भगवती महाकाली के विविध स्वरुप
======================
भगवती आद्या ,महाकाली ही इस सृष्टि की इस ब्रह्माण्ड की मूल शक्ति हैं ,जो सृष्टि के पूर्व भी हैं और सृष्टि के बाद भी हैं |यही ब्रह्माण्ड में अनंत व्याप्त मूल शक्ति हैं |यही हर क्रिया की कारण शक्ति हैं |यही सभी शक्तियों की मूल शक्ति हैं |इनके बिना परम शिव भी शव अर्थात निष्क्रिय हैं |इन्हें विभिन्न वैदिक अथवा तांत्रिक शास्त्रों में विभिन्न स्वरूपों में परिभाषित किया गया है |यही एकमात्र सर्वमान्य शक्ति हैं जो वैदिक से लेकर तांत्रिक तक सभी जगह एक सामान पूजित हैं और हर पद्धति से पूजित हैं |इनके स्वरूपों को इनके रूप भेद कहते हैं ,जो विशिष्ट गुणों को परिभाषित करते हैं |इनके स्वरूपों के साथ इनके चित्रों में भी विशिष्टता आ जाती है |काली के अलग-अलग तंत्रों में अनेक भेद हैं । कुछ शास्त्रों के अनुसार इनके मूल आठ स्वरुप भेद इस प्रकार हैं -
१॰ संहार-काली, २॰ दक्षिण-काली, ३॰ भद्र-काली, ४॰ गुह्य-काली, ५॰ महा-काली, ६॰ वीर-काली, ७॰ उग्र-काली तथा ८॰ चण्ड-काली ।
कुछ शास्त्रों में मूल आठ स्वरुप भेद इस प्रकार हैं -
१. सृष्टि काली २. स्थिति काली ३. संहार काली ४.अनाख्या काली ५.भाषा काली ६.गुह्य काली ७. कामकला काली ८. श्मशान काली
कुछ शास्त्रों के अनुसार भगवती काली के मूल कुल २४ स्वरुप हैं |सभी रूपों पर दृष्टिपात करने पर यह अधिक तर्क सांगत लगता है |
‘कालिका-पुराण’ में उल्लेख हैं कि आदि-सृष्टि में भगवती ने महिषासुर को “उग्र-चण्डी” रुप से मारा एवं द्वितीयसृष्टि में ‘उग्र-चण्डी’ ही “महा-काली” अथवा महामाया कहलाई ।
योगनिद्रा महामाया जगद्धात्री जगन्मयी । भुजैः षोडशभिर्युक्ताः इसी का नाम“भद्रकाली” भी है । भगवती कात्यायनी ‘दशभुजा’ वाली दुर्गा है, उसी को “उग्र-काली” कहा है । कालिकापुराणे – कात्यायनीमुग्रकाली दुर्गामिति तु तांविदुः ।“संहार-काली” की चार भुजाएँ हैं यही ‘धूम्र-लोचन’ का वध करने वाली हैं । “वीर-काली” अष्ट-भुजा हैं, इन्होंने ही चण्ड का विनाश किया “भुजैरष्टाभिरतुलैर्व्याप्याशेषं वमौ नमः” इसी ‘वीर-काली’ विषय में दुर्गा-सप्तशती में कहा हैं । “चण्ड-काली” की बत्तीस भुजाएँ हैं एवं शुम्भ का वध किया था । यथा – चण्डकाली तु या प्रोक्ता द्वात्रिंशद् भुज शोभिता ।
समयाचार रहस्य में उपरोक्त स्वरुपों से सम्बन्धित अन्य स्वरुप भेदों का वर्णन किया है ।
संहार-काली – १॰ प्रत्यंगिरा, २॰ भवानी, ३॰ वाग्वादिनी, ४॰ शिवा, ५॰ भेदों से युक्त भैरवी, ६॰ योगिनी, ७॰ शाकिनी, ८॰ चण्डिका, ९॰ रक्तचामुण्डा से सभी संहार-कालिका के भेद स्वरुप हैं । संहार कालिका का महामंत्र १२५ वर्ण का ‘मुण्ड-माला तंत्र’ में लिखा हैं, जो प्रबल-शत्रु-नाशक हैं ।
