किस देवता /देवी की ऊर्जा /शक्ति की आवश्यकता अधिक है आपको :
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. . जब आप साधना मार्ग पर हों ,सिद्धियों की कामना हो ,संन्यास अथवा मोक्ष मार्ग पर हों तब तो बात ही अलग है ,,किन्तु सामान्य पूजा -अनुष्ठान में सर्वत्र सामान्य लोग अपने कल्याण -सुख -संमृद्धि के लिए देवी-देवता की पूजा करते है ,सामान्य चाहत व्यक्ति की भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति की होती है |वह इसके लिए भिन्न -भिन्न ईष्ट अर्थात मुख्य देवता /देवी की आराधना -उपासना करते हैं ,ताकि उनके कष्ट कम हो सकें ,उनकी भौतिक जरूरतें पूरी हो सकें |,किन्तु फिर भी उन्हें कभी -कभी अपेक्षित लाभ नहीं मिलता ,कल्याण नहीं होता ,,कभी-कभी तो कष्ट -परेशानिया बढ़ भी जाती है |इसके अपने कारण हैं जबकि कष्ट उठाते रहने पर भी लोग इन्हें मानने को तैयार नहीं होते | थोड़ी सी नासमझी के कारण लोग भारी अनिष्ट और भाग्य विकार को आमंत्रित करते है फिर भी ऐसा अंध विश्वास उनमे रहता है की आप अगर समझाओं तो वह आपको ही मूर्ख और गलत कहने लगेंगे |लोगों की धारणा होती है की कोई भी देवता कभी अनिष्ट नहीं कर सकता जबकि हम उसकी आराधना कर रहे हों लगातार |वह हमेशा लाभ ही देगा और कल्याण ही करेगा |लोग यह मानने को तैयार नहीं होते की किसी भी शक्ति की अधिकता भी कष्टकारक हो सकती है जबकि उसकी आपको जरुरत न हो |लेकिन ऐसा भी होता है ,सामान्य लोगों के लिए जबकि वह सामान्यतः भौतिक आवश्यकता के लिए आराधना कर रहे हों |,
.. .अब प्रश्न उठता है की भला कल्याणकारक देवी-देवता अनिष्ट कैसे कर सकते है ,तो यहाँ गलती यह हो रही है की सभी देवी-देवता कल्याणकारी है ,परन्तु वे तब कल्याणकारी है जब आपको उनकी आवश्यकता है ,,आप मोटे है चर्बी बढ़ रही है और लक्ष्मी जी की निरंतर पूजा कर रहे है ,धन सम्पत्ति तो बाद की चीज है ,आप का स्वास्थय बिगड जाएगा ,मोटापा ,मधुमेह हो सकता है ,आप अपनी अकाल मृत्यु और घोर दुःख [शारीरिक कष्ट]को आमंत्रित कर रहे है |आप कितना भी लक्ष्मी जी की पूजा करें आपको धन तो आपके भाग्य में जितना लिखा है उतना ही मिलेगा |उससे अधिक नहीं मिल सकता क्योकि आप सिद्ध नहीं हैं ,आप सामान्य भौतिक लोग हैं |,,इसी प्रकार आप में काम-क्रोध-उत्तेजना अधिक है और आप काली जी या भैरव जी की पूजा कर रहे है ,आपमें गुस्सा ,उग्रता बढाती जायेगी जिससे आप कष्ट पा सकते हैं ,गलतियों की संभावना बढ़ जायेगी इस प्रकार ,आप कलह -झगड़े -राजदंड और अकालमृत्यु को आमंत्रित कर रहे है ,आपको तो शिव की पूजा करनी चाहिए ,|,इसी प्रकार सरस्वती की पूजा भावुक व्यक्तियों के लिए उचित नहीं है ,,चंचल प्रकृति के सक्रीय व्यक्ति के लिए दुर्गा जी की पूजा उनमे अति सक्रियता ,चंचलता बढा देगी जिसे उनकी शान्ति समाप्त हो जायेगी ,,सोचिये यदि सभी देवी देवता सभी के लिए उपयुक्त होते तो उनमे इतनी विभिन्नता क्यों होती| ,.
