रोग -कष्ट का इलाज है अवचेतन में
=========================
आपके अवचेतन मन की शक्ति अतुलनीय और असीमित है |आपका अवचेतन मन आपको प्रेरित करता है और मार्गदर्शन देता है |यह यादों के भण्डार से तस्वीरें और दृश्य निकालकर लाता है |आपका अवचेतन आपके दिल की धड़कन और रक्त संचार नियंत्रित करता है |यह पाचन और उत्सर्जन को सुचारू बनता है |आपका वचेतन शरीर की सभी अनिवार्य प्रक्रियाएं और कार्यों को नियंत्रित करता है जिनका आपको पता तक नहीं चलता |आपका वाचेतन मन कभी सोता नहीं ,न ही कभी आराम करता है ,यह हमेशा काम करता रहता है |आपका अवचेतन मन आपके आदर्शों ,महत्वाकांक्षाओं और परोपकारों का स्रोत है |अवचेतन मन असाध्य रोगों को ठीक कर सकता है |दर्द की अनुभूति रोक सकता है |यह आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रमाणित हो चूका है |
एस्डेल एक स्काटिश सर्जन थे ,जिन्होंने १८४० के दशक में बंगाल में काम किया था |उस जमाने में बेहोश करने के लिए ईथर या रासायनिक एनेस्थेसिया की अन्य आधुनिक विधियों का इस्तेमाल नहीं होता था |१८४३ से १८४६ के बीच डा.एस्डेल ने सभी तरह के कुल मिलाकर चार सौ बड़े आप्रेसन किये |इनमे आँख ,कान ,गले के अलावा अंग काटने ,ट्यूमर हटाने और कैंसर की गाँठ हटाने के आपरेशन शामिल थे |इन सभी आप्रेशनों में केवल मानसिक एनेस्थेसिया ही दिया गया |मरीजों का कहना था की उन्हें कोई दर्द नहीं हुआ और आपरेशन के दौरान इनमे से कोई भी नहीं मरा |आश्चर्य की बात यह थी की आपरेशन के बाद एस्डेल के बहुत कम मरीज मरे |यह उस वक्त की बात थी जब लोग बैक्टीरिया -वायरस के बारे में जानते भी नहीं थे |लुई पाश्चर और जोसेफ लिस्टर ने यह साबित नहीं किया था की संक्रमण बैक्टीरिया से फैलता है |किसी को भी एहसास नहीं था की आपरेशन के बाद होने वाली संक्रमण दूषित औजारों और हानिकारक विषाणुओं के कारण होती है |जब एस्डेल अपने मरीजों को सम्मोहन की अवस्था में सुझाव देते थे की उन्हें कोई संक्रमण या सेप्टिक नहीं होगा ,तो मरीज के अवचेतन मन इस सुझाव पर प्रतिक्रया करते थे |वे संक्रमण के जीवनघाती खतरों से लड़ने की प्रक्रिया शुरू कर देते थे |इस सर्जन ने यह खोज लिया था की अवचेतन मन की चमत्कारी शक्ति का इस्तेमाल कैसे किया जाए |
आपका अवाचेतन मन आपको समय और स्थान से परे कर सकता है |यह आपको हर दर्द और कष्ट से मुक्त कर सकता है ,यह आपको सभी समस्याओं के जबाब दे सकता है ,चाहे वे जो भी हों |आपके भीतर ऐसी शक्ति और ज्ञान है जो आपकी बुद्धि से परे है और आप इसके चमत्कार पर हैरान हो सकते हैं |रोग से ठीक होने का दूसरा प्रमाण है की एक व्यक्ति को चरम रोग हुआ |वह लगभग १० वर्षों तक विभिन्न स्थानों और विशेषज्ञ डाक्टरों से इलाज कराता रहा किन्तु उसे लाभ नहीं हुआ और उसका चर्मरोग बिगड़ता गया |फिर एक दिन उसकी मुलाक़ात एक दार्शनिक ,मनोवैज्ञानिक धर्म गुरु से हुई जिसने उसे बताया की शमस्त शरीर एक कोशिका से उत्पन्न होता है ,तुम्हारा भी और हर प्राणी वनस्पति का |इसे बिगाड़ने अथवा रोगग्रस्त करने वाला भी एक कोशिका का ही होता है तो तुम करोड़ों कोशिकाएं रखकर भी उससे नहीं लड़ पा रहे |तुम्हारी समस्या तो मात्र कुछ कोशिकाओं की है |तुम चाहो तो ऐसा हो सकता है ,तुम खुद इसे ठीक कर सकते हो ,अपने डाक्टर से कहो तो |व्यक्ति समझ गया की धर्म गुरु क्या समझाने की कोशिस कर रहे हैं |उसके शरीर की रचना करने वाली अवचेतन बुद्धि घडी बनाने वाले की तरह है |यह ठीक ठीक जानती है की उसके शरीर की सभी महत्वपूर्ण क्रियाओं और प्रक्रियाओं का उपचार कैसे किया जाए ,शरीर को दोबारा कैसे बनाया जाए और मार्गदर्शन कैसे किया जाए |इस काम को सही तरीके से करवाने के लिए स्वास्थय का आदर्श विचार देना होगा |यह आदर्श विचार वह कारण बन जाएगा ,जिसका परिणाम उपचार होगा |वुँक्ति ने एक प्रार्थना तैयार की --