दक्षिण-कालिका -कराली, विकराली, उमा, मुञ्जुघोषा, चन्द्र-रेखा, चित्र-रेखा, त्रिजटा, द्विजा, एकजटा, नीलपताका, बत्तीस प्रकार की यक्षिणी, तारा और छिन्नमस्ता ये सभी दक्षिण कालिका के स्वरुप हैं ।
भद्र-काली - वारुणी, वामनी, राक्षसी, रावणी, आग्नेयी, महामारी, घुर्घुरी, सिंहवक्त्रा, भुजंगी, गारुडी, आसुरी-दुर्गा ये सभी भद्र-काली के विभिन्न रुप हैं ।
श्मशान-काली – भेदों से युक्त मातंगी, सिद्धकाली, धूमावती, आर्द्रपटी चामुण्डा, नीला, नीलसरस्वती, घर्मटी, भर्कटी, उन्मुखी तथा हंसी ये सभी श्मशान-कालिका के भेद रुप हैं ।
महा-काली - महामाया, वैष्णवी, नारसिंही, वाराही, ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, इत्यादि अष्ट-शक्तियाँ, भेदों से युक्त-धारा, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा इत्यादि सब नदियाँ महाकाली का स्वरुप हैं ।
उग्र-काली - शूलिनी, जय-दुर्गा, महिषमर्दिनी दुर्गा, शैल-पुत्री इत्यादि नव-दुर्गाएँ, भ्रामरी, शाकम्भरी, बंध-मोक्षणिका ये सब उग्रकाली के विभिन्न नाम रुप हैं ।
वीर-काली -श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, पद्मावती, अन्नपूर्णा, रक्त-दंतिका, बाला-त्रिपुर-सुंदरी, षोडशी की एवं काली की षोडश नित्यायें, कालरात्ति, वशीनी, बगलामुखी ये सभी वीरकाली के नाम भेद रुप हैं ।...........................................................................हर-हर महादेव
======================
भगवती आद्या ,महाकाली ही इस सृष्टि की इस ब्रह्माण्ड की मूल शक्ति हैं ,जो सृष्टि के पूर्व भी हैं और सृष्टि के बाद भी हैं |यही ब्रह्माण्ड में अनंत व्याप्त मूल शक्ति हैं |यही हर क्रिया की कारण शक्ति हैं |यही सभी शक्तियों की मूल शक्ति हैं |इनके बिना परम शिव भी शव अर्थात निष्क्रिय हैं |इन्हें विभिन्न वैदिक अथवा तांत्रिक शास्त्रों में विभिन्न स्वरूपों में परिभाषित किया गया है |यही एकमात्र सर्वमान्य शक्ति हैं जो वैदिक से लेकर तांत्रिक तक सभी जगह एक सामान पूजित हैं और हर पद्धति से पूजित हैं |इनके स्वरूपों को इनके रूप भेद कहते हैं ,जो विशिष्ट गुणों को परिभाषित करते हैं |इनके स्वरूपों के साथ इनके चित्रों में भी विशिष्टता आ जाती है |काली के अलग-अलग तंत्रों में अनेक भेद हैं । कुछ शास्त्रों के अनुसार इनके मूल आठ स्वरुप भेद इस प्रकार हैं -
१॰ संहार-काली, २॰ दक्षिण-काली, ३॰ भद्र-काली, ४॰ गुह्य-काली, ५॰ महा-काली, ६॰ वीर-काली, ७॰ उग्र-काली तथा ८॰ चण्ड-काली ।
कुछ शास्त्रों में मूल आठ स्वरुप भेद इस प्रकार हैं -
१. सृष्टि काली २. स्थिति काली ३. संहार काली ४.अनाख्या काली ५.भाषा काली ६.गुह्य काली ७. कामकला काली ८. श्मशान काली
कुछ शास्त्रों के अनुसार भगवती काली के मूल कुल २४ स्वरुप हैं |सभी रूपों पर दृष्टिपात करने पर यह अधिक तर्क सांगत लगता है |
