सफलता के लिए कुछ सुझाव
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१. आपका आतंरिक मन अर्थात अवचेतन मन आपके शरीर की सभी महत्वपूर्ण क्रियाओं का नियंत्रण करता है जबकि आपको इसका भान तक नहीं होता |क्या कभी सोचा है की यह सब कैसे अपने आप होता रहता है ,आप तो ईश्वर की रचना मान संतुष्ट हो लेते हैं पर क्या यह सोचा है की वह ईश्वर इसे करता कैसे है | इसी गुण के कारण कहा जाता है की ईश्वर सबके भीतर मौजूद है ,क्योकि उसकी स्वचालित प्रणाली सबमे सामान रूप से कार्यरत रहती है |
२. अवचेतन मन सभी समस्याओं के जबाब जानता है ,क्योकि यहाँ सभी सूचनाएं जो आपने जन्म -जन्मान्तर में देखि सुनी है इकठ्ठा रहती हैं |तभी तो सम्मोहनकर्ता ,सम्मोहनावस्था में आपको आपके पिछले जन्मों और घटनाओं तक ले जा सकता है |कभी कभी आपको ऐसे चित्र स्वप्न में दीखते हैं जो आपने पहले नहीं देखे होते |यह आपको आपके पिछले किसी जन्म का दृश्य दिखाता है और कभी अचानक कहीं जाने पर आपको लगता है अरे यह तो में अपने स्वप्न में देख चूका था |
३. सोने से पहले अपने अवचेतन मन से कोई विशेष आग्रह करें तो आप पायेंगे की आपको आपके आग्रह के अनुसार परिणाम प्राप्त होते हैं |आप चमत्कृत हो सकते हैं |
४. आप अपने अंतर्मन पर जो भी छाप या प्रभाव छोड़ते हैं ,वह आगामी परिस्थतियों ,अनुभवों और घटनाओं के रूप में व्यक्त होती हैं ,क्योकि जो आपकी छाप होती है उसके ही अनुसार अंतर्मन एक निश्चित भूमिका बना देता है और आगामी समय में आप उसी के अनुसार प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं |सोचिये आपको भूत के नाम से बचपन से डराया गया है ,जबकि आपने भूत कभी देखा नहीं |अब आपका अवचेतन एक निश्चित विचार बना बैठा है और आपमें डर को उसने स्थायी बना दिया है |कभी अकेले अथवा अँधेरे में किसी परछाई अथवा आवाज से आप डर सकते हैं भूत समझकर जबकि वह परछाई आपकी अथवा किसी अन्य वस्तु की हो सकती है |डर से आपकी आतंरिक शारीरिक प्रक्रिया बिगड़ जाती है जिससे बुखार ,बेहोशी ,तनाव ,डिप्रेशन ,दौरे आदि हो सकते हैं और काल्पनिक आकृति से अप परेशान हो सकते हैं |यह अवचेतन के मात्र एक काल्पनिक डर का परिणाम होता है |
५. आपको चेतन मन में मौजूद विचारों के बारे में सतर्क रहना चाहिए क्योकि यही विचार लगातार बने रहने पर स्थायी हो सकते हैं अवचेतन में |और जैसे विचार स्थायी होंगे उसके अनुसार अवचेतन आपका स्वभाव और उस विचार के अनुसार आपकी प्रतिक्रिया निर्धारित कर देगा जो समय आने पर आपकी परिस्थिति का निर्माण कर देगा |
६. क्रिया और प्रतिक्रिया का नियम शाश्वत है |आपका चेतन मन का विचार क्रिया है और उस विचार पर आपका अवचेतन मन स्वतः प्रतिक्रिया करता है |जैसे विचार होंगे वैसी प्रतिक्रया आपको प्राप्त होगी और भविष्य में वैसे विचार पर आप अवचेतन द्वारा बनाई गयी प्रतिक्रिया को ही व्यक्त करेंगे |इसलिए अपने विचारों पर नजर रखें |
७. सारी कुंठाए और अवसाद ,अधूरी इच्छाओं के कारण उत्पन्न होते हैं |निराशा और हीन भावना भी अपनी अथवा अपने परिस्थिति की कमजोरी और असफलता का गहरा भान होने पर ही उत्पन्न होती हैं |अगर आप बाधाओं ,विलम्ब और मुश्किलों पर ध्यान केन्द्रित करेंगे तो आपका अवचेतन मन उसी अनुरूप प्रतिक्रया करेगा और इस तरह आप अपनी ही भलाई को रोक देंगे |बाधा ,विलंब और मुश्किल आपको हर जगह दिखाई देगा ,आत्मबल कमजोर हो जाएगा और खुद पर से विश्वास कम हो जाएगा जिससे अधूरे मन और शक्ति से आप कोई भी प्रयास करेंगे |जो आपके पास ज्ञान है भी वह दुविधा में व्यक्त नहीं हो सकेगा और आप सचमुच में मुश्किल में पड़ सकते हैं अथवा आपके कार्य में बाधा आ सकती है अथवा आपके कार्य में विलं हो सकता है |जबकि सच तो यह है की आप सक्षम होते हैं ऐसे अवसर अथवा समय से पार पाने में ,पर गलत सोच खुद पर भारी पड़ जाती है |
