Sunday, 2 February 2020

ईश्वर सदैव ही परीक्षा नहीं लेता है

क्या वास्तव में भगवान् हमेशा ही परीक्षा लेता है  ?
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जन सामान्य की प्रचलित भावना है की ईश्वर परीक्षा लेता है ,श्रद्धालु की |सामान्य कहावत है की जब आप ईश्वर की आराधना करते हैं तो वह आपकी परीक्षा लेता है ,कहा जाता है की ईश्वर आपको दुःख देकर आपकी सहनशीलता की परीक्षा लेता है ,आपकी श्रद्धा और भक्ति की परीक्षा लेता है |सामान्यतया ऐसा नहीं होता है क्योकि ईश्वर तो ऊर्जा स्वरुप है ,यह तो आप में ही हमेशा है |यह कहीं अन्य जगह से तो आता नहीं की आकर वह आपकी परीक्षा लेगा |हो सकता है यह किसी उच्च स्तर की स्थितियों में होता हो जब आप किसी उद्देश्य विशेष जिससे प्रकृति में परिवर्तन होता हो की स्थितियों में ईश्वरीय ऊर्जा द्वारा आपके आत्मबल और क्षमता की परीक्षा की स्थितियां हो ,पर सामान्य रूप से ऐसा नहीं होता |यह भ्रामक है सामान्य जन के लिए |कष्टों से मुह मोड़ उन्हें सहने का एक तरीका है ईश्वर के नाम पर |कारण खोज उससे बचने के प्रयास से बचने का बहाना भी हो सकता है ,हालांकि सामान्यजन कारण समझ ही नहीं पाते |मेरी बात अनेक लोगों को अनुपयुक्त और गलत लग सकती है जो कहानी-कथा-रूढ़ी-मिथक को मानते हैं ,पर जो ईश्वर को ऊर्जा स्वरुप और सर्वत्र व्याप्त मानते होंगे वह कहीं न कहीं से सहमत होंगे |यह पोस्ट हम उन कारणों को जानने के प्रयास में लिख रहे की आखिर यह ईश्वर की परीक्षा क्यों लगती है ,क्या इसके कोई और कारण हो सकते हैं |
सुख-दुःख व्यक्ति के पूर्व संचित कर्म हैं जिसे भाग्य कहा जाता है ,इनमे तब तक परिवर्तन नहीं हो सकता जब तक की आप उस स्थिति में न पहुच जाए की इसे प्रभावित कर सके |इसे प्रभावित तभी किया जा सकता है जब आपमें ईश्वरीय ऊर्जा का अवतरण इतना हो जाए की आपके पूर्व कर्मों का क्षय हो जाए और आप परिवर्तन की क्षमता प्राप्त कर लें ,ऐसा होता है पर लाखों में एक साधक के साथ |सामान्य रूप से पूर्वकृत कर्मानुसार बने भाग्य को भुगतना ही पड़ता है |यह तो आपके पूर्व के कर्म है इसे ईश्वर की परीक्षा का नाम देना गलत है |यह ये साबित करते हैं की आपके आज के कर्म या सात्विकता या साधना इस स्तर पर नहीं पहुची है की आप भाग्य को प्रभावित कर सके ,अभी पूर्वकृत कर्मो और वर्त्तमान कर्मो का संतुलन पूर्वकर्मों के पक्ष में है अतः आपको वह भुगतना ही पड़ता है |
जब आप ईश्वर की साधना-आराधना-पूजा-अनुष्ठान करते हैं तो कष्ट बढ़ते हैं ,विषम स्थितियां बनती हैं ,जिसे आप कहते हैं की ईश्वर परीक्षा ले रहा है या लेता है ,सामान्य रूप से ऐसा नहीं होता |इन कठिनाइयों का कारण आपके आसपास और आपके अन्दर की नकारात्मक ऊर्जा है |जब आप साधना-आराधना-पूजा-अनुष्ठान करते हैं तो आपके आसपास और आपमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है ,जिससे आपके आसपास और अन्दर उपस्थित नकारात्मक उर्जा को कष्ट और दिक्कत होती है ,जिससे वह प्रतिक्रिया करने लगता है और आपकी परेशानियाँ बढाने लगता है ,ऐसे में आपके कष्ट और दीक्कतें बढ़ जाती है ,काम बिगड़ने लगते हैं ,उथल-पुथल मच जाती है और आप कहने लगते हैं की ईश्वर परीक्षा लेता है या ले रहा है ,पर यह तो वास्तव में क्रिया की प्रतिक्रिया है ,ईश्वर खुद कुछ नहीं कर रहा ,उसके ऊर्जा की सकारात्मकता से नकारात्मक उर्जा को कष्ट हो रहा है और वह यह सब कर रहा है |ऐसे में इश्वर की परीक्षा की बात सही नहीं होती |
जब आप किसी शक्ति अथवा ईश्वर की साधना करते हैं तो आपमें सम्बंधित शक्ति या ईश्वर का अंश बढने लगता है ,आसपास उस ऊर्जा का संघनन होने लगता है ,कोई ऊर्जा बढती है तो किसी ऊर्जा को जाना पड़ता है ,संतुलन बदलता है ,अतः प्रकृति की सामान्य व्यवस्था में भी परिवर्तन होता है |जब प्रकृति की सामान्य व्यवस्था में परिवर्तन होता है तो यह भी प्रतिक्रिया करती है ,फलतः कुछ विक्षोभ उत्पन्न होते हैं और अप्रत्यासित घटनाएं होती हैं ,जिसे ईश्वर की परीक्षा का नाम दिया जाता है ,पर यह तो वह प्रतिक्रियाएं हैं जिन्हें हम वैज्ञानिक रूप से समझ नहीं पाते ,ईश्वर खुद सीधे हस्तक्षेप नहीं कर रहा कहीं पर ,उसके ऊर्जा के आने मात्र से यह सब प्रतिक्रिया स्वरुप होता है ,फिर वह परीक्षा कहाँ ले रहा है |
