Sunday, 16 June 2019

ज्योतिर्लिंग श्री त्र्यम्बकेश्वर जी [Tryambakeshwar Ji]

ज्योतिर्लिंग जय श्री त्र्यम्बकेश्वर जी
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यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत में नासिक से 30 कि. मी. पश्चिम में स्थित है l
इसे त्रयम्बक ज्योतिर्लिंग, त्र्यम्बकेश्वर शिव मन्दिर भी कहते है। यहाँ समीप में ही ब्रह्मगिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी निकलती है। जहाँ उत्तरभारत की गंगा को ‘भागीरथी’ कहा जाता हैं, वहीं इस गोदावरी नदी को ‘गौतमी गंगा’ कहकर पुकारा जाता है। भागीरथी राजा भागीरथ की तपस्या का परिणाम है, तो गोदावरी ऋषि गौतम की तपस्या का साक्षात फल है।
शिव पुराण में इस ज्योतिर्लिंग के सम्बन्ध में कथा है---महर्षि गौतम पर छल पूर्वक गोहत्या का आरोप लगाकर ब्राह्मणों ने निष्काषित कर दिया और पश्चाताप के लिए घोर तपस्या का मार्ग बताया l इस तपस्या के मार्ग पर चलते हुए महर्षि गौतम ने घोर तपस्या की जिस से भगवान् शिव ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और उन ब्राह्मणों को दण्ड न देने के लिए महर्षि गौतम ने कि प्रभु उन्हीं के निमित्त से मुझे आपके दर्शन प्राप्त हुए हैं l उन्हें मेरा परम हितेषी समझ कर उन पर क्रोध न करें l बहुत से ऋषियों और मुनियों वहां एकत्र होकर गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान् शिव से सदा वहां निवास करने की प्रार्थना की l देवगणों की प्रार्थना स्वीकार कर भगवान् शिव त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां निवास करने लगे l महर्षि गौतम द्वारा लाई गयी गंगा जी भी वहीँ पास में गोदावरी में नाम से प्रवाहित होने लगी l
गोदावरी के उद्गगम स्थल के समीप ही श्री त्र्यम्बकेश्वर  शिव अवस्थित हैं, जिनकी महिमा का बखान पुराणों में किया गया है। ऋषि गौतम और पवित्र नदी गोदावरी की प्रार्थना पर ही भगवान शिव ने इस स्थान पर अपने वास की स्वीकृति दी थी। वही भगवान शिव ‘त्र्यम्बकेश्वर’ नाम से इस जगत् में विख्यात हुए। यहाँ स्थित ज्योतिर्लिंग का प्रत्यक्ष दर्शन स्त्रियों के लिए निषिद्ध है, अत: वे केवल भगवान के मुकुट का दर्शन करती हैं। त्र्यम्बकेश्वर-मन्दिर में सर्वसामान्य लोगों का भी प्रवेश न होकर, जो द्विज हैं तथा भजन-पूजन करते हैं और पवित्रता रखते हैं, वे ही लोग मन्दिर के अन्दर प्रवेश कर पाते हैं। इनसे अतिरिक्त लोगों को बाहर से ही मन्दिर का दर्शन करना पड़ता है। यहाँ मन्दिर के भीतर एक गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग हैं, जो ब्रह्मा ,विष्णु और शिव इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। ब्रह्मगिरी से निकलने वाली गोदावरी की जलधारा इन त्रिमूर्तियों पर अनवरत रूप से पड़ती रहती है। ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिए सात सौ सीढ़ियों का निर्माण कराया गया है। ऊपरी पहाड़ी पर ‘रामकुण्ड’ और ‘लक्ष्मणकुण्ड’ नामक दो कुण्ड भी स्थित हैं। पर्वत की चोटी पर पहुँचने पर गोमुखी से निकलती हुई भगवान गौतमी (गोदावरी) का दर्शन प्राप्त होता है।
देश में लगने वाले विश्व के प्रसिद्ध चार महाकुम्भ मेलों में से एक महाकुम्भ का मेला यहीं लगता है। यहाँ प्रत्येक बारहवें वर्ष जब सिंह राशि पर बृहस्पति का पदार्पण होता है और सूर्य नारायण भी सिंह राशि पर ही स्थित होते हैं, तब महाकुम्भ पर्व का स्नान, मेला आदि धार्मिक कृत्यों का समारोह होता है। उन दिनों गोदावरी गंगा में स्नान का आध्यात्मिक पुण्य बताया गया है|..........[ अगला अंक - नवां ज्योतिर्लिंग - श्री वैद्यनाथ जी ].......................................हर हर महादेव 

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