८. जीवन की समरसता ,सफलता ,ख़ुशी के सूत्र और सिद्धांत आपके भीतर लयबद्ध और सामंजस्य के साथ प्रवाहित हो सकता है ,केवल आप चेतन मन से दृढ़तापूर्वक कहें की में विश्वास करता हूँ की हर शक्ति मुझमे है और में हर तरह से सक्षम हूँ |मेरे भीतर कोई अंतर्द्वंद नहीं है और खुशियाँ मेरे चारो तरह हैं |मुझमे हर वह क्षमता है की में सफल हो सकूं |मेरी उत्पन्न इच्छाएं मेरा अवचेतन मन मेरे द्वारा पूरा कर रहा है |इससे आपकी दुविधा ,अंतर्द्वंद और संघर्ष समाप्त हो जायेंगे |आपके विचार और क्रिया संतुलित होगी |
९. आप चिंता ,तनाव ,भय के कारण अपने शरीर की रासायनिक क्रियाएं बिगाड़ देते हैं जिससे ह्रदय ,फेफड़ों और अन्य अंगों की सामान्य ले बिगड़ जाती है |चिंता ,तनाव ,भय का सीधा असर आपकी अन्तःस्रावी ग्रंथियों पर पड़ता है जिससे आपकी रासायनिक क्रियाएं गड़बड़ा जाती हैं | ध्यान दीजिये रतिकाल में केवल यह आभास होना की कोई हम देख रहा है आपकी उत्तेजना समाप्त कर देता है अथवा अँधेरे में यह आभास हो की कोई और है यहाँ ,आपको पसीने -पसीने कर देता है जबकि वहां कोई नहीं होता |यह भय के कारण रासायनिक परिवर्तन के उदाहरण हैं |लगातार भय ,चिंता ,तनाव होने पर आपका स्वास्थय खराब हो जाता है और जो क्षमता होती भी है वह भी समाप्त होने लगती है जिससे जो आपको मिल भी सकता है उसे भी आप नहीं ले पाते हैं फलतः निचे गिरते जाते हैं जबकि आप इसे रोक सकते थे केवल खुद पर विश्वास करके |
१०. अपने अवचेतन मन में स्वास्थ्य की उत्तमता ,शान्ति ,सुख ,सद्भावना ,प्रेम ,लगाव का विचार भरें |इससे आपके शरीर की कार्यप्रणाली सामान्य रहेगी और आपको आपके इन विचारों के अनुसार भविष्य में परिणाम प्राप्त होंगे ,परिस्थितियां प्राप्त होंगी |अवचेतन मन में बुरे विचार ,दुर्भावना ,अशांति ,ईर्श्य की भावना भरेंगे तो प्रेम या शान्ति का माहौल मिलने पर भी आपका मन अशांत रहेगा और आपको कुछ अच्छा नहीं लगेगा |आपकी भावनाओं में लगाव नहीं होगा |
११. अपने चेतन मन से सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद करते रहें |सफलता की उम्मीद करते रहें |आशा जगाये रखें और खुद पर भरोसा कायम रखें |आपका अवचेतन मन आपकी इन आदतन विचारों को स्वीकार कर लेगा और इन्हें साकार भी कर देगा |
१२. कभी भी अपनी समस्या की नकारात्मक कल्पना न करें ,अपितु अपनी समस्या के सुखद अंत या समाधान की ही सदैव कल्पना करें |इससे आपके अवचेतन में संगृहीत ज्ञान आपके सामने आएगा और आपको रास्ता मिलेगा |आत्मबल बढ़ेगा और प्रयास अधिक होंगे |अंततः अवचेतन ऐसी परिस्थिति बनाएगा की समस्या का समाधान आपके पक्ष में हो |
१३. अपनी उपलब्धि को हलके में न लें और उससे असंतुष्ट न हों |उसे महसूस करें और उसके रोमांच को अनुभव करें |आप जो भी अनुभव करेंगे या कल्पना करेंगे या महसूस करेंगे उसे आपका अवचेतन मन स्वीकार करके आगामी परिणाम को प्रभावित करेगा और बदल देगा |.................................................................हर-हर महादेव