मेरा शरीर और इसके सभी अंग मेरे अवचेतन मन की असीमित बुद्धि ने बनाये हैं |यह जानता है की मेरा उपचार कैसे किया जाए |इसकी बुद्धि ने मेरे सभी अंग ,उतक ,मांस पेशियाँ और हड्डियाँ बनाई हैं |मेरे भीतर की यह असीमित उपचारक शक्ति मेरे अस्तित्व की हर कोशिका को रूपांतरित कर रही है और मुझे सम्पूर्ण बना रही है |में उस उपचार के लिए धन्यवाद देता हूँ ,जो में जानता हूँ की इस समय हो रहा है |मेरे भीतर की रचनात्मक बुद्धि में अद्भुत शक्तियाँ हैं |,,,इस प्रार्थना को हर रोज पांच मिनट तक दिन में तीन चार बार व्यक्ति दोहराने लगा |लगभग तीन महीने में उसके चरम रोग पूरी तरह ठीक हो गए साथ ही कुछ अन्य समस्याएं भी समाप्त हो गई |जो डाक्टर इलाज करते थक गए थे घबरा गए की कैसे इतनी जल्दी ठीक हो गया |आपका शरीर तभी रोग ग्रस्त होता है जब आपकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो |प्रतिरोधक क्षमता का सीधा सम्बन्ध अवचेतन मन से होता है |हमारी सारी समस्या ,उन्नति ,अवनति ,सफलता -असफलता का सूत्र हमारे अवचेतन में ही होता है |हमारे ऋषियों ने यूँही नहीं कहा ,अहम् ब्रह्माष्मी ,,|व्यक्ति चाहे तो कुछ भी कर सकता है |ईश्वर भी बन सकता है |............................................................................हर-हर महादेव
=========================
आपके अवचेतन मन की शक्ति अतुलनीय और असीमित है |आपका अवचेतन मन आपको प्रेरित करता है और मार्गदर्शन देता है |यह यादों के भण्डार से तस्वीरें और दृश्य निकालकर लाता है |आपका अवचेतन आपके दिल की धड़कन और रक्त संचार नियंत्रित करता है |यह पाचन और उत्सर्जन को सुचारू बनता है |आपका वचेतन शरीर की सभी अनिवार्य प्रक्रियाएं और कार्यों को नियंत्रित करता है जिनका आपको पता तक नहीं चलता |आपका वाचेतन मन कभी सोता नहीं ,न ही कभी आराम करता है ,यह हमेशा काम करता रहता है |आपका अवचेतन मन आपके आदर्शों ,महत्वाकांक्षाओं और परोपकारों का स्रोत है |अवचेतन मन असाध्य रोगों को ठीक कर सकता है |दर्द की अनुभूति रोक सकता है |यह आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रमाणित हो चूका है |
एस्डेल एक स्काटिश सर्जन थे ,जिन्होंने १८४० के दशक में बंगाल में काम किया था |उस जमाने में बेहोश करने के लिए ईथर या रासायनिक एनेस्थेसिया की अन्य आधुनिक विधियों का इस्तेमाल नहीं होता था |१८४३ से १८४६ के बीच डा.एस्डेल ने सभी तरह के कुल मिलाकर चार सौ बड़े आप्रेसन किये |इनमे आँख ,कान ,गले के अलावा अंग काटने ,ट्यूमर हटाने और कैंसर की गाँठ हटाने के आपरेशन शामिल थे |इन सभी आप्रेशनों में केवल मानसिक एनेस्थेसिया ही दिया गया |मरीजों का कहना था की उन्हें कोई दर्द नहीं हुआ और आपरेशन के दौरान इनमे से कोई भी नहीं मरा |आश्चर्य की बात यह थी की आपरेशन के बाद एस्डेल के बहुत कम मरीज मरे |यह उस वक्त की बात थी जब लोग बैक्टीरिया -वायरस के बारे में जानते भी नहीं थे |लुई पाश्चर और जोसेफ लिस्टर ने यह साबित नहीं किया था की संक्रमण बैक्टीरिया से फैलता है |किसी को भी एहसास नहीं था की आपरेशन के बाद होने वाली संक्रमण दूषित औजारों और हानिकारक विषाणुओं के कारण होती है |जब एस्डेल अपने मरीजों को सम्मोहन की अवस्था में सुझाव देते थे की उन्हें कोई संक्रमण या सेप्टिक नहीं होगा ,तो मरीज के अवचेतन मन इस सुझाव पर प्रतिक्रया करते थे |वे संक्रमण के जीवनघाती खतरों से लड़ने की प्रक्रिया शुरू कर देते थे |इस सर्जन ने यह खोज लिया था की अवचेतन मन की चमत्कारी शक्ति का इस्तेमाल कैसे किया जाए |