. .याद रखिये आप किसी भी देवी-देवता की पूजा कर रहे है तो इसका मतलब है आप उस देवी देवता को आप अपने शरीर में बुला रहे है ,वास्तव में तो सभी पहले से आपके शरीर के अलग-अलग निश्चित चक्र में है ,पूजा से आप ब्रह्माण्ड से उसकी शक्ति को शरीर में खीच कर उनकी शक्ति बढा रहे है ,जिससे वे जाग्रत हो अधिक क्रियाशील हो सके ,,यदि वह शक्ति पहले से आपके शरीर में अधिक है ,तो अब शरीर का सारा उर्जा समीकरण असंतुलित हो जाएगा ,शक्ति बढने के कारण ही आप विनष्ट हो जायेगे ,,उदाहरण के लिए यदि आप क्रोधी है और भैरव जी या काली जी की शक्ति आमंत्रित कर रहे है ,तो क्रोध की अधिकता ऐसा अनर्थ करवा देगी की आप या तो आत्म ह्त्या कर लेगे या ह्त्या करके जेल चले जायेगे ,कलह-कटुता-झगडा तो आपसे आम हो जाएगा ,क्रोध को जबरदस्ती दबायेगे तो पागल हो जायेगे|यह बात साधक ,संत ,सन्यासी ,तांत्रिक ,ज्योतिषी ,पंडित,अथवा विरक्त के लिए लागू नहीं होती क्योकि उन्हें इन शक्तियों का उपयोग करना होता है विभिन्न उद्देश्यों हेतु |वह नियंत्रित कर सकते हैं |इनका स्वरुप परिवर्तित कर सकते हैं अथवा उनकी आवश्यकता की दिशा भिन्न होती है जिससे उनके लिए अति अथवा अधिकता आवश्यक भी होती है |सामान्य जन के लिए यह नहीं कहा जा सकता |उन्हें संतुलन की आवश्यकता होती है जिससे जीवन संतुलित रहे |
.याद रखिये प्रत्येक देवी-देवता ब्रह्माण्ड के एक निश्चित गुण और उर्जा का प्रतिनिधित्व करते है ,उनके मंत्रो ,पूजा पद्धति,उनके रूप में एक विशिष्टता होती है जो उसके गुणों को व्यक्त करती है ,उसकी पूजा करने पर आपमें वह गुण बढने लगते है ,यदि उसकी आपको आवश्यकता नहीं है तो वह आपमें अधिक होने पर कष्ट देने लगेगा ,अनर्थ करने लगेगा ,,अतः जिसकी कमी हो उसे ही बढाना और संतुलन बनाना चाहिए ,जिससे अधिकतम लाभ मिल सके |आश्चर्य का विषय है की ज्योतिष में रत्न ,अंगूठी ,ताबीज ,आदि के चुनाव में इसकी सावधानी बरती जाती है की कौन ग्रह का प्रभाव नुक्सान कर सकता है ऊर्जा बढाने पर या कौन सा ग्रह अधिक लाभ दे सकता है ऊर्जा बढाने पर ,परन्तु पूजा-अनुष्ठान में हम जाने किस तरह की अंधश्रद्धा के शिकार है ,फलतः परिश्रम भी करते है और लाभ के बदले हानि और अनिष्ट के शिकार हो जाते है |..अतः अपने दैनिक लाभ के लिए आपको ऐसे देवी-देवता का चुनाव करना चाहिए जिनकी शक्ति और गुणों की आपको आवश्यकता है ,नाकि उनकी जिनके गुण आपमें पहले से ही अधिक है |यद्यपि इसी पोस्ट पर कुछ लोग कमेन्ट करते मिल जायेंगे की यह सही नहीं है अथवा ऐसा नहीं होता किन्तु ध्यान से सोचें तो यही प्रक्रिया गुरु भी अपनाता है अगर वह जानकार और सक्षम है तो |वह अपने यहाँ दीक्षा लेने आये शिष्य की जरुरत ,उसमे उपस्थित ऊर्जा ,उसकी औरा [आभामंडल ]के साथ उसकी मुक्ति में भी सहायक शक्ति या देवी /देवता का आकलन करके ही उसे ईष्ट और मंत्र प्रदान करता है |इसलिए अपनी आवश्यकता के अनुसार निश्चित गुण की शक्ति को उपास्य बनाना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए की शक्तिया तो सब एक ही हैं ,बस उनका स्वरुप और गुण अलग है जो हम अपनी जरुरत के अनुसार उपयोग कर रहे |.........................................................................................हर-हर महादेव
