सिद्धि का मूल मंत्र
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साधना तो हजारों हजार करते हैं पर सबको सफलता नहीं मिलती ,केवल कुछ को सफलता मिलती है उनमे भी कुछ को ही वास्तविक सिद्धि प्राप्त हो पाती है ,अन्य के कुछ काम हो जाते हैं और वह उसी आत्म संतुष्टि में खुद को सिद्धि का भी कभी कभी स्वामी मान लेता है |सिद्धि का अर्थ है सम्बंधित विषय से सम्बंधित शक्ति का साधक के नियंत्रण में आ जाना अथवा वशीभूत हो जाना ,यह बहुत कम होता है और इसकी अपनी एक तकनिकी है |इसका आडम्बर आदि से बहुत लेना देना नहीं होता |इसमें सबसे मुख्य भूमिका मष्तिष्क की होती है ,अन्य सभी माध्यम सम्बंधित ऊर्जा उत्पन्न करने अथवा बढाने का काम करते हैं |
किसी एक भाव में डूबिये ,उद्देश्य के अनुसार भाव बनाइये ,यदि वह किसी देवी-देवता का भाव है |अपने उद्देश्य के अनुसार देवी-देवता का चुनाव करें और खूब अच्छी तरह उसे समझें -जानें ,उसके कर्म-गुण-भाव के अनुसार अपना भाव बनाएं [उग्र शक्ति हेतु उग्र भाव और सौम्य शक्ति हेतु सौम्य भाव ],उसके प्रति अपने मन में भाव उत्पन्न करें की आप किस रूप में उस शक्ति का अपने लिए आह्वान कर रहे हैं |अब उस भाव में डूबकर विधिवत निश्चित समय ,दिशा ,सामग्री ,हवन समिधा आदि के द्वारा विधि पूर्वक प्रत्येक तकनिकी को अपनाकर उसी में लीं हो जाएँ |५ मिनट की स्मृति विहीनता प्राप्त हो जाए तो आप कोई भी देवता ,कोई भी मंत्र सरलता से सिद्ध कर सकते हैं |यह ठीक उसी प्रकार है ,जैसा बस के ड्राइवर को ट्रक ड्राइविंग का अभ्यास करना पड़े |यह केवल वाहन बदलना है और उसकी तीब्रता को नियंत्रित करने जैसा है |हां इसके लिए पहले तो आपको बस चलाना ,उसके पहले हलके वाहन और उसके पहले छोटा वाहन चलाना आना ही चाहिए ,|अचानक तो बस या ट्रक जान ले लेगा |अतः सर्व प्रथम तो एकाग्रता का अभ्यास ही होना चाहिए और छोटी-छोटी क्रियाएं ,तकनीकियाँ आनी चाहिए |
वाम मार्ग की तकनीकियों में संयम की कठोरता इतनी नहीं है |इसमें साधक के लिए ,साधना के समय संयम रखने के लिए केवल काली ,भैरव आदि की साधना में विशेष आवश्यकता पड़ती है |इसमें तकनिकी ,तंत्र -सामग्री ,शरीर के अंगों आदि का महत्व है ,जिन्हें अभ्यासित करना पड़ता है |इससे शक्ति उत्पन्न होती है |साधक को उस शक्ति को नियंत्रित करने भर का अभ्यास करना होता है |इस नियंत्रण के लिए ही तंत्र साधना की जाती है |जैसे काम भाव जाग्रत कीजिये पर स्खलन किये बिना समाधिस्थ हो जाइए |इसमें पहले रीढ़ की हड्डी से होकर ऊर्जा उपर खींचा जाता है |यह सब तकनीकियाँ हैं |इन्ही तकनीकियों के लिए गुरु की आवश्यकता पड़ती है |कैसे क्या क्रिया करनी चाहिए ,यह जाने बिना सफलता नहीं मिल सकती |इसीलिए तंत्र साधना बिना गुरु के नहीं हो सकती |
सिद्धि की विधि कोई हो ,मार्ग कोई हो ,यदि सफलता चाहिए तो मानसिक शक्ति की तीब्रता ,दृढ़ता ,भाव को स्थिर किये रहने की क्षमता का विकास ही उद्देश्य होता है |जिसने इसे प्राप्त कर लिया उसके लिए सभी सिद्धियाँ आसान हैं |विधि और मार्ग के अनुसार केवल कुछ तकनीकियाँ बदलती हैं मूल सूत्र यथावत रहते हैं |मानसिक एकाग्रता और भाव के बिना कोई सिद्धि या साधना सफल नहीं हो सकती |तकनिकी और सामग्री ऊर्जा उत्पन्न या बढाते हैं और उसे नियंत्रित करने का तरीका बताते हैं पर मूल शक्ति का आकर्षण और नियंत्रण मानसिक बल से ही होता है | ...................................................................हर-हर महादेव
