शक्ति पात ::::::गुरु
की अद्भुत कृपा
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हम लोग अक्सर गुरु का नाम आते ही
शक्तिपात का भी नाम सुनते हैं और हममे से कुछ जानते भी हैं की शक्तिपात से गुरु
अपनी शक्ति शिष्य को प्रदान करता है या शिष्य की शक्ति जगा देता है |दोनों में से
कोई भी अवस्था गुरु उत्पन्न कर सकता है किन्तु गुरु ऐसा मात्र तभी करता है जब वह
आश्वस्स्त हो जाता है की शिष्य इसकी पात्रता रखता है और शिष्य का उद्देश्य वास्तव
में मुक्ति अथवा आध्यात्मिक उपलब्धियां ही हैं |आजकल तो यह प्रचलन और फैशन हो गया
है आधुनिक तथाकथित गुरुओं का कि वह सब पर शक्तिपात कर रहे हैं ,यहाँ तक की मोबाइल
से अथवा समूह में अथवा इंटरनेट और टी वी पर भी शक्तिपात हो रहा भले इन गुरुओं के
पास खुद कोई शक्ति न हो और यह मात्र भौतिकता में लिप्त ,व्यावसायिक और आडम्बर वाले
ही गुरु हों |शक्तिपात आज मजाक बनकर रह गया है जबकि वास्तविकता यह है की अधिकतर
गुरुओं के पास शक्तिपात की शक्ति ही नहीं है |जीवमात्र का परम उद्देश्य है ,जीवन
से मुक्त होकर शिवत्व में प्रवेश करना ,और शिवत्व में प्रवेश करना तभी संभव है जब
जीव अपनी आत्मस्थिति का अनुसंधान करते हुए उसमे अवलंबित हो जाता है |स्वरुप स्थिति
में स्थायित्व प्राप्त कर लेना ही मुक्ति के द्वार तक पहुचने का लक्षण है |इस
स्वरुप स्थिति तक पहुचने के लिए जो उपाय काम में लाया जाता है उसे ही शक्तिपात
कहते हैं |शक्तिपात एक ऐसी आध्यात्मिक प्रक्रिया है ,जिसके माध्यम से सद्गुरु अपनी
सम्पूर्ण शक्ति को शिष्य में संचारित करता है ,अथवा उसकी ही सुप्त शक्तियों को
जाग्रत कर देता है जिससे उसकी सुप्त आध्यात्मिक शक्तियों का जागरण हो जाये अथवा
उसकी बुद्धि अतीन्द्रिय विषय को समझने में सक्षम हो सके |शिष्य पर गुरु द्वारा
शक्ति उतारने की प्रक्रिया शक्तिपात कहलाती है |
शक्तिपात गुरु कृपा पर निर्भर करता
है |सद्गुरु अध्यात्म विद्या को जानने वाले और तत्ववेत्ता होते हैं |वही गुरु है
जो तंत्रों के वीर्य का प्रकाश करने वाला हो |सिद्धि के लिए शक्तिपात अत्यंत
आवश्यक माना गया है और इसके लिए गुरु ही एकमात्र साधन है |शक्तिपात के न होने पर
सिद्धि की भी प्राप्ति होना लगभग असंभव है |स्पर्श दीक्षा भी शक्तिपात का प्रकार
होती है जो की हमलोग तंत्र साधक प्रयोग में लाते हैं |जबकि गुरु द्वारा दीक्षा
दिया जाना भी सम्बंधित मंत्र अथवा शक्ति शिष्य को दिया जाना ही होता है |यद्यपि
मूल शक्तिपात गुरु की पूर्ण शक्ति शिष्य पर उतार देना या प्रदान करना है |आज तो
समूह में मंत्र दिए जा रहे ,इंटरनेट और फोन पर मंत्र दिए जा रहे ,दीक्षाएं पैसे
लेकर बंट रही और जिनमे खुद कोई शक्ति नहीं ,खुद प्रक्रिया और पद्धति तक नहीं जानते