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. . जब आप साधना मार्ग पर हों ,सिद्धियों की कामना हो ,संन्यास अथवा मोक्ष मार्ग पर हों तब तो बात ही अलग है ,,किन्तु सामान्य पूजा -अनुष्ठान में सर्वत्र सामान्य लोग अपने कल्याण -सुख -संमृद्धि के लिए देवी-देवता की पूजा करते है ,सामान्य चाहत व्यक्ति की भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति की होती है |वह इसके लिए भिन्न -भिन्न ईष्ट अर्थात मुख्य देवता /देवी की आराधना -उपासना करते हैं ,ताकि उनके कष्ट कम हो सकें ,उनकी भौतिक जरूरतें पूरी हो सकें |,किन्तु फिर भी उन्हें कभी -कभी अपेक्षित लाभ नहीं मिलता ,कल्याण नहीं होता ,,कभी-कभी तो कष्ट -परेशानिया बढ़ भी जाती है |इसके अपने कारण हैं जबकि कष्ट उठाते रहने पर भी लोग इन्हें मानने को तैयार नहीं होते | थोड़ी सी नासमझी के कारण लोग भारी अनिष्ट और भाग्य विकार को आमंत्रित करते है फिर भी ऐसा अंध विश्वास उनमे रहता है की आप अगर समझाओं तो वह आपको ही मूर्ख और गलत कहने लगेंगे |लोगों की धारणा होती है की कोई भी देवता कभी अनिष्ट नहीं कर सकता जबकि हम उसकी आराधना कर रहे हों लगातार |वह हमेशा लाभ ही देगा और कल्याण ही करेगा |लोग यह मानने को तैयार नहीं होते की किसी भी शक्ति की अधिकता भी कष्टकारक हो सकती है जबकि उसकी आपको जरुरत न हो |लेकिन ऐसा भी होता है ,सामान्य लोगों के लिए जबकि वह सामान्यतः भौतिक आवश्यकता के लिए आराधना कर रहे हों |,
.. .अब प्रश्न उठता है की भला कल्याणकारक देवी-देवता अनिष्ट कैसे कर सकते है ,तो यहाँ गलती यह हो रही है की सभी देवी-देवता कल्याणकारी है ,परन्तु वे तब कल्याणकारी है जब आपको उनकी आवश्यकता है ,,आप मोटे है चर्बी बढ़ रही है और लक्ष्मी जी की निरंतर पूजा कर रहे है ,धन सम्पत्ति तो बाद की चीज है ,आप का स्वास्थय बिगड जाएगा ,मोटापा ,मधुमेह हो सकता है ,आप अपनी अकाल मृत्यु और घोर दुःख [शारीरिक कष्ट]को आमंत्रित कर रहे है |आप कितना भी लक्ष्मी जी की पूजा करें आपको धन तो आपके भाग्य में जितना लिखा है उतना ही मिलेगा |उससे अधिक नहीं मिल सकता क्योकि आप सिद्ध नहीं हैं ,आप सामान्य भौतिक लोग हैं |,,इसी प्रकार आप में काम-क्रोध-उत्तेजना अधिक है और आप काली जी या भैरव जी की पूजा कर रहे है ,आपमें गुस्सा ,उग्रता बढाती जायेगी जिससे आप कष्ट पा सकते हैं ,गलतियों की संभावना बढ़ जायेगी इस प्रकार ,आप कलह -झगड़े -राजदंड और अकालमृत्यु को आमंत्रित कर रहे है ,आपको तो शिव की पूजा करनी चाहिए ,|,इसी प्रकार सरस्वती की पूजा भावुक व्यक्तियों के लिए उचित नहीं है ,,चंचल प्रकृति के सक्रीय व्यक्ति के लिए दुर्गा जी की पूजा उनमे अति सक्रियता ,चंचलता बढा देगी जिसे उनकी शान्ति समाप्त हो जायेगी ,,सोचिये यदि सभी देवी देवता सभी के लिए उपयुक्त होते तो उनमे इतनी विभिन्नता क्यों होती| ,.