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साधना तो हजारों हजार करते हैं पर सबको सफलता नहीं मिलती ,केवल कुछ को सफलता मिलती है उनमे भी कुछ को ही वास्तविक सिद्धि प्राप्त हो पाती है ,अन्य के कुछ काम हो जाते हैं और वह उसी आत्म संतुष्टि में खुद को सिद्धि का भी कभी कभी स्वामी मान लेता है |सिद्धि का अर्थ है सम्बंधित विषय से सम्बंधित शक्ति का साधक के नियंत्रण में आ जाना अथवा वशीभूत हो जाना ,यह बहुत कम होता है और इसकी अपनी एक तकनिकी है |इसका आडम्बर आदि से बहुत लेना देना नहीं होता |इसमें सबसे मुख्य भूमिका मष्तिष्क की होती है ,अन्य सभी माध्यम सम्बंधित ऊर्जा उत्पन्न करने अथवा बढाने का काम करते हैं |
किसी एक भाव में डूबिये ,उद्देश्य के अनुसार भाव बनाइये ,यदि वह किसी देवी-देवता का भाव है |अपने उद्देश्य के अनुसार देवी-देवता का चुनाव करें और खूब अच्छी तरह उसे समझें -जानें ,उसके कर्म-गुण-भाव के अनुसार अपना भाव बनाएं [उग्र शक्ति हेतु उग्र भाव और सौम्य शक्ति हेतु सौम्य भाव ],उसके प्रति अपने मन में भाव उत्पन्न करें की आप किस रूप में उस शक्ति का अपने लिए आह्वान कर रहे हैं |अब उस भाव में डूबकर विधिवत निश्चित समय ,दिशा ,सामग्री ,हवन समिधा आदि के द्वारा विधि पूर्वक प्रत्येक तकनिकी को अपनाकर उसी में लीं हो जाएँ |५ मिनट की स्मृति विहीनता प्राप्त हो जाए तो आप कोई भी देवता ,कोई भी मंत्र सरलता से सिद्ध कर सकते हैं |यह ठीक उसी प्रकार है ,जैसा बस के ड्राइवर को ट्रक ड्राइविंग का अभ्यास करना पड़े |यह केवल वाहन बदलना है और उसकी तीब्रता को नियंत्रित करने जैसा है |हां इसके लिए पहले तो आपको बस चलाना ,उसके पहले हलके वाहन और उसके पहले छोटा वाहन चलाना आना ही चाहिए ,|अचानक तो बस या ट्रक जान ले लेगा |अतः सर्व प्रथम तो एकाग्रता का अभ्यास ही होना चाहिए और छोटी-छोटी क्रियाएं ,तकनीकियाँ आनी चाहिए |
वाम मार्ग की तकनीकियों में संयम की कठोरता इतनी नहीं है |इसमें साधक के लिए ,साधना के समय संयम रखने के लिए केवल काली ,भैरव आदि की साधना में विशेष आवश्यकता पड़ती है |इसमें तकनिकी ,तंत्र -सामग्री ,शरीर के अंगों आदि का महत्व है ,जिन्हें अभ्यासित करना पड़ता है |इससे शक्ति उत्पन्न होती है |साधक को उस शक्ति को नियंत्रित करने भर का अभ्यास करना होता है |इस नियंत्रण के लिए ही तंत्र साधना की जाती है |जैसे काम भाव जाग्रत कीजिये पर स्खलन किये बिना समाधिस्थ हो जाइए |इसमें पहले रीढ़ की हड्डी से होकर ऊर्जा उपर खींचा जाता है |यह सब तकनीकियाँ हैं |इन्ही तकनीकियों के लिए गुरु की आवश्यकता पड़ती है |कैसे क्या क्रिया करनी चाहिए ,यह जाने बिना सफलता नहीं मिल सकती |इसीलिए तंत्र साधना बिना गुरु के नहीं हो सकती |
सिद्धि की विधि कोई हो ,मार्ग कोई हो ,यदि सफलता चाहिए तो मानसिक शक्ति की तीब्रता ,दृढ़ता ,भाव को स्थिर किये रहने की क्षमता का विकास ही उद्देश्य होता है |जिसने इसे प्राप्त कर लिया उसके लिए सभी सिद्धियाँ आसान हैं |विधि और मार्ग के अनुसार केवल कुछ तकनीकियाँ बदलती हैं मूल सूत्र यथावत रहते हैं |मानसिक एकाग्रता और भाव के बिना कोई सिद्धि या साधना सफल नहीं हो सकती |तकनिकी और सामग्री ऊर्जा उत्पन्न या बढाते हैं और उसे नियंत्रित करने का तरीका बताते हैं पर मूल शक्ति का आकर्षण और नियंत्रण मानसिक बल से ही होता है | ...................................................................हर-हर महादेव
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