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१. आपका आतंरिक मन अर्थात अवचेतन मन आपके शरीर की सभी महत्वपूर्ण क्रियाओं का नियंत्रण करता है जबकि आपको इसका भान तक नहीं होता |क्या कभी सोचा है की यह सब कैसे अपने आप होता रहता है ,आप तो ईश्वर की रचना मान संतुष्ट हो लेते हैं पर क्या यह सोचा है की वह ईश्वर इसे करता कैसे है | इसी गुण के कारण कहा जाता है की ईश्वर सबके भीतर मौजूद है ,क्योकि उसकी स्वचालित प्रणाली सबमे सामान रूप से कार्यरत रहती है |
२. अवचेतन मन सभी समस्याओं के जबाब जानता है ,क्योकि यहाँ सभी सूचनाएं जो आपने जन्म -जन्मान्तर में देखि सुनी है इकठ्ठा रहती हैं |तभी तो सम्मोहनकर्ता ,सम्मोहनावस्था में आपको आपके पिछले जन्मों और घटनाओं तक ले जा सकता है |कभी कभी आपको ऐसे चित्र स्वप्न में दीखते हैं जो आपने पहले नहीं देखे होते |यह आपको आपके पिछले किसी जन्म का दृश्य दिखाता है और कभी अचानक कहीं जाने पर आपको लगता है अरे यह तो में अपने स्वप्न में देख चूका था |
३. सोने से पहले अपने अवचेतन मन से कोई विशेष आग्रह करें तो आप पायेंगे की आपको आपके आग्रह के अनुसार परिणाम प्राप्त होते हैं |आप चमत्कृत हो सकते हैं |
४. आप अपने अंतर्मन पर जो भी छाप या प्रभाव छोड़ते हैं ,वह आगामी परिस्थतियों ,अनुभवों और घटनाओं के रूप में व्यक्त होती हैं ,क्योकि जो आपकी छाप होती है उसके ही अनुसार अंतर्मन एक निश्चित भूमिका बना देता है और आगामी समय में आप उसी के अनुसार प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं |सोचिये आपको भूत के नाम से बचपन से डराया गया है ,जबकि आपने भूत कभी देखा नहीं |अब आपका अवचेतन एक निश्चित विचार बना बैठा है और आपमें डर को उसने स्थायी बना दिया है |कभी अकेले अथवा अँधेरे में किसी परछाई अथवा आवाज से आप डर सकते हैं भूत समझकर जबकि वह परछाई आपकी अथवा किसी अन्य वस्तु की हो सकती है |डर से आपकी आतंरिक शारीरिक प्रक्रिया बिगड़ जाती है जिससे बुखार ,बेहोशी ,तनाव ,डिप्रेशन ,दौरे आदि हो सकते हैं और काल्पनिक आकृति से अप परेशान हो सकते हैं |यह अवचेतन के मात्र एक काल्पनिक डर का परिणाम होता है |
५. आपको चेतन मन में मौजूद विचारों के बारे में सतर्क रहना चाहिए क्योकि यही विचार लगातार बने रहने पर स्थायी हो सकते हैं अवचेतन में |और जैसे विचार स्थायी होंगे उसके अनुसार अवचेतन आपका स्वभाव और उस विचार के अनुसार आपकी प्रतिक्रिया निर्धारित कर देगा जो समय आने पर आपकी परिस्थिति का निर्माण कर देगा |
६. क्रिया और प्रतिक्रिया का नियम शाश्वत है |आपका चेतन मन का विचार क्रिया है और उस विचार पर आपका अवचेतन मन स्वतः प्रतिक्रिया करता है |जैसे विचार होंगे वैसी प्रतिक्रया आपको प्राप्त होगी और भविष्य में वैसे विचार पर आप अवचेतन द्वारा बनाई गयी प्रतिक्रिया को ही व्यक्त करेंगे |इसलिए अपने विचारों पर नजर रखें |
७. सारी कुंठाए और अवसाद ,अधूरी इच्छाओं के कारण उत्पन्न होते हैं |निराशा और हीन भावना भी अपनी अथवा अपने परिस्थिति की कमजोरी और असफलता का गहरा भान होने पर ही उत्पन्न होती हैं |अगर आप बाधाओं ,विलम्ब और मुश्किलों पर ध्यान केन्द्रित करेंगे तो आपका अवचेतन मन उसी अनुरूप प्रतिक्रया करेगा और इस तरह आप अपनी ही भलाई को रोक देंगे |बाधा ,विलंब और मुश्किल आपको हर जगह दिखाई देगा ,आत्मबल कमजोर हो जाएगा और खुद पर से विश्वास कम हो जाएगा जिससे अधूरे मन और शक्ति से आप कोई भी प्रयास करेंगे |जो आपके पास ज्ञान है भी वह दुविधा में व्यक्त नहीं हो सकेगा और आप सचमुच में मुश्किल में पड़ सकते हैं अथवा आपके कार्य में बाधा आ सकती है अथवा आपके कार्य में विलं हो सकता है |जबकि सच तो यह है की आप सक्षम होते हैं ऐसे अवसर अथवा समय से पार पाने में ,पर गलत सोच खुद पर भारी पड़ जाती है |
