गुरुवार, 20 जून 2019

शक्तिपात के लक्षण और पात्रता


शक्तिपात के लक्षण और पात्रता
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          पूर्ण शक्तिपात का मुख्य लक्षण है साधक में भगवद्भक्ति का उन्मेष होना |कुंडलिनी का जाग्रत होना |सत्वर मंत्र की सिद्धि भी प्राप्त होती है |वह सभी प्राणियों को अपने अनुकूल बनाने की योग्यता वाला हो जाता है |उसके प्रारब्ध कर्म समाप्त हो जाते हैं |उनके बिना भोगे ही उसकी मुक्ति हो जाती है |जब तक शरीर रहता है उसके साथ सुख-दुःख तो संयुक्त रहते ही है किन्तु इनका साधक पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता |वह निर्लिप्त भाव से उन्हें ग्रहण करता है |सभी परिस्थितियों में आनंद की मुद्रा ही उसकी विशेष मुद्रा बन जाती है |ऐसा इसलिए होता है की साधक को कर्म फल के नियम का ज्ञान हो जाता है ,साथ ही उसमे अतिरिक्त ऊर्जा संचार हो जाने से मानसिक और शारीरिक क्षमता में भी वृद्धि हो जाती है |साधक पर शास्त्रों का ज्ञान सिमटकर आ जाता है,वैचारिक तरंग उठते ही मन में प्रश्नों के उत्तर प्राप्त होने लगते हैं यह कुछ इस तरह होता है की वह जिस माध्यम से शिक्षित होता है उसी माध्यम से रहस्य की परतें स्वयमेव अचेतन प्रेरणा से प्राप्त होने लगती हैं |वास्तव में यह ज्ञान उसका ही होता है किन्तु जन्म बंधन से अवचेतन का ज्ञान आवरण में छिपा होता है जो शक्तिपात होते की खुल जाता है और उसके सौकड़ों जन्मों का ज्ञान उसको अपने ही अवचेतन से किसी भी सम्बद्ध विषय पर अपने आप मन में प्राप्त होने लगता है |साधक अपने ही विचारों से ,अपने ही ज्ञान से स्वयं हतप्रभ होने लगता है |इस कार्यप्रणाली का हमें स्वयं व्यक्तिगत अनुभव रहा है अतः इसे बेहतर समझ पाते हैं |
              शक्तिपात गुरु की शक्ति पर निर्भर करता है कि कितनी शक्ति उनके द्वारा दी जा सकती है |यह शिष्य की पात्रता और क्षमता पर भी निर्भर करता है की गुरु कितनी ऊर्जा अपने शक्तिपात में देगा |गुरु सक्षम है और पूर्ण शक्तिपात कर देता है तो शक्तिपात होते ही शरीर भूमि पर गिर जाता है ,कम्पन होने लगता है ,मन में असीम प्रसन्नता का आभास होता है ,परम आनंद की अनुभूति होने लगती है |शिष्य रोमांचित हो उठता है |इस तरह से शक्तिपात से देह्पात के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगे तो यह जानना चाहिए की शिव कृपा हुई है |कृतार्थता का भाव आना ही चाहिए |इसके बाद फिर उसके जन्म ग्रहण करने की संभावना नहीं रहती है |आज के समय में एक बात बहुतायत से होती है की यदि गुरु सक्षम है और शक्तिपात कर देता है तो शिष्य के जीवन में उठापटक भी होने लगता है |कुछ अपनों से दूरी ,अनहोनी घटनाएं ,परिवार में डावांडोल की स्थिति भी बन सकती है |गुरु की शक्ति की प्रकृति के अनुसार शिष्य का स्वाभाव परिवर्तित होना भी सम्भव होता है |औसा इसलिए होता है की आज के समय में लगभग हर कोई थोड़ी -बहुत नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में होता ही है चूंकि कलयुग और नकारात्मकता का प्रभाव है हर ओर अतः जब गुरु द्वारा किसी शक्ति को दिया जाता है अथवा सकारात्मक या धनात्मक ऊर्जा प्रवाहित की जाती है तो नकारात्मक उर्जाये तीव्र प्रतिक्रया करती हैं और साधक तथा परिवार को अस्त व्यस्त करने का प्रयत्न करती हैं जिससे वह मार्ग से हट जाय |अक्सर खुद का स्वभाव और सोच परिवर्तित होने से स्वार्थी ,धोखेबाज और अहित चाहने वालों के चेहरे खुलने लगते हैं जिससे व्यक्ति के रिश्ते सीमित होने लगते हैं |व्यक्ति लक्ष्य केन्द्रित और अंतर्मुखी होने लगता है |शक्ति अनुसार उग्रता अथवा सौम्यता भी आ सकती है |विरक्ति भी अक्सर देखी जाती है |यह सब हमारे खुद के अनुभव रहे हैं |
