शैव सम्प्रदाय [Shaiva Sampradaya]
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भगवान शिव से जुड़े संप्रदाय को शैव सम्प्रदाय कहते हैं। शैव संप्रदाय के भी कई विभाजन है। एक समय था जबकि भगवान ब्रह्मा की पूजा आदि का व्यापक प्रचलन था। फिर भगवान विष्णु की पूजा आदि का व्यापक प्रचलन हुआ और फिर भगवान शिव की पूजा आदि का व्यापक प्रचलन बढ़ा। दक्षिण भारत में भगवान शिव की पूजा का खास प्रचलन है। भारत के धार्मिक इतिहास के साथ अंग्रेज काल में छेड़खानी करने और उसका विकृतिकरण करने के कारण धर्म में सैंकड़ों तरह के विरोधाभास फैल गए हैं।
हिंदुओं के मुख्यत: 5 संप्रदाय माने गए हैं- शैव, वैष्णव, शाक्त, वैदिक और स्मार्त। चर्वाक संप्रदाय तो लुप्त हो गया लेकिन बाकी सभी संप्रदाय प्रचलन में हैं।कुछ विद्वानों के अनुसार शाक्त सम्प्रदाय शैव के ही अंतर्गत आता है और वैदिक सम्प्रदाय ,वैष्णव सम्प्रदाय सामान ही हैं |इनके अनुसार पांच सम्प्रदाय -शैव ,वैष्णव ,स्मार्त ,सौर और गाणपत्य होते हैं | सबसे प्राचीन संप्रदाय शैव संप्रदाय को ही माना जाता है। शैव मत का मूल रूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में है। 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए। इनकी पत्नी का नाम है पार्वती जिन्हें दुर्गा भी कहा जाता है। शिव का निवास कैलाश पर्वत पर माना गया है। इनके पुत्रों का नाम है कार्तिकेय और गणेश और पुत्री का नाम है वनमाला जिन्हें ओखा भी कहा जाता था।
भारत के धार्मिक सम्प्रदायों में शैवमत प्रमुख हैं। वैष्णव , शाक्त आदि सम्प्रदायों के अनुयायियों से इसके मानने वालों की सख्या अधिक है। शिव त्रिमूर्ति में से तीसरे हैं जिनका विशिष्ट कार्य संहार करना है शैव वह धार्मिक सम्प्रदाय हैं जो शिव को ही ईश्वर मानकर आराधना करता है। शिव का शाब्दिक अर्थ है 'शुभ', 'कल्याण', 'मंगल', श्रेयस्कर' आदि, यद्यपि शिव का कार्य संहार करना है। शैवमत का मूलरूप ऋग्वेद में रूद्र की कल्पना में मिलता है। रुद्र के भयंकर रूप की अभिव्यक्ति वर्षा के पूर्व झंझावात के रूप में होती थी। रुद्र के उपासकों ने अनुभव किया कि झंझावात के पश्चात् जगत को जीवन प्रदान करने वाला शीतल जल बरसता है और उसके पश्चात् एक गम्भीर शान्ति और आनन्द का वातावरण निर्मित हो जाता है। अतः रुद्र का ही दूसरा सौम्य रूप शिव जनमानस में स्थिर हो गया। हिंदुओं के देवताओं की त्रिमूर्ति- ब्रह्मा , विष्णु और महेश में शिव विद्यमान हैं और उन्हें विनाश का देवता भी माना जाता है। शिव के तीन नाम शम्भु, शंकर और शिव प्रसिद्ध हुए। इन्हीं नामों से उनकी प्रार्थना होने लगी।
यजुर्वेद के शतरुद्रिय अध्याय, तैत्तिरीय आरण्यक और श्वेताश्वतर उपनिषद् में शिव को ईश्वर माना गया है। उनके पशुपति रूप का संकेत सबसे पहले अथर्वशिरस उपनिषद में पाया जाता है, जिसमें पशु, पाश, पशुपति आदि पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग हुआ है। इससे लगता है कि उस समय से पशुपात सम्प्रदाय बनने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी थी। रामायण ,महाभारत के समय तक शैवमत शैव अथवा माहेश्वर नाम से प्रसिद्ध हो चुका था। महाभारत में माहेश्वरों के चार सम्प्रदाय बतलाये गये हैं - शैव ,पाशुपत ,कालदमन और कापालिक। वैष्णव आचार्य यामुनाचार्य ने कालदमन को ही 'कालमुख' कहा है। इनमें से अन्तिम दो नाम शिव को रुद्र तथा भंयकर रूप में सूचित करते हैं, जब प्रथम दो शिव के सौम्य रूप को स्वीकार करते हैं। इनके धार्मिक साहित्य को शैवमत कहा जाता है। इनमें से कुछ वैदिक और शेष अवैदिक हैं। सम्प्रदाय के रूप में पाशुपत मत का संघटन बहुत पहले प्रारम्भ हो गया था। इसके संस्थापक आचार्य लकुलीश थे। इनहोंने लकुल (लकुट) धारी शिव की उपासना का प्रचार किया, जिसमें शिव का रुद्र रूप अभी वर्तमान था। इसकी प्रतिक्रिया में अद्वैत दर्शन के आधार पर समयाचारी वैदिक शैव मत का संघटन सम्प्रदाय के रूप में हुआ। इसकी पूजा पध्दति में शिव के सौम्य रूप की प्रधानता थी। किन्तु इस अद्वैत शैव सम्प्रदाय की भी प्रतिक्रिया हुई। ग्यारहवीं शताब्दी में वीरशैव अथवा 'लिंगायत सम्प्रदाय' का उदय हुआ, जिसका दार्शनिक आधार शक्तिविशिष्ट अद्वैतवाद था।
कापालिकों ने भी अपना साम्प्रदायिक संघटन किया। इनके साम्प्रदायिक चिह्न इनकी छः मुद्रिकाएँ थीं, जो इस प्रकार हैं- कंठहार ,आभूषण ,कर्णाभूषण ,चूड़ामणि भस्म और यज्ञोपवीत। इनके आचार शिव के घोर रूप के अनुसार बड़े वीभत्स थे, जैसे कपालपात्र में भोजन, शव के भस्म को शरीर पर लगाना, भस्मभक्षण, यष्टिधारण, मदिरापात्र रखना, मदिरापात्र का आसन बनाकर पूजा का अनुष्ठान्करना आदि। कालमुख साहित्य में कहा गया है कि इस प्रकार के आचरण से लौकिक और पारलौकिक सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। इसमें सन्देह नहीं की कापालिका क्रियायँ शुध्द शैवमत से बहुत दूर चली गयीं और इनका मेल वाममार्गी शाक्तों से अधिक हो गया।
