक्ति है जिसकी साधना प्रकृति भिन्न होती है किन्तु गुण-भाव समान ही होते हैं |इसमें अनेक मतान्तर हैं की डाकिनी की स्वतंत्र साधना पर काली से सम्बंधित डाकिनी का आगमन होता है अथवा प्रकृति की डाकिनी का ,क्योकि प्रकृति भी तो काली के ही अंतर्गत आता है |वस्तुस्थिति कुछ भी हो किन्तु डाकिनी एक प्रबल शक्ति होती है और यह इतनी सक्षम है की सिद्ध होने पर व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही आवश्यकताएं पूर्ण कर सकती है तथा साधना में सहायक हो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है |.....................................................................................-हर महादेव
=======================
तंत्र जगत में डाकिनी का नाम अति प्रचलित है |सामान्यजन भी इस नाम से परिचित हैं |डाकिनी नाम आते ही एक उग्र स्वरुप की भावना मष्तिष्क में उत्पन्न होती है |वास्तव में यह ऊर्जा का एक अति उग्र स्वरुप है अपने सभी रूपों में |डाकिनी की कई परिभाषाएं हैं |डाकिनी का अर्थ है --ऐसी शक्ति जो "डाक ले जाए "|यह ध्यान रखले लायक है की प्राचीनकाल से और आज भी पूर्व के देहातों में डाक ले जाने का अर्थ है -चेतना का किसी भाव की आंधी में पड़कर चकराने लगना और सोचने समझने की क्षमता का लुप्त हो जाना |यह शक्ति मूलाधार के शिवलिंग का भी मूलाधार है | तंत्र में काली को भी डाकिनी कहा जाता है यद्यपि डाकिनी काली की शक्ति के अंतर्गत आने वाली एक अति उग्र शक्ति है |यह काली की उग्रता का प्रतिनिधित्व करती हैं और इनका स्थान मूलाधार के ठीक बीच में माना जाता है |यह प्रकृति की सर्वाधिक उग्र शक्ति है |यह समस्त विध्वंश और विनाश की मूल हैं ,|इन्ही के कारण काली को अति उग्र देवी कहा जाता है जबकि काली सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति की भी मूल देवी हैं |तंत्र में डाकिनी की साधना स्वतंत्र रूप से भी होती है और माना जाता है की यदि डाकिनी सिद्ध हो जाए तो काली की सिद्धि आसान हो जाती है और काली की सिद्धि अर्थात मूलाधार की सिद्धि हो जाए तो अन्य चक्र अथवा अन्य देवी-देवता आसानी से सिद्ध हो सकते हैं कम प्रयासों में |इस प्रकार सर्वाधिक कठिन डाकिनी नामक काली की शक्ति की सिद्धि ही है |डाकिनी नामक देवी की साधना अघोरपंथी तांत्रिकों की प्रसिद्द साधना है |हमारे अन्दर क्रूरता ,क्रोध ,अतिशय हिंसात्मक भाव ,नख और बाल आदि की उत्पत्ति डाकिनी की शक्ति से अर्थात तरंगों से होती है |डाकिनी की सिद्धि पर व्यक्ति में भूत-भविष्य-वर्त्तमान जानने की क्षमता आ जाती है ,किसी को नियंत्रित करने की क्षमता ,वशीभूत करने की क्षमता आ जाती है |यह साधक की रक्षा करती है और मार्गदर्शन भी |यह डाकिनी साधक के सामने लगभग काली के ही रूप में अवतरित होती है और स्वरुप उग्र हो सकता है |इस रूप में माधुर्य-कोमलता का अभाव होता है |सिद्धि के समय यह पहले साधक को डराती है ,फिर तरह तरह के मोहक रूपों में भोग के लिए प्रेरित करती है[यद्यपि मूल रूप से यह उग्र और क्रूर शक्ति है ,भ्रम उत्पन्न और लालच के लिए ऐसा कर सकती है ] ,इसके भय और प्रलोभन से बच गए तो सिद्ध हो सकती है |मस्तिष्क को शून्यकर इसके भाव में डूबे बिना यह सिद्ध नहीं होती |इसमें और काली में व्यावहारिक अंतर है जबकि यह काली के अंतर्गत ही आती है |इसे जगाना पड़ता है जबकि काली एक जाग्रत देवी हैं |डाकिनी की साधना में कामभाव की पूर्णतया वर्जना होती है |