‘कालिका-पुराण’ में उल्लेख हैं कि आदि-सृष्टि में भगवती ने महिषासुर को “उग्र-चण्डी” रुप से मारा एवं द्वितीयसृष्टि में ‘उग्र-चण्डी’ ही “महा-काली” अथवा महामाया कहलाई ।
योगनिद्रा महामाया जगद्धात्री जगन्मयी । भुजैः षोडशभिर्युक्ताः इसी का नाम“भद्रकाली” भी है । भगवती कात्यायनी ‘दशभुजा’ वाली दुर्गा है, उसी को “उग्र-काली” कहा है । कालिकापुराणे – कात्यायनीमुग्रकाली दुर्गामिति तु तांविदुः ।“संहार-काली” की चार भुजाएँ हैं यही ‘धूम्र-लोचन’ का वध करने वाली हैं । “वीर-काली” अष्ट-भुजा हैं, इन्होंने ही चण्ड का विनाश किया “भुजैरष्टाभिरतुलैर्व्याप्याशेषं वमौ नमः” इसी ‘वीर-काली’ विषय में दुर्गा-सप्तशती में कहा हैं । “चण्ड-काली” की बत्तीस भुजाएँ हैं एवं शुम्भ का वध किया था । यथा – चण्डकाली तु या प्रोक्ता द्वात्रिंशद् भुज शोभिता ।
समयाचार रहस्य में उपरोक्त स्वरुपों से सम्बन्धित अन्य स्वरुप भेदों का वर्णन किया है ।
संहार-काली – १॰ प्रत्यंगिरा, २॰ भवानी, ३॰ वाग्वादिनी, ४॰ शिवा, ५॰ भेदों से युक्त भैरवी, ६॰ योगिनी, ७॰ शाकिनी, ८॰ चण्डिका, ९॰ रक्तचामुण्डा से सभी संहार-कालिका के भेद स्वरुप हैं । संहार कालिका का महामंत्र १२५ वर्ण का ‘मुण्ड-माला तंत्र’ में लिखा हैं, जो प्रबल-शत्रु-नाशक हैं ।
दक्षिण-कालिका -कराली, विकराली, उमा, मुञ्जुघोषा, चन्द्र-रेखा, चित्र-रेखा, त्रिजटा, द्विजा, एकजटा, नीलपताका, बत्तीस प्रकार की यक्षिणी, तारा और छिन्नमस्ता ये सभी दक्षिण कालिका के स्वरुप हैं ।
भद्र-काली - वारुणी, वामनी, राक्षसी, रावणी, आग्नेयी, महामारी, घुर्घुरी, सिंहवक्त्रा, भुजंगी, गारुडी, आसुरी-दुर्गा ये सभी भद्र-काली के विभिन्न रुप हैं ।
श्मशान-काली – भेदों से युक्त मातंगी, सिद्धकाली, धूमावती, आर्द्रपटी चामुण्डा, नीला, नीलसरस्वती, घर्मटी, भर्कटी, उन्मुखी तथा हंसी ये सभी श्मशान-कालिका के भेद रुप हैं ।
महा-काली - महामाया, वैष्णवी, नारसिंही, वाराही, ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, इत्यादि अष्ट-शक्तियाँ, भेदों से युक्त-धारा, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा इत्यादि सब नदियाँ महाकाली का स्वरुप हैं ।
उग्र-काली - शूलिनी, जय-दुर्गा, महिषमर्दिनी दुर्गा, शैल-पुत्री इत्यादि नव-दुर्गाएँ, भ्रामरी, शाकम्भरी, बंध-मोक्षणिका ये सब उग्रकाली के विभिन्न नाम रुप हैं ।
वीर-काली -श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, पद्मावती, अन्नपूर्णा, रक्त-दंतिका, बाला-त्रिपुर-सुंदरी, षोडशी की एवं काली की षोडश नित्यायें, कालरात्ति, वशीनी, बगलामुखी ये सभी वीरकाली के नाम भेद रुप हैं ।...........................................................................हर-हर महादेव
No comments:
Post a Comment