. .याद रखिये आप किसी भी देवी-देवता की पूजा कर रहे है तो इसका मतलब है आप उस देवी देवता को आप अपने शरीर में बुला रहे है ,वास्तव में तो सभी पहले से आपके शरीर के अलग-अलग निश्चित चक्र में है ,पूजा से आप ब्रह्माण्ड से उसकी शक्ति को शरीर में खीच कर उनकी शक्ति बढा रहे है ,जिससे वे जाग्रत हो अधिक क्रियाशील हो सके ,,यदि वह शक्ति पहले से आपके शरीर में अधिक है ,तो अब शरीर का सारा उर्जा समीकरण असंतुलित हो जाएगा ,शक्ति बढने के कारण ही आप विनष्ट हो जायेगे ,,उदाहरण के लिए यदि आप क्रोधी है और भैरव जी या काली जी की शक्ति आमंत्रित कर रहे है ,तो क्रोध की अधिकता ऐसा अनर्थ करवा देगी की आप या तो आत्म ह्त्या कर लेगे या ह्त्या करके जेल चले जायेगे ,कलह-कटुता-झगडा तो आपसे आम हो जाएगा ,क्रोध को जबरदस्ती दबायेगे तो पागल हो जायेगे|यह बात साधक ,संत ,सन्यासी ,तांत्रिक ,ज्योतिषी ,पंडित,अथवा विरक्त के लिए लागू नहीं होती क्योकि उन्हें इन शक्तियों का उपयोग करना होता है विभिन्न उद्देश्यों हेतु |वह नियंत्रित कर सकते हैं |इनका स्वरुप परिवर्तित कर सकते हैं अथवा उनकी आवश्यकता की दिशा भिन्न होती है जिससे उनके लिए अति अथवा अधिकता आवश्यक भी होती है |सामान्य जन के लिए यह नहीं कहा जा सकता |उन्हें संतुलन की आवश्यकता होती है जिससे जीवन संतुलित रहे |
.याद रखिये प्रत्येक देवी-देवता ब्रह्माण्ड के एक निश्चित गुण और उर्जा का प्रतिनिधित्व करते है ,उनके मंत्रो ,पूजा पद्धति,उनके रूप में एक विशिष्टता होती है जो उसके गुणों को व्यक्त करती है ,उसकी पूजा करने पर आपमें वह गुण बढने लगते है ,यदि उसकी आपको आवश्यकता नहीं है तो वह आपमें अधिक होने पर कष्ट देने लगेगा ,अनर्थ करने लगेगा ,,अतः जिसकी कमी हो उसे ही बढाना और संतुलन बनाना चाहिए ,जिससे अधिकतम लाभ मिल सके |आश्चर्य का विषय है की ज्योतिष में रत्न ,अंगूठी ,ताबीज ,आदि के चुनाव में इसकी सावधानी बरती जाती है की कौन ग्रह का प्रभाव नुक्सान कर सकता है ऊर्जा बढाने पर या कौन सा ग्रह अधिक लाभ दे सकता है ऊर्जा बढाने पर ,परन्तु पूजा-अनुष्ठान में हम जाने किस तरह की अंधश्रद्धा के शिकार है ,फलतः परिश्रम भी करते है और लाभ के बदले हानि और अनिष्ट के शिकार हो जाते है |..अतः अपने दैनिक लाभ के लिए आपको ऐसे देवी-देवता का चुनाव करना चाहिए जिनकी शक्ति और गुणों की आपको आवश्यकता है ,नाकि उनकी जिनके गुण आपमें पहले से ही अधिक है |यद्यपि इसी पोस्ट पर कुछ लोग कमेन्ट करते मिल जायेंगे की यह सही नहीं है अथवा ऐसा नहीं होता किन्तु ध्यान से सोचें तो यही प्रक्रिया गुरु भी अपनाता है अगर वह जानकार और सक्षम है तो |वह अपने यहाँ दीक्षा लेने आये शिष्य की जरुरत ,उसमे उपस्थित ऊर्जा ,उसकी औरा [आभामंडल ]के साथ उसकी मुक्ति में भी सहायक शक्ति या देवी /देवता का आकलन करके ही उसे ईष्ट और मंत्र प्रदान करता है |इसलिए अपनी आवश्यकता के अनुसार निश्चित गुण की शक्ति को उपास्य बनाना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए की शक्तिया तो सब एक ही हैं ,बस उनका स्वरुप और गुण अलग है जो हम अपनी जरुरत के अनुसार उपयोग कर रहे |.........................................................................................हर-हर महादेव
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