कभी-कभी जब हम किसी शक्ति की साधना करते हैं तो वह शक्ति भी प्रतिक्रिया करती है |कोई भी शक्ति कभी किसी के नियंत्रण में नहीं आना चाहती |यह शक्ति ईश्वर अथवा अन्य कोई शक्ति भी हो सकती है |जब आप उसे साधना से साधित करने की कोसिस करते हैं तो वह भी प्रतिक्रया करती करती है और आपकी प्रकृति और वातावरण को प्रभावित करती है ,जिससे अचानक सामान्य रूप से चल रही स्थितियों में परिवर्तन होते हैं और आप असहज हो सकते हैं या घटनाएं हो सकती हैं ,यह उर्जा की प्रकृति बदलने से होता है ,वह शक्ति अपनी तरह स्थितियों को बदलने का प्रयास करती है और आप अपने अनुसार रहने के आदी होते हैं फलतः घटनाएँ असामान्य लगती हैं और परीक्षा का नाम दिया जा सकता है |आने वाली शक्ति को जब आप नियंत्रित करने की कोसिस करते हैं तो तीब्र प्रतिक्रियाएं होती है क्योकि ऊर्जा संतुलन तत्काल प्रभावित होता है अन्दर भी बाहर भी और परिवर्तन तेजी से होते हैं जिससे नयी व्यवस्था बनाने में पुरानी व्यवस्था बदलती है और उथल-पुथल हो सकती है |यह सब उर्जाओं का खेल होता है |कभी कभी इसके सुखद और कभी दुखद भी परिणाम होते हैं ,क्योकि ऊर्जा न सँभलने पर परिपथ बिगड़ने का खतरा भी उत्पन्न होता है |ऊर्जा का तो आगमन होता है ,बाकी तो सब आप करते हैं ,सब आपकी क्षमता और कार्यों का खेल होता है ,नाम ईश्वर का दिया जाता है |
ईश्वर क्यों और कैसे परीक्षा ले सकता है |वह कोई मनुष्य तो है नहीं की वह आपको जांचेगा की आपमें वास्तव में श्रद्धा है की नहीं ,भक्ति है की नहीं ,कितनी सहनशीलता है ,कितने योग्य हैं ,आदि आदि |वह ईश्वर तो आपमें ही है ,सर्वत्र व्याप्त है ,वह तो पहले से ही सबकुछ जानता है ,वह तो सबकुछ देख रहा होता है ,वह तो आपके मन में ही है और आपके मन तक के विचार सुन रहा होता है ,आपके शरीर के हर अवयव में उसको देख रहा होता है ,अवचेतन में आपकी सारी स्थिति जनता है |आत्मा स्वरुप वह तो खुद आपके साथ है ,वह है तभी तो आप हैं या आत्मा है ,,आत्मा नहीं तो फिर तो आप भी नहीं होंगे ,ईश्वर भी तो परमात्मा [परम+आत्मा ] ही है ,बस वह मूल है और आप अंश ,पर है तो आपके साथ ही |फिर वह आपकी क्यों परीक्षा लेगा |वह परीक्षा नहीं लेता ,वह सर्वज्ञ है |जिसको परीक्षा कहते है हम सामान्य भाषा में वह हमारे कर्म होते हैं ,वह क्रिया की प्राकृतिक प्रतिक्रिया होती है ,वह नकारात्मक उर्जायें जो हमको घेरे रहती हैं उनकी प्रतिक्रियाएं होती हैं,वह प्रकृति की नैसर्गिक नकारात्मक शक्तियों की प्रतिक्रियाएं होती हैं ,वह उन शक्तियों की प्रतिक्रियाएं होती हैं जिन्हें हम नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं |ईश्वर तो बस आता है, उसकी ऊर्जा-शक्ति का आगमन और संधनन बढ़ता है आपमें और आपके आसपास |उसके आने मात्र से क्रियाएं और प्रतिक्रियाएं होती हैं ,आपके अन्दर भी और बाहर भी |प्रतिक्रिया वह करते हैं जिनको परेशानी होती है और नाम ईश्वर का होता है की वह परीक्षा ले रहा है |
ईश्वर परीक्षा ले सकता है ,अगर कहा गया है तो बिलकुल गलत नहीं है |इसके पीछे लाजिक और कारण होते हैं |पर हमेशा हर स्थितियों में ईश्वर परीक्षा नहीं लेता रहता है |आपके कर्म होते हैं और प्रतिक्रियाएं होती है |ईश्वर बहुत उच्च स्तर पर ही परीक्षा लेता है |वह वहां परीक्षा लेता है जब आप एक निश्चित स्तर पर पहुच चुके होते हैं |जब आप इस स्थिति में पहुचते हैं की आप प्रकृति में हलचल मचाने लगते हैं ,आपकी शक्ति से प्रकृति प्रभावित होती हैं तब प्रकृति प्रतिक्रया व्यक्त करती है ,,जब आपकी यही शक्ति और उच्च स्तर पर होकर देव लोक को प्रभावित करने लगती है तब आपकी परीक्षा ली जाती है और आपको आपके पथ से च्युत करने के यत्न भी हो सकते हैं | |सामान्य रूप से तो नकारात्मक उर्जाओं की प्रतिक्रियाएं और भाग्य ही प्रभावित करते हैं और प्रतिक्रियाएं देते हैं |.[पूर्णतः व्यक्तिगत विचार ]..........................................................................हर-हर महादेव

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