आपका अवाचेतन मन आपको समय और स्थान से परे कर सकता है |यह आपको हर दर्द और कष्ट से मुक्त कर सकता है ,यह आपको सभी समस्याओं के जबाब दे सकता है ,चाहे वे जो भी हों |आपके भीतर ऐसी शक्ति और ज्ञान है जो आपकी बुद्धि से परे है और आप इसके चमत्कार पर हैरान हो सकते हैं |रोग से ठीक होने का दूसरा प्रमाण है की एक व्यक्ति को चरम रोग हुआ |वह लगभग १० वर्षों तक विभिन्न स्थानों और विशेषज्ञ डाक्टरों से इलाज कराता रहा किन्तु उसे लाभ नहीं हुआ और उसका चर्मरोग बिगड़ता गया |फिर एक दिन उसकी मुलाक़ात एक दार्शनिक ,मनोवैज्ञानिक धर्म गुरु से हुई जिसने उसे बताया की शमस्त शरीर एक कोशिका से उत्पन्न होता है ,तुम्हारा भी और हर प्राणी वनस्पति का |इसे बिगाड़ने अथवा रोगग्रस्त करने वाला भी एक कोशिका का ही होता है तो तुम करोड़ों कोशिकाएं रखकर भी उससे नहीं लड़ पा रहे |तुम्हारी समस्या तो मात्र कुछ कोशिकाओं की है |तुम चाहो तो ऐसा हो सकता है ,तुम खुद इसे ठीक कर सकते हो ,अपने डाक्टर से कहो तो |व्यक्ति समझ गया की धर्म गुरु क्या समझाने की कोशिस कर रहे हैं |उसके शरीर की रचना करने वाली अवचेतन बुद्धि घडी बनाने वाले की तरह है |यह ठीक ठीक जानती है की उसके शरीर की सभी महत्वपूर्ण क्रियाओं और प्रक्रियाओं का उपचार कैसे किया जाए ,शरीर को दोबारा कैसे बनाया जाए और मार्गदर्शन कैसे किया जाए |इस काम को सही तरीके से करवाने के लिए स्वास्थय का आदर्श विचार देना होगा |यह आदर्श विचार वह कारण बन जाएगा ,जिसका परिणाम उपचार होगा |वुँक्ति ने एक प्रार्थना तैयार की --
मेरा शरीर और इसके सभी अंग मेरे अवचेतन मन की असीमित बुद्धि ने बनाये हैं |यह जानता है की मेरा उपचार कैसे किया जाए |इसकी बुद्धि ने मेरे सभी अंग ,उतक ,मांस पेशियाँ और हड्डियाँ बनाई हैं |मेरे भीतर की यह असीमित उपचारक शक्ति मेरे अस्तित्व की हर कोशिका को रूपांतरित कर रही है और मुझे सम्पूर्ण बना रही है |में उस उपचार के लिए धन्यवाद देता हूँ ,जो में जानता हूँ की इस समय हो रहा है |मेरे भीतर की रचनात्मक बुद्धि में अद्भुत शक्तियाँ हैं |,,,इस प्रार्थना को हर रोज पांच मिनट तक दिन में तीन चार बार व्यक्ति दोहराने लगा |लगभग तीन महीने में उसके चरम रोग पूरी तरह ठीक हो गए साथ ही कुछ अन्य समस्याएं भी समाप्त हो गई |जो डाक्टर इलाज करते थक गए थे घबरा गए की कैसे इतनी जल्दी ठीक हो गया |आपका शरीर तभी रोग ग्रस्त होता है जब आपकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो |प्रतिरोधक क्षमता का सीधा सम्बन्ध अवचेतन मन से होता है |हमारी सारी समस्या ,उन्नति ,अवनति ,सफलता -असफलता का सूत्र हमारे अवचेतन में ही होता है |हमारे ऋषियों ने यूँही नहीं कहा ,अहम् ब्रह्माष्मी ,,|व्यक्ति चाहे तो कुछ भी कर सकता है |ईश्वर भी बन सकता है |............................................................................हर-हर महादेव
No comments:
Post a Comment