::::: नागा साधू और उनका जीवन :::::
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सामान्य जनमानस में अक्सर सुनने -देखने में आता है की लोग कहते हुए मिल जाते हैं की साधू बनना सबसे आसान है ,आराम का जीवन जीते हैं ,मुफ्त को खाने को मिल जाता है ,कुछ करना नहीं होता ,पर क्या वास्तव में ऐसा होता है ,क्या हम उनके वास्तविक जीवन के बारे में जानते हैं ,क्या हम उनके त्याग-तपस्या ,संघर्ष के बारे में जानते हैं |कैसे रहते हैं वे, कैसे जीते है वे,कैसे बनते हैं साधू-सन्यासी ,क्या प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं इस दौरान ,कितने परीक्षा देने होते हैं ,कितना कठोर-तपमय जीवन जीना पड़ता है उन्हें तब जाकर वह समाज को मार्गदर्शन देते हैं ,खुद को जीतते हैं ,धर्म को बचाते हैं ,ईष्ट प्राप्ति का रास्ता दिखाते है | साधु, सन्यासी बनने की राह इतनी कठिन होती है कि अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाएं।यद्यपि साधू -सन्यासी कई प्रकार के होते हैं ,कई सम्प्रदायों के होते हैं ,कई रास्तों को मानने वाले होते हैं ,कई प्रकार से जीवन दर्शन का पालन करने वाले होते हैं ,कई तरह से तपस्या करने वाले होते हैं |
ऐसा ही एक पथ नागा सम्प्रदाय का है | नागा साधु बनने की प्रक्रिया आसान नहीं होती। उन्हें इतने कठोर नियम-कायदों और अनुशासन का पालन करना पड़ता है, जितने हमारे सामान्य जीवन में नहीं होते। नागाओं को सेना की तरह तैयार किया जाता है। सेना की ट्रेनिंग से भी ज्यादा सख्त ट्रेनिंग नागा साधुओं की होती है। उन्हें भी धर्म रक्षक और योद्धा कहा जाता है। उनके लिंग को वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर निष्क्रिय किया जाता है। एक आम आदमी से नागा साधु बनने तक का सफर बहुत ही कठिन और चुनौतियों भरा होता है। वैसे तो हर अखाड़े में दीक्षा के कुछ अपने नियम होते हैं, लेकिन कुछ कायदे ऐसे भी होते हैं, जो सभी दशनामी अखाड़ों में एक जैसे होते हैं।जैसे ब्रह्मचर्य का पालन ,सेवा भावना ,अपना श्राद्ध पहले ही कर देना आदि-आदि जब भी कोई व्यक्ति साधु बनने के लिए किसी अखाड़े में जाता है, तो उसे कभी सीधे-सीधे अखाड़े में शामिल नहीं किया जाता। अखाड़ा अपने स्तर पर ये तहकीकात करता है कि वह साधु क्यों बनना चाहता है? उस व्यक्ति की तथा उसके परिवार की संपूर्ण पृष्ठभूमि देखी जाती है। अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है, तो ही उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है। नागा साधू बनने से पहले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य की परीक्षा से गुजरना पड़ता है ,लम्बे समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करवाया जाता है ,मानसिक नियंत्रण को परखा जाता है ,वासना और ईच्छा मुक्ति का विश्वास होने पर ही उसे दीक्षा प्रदान की जाती है| अगर व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करने की परीक्षा से सफलतापूर्वक गुजर जाता है, तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं। इन्हें भस्म, भगवा, रूद्राक्ष आदि चीजें दी जाती हैं। यह नागाओं के प्रतीक और आभूषण होते हैं।महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाता है। इसमें सबसे पहले उसे अपने बाल कटवाने होते हैं। इसके लिए अखाड़ा परिषद की रसीद भी कटती है। अवधूत रूप में दीक्षा लेने वाले को खुद का तर्पण और पिंडदान करना होता है।इसके बाद लिंग भंग की प्रक्रिया के लिए उन्हें 24 घंटे नागा रूप में अखाड़े के ध्वज के नीचे बिना कुछ खाए-पीए खड़ा होना पड़ता है। इस दौरान उनके कंधे पर एक दंड और हाथों में मिट्टी का बर्तन होता है। इस दौरान अखाड़े के पहरेदार उन पर नजर रखे होते हैं। इसके बाद अखाड़े के साधु द्वारा उनके लिंग को वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर निष्क्रिय किया जाता है। यह कार्य भी अखाड़े के ध्वज के नीचे किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा साधु बन जाता है।
