Thursday, 27 February 2020

आराध्य देवता [ईष्ट ]को समझना भी आवश्यक है

अपने आराध्य देवता या ईष्ट को समझना आवश्यक है
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मनुष्य एक धर्म भीरु प्राणी है |संसार के सभी कोनों में इसीकारण किसी न किसी धर्म का सदैव से अस्तित्व रहा है |चाहे आधुनिक मनुष्य हो अथवा प्राचीन वह धर्म का आश्रय लेता रहा है ,या तो भय से या अपनी आवश्यकता से या इस उम्मीद में की भगवान् उसकी मदद करेगा |यद्यपि धर्म का मूल उद्देश्य संस्कृति का विकास होता है किन्तु इसका स्वरुप हर जगह कुछ समय बाद एक विशेष पूजा पद्धति और विशेष नियमों -कर्मकांडों में बदल जाता है |इस क्रम में कुछ जगह एकेश्वरवाद चला तो कुछ जगह बहु ईश्वर वाद |भारतीय सनातन विज्ञान अथवा धर्म मूर्ती पूजक नहीं था किन्तु बाद में उद्देश्य के अनुसार मूर्ती पूजा होने लगी |इसमें भी समय के साथ भेडचाल शुरू हो गयी और देखा देखि होने लगी बिना यह समझे की व्यक्ति की आवश्यकता क्या है ,उसका उद्देश्य क्या है |      .
सामान्य श्रद्धालु व्यक्ति परम्परागत रूप से पूजा -आराधना करता रहता है |जो भी देवता दिखा सर झुका दिया ,पूजा कर ली |यहाँ तक तो ठीक है ,किन्तु जब बात एक मुख्य ईष्ट देवी -देवता चुनने की और उनकी लगातार पूजा आराधना करने की आती है तब भी इसी लकीर को अपनाया जाता है ,जबकि आवश्यकता की दिशा भिन्न होती है |कोई देवता मन से चुन लिया या सुना की यह तो सर्व शक्तिमान है सब कुछ दे सकता है ,पूजा -आराधना शुरू कर दी |,,यहाँ ध्यान देने योग्य है की कोई भी शक्ति ,कोई भी देवता अपनी प्रकृति और गुण के अनुसार ही परिणाम देता है ,क्योकि उसके स्वरुप की संकल्पना ,उसके मंत्रो का विन्यास ,उसकी पूजा पद्धति एक विशेष गुण और शक्ति पाने के लिए की गयी होती है |,यदि एक ही देवी-या देवता से सारे लाभ मिल जाते तो उनमे इतनी विविधता क्यों होती ,इतने स्वरुप क्यों बनाए गए होते ,इतने भिन्न प्रकार के मन्त्र और उपासना -साधना पद्धतियाँ क्यों बनाई गयी होती |अन्य धर्म की तरह यहाँ भी एक ही शक्ति की आराधना न हो रही होती |किन्तु यह भारतीय धर्म की विशिष्टता और विकास है की हर उद्देश्य के लिए अलग -अलग देवी-देवता ,मन्त्र ,पद्धति बनाई गयी ,ताकि जिसको जो चाहिए वह मिल सके |इसके साथ मूल शक्तियों की संकल्पना बरकरार राखी गयी ताकि व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य भी उसे मिल सके |इसी कारण देवी -देवताओं के कई स्तर भी बनाए गए |
सोचिये ,आप काली या दुर्गा से भावुकता -कोमलता की आशा करते है तो आपकी मनोकामना पूरी तरह पूर्ण होने में संदेह है |,,इनकी उत्पत्ति या संकल्पना एक निश्चित कारण से हुई है ,संहार या रक्षा के लिए [यद्यपि इनके उत्पत्ति के निहितार्थ और इनके संहार की प्रकृति भिन्न है जो लौकिक मिथकों से पूर्ण अलग है ],| इनके मंत्रो और पूजा पद्धति का प्रकार उसी प्रकार की उर्जा उत्पन्न करने के अनुकूल होता है ,|चढाये जाने वाले पदार्थ और हवनीय द्रव्य भी उसी प्रकृति के होते है ,और वैसी ही तरंगे निकलती है ,|,ऐसे में आप इनसे कोमलता की उम्मीद करे तो इनके लिए कठिनाई होती है |,ठीक है यह जगत जननी है सब दे सकती है ,पर वह गुण यह ज्यादा देगी जो उसके पास ज्यादा है ,|,इसी तरह से सबकी अपनी प्रकृति और गुण होते है ,| आप पूजा हनुमान की करें और उनसे आप पत्नी अथवा प्रेमिका मांगें ,तो विरोधाभास नहीं हो जाएगा |एक बीर -योद्धा -रक्षक देवता या शक्ति से आप प्रेम -प्रणय दिलाने को कहेंगे तो उसके लिए दिक्कत नहीं होगी ? ठीक है यह शक्ति है ,किन्तु इनके मन्त्रों और भाव -गुण की प्रकृति तो बल -बुद्धि और तेज देने के लिए बनाई गयी है |
आपको अपने ईष्ट की प्रकृति और गुण जानने चाहिए और उनका चुनाव अपनी आवश्यकता और अपनी प्रकृति के अनुकूल करना चाहिए |,,आप क्रोधी प्रकृति के है और भैरव या दुर्गा की पूजा किये जा रहे है अर्थात अपने में उनके गुणों को बुला रहे है तो आपका क्रोध भी बढ़ जाएगा और वह विनाश का कारण हो सकता है |,आपको तो शिव या गणपति की आराधना करनी चाहिए |ध्यान से समझिये पूजा करना देवता को अपनी बात सुनाना है ,उसे अपने पास बुलाना है |साधना करना उसे खुद में बुलाना या समाहित करना है |जिस गुण की शक्ति को बुलायेंगे ,उसके गुण आपके आसपास और आपमें बढ़ेंगे |आप माने या न माने पर होगा जरुर ऐसा और उसके अनुसार आपके गुण भी परिवर्तित होंगे |इसलिए आप सोचकर और अपनी जरुरत के अनुसार ,अपनी प्रकृति के अनुसार देवी देवता का चुनाव करें |देखा देखि नहीं ,क्योकि सबकी जरुरत और प्रकृति भिन्न होती है |......................................................हर-हर महादेव

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