           शक्तिपात से प्रकाष्ट हर्ष का उत्पन्न होना ,स्वर -नेत्र और अंगों विशेष की क्रिया का होना ,कम्पन आदि ,शरीर का पात ,भ्रमण ,उद्गति ,अवस्थान ,देह का दिखलाई न देना ,प्रकाश रूप से भाषित होना ,सब शास्त्रों का स्वतः प्रकाशन होना आदि हो सकता है |राम को गुरु वशिष्ठ से जब यह प्रसाद प्राप्त हुआ था तो राम को इस जगत से वैराग्य हो गया था |भगवान् दत्तात्रेय द्वारा भद्र पर शक्तिपात किया गया था ,इसमें स्पर्श दीक्षा से आत्मबोध कराया गया था |आलिंगन करते ही आनंद का स्रोत उमड़ पड़ा था ,भौतिक शरीर की सुध-बुध जाती रही थी ,संकल्प विकल्प की समाप्ति हो गयी थी |रामकृष्ण परमहंस द्वारा विवेकानंद को स्पर्श मात्र से कुंडलिनी जाग्रत कर देना शक्तिपात का एक उत्तम उदाहरण है |  शक्तिपात की शक्ति गुरु की शक्ति और क्षमता के सापेक्ष होती है |गुरु सक्षम हो तो उपरोक्त कोई भी लक्षण आ सकते हैं |गुरु जितना सक्षम होगा शक्तिपात से उसकी क्षमता उतना तक शिष्य पर आ सकती है |यहाँ गुरु की इच्छा महत्वपूर्ण हो जाती है की वह कितना शक्ति प्रदान करना चाहता है अपने शिष्य को |कितनी क्षमता है उसके शिष्य की जिससे की वह आसानी से शक्ति वहन कर सके |यही कारण है की गुरु शिष्य बनाने के पहले शिष्य की क्षमता को तौलता है ,देखता है की शिष्य ,शिष्यत्व लायक गुण रखता है की नहीं |
            आधुनिक समय में तो दीक्षा और शक्तिपात तक व्यवसाय का रूप ग्रहण करता जा रहा है ,,किन्तु क्या वास्तव में वहां शक्तिपात होता है ,क्या खुद गुरुदेव इतने सक्षम होते हैं की शक्तिपात कर सकें |बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है यह |वास्तविक गुरु जिनमे शक्तिपात की क्षमता हो सदैव शिष्य बनाने के प्रति अनिच्छुक होता है |वह दूर रहना चाहता है सामान्यतया लोगों से |कुछ चुने हुए शिष्यों को ही वह शक्तिपात से अपनी शक्ति प्रदान करता है |यह निश्चित होता है की शक्तिपात से गुरु की शक्ति शिष्य को प्राप्त होती है और वर्षों की साधना का परिणाम क्षणों में में मिल जाता है |इसके साथ ही शिष्य साधना मार्ग पर अग्रसर हो जाता है |गुरु के साथ एक अदृश्य सम्बन्ध सदैव बने रहते हैं शिष्य कहीं भी हो |वास्तव में शक्तिपात ब्रह्मांडीय ऊर्जा से गुरु के द्वारा सम्बन्ध है | [पंडित जितेन्द्र मिश्र ]
            शक्तिपात के बाद भौतिक जीवन में अक्सर उथल पुथल होने लगती है ,चूंकि व्यक्ति का झुकाव एकात्मता ,चिंतन और आध्यात्मिकता की ओर होने लगता है |ऐसे में सम्बन्धियों और परिवार को लगता है की वह उनसे दूर जा रहा है |शक्तिपात के बाद कुछ भी यदि महसूस न हो तो समझना चाहिते की या तो शक्ति ग्रहण करने की शिष्य में क्षमता नहीं या गुरु ने शक्ति दिया नहीं अथवा उनकी रूचि नहीं |आवश्यक नहीं की सबकुछ सकारात्मक ही दिखे ,परिस्थितियां नकारात्मक भी बन सकती हैं किन्तु इनका भविष्य के अच्छे होने से अवश्य सम्बन्ध होता है |गुरु आज की परिस्थिति नहीं देखता ,घर -परिवार -भौतिक आवश्यकता नहीं देखता ,उसका उद्देश्य शिष्य को मुक्ति के मार्ग पर डालना होता है ,भगवद्भक्ति का उन्मेष करना होता है |ऐसे में व्यक्ति की सोच बदलने से उथल पुथल होती है |कभी कभी तो इसके बाद व्यक्ति घर -परिवार ही छोड़ देता है |
शक्तिपात और पात्रता
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शक्तिपात तीन प्रकार का होता है |तीब्र ,मध्य ,मंद |इन तीनो के तीन भेद होते हैं |तीब्रतर तीब्र शक्तिपात में उसी समय शरीर छूट जाता है |मध्य तीब्र में कुछ समय लगता है और मंद तीब्र तीब्रता से अपने आप ही शरीर का नाश होता है |अत्यंत तीब्र में तो प्रारब्ध कर्मों का भी नाश हो जाता है |अन्य में भी प्रारब्ध का नाश शक्तिपात की तीब्रता पर निर्भर करता है |तीब्र शक्तिपात से शरीर का नाश होता है ,परन्तु मध्य तीब्र में ऐसा नहीं होता है ,उसमे अज्ञान का नाश और ज्ञान का प्रकटीकरण होता है |इस ज्ञानार्जन से कर्मों का क्षय होता है |मंद तीब्र शक्तिपात से मन में विवेक के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होती है ,तत्त्व को जानने की उत्कंठा होती है और मुक्ति के पथ की और साधक अग्रसर होने लगता है |