दीक्षा लेने वाले साधू को अपने वरिष्ठ साधुओं और गुरु आदि की सेवा भी करनी पड़ती है |दीक्षा लेने वाले साधू को अपने को समाज और परिवार से मुक्त और मृत मानकर अपना पिंडदान पहले ही कर देना होता है |अपना श्राद्ध करने पर उसका नया जीवन प्रारम्भ होता है और नए नाम से वह जाना जाता है जो नाम उसे उसके गुरु द्वारा प्रदान किया जाता है |नागा साधू को वस्त्र धारण की अनुमति नहीं होती ,कुछ मामलों में गेरुए वस्त्र की अनुमति हो सकती है |ये भस्म धारण करते हैं ,यही इनका वस्त्र और श्रृंगार होता है |इन्हें शिखा के साथ सम्पूर्ण बालों का त्याग कर देना होता है ,अथवा यह सम्पूर्ण जटा ही धारण करते हैं |भस्म के साथ यह रुद्राक्ष धारण करते हैं |भिक्षा द्वारा प्राप्त भोजन एक बार पूरे दिन में यह करते हैं |पसंद-नापसंद को महत्व न देकर जो मिले ग्रहण करना होता है ,उस पर भी अगर सात घरों से कुछ न मिले तो भूखा रह जाना होता है |नागा साधू बस्ती के बाहर ही निवास कर सकते हैं और केवल जमीन पर ही सोते हैं ,इन्हें अन्य साधनों के उपयोग की अनुमति नहीं होती |इनकी भविष्य की तपस्या गुरु मंत्र पर आधारित होती है और वाही इनके साधना जीवन का आधार होता है |
एक बार नागा साधु बनने के बाद उसके पद और अधिकार भी बढ़ते जाते हैं। नागा साधु के बाद महंत, श्रीमहंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबरश्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर जैसे पदों तक जा सकता है।नागा साधू भस्म-फूल-तिलक-रुद्राक्ष-लंगोट-चिमटा और हथियार धारण करते हैं इनके लंगोट लकड़ी के , लोहे के ,चांदी के ,सोने के भी हो सकते हैं | चिमटा साथ रखना अनिवार्य होता है |यह युद्ध कला में माहिर होते हैं और इन्हें धर्मं रक्षक सेना के रूप में भी प्रशिक्षित किया जाता है ,हथियार में तलवार,फरसा ,त्रिशूल अधिकतर धारण करते हैं |रुद्राक्ष माला धारण करते हैं ,शिव मुख्य आराध्य होते हैं और नंगे बदन पर भस्म लेपन के साथ लम्बी जताएं इनकी पहचान होती हैं ,,किसी को अपनी माला दे दी या सर पर चिंमटा एर दिया तो कल्याण हो गया |...............................................................हर-हर महादेव
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सामान्य जनमानस में अक्सर सुनने -देखने में आता है की लोग कहते हुए मिल जाते हैं की साधू बनना सबसे आसान है ,आराम का जीवन जीते हैं ,मुफ्त को खाने को मिल जाता है ,कुछ करना नहीं होता ,पर क्या वास्तव में ऐसा होता है ,क्या हम उनके वास्तविक जीवन के बारे में जानते हैं ,क्या हम उनके त्याग-तपस्या ,संघर्ष के बारे में जानते हैं |कैसे रहते हैं वे, कैसे जीते है वे,कैसे बनते हैं साधू-सन्यासी ,क्या प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं इस दौरान ,कितने परीक्षा देने होते हैं ,कितना कठोर-तपमय जीवन जीना पड़ता है उन्हें तब जाकर वह समाज को मार्गदर्शन देते हैं ,खुद को जीतते हैं ,धर्म को बचाते हैं ,ईष्ट प्राप्ति का रास्ता दिखाते है | साधु, सन्यासी बनने की राह इतनी कठिन होती है कि अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाएं।यद्यपि साधू -सन्यासी कई प्रकार के होते हैं ,कई सम्प्रदायों के होते हैं ,कई रास्तों को मानने वाले होते हैं ,कई प्रकार से जीवन दर्शन का पालन करने वाले होते हैं ,कई तरह से तपस्या करने वाले होते हैं |
ऐसा ही एक पथ नागा सम्प्रदाय का है | नागा साधु बनने की प्रक्रिया आसान नहीं होती। उन्हें इतने कठोर नियम-कायदों और अनुशासन का पालन करना पड़ता है, जितने हमारे सामान्य जीवन में नहीं होते। नागाओं को सेना की तरह तैयार किया जाता है। सेना की ट्रेनिंग से भी ज्यादा सख्त ट्रेनिंग नागा साधुओं की होती है। उन्हें भी धर्म रक्षक और योद्धा कहा जाता है। उनके लिंग को वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर निष्क्रिय किया जाता है। एक आम आदमी से नागा साधु बनने तक का सफर बहुत ही कठिन और चुनौतियों भरा होता है। वैसे तो हर अखाड़े में दीक्षा के कुछ अपने नियम होते हैं, लेकिन कुछ कायदे ऐसे भी होते हैं, जो सभी दशनामी अखाड़ों में एक जैसे होते हैं।