८. जीवन की समरसता ,सफलता ,ख़ुशी के सूत्र और सिद्धांत आपके भीतर लयबद्ध और सामंजस्य के साथ प्रवाहित हो सकता है ,केवल आप चेतन मन से दृढ़तापूर्वक कहें की में विश्वास करता हूँ की हर शक्ति मुझमे है और में हर तरह से सक्षम हूँ |मेरे भीतर कोई अंतर्द्वंद नहीं है और खुशियाँ मेरे चारो तरह हैं |मुझमे हर वह क्षमता है की में सफल हो सकूं |मेरी उत्पन्न इच्छाएं मेरा अवचेतन मन मेरे द्वारा पूरा कर रहा है |इससे आपकी दुविधा ,अंतर्द्वंद और संघर्ष समाप्त हो जायेंगे |आपके विचार और क्रिया संतुलित होगी |
९. आप चिंता ,तनाव ,भय के कारण अपने शरीर की रासायनिक क्रियाएं बिगाड़ देते हैं जिससे ह्रदय ,फेफड़ों और अन्य अंगों की सामान्य ले बिगड़ जाती है |चिंता ,तनाव ,भय का सीधा असर आपकी अन्तःस्रावी ग्रंथियों पर पड़ता है जिससे आपकी रासायनिक क्रियाएं गड़बड़ा जाती हैं | ध्यान दीजिये रतिकाल में केवल यह आभास होना की कोई हम देख रहा है आपकी उत्तेजना समाप्त कर देता है अथवा अँधेरे में यह आभास हो की कोई और है यहाँ ,आपको पसीने -पसीने कर देता है जबकि वहां कोई नहीं होता |यह भय के कारण रासायनिक परिवर्तन के उदाहरण हैं |लगातार भय ,चिंता ,तनाव होने पर आपका स्वास्थय खराब हो जाता है और जो क्षमता होती भी है वह भी समाप्त होने लगती है जिससे जो आपको मिल भी सकता है उसे भी आप नहीं ले पाते हैं फलतः निचे गिरते जाते हैं जबकि आप इसे रोक सकते थे केवल खुद पर विश्वास करके |
१०. अपने अवचेतन मन में स्वास्थ्य की उत्तमता ,शान्ति ,सुख ,सद्भावना ,प्रेम ,लगाव का विचार भरें |इससे आपके शरीर की कार्यप्रणाली सामान्य रहेगी और आपको आपके इन विचारों के अनुसार भविष्य में परिणाम प्राप्त होंगे ,परिस्थितियां प्राप्त होंगी |अवचेतन मन में बुरे विचार ,दुर्भावना ,अशांति ,ईर्श्य की भावना भरेंगे तो प्रेम या शान्ति का माहौल मिलने पर भी आपका मन अशांत रहेगा और आपको कुछ अच्छा नहीं लगेगा |आपकी भावनाओं में लगाव नहीं होगा |
११. अपने चेतन मन से सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद करते रहें |सफलता की उम्मीद करते रहें |आशा जगाये रखें और खुद पर भरोसा कायम रखें |आपका अवचेतन मन आपकी इन आदतन विचारों को स्वीकार कर लेगा और इन्हें साकार भी कर देगा |
१२. कभी भी अपनी समस्या की नकारात्मक कल्पना न करें ,अपितु अपनी समस्या के सुखद अंत या समाधान की ही सदैव कल्पना करें |इससे आपके अवचेतन में संगृहीत ज्ञान आपके सामने आएगा और आपको रास्ता मिलेगा |आत्मबल बढ़ेगा और प्रयास अधिक होंगे |अंततः अवचेतन ऐसी परिस्थिति बनाएगा की समस्या का समाधान आपके पक्ष में हो |
१३. अपनी उपलब्धि को हलके में न लें और उससे असंतुष्ट न हों |उसे महसूस करें और उसके रोमांच को अनुभव करें |आप जो भी अनुभव करेंगे या कल्पना करेंगे या महसूस करेंगे उसे आपका अवचेतन मन स्वीकार करके आगामी परिणाम को प्रभावित करेगा और बदल देगा |.................................................................हर-हर महादेव
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