         शक्तिपात के लिए गुरु का सामर्थ्यवान होना आवश्यक है ,किन्तु शिष्य को इसके लिए किसी प्रकार की कोई तैयारी नहीं करनी पड़ती है |गुरु ही यह देखता है की शिष्य की क्या क्षमता है |तैयारी की आवश्यकता न होने पर भी शिष्य को शक्तिपात का अधिकारी होने के लिए कुछ मर्यादाएं निश्चित की गयी हैं ,जिससे शक्तिपात मात्र खेल बनकर न रह जाए |वह शिष्य जो इन्द्रियों को जीतने वाला ,ब्रह्मचारी ,गुरुभक्त हो वही इसका अधिकारी है |जो गुरु में पूर्ण निष्ठां ,विश्वास और श्रद्धा रखता हो तथा पूर्ण समर्पण कर दे गुरु इच्छा पर वास्तव में वही शक्तिपात का अधिकारी होता है | नास्तिक ,कृतघ्न ,दुरात्मा,दाम्भिक,न्रिशंश,शत और असत्य भाषी इसका अधिकारी नहीं है |जो सुब्रत्धारी ,सच्चा भक्त ,शुद्ध वृत्ति वाला ,सुशील,विनम्र ,धर्मबुद्धि ,भक्तियुक्त हो वह अधिकारी है |इस पर भी शिष्य की कुछ समय परीक्षा करने का निर्देश दिया जाता है |जो गुरु के सानिध्य में एक वर्ष न रहा हो ,जो शांत न हो ,अनजान कुल शील वाला हो ,कुपुत्र हो ,अशिष्य हो ,जिसे परमात्मा के उपर और परमात्मा के समान गुरु में भक्ति न हो उसे शक्तिपात की शक्ति नहीं देनी चाहिए |अक्सर इन्ही कारणों से तंत्र में गुरु कठोर परीक्षा लेता है शिष्य का जिसमे अक्सर आधुनिक शिष्य असफल हो जाते हैं |
         जो व्यक्ति समाधि के साधनों ,गुण ,शील से समन्वित हो वही दीक्षा का अधिकारी है |,सात्विक,धार्मिक,दृढब्रती,शुद्ध,सदाचारी,श्रद्धा और भक्तियुक्त ,विचारवान,उदारचित्त,गंभीर ह्रदय ही शक्ति प्राप्त कर सकता है |जिस शिष्य में भक्ति भावना का अभाव है केवल चिन्ह पूजा के लिए अथवा प्रयोजन विशेष के लिए किसी गुरु का वरण करता है वह इस प्रसाद को प्राप्त नहीं कर सकता है |आज के समय में जबकि गुरु ही किसी न किसी भौतिक उद्देश्य को ध्यान में रखकर बनाया जाता है ,शक्तिपात का अधिकार न गुरु को होता है न शिष्य को |वैसे भी आज शक्तिपात की क्षमता वाला गुरु खोजे नहीं मिलता |आज तो शक्तिपात का प्रचार किया जा रहा किन्तु वास्तव में कौन शक्तिपात करता है कहा नहीं जा सकता |आज के समय में तो कुछ लोग शक्तिपात से कुंडलिनी जगाने का भी दावा करते हैं और इसकी दूकान खोल रखी है |जिनके पास शक्तिपात की शक्ति होती है वह खुद को समाज से दूर रखते हैं और शिष्य बनाने में उनकी रूचि नहीं होती |शक्तिपात के बाद भौतिक जीवन यथावत रहे ,आवश्यक नहीं होता |कभी कभी शक्तिपात के बाद भौतिक जीवन बिखरने भी लगता है और स्वार्थी ,लोलुप ,सम्बन्धियों /लोगों से स्वयमेव सम्बन्ध टूटने लगते हैं |भावना कुछ इस तरह की होने लगती है की व्यक्ति खुद लोगों से दूर जाने लगता है |शक्तिपात की शक्ति के अनुसार परिणाम अलग अलग होते हैं |शक्तिपात का अधिकार प्राप्त करने के लिए निष्काम भाव का विकास आवश्यक है ,क्योकि इसका मूल उद्देश्य मुक्ति है ,भुक्ति से इसका कोई सम्बन्ध नहीं होता |शक्तिपात का सम्बन्ध ब्रह्मांडीय ऊर्जा से होता है अतः व्यक्ति का सम्बन्ध पृथ्वी के भौतिक जीवन से टूटने लगता है |वह ज्ञान अथवा भक्ति के सागर में गोते लगाने लगता है तथा उसी में उसे आनंद ,तृप्ति मिलती है |................................................हर हर महादेव

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