जैसे ब्रह्मचर्य का पालन ,सेवा भावना ,अपना श्राद्ध पहले ही कर देना आदि-आदि जब भी कोई व्यक्ति साधु बनने के लिए किसी अखाड़े में जाता है, तो उसे कभी सीधे-सीधे अखाड़े में शामिल नहीं किया जाता। अखाड़ा अपने स्तर पर ये तहकीकात करता है कि वह साधु क्यों बनना चाहता है? उस व्यक्ति की तथा उसके परिवार की संपूर्ण पृष्ठभूमि देखी जाती है। अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है, तो ही उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है। नागा साधू बनने से पहले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य की परीक्षा से गुजरना पड़ता है ,लम्बे समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करवाया जाता है ,मानसिक नियंत्रण को परखा जाता है ,वासना और ईच्छा मुक्ति का विश्वास होने पर ही उसे दीक्षा प्रदान की जाती है| अगर व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करने की परीक्षा से सफलतापूर्वक गुजर जाता है, तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं। इन्हें भस्म, भगवा, रूद्राक्ष आदि चीजें दी जाती हैं। यह नागाओं के प्रतीक और आभूषण होते हैं।महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाता है। इसमें सबसे पहले उसे अपने बाल कटवाने होते हैं। इसके लिए अखाड़ा परिषद की रसीद भी कटती है। अवधूत रूप में दीक्षा लेने वाले को खुद का तर्पण और पिंडदान करना होता है।इसके बाद लिंग भंग की प्रक्रिया के लिए उन्हें 24 घंटे नागा रूप में अखाड़े के ध्वज के नीचे बिना कुछ खाए-पीए खड़ा होना पड़ता है। इस दौरान उनके कंधे पर एक दंड और हाथों में मिट्टी का बर्तन होता है। इस दौरान अखाड़े के पहरेदार उन पर नजर रखे होते हैं। इसके बाद अखाड़े के साधु द्वारा उनके लिंग को वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर निष्क्रिय किया जाता है। यह कार्य भी अखाड़े के ध्वज के नीचे किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा साधु बन जाता है।
दीक्षा लेने वाले साधू को अपने वरिष्ठ साधुओं और गुरु आदि की सेवा भी करनी पड़ती है |दीक्षा लेने वाले साधू को अपने को समाज और परिवार से मुक्त और मृत मानकर अपना पिंडदान पहले ही कर देना होता है |अपना श्राद्ध करने पर उसका नया जीवन प्रारम्भ होता है और नए नाम से वह जाना जाता है जो नाम उसे उसके गुरु द्वारा प्रदान किया जाता है |नागा साधू को वस्त्र धारण की अनुमति नहीं होती ,कुछ मामलों में गेरुए वस्त्र की अनुमति हो सकती है |ये भस्म धारण करते हैं ,यही इनका वस्त्र और श्रृंगार होता है |इन्हें शिखा के साथ सम्पूर्ण बालों का त्याग कर देना होता है ,अथवा यह सम्पूर्ण जटा ही धारण करते हैं |भस्म के साथ यह रुद्राक्ष धारण करते हैं |भिक्षा द्वारा प्राप्त भोजन एक बार पूरे दिन में यह करते हैं |पसंद-नापसंद को महत्व न देकर जो मिले ग्रहण करना होता है ,उस पर भी अगर सात घरों से कुछ न मिले तो भूखा रह जाना होता है |नागा साधू बस्ती के बाहर ही निवास कर सकते हैं और केवल जमीन पर ही सोते हैं ,इन्हें अन्य साधनों के उपयोग की अनुमति नहीं होती |इनकी भविष्य की तपस्या गुरु मंत्र पर आधारित होती है और वाही इनके साधना जीवन का आधार होता है |
एक बार नागा साधु बनने के बाद उसके पद और अधिकार भी बढ़ते जाते हैं। नागा साधु के बाद महंत, श्रीमहंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबरश्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर जैसे पदों तक जा सकता है।नागा साधू भस्म-फूल-तिलक-रुद्राक्ष-लंगोट-चिमटा और हथियार धारण करते हैं इनके लंगोट लकड़ी के , लोहे के ,चांदी के ,सोने के भी हो सकते हैं | चिमटा साथ रखना अनिवार्य होता है |यह युद्ध कला में माहिर होते हैं और इन्हें धर्मं रक्षक सेना के रूप में भी प्रशिक्षित किया जाता है ,हथियार में तलवार,फरसा ,त्रिशूल अधिकतर धारण करते हैं |रुद्राक्ष माला धारण करते हैं ,शिव मुख्य आराध्य होते हैं और नंगे बदन पर भस्म लेपन के साथ लम्बी जताएं इनकी पहचान होती हैं ,,किसी को अपनी माला दे दी या सर पर चिंमटा एर दिया तो कल्याण हो गया |...............................................................हर-हर महादेव
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