तंत्र जगत में एक और डाकिनी की साधना होती है जो अधिकतर वाममार्ग में साधित होती है |यह डाकिनी प्रकृति [पृथ्वी] की ऋणात्मक ऊर्जा से उत्पन्न एक स्थायी गुण है और निश्चित आकृति में दिखाई देती है |इसका स्वरुप सुन्दर और मोहक होता है |यह पृथ्वी पर स्वतंत्र शक्ति के रूप में पाई जाती है |इसकी साधना अघोरियों और कापालिकों में अति प्रचलित है |यह बहुत शक्तिशाली शक्ति है और सिद्ध हो जाने पर साधक की राह बेहद आसान हो जाती है ,यद्यपि साधना में थोड़ी सी चूक होने अथवा साधक के साधना समय में थोडा सा भी कमजोर पड़ने पर उसे ख़त्म कर देती है |यह भूत-प्रेत-पिशाच-ब्रह्म-जिन्न आदि उन्नत शक्ति होती है |यह कभी-कभी खुद किसी पर कृपा कर सकती है और कभी किसी पर स्वयमेव आसक्त भी हो सकती है |तंत्र कहानियों में इसके किन्ही व्यक्तियों पर आसक्त होने ,विवाह करने और संतान तक उत्पन्न करने की कथाएं मिलती हैं |इसका स्वरुप एक सुन्दर ,गौरवर्णीय ,तीखे नाक नक्श [नाक कुछ लम्बी ]वाली युवती की होती है जो काले कपडे में ही अधिकतर दिखती है |काशी के तंत्र जगत में इसकी साधना ,विचरण और प्रभाव का विवरण मिलता है |इस शक्ति को केवल वशीभूत किया जा सकता है ,इसको नष्ट नहीं किया जा सकता ,यह सदैव व्याप्त रहने वाली शक्ति है जो व्यक्ति विशेष के लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी |इसे नकारात्मक नहीं कहा जा सकता अपितु यह ऋणात्मक शक्ति ही होती है यद्यपि स्वयमेव भी प्रतिक्रिया कर सकती है |सामान्यतया यहनदी-सरोवर के किनारों , घाटों ,शमशानों, तंत्र पीठों ,एकांत साधना स्थलों आदि पर विचरण कर सकती हैं ,जो उजाले की बजाय अँधेरे में होना पसंद करती हैं |इस डाकिनी और मूलाधार की डाकिनी में अंतर होता है |
मूलाधार की डाकिनी व्यक्ति के मूलाधार से जुडी होती है ,कुंडलिनी सुप्त तो वह भी सुप्त |तंत्र मार्ग से कुंडलिनी जगाने की कोसिस पर सबसे पहले इसका ही जागरण होता है |इसकी साधना स्वतंत्र रूप से भी होती है और कुंडलिनी साधना के अलावा भी यह साधित होती है |कुंडलिनी की डाकिनी शक्ति की साधना पर प्रकृति की डाकिनी का आकर्षण हो सकता है और वह उपस्थित हो सकती है, यद्यपि प्रकृति में पाई जाने वाली डाकिनी प्रकृति की स्थायी शक्ति है जिसकी साधना प्रकृति भिन्न होती है किन्तु गुण-भाव समान ही होते हैं |इसमें अनेक मतान्तर हैं की डाकिनी की स्वतंत्र साधना पर काली से सम्बंधित डाकिनी का आगमन होता है अथवा प्रकृति की डाकिनी का ,क्योकि प्रकृति भी तो काली के ही अंतर्गत आता है |वस्तुस्थिति कुछ भी हो किन्तु डाकिनी एक प्रबल शक्ति होती है और यह इतनी सक्षम है की सिद्ध होने पर व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही आवश्यकताएं पूर्ण कर सकती है तथा साधना में सहायक हो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है |.....................................................................................-हर महादेव
No comments:
Post a Comment