पहले शैवमत के मुख्यतः दो ही सम्प्रदाय थे- पाशुपत और आगमिक। फिर इन्हीं से कई उपसम्प्रदाय हुए, जिनकी सूची निम्नांकित है -पाशुपात शैव मत -पाशुपात, लघुलीश पाशुपत, कापालिक, नाथ सम्प्रदाय, गोरख पन्थ, रंगेश्वर। आगमिक शैव मत -शैव सिध्दान्त, तमिल शैव ,काश्मीर शैव, वीर शैव।
पाशुपत सम्प्रदाय का आधारग्रन्थ महेश्वर द्वारा रचित 'पाशुपतसुत्र' है। इसके ऊपर कौण्डिन्यरचित 'पंचार्थीभाष्य' है। इसके अनुसार पदार्थों की संख्या पाँच है- कार्य ,कारण ,योग विधि और दुःखान्त्। जीव (जीवात्मा) और जड (जगत) को कार्य कहा जाता है। परमात्मा (शिव) इनका कारण है, जिसको पति कहा जाता है। जीव पशु और जड पाश कहलाता है। मानसिक क्रियाओं के द्वारा पशु और पति के संयोग को योग कहते हैं। जिस मार्ग से पति की प्राप्ति होती है उसे विधि की संज्ञा दी गयी है। पूजाविधि में निम्नांकित क्रियाएँ आवश्यक है- हँसना ,गाना ,नाचना ,हुंकारना और नमस्कार। संसार में दुखों से आत्यन्तिक निवृत्ति ही दुःखान्त अथवा मोक्ष है।
आगमिक शैवों के शैव सिध्दान्त के ग्रन्थ संस्कृत और तमिल दोनों में हैं। इनके पति, पशु और पाश इन तीन मूल तत्वों का गम्भीर विवेचन पाया जाता है। इनके अनुसार जीव पशु है जो अज्ञ और अणु हैं। जीव पशु चार प्रकार के पाशों से बध्द हैं। यथा –मल, कर्म, माया और रोध शक्ति। साधना के द्वारा जब पशु पर पति का शक्तिपात (अनुग्रह) होता है तब वह पाश से मुक्त हो जाता है। इसी को मोक्ष कहते हैं।
शैवमत के प्रधानतया चार सम्प्रदाय माने जाते हैं- पाशुपत ,शैवसिद्धान् ,कश्मीर शैवमत ,वीर शैवमत |पहले का केन्द्र गुजरात और राजपूताना, दूसरे का तमिल प्रदेश, तीसरे का कश्मीर और चौथे का कर्नाटक है।
शैव सम्प्रदाय में शिव के अवतार :
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शिव पुराण में शिव के भी दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है, जो निम्नलिखित है- 1. महाकाल, 2. तारा, 3. भुवनेश, 4. षोडश, 5.भैरव, 6.छिन्नमस्तक गिरिजा, 7.धूम्रवान, 8.बगलामुखी, 9.मातंग और 10. कमल नामक अवतार हैं। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं।
शिव के अन्य 11 अवतार : 1. कपाली, 2. पिंगल, 3. भीम, 4. विरुपाक्ष, 4. विलोहित, 6. शास्ता, 7. अजपाद, 8. आपिर्बुध्य, 9. शम्भू, 10. चण्ड तथा 11. भव का उल्लेख मिलता है। इन अवतारों के अलावा शिव के दुर्वासा, हनुमान, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात और नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है जिन्हें अंशावतार माना जाता है।
शैव ग्रंथ :
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वेद का श्वेताश्वतरा उपनिषद (Svetashvatara Upanishad), शिव पुराण (Shiva Purana), आगम ग्रंथ (The Agamas)और तिरुमुराई (Tiru-murai- poems)।
शैव व्रत और त्योहार :
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चतुर्दशी, श्रावण मास, शिवरात्रि, रुद्र जयंती, भैरव जयंती आदि।
शैव तीर्थ :
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12 ज्योतिर्लिंगों में खास काशी (kashi), बनारस (Benaras), केदारनाथ (Kedarnath), सोमनाथ (Somnath), रामेश्वरम (Rameshvaram), चिदम्बरम (Chidambaram), अमरनाथ (Amarnath) और कैलाश मानसरोवर (kailash mansarovar)।
शैव संस्कार :
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1. शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं। 2. इसके संन्यासी जटा रखते हैं। 3. इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते। 4. इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं। 5. इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं। 6. ये निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं। 7. शैव चन्द्र पर आधारित व्रत-उपवास करते हैं। 8. शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है। 9. शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं, जहां सिर्फ शिवलिंग होता है। 10. ये भभूति तिलक आड़ा लगाते हैं।
शैव साधु-संत : शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, ओघड़, योगी, सिद्ध आदि कहा जाता है।.................................................................हर हर महादेव
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