ईश्वरीय ऊर्जा तो दिनों में महसूस हो सकती है
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ईश्वरीय ऊर्जा का महसूस होना ,अर्थात उस ईश्वरीय ऊर्जा का आपके आसपास आना ,अर्थात उस ईश्वरीय ऊर्जा का आकर्षित होकर आपके आसपास संघनित होना कुछ ही दिनों में भी हो सकता है और सालों लग सकते हैं |यदि पूर्ण श्रद्धा है तो इस श्रद्धा से भाव उत्पन्न होता है उससे उत्पन्न तरंगे उस शक्ति या ईश्वर को आकर्षित करती हैं ,उससे जुडती हैं ,उसे आंदोलित करती हैं ,उसे वशीभूत करती हैं |यदि आपको अपने आप पर पूर्ण विश्वास है ,उस ईश्वर में पूर्ण विश्वास है की वह है और वह आएगा तो एक अतीन्द्रिय मानसिक बल और शक्ति का उदय होता है ,और इस बल से उत्पन्न तरंगें उस ईश्वर या शक्ति तक पहुचने में और मार्ग के विघ्न हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं |इन प्रक्रियाओं में अथवा उस शक्ति या ईश्वर तक पहुचने में कुछ समय लगता है अथवा उसे आकर्षित होकर उसकी ऊर्जा के आपके आसपास संघनित होने में समय लगता है ,एअसे में आपकी एकाग्रता महती भूमिका निभाती है ,यह टूटी नहीं की शक्ति रूक जाती है या बिखर भी सकती है |अतः एकाग्रता बनी रहनी चाहिए |यदि आप एकाग्र है तो शक्ति का आकर्षण भाव और मानसिक बल से होता है और वह आपसे धीरे-धीरे जुड़ने लगती है |पहले उसका संघनन आसपास और आपके शरीर में होता है ,वह आपके शरीर के अपने गुण के अनुसार सम्बंधित चक्र से जुड़ता है और वहां से तरंगों का उत्पादन बढ़ता है ,शक्ति के संघनन बढने के साथ और आपके सम्बंधित चक्र की गतिशीलता-क्रियाशीलता बढने के साथ ही उसकी ऊर्जा आपको महसूस होने लगती है यद्यपि उसका प्रत्यक्षीकरण बहुत बाद की बात होती है जबकि पूर्णता आ जाती है ,किन्तु महसूस पहले होने लगता है ,यह तो महसूस उसके जुड़ने के साथ ही होने लगता है की कुछ परिवर्तन हो रहा है |क्या और कितना हो रहा है यह बाद में ही समझ में आता है |[अलौकिक शक्तियां पेज के पाठकों के समक्ष व्यक्तिगत विचार ]|
यह सब कुछ दिनों में भी हो सकता है |यदि आपका मष्तिष्क एकाग्र है ,स्थिर है ,भटकाव नहीं है ,विचार शून्य हो एक ही भाव पर स्थिर है या एक ही शक्ति पर ,उसके ही गुण-आकृति-भाव में स्थिर है तो कुछ ही दिनों में वह आपको महसूस होने लगता है |यदि आप सम्बंधित शक्ति के बारे में ,उसकी साधना-पूजा तकनीकियों को अच्छे से जानते हैं ,यदि आपको सम्बंधित शक्ति पर पूर्ण विश्वास है ,अपने कर्म पर पूर्ण विश्वास है तो सफलता शीघ्र मिल सकती है |यदि आपको श्रद्धा है उस शक्ति में ,उसके भाव में आप लिप्त हैं तो वह भी आपसे जुड़कर अपनी उपस्थिति आपके साथ बहुत शीघ्र दर्शाता है ,क्योकि वह तो सब जगह है ,सभी शक्तियां या देवी देवता आपके किसी न किसी चक्र से सम्बंधित होते हैं |आपके यह भाव -विश्वास-श्रद्धा-एकाग्रता तो केवल उसे आपसे जोड़ने के माध्यम हैं |जब आप अपनी पूर्ण सक्रियता से उससे जुड़ते हैं तो वह भी आपसे जुड़ जाता है |यह सब दिनों में हो सकता है ,कभी भी हो सकता है |सिद्धि के लिए निश्चित संख्या ,निश्चित दिन म्संकल्प की जरुरत होती है ,ईश्वर तो इन सब से परे है |वह कभी भी कहीं भी आपसे जुड़ सकता है |बस जरुरत उसके भाव में एकाग्र हो उस भाव में डूब जाने की होती है |कुछ मिनटों की आत्मविस्मृति भी अगर किसी भाव -गुण-ईश्वर में मिल जाए तो वह शक्ति आपको अपने प्रभाव से परिचित कराने लगती है |सिद्धि तो उस शक्ति से कार्य कराने या अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए होती है जबकि वह पूर्ण वशीभूत हो आपके कार्य करता है |पर उसकी ऊर्जा तो बहुत पहले ही महसूस हो सकती है |[व्यक्तिगत विचार ] ............................................................................हर-हर महादेव
