Thursday, 27 February 2020

उपासना /साधना की तकनीक होती है

उपासना /साधना और तकनीके
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महाविद्या का साधक हो अथवा कुंडलिनी का साधक हो ,यदि वह अपनी साधना में सभी नियमों का पालन करने के साथ ही विभिन्न रसायनों ,विशिष्ट लेपों ,चुम्बक और रत्नों का प्रयोग स्थान विशेष पर प्रक्रिया विशेष के साथ करे तो प्राप्त होने वाली और उत्पन्न होने वाली ऊर्जा की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है |यदि साधक को बेहतर निर्देशन मिल रहे और ऊर्जा समायोजन ,परिवर्तन की जानकारी है तथा इन्हें संभालने की क्षमता है तो उसे सफलता अवश्य मिलती है तथा अति शीघ्र मिलती है |चक्र जागर अथवा शक्ति प्राप्ति अवश्य होता है वह भी इतनी जल्दी की साधक अचंभित हो सकता है |किन्तु यह प्रक्रिया अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न करती है जिससे ऊर्जा के न संभलने का खतरा भी उत्पन्न होता है |ऊर्जा असंतुलन अथवा उसके न संभलने पर वह विक्षोभ उत्पन्न कर सकती है जिससे जो पाया है पहले वह भी जाने का खतरा हो सकता है |
जिन्होंने पहले अनेक साधनाए ,उपासनाएं की हों किन्तु उन्हें कुछ न समझ आया हो अथवा उन्हें लगता हो की उपयुक्त परिणाम नहीं मिले वह योग्य गुरु के मार्गदर्शन में इनका प्रयोग करें तो सफलता अवश्य मिलती है वह भी दिखाई देती है |परिवर्तन अवश्य आते हैं |काली आदि के साधना में ऐसे प्रयोग बहुत तीब्र प्रभाव देते हैं जिसके कारण इनमे हर कदम पर मार्गदर्शन की आवश्यकता ,शरीर की सबलता की आवश्यकता ,और उर्जा नियंत्रण के साथ ही मानसिक परिपक्वता की आवश्यकता अधिक होती है ,वर्ना काली आदि उग्र शक्तियां पतन के रास्ते पर धकेल सकती हैं |वास्तव में वह नहीं धकेलती ,उनकी ऊर्जा न संभलने पर साधक के पतित ,भ्रष्ट ,उन्मादग्रस्त होने के खतरे अधिक होते हैं जिससे उसका अहित हो जाता है |इसी तरह तंत्र द्वारा कुंडलिनी साधना अर्थात भैरवी साधना में इन पदार्थों ,वस्तुओं का उपयोग अतिरिक्त ऊर्जा उत्पन्न करने के साथ ही चक्र जागरण में सहायक होता है किन्तु यहाँ और भी अधिक नियंत्रण की आवश्यकता होती है |............................................................हर-हर महादेव

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