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ईश्वरीय ऊर्जा का महसूस होना ,अर्थात उस ईश्वरीय ऊर्जा का आपके आसपास आना ,अर्थात उस ईश्वरीय ऊर्जा का आकर्षित होकर आपके आसपास संघनित होना कुछ ही दिनों में भी हो सकता है और सालों लग सकते हैं |यदि पूर्ण श्रद्धा है तो इस श्रद्धा से भाव उत्पन्न होता है उससे उत्पन्न तरंगे उस शक्ति या ईश्वर को आकर्षित करती हैं ,उससे जुडती हैं ,उसे आंदोलित करती हैं ,उसे वशीभूत करती हैं |यदि आपको अपने आप पर पूर्ण विश्वास है ,उस ईश्वर में पूर्ण विश्वास है की वह है और वह आएगा तो एक अतीन्द्रिय मानसिक बल और शक्ति का उदय होता है ,और इस बल से उत्पन्न तरंगें उस ईश्वर या शक्ति तक पहुचने में और मार्ग के विघ्न हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं |इन प्रक्रियाओं में अथवा उस शक्ति या ईश्वर तक पहुचने में कुछ समय लगता है अथवा उसे आकर्षित होकर उसकी ऊर्जा के आपके आसपास संघनित होने में समय लगता है ,एअसे में आपकी एकाग्रता महती भूमिका निभाती है ,यह टूटी नहीं की शक्ति रूक जाती है या बिखर भी सकती है |अतः एकाग्रता बनी रहनी चाहिए |यदि आप एकाग्र है तो शक्ति का आकर्षण भाव और मानसिक बल से होता है और वह आपसे धीरे-धीरे जुड़ने लगती है |पहले उसका संघनन आसपास और आपके शरीर में होता है ,वह आपके शरीर के अपने गुण के अनुसार सम्बंधित चक्र से जुड़ता है और वहां से तरंगों का उत्पादन बढ़ता है ,शक्ति के संघनन बढने के साथ और आपके सम्बंधित चक्र की गतिशीलता-क्रियाशीलता बढने के साथ ही उसकी ऊर्जा आपको महसूस होने लगती है यद्यपि उसका प्रत्यक्षीकरण बहुत बाद की बात होती है जबकि पूर्णता आ जाती है ,किन्तु महसूस पहले होने लगता है ,यह तो महसूस उसके जुड़ने के साथ ही होने लगता है की कुछ परिवर्तन हो रहा है |क्या और कितना हो रहा है यह बाद में ही समझ में आता है |[अलौकिक शक्तियां पेज के पाठकों के समक्ष व्यक्तिगत विचार ]|
यह सब कुछ दिनों में भी हो सकता है |यदि आपका मष्तिष्क एकाग्र है ,स्थिर है ,भटकाव नहीं है ,विचार शून्य हो एक ही भाव पर स्थिर है या एक ही शक्ति पर ,उसके ही गुण-आकृति-भाव में स्थिर है तो कुछ ही दिनों में वह आपको महसूस होने लगता है |यदि आप सम्बंधित शक्ति के बारे में ,उसकी साधना-पूजा तकनीकियों को अच्छे से जानते हैं ,यदि आपको सम्बंधित शक्ति पर पूर्ण विश्वास है ,अपने कर्म पर पूर्ण विश्वास है तो सफलता शीघ्र मिल सकती है |यदि आपको श्रद्धा है उस शक्ति में ,उसके भाव में आप लिप्त हैं तो वह भी आपसे जुड़कर अपनी उपस्थिति आपके साथ बहुत शीघ्र दर्शाता है ,क्योकि वह तो सब जगह है ,सभी शक्तियां या देवी देवता आपके किसी न किसी चक्र से सम्बंधित होते हैं |आपके यह भाव -विश्वास-श्रद्धा-एकाग्रता तो केवल उसे आपसे जोड़ने के माध्यम हैं |जब आप अपनी पूर्ण सक्रियता से उससे जुड़ते हैं तो वह भी आपसे जुड़ जाता है |यह सब दिनों में हो सकता है ,कभी भी हो सकता है |सिद्धि के लिए निश्चित संख्या ,निश्चित दिन म्संकल्प की जरुरत होती है ,ईश्वर तो इन सब से परे है |वह कभी भी कहीं भी आपसे जुड़ सकता है |बस जरुरत उसके भाव में एकाग्र हो उस भाव में डूब जाने की होती है |कुछ मिनटों की आत्मविस्मृति भी अगर किसी भाव -गुण-ईश्वर में मिल जाए तो वह शक्ति आपको अपने प्रभाव से परिचित कराने लगती है |सिद्धि तो उस शक्ति से कार्य कराने या अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए होती है जबकि वह पूर्ण वशीभूत हो आपके कार्य करता है |पर उसकी ऊर्जा तो बहुत पहले ही महसूस हो सकती है |[व्यक्तिगत विचार ] ............................................................................हर-हर महादेव
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