वह लोग दीक्षाएं और मंत्र रेवड़ियों की तरह बाँट रहे ,व्यवसाय कर रहे |शिष्यों में
धैर्य नहीं ,न वास्तविक गुरु खोजना चाहते हैं न गुरु नाम की समझ है ,आडम्बरी और
भीड़ लगाने वाले को ,कथा बांचने वाले को ,झूठा भेष बना ठगने वालों को गुरु बना ले रहे
और फिर पछता रहे |
शक्तिपात के अनुसार ही तो शिष्य
अनुग्रहीत होता है ,गुरु के बिना मार्ग प्राप्त नहीं होता |गुरु कृपा अथवा गुरु
प्रसाद के प्राप्त हो जाने पर ही शिष्य का उद्धार हो जाता है |जिसकी देव में परा
भक्ति है ,वैसी ही गुरु में भी पराभक्ति देव की ही भांति होनी चाहिए |यह गुरु का
प्रसाद है जो तोष से प्राप्त होता है अन्यथा नहीं मिलता है |गुरु कृपा से ही
मनुष्य इस भाव सागर को पार कर सकता है |सद्गुरु के सत्प्रसाद के होने पर मनुष्य के
जो प्रतिबन्ध हुआ करते हैं ,उनका क्षय हो जाता है |शक्तिपात के समायोग के अभाव में
तत्वतः तत्वों का ज्ञान ,आत्मा की व्यापकता और उसके शुद्ध -बुद्ध स्वरुप का ज्ञान
कभी भी संभव नहीं है |तंत्र का मत है की शक्तिपात अथवा भगवत्कृपा के बिना जीव को
पूर्णत्व की प्राप्ति नहीं हो सकती है ,इसीलिए तंत्र में गुरु दीक्षा और शक्तिपात
की अवधारणा सर्वाधिक महत्व रखती है |ध्यान देने योग्य है की बाबा कीनाराम ,तैलंग
स्वामी आदि को जन्म से ही शक्तियाँ और भगवती की कृपा सानिध्य प्राप्त था ,यह बचपन
से ही सिद्ध थे किन्तु फिर भी भगवती द्वारा ही इन्हें लौकिक गुरु बनाने को कहा गया
,अतः जो लोग यह कहते हैं की वह शिव अथवा गणेश अथवा शिवा अथवा किसी भी शक्ति को
गुरु मान साधना कर रहे वह खुद को भ्रम में डाल धोखा दे रहे क्योंकि यदि ऐसा सम्भव
होता तो आज हर कोई सिद्ध होता |
शक्तिपात के समय गुरु की मानसिक स्थिति
,गंभीरता ,शिष्य के प्रति भाव ,शिष्य का बल अनुमान ,दिए जाने वाली शक्ति की मात्रा
की इच्छा ,शिष्य की आवश्यकता का आकलन ,शिष्य की शारीरिक -मानसिक ऊर्जा और शक्ति
संरचना की स्थिति बहुत महत्व रखती है |तदनुरूप ही गुरु शक्तिपात करता है |कभी कभी
इतनी ही शक्ति प्रदान करता है की शिष्य की साधना शुरू हो जाए और वह मार्ग पर बढ़ने
लगे ,फिर क्रमशः गुरु शक्ति बढाता और मार्ग दिखाता जाता है ,कभी कभी गुरु यदि
शिष्य को योग्य और सक्षम पाता है तो पूर्ण शक्ति प्रदान करता है |कभी -कभी गुरु
मात्र मंत्र दे देता है ,कभी कभी स्पर्श दीक्षा देता है जिसमे शक्तिपात होता है
उसके स्पर्श से और कभी कभी तीव्र शक्तिपात देता है |यह सब वह शिष्य की मानसिक
स्थिति ,सोच ,विश्वास ,श्रद्धा ,समर्पण और आध्यात्मिक रुचियों को जान्ने के बाद
करता है |इसमें शिष्य की बात ,शिष्य के कहे शब्द कोई महत्त्व नहीं रखते और गुरु
अपनी अंतर्दृष्टि से ही आकलन करता है |गुरु यह पहले देखता है की शिष्य ऊर्जा
सम्भाल पायेगा या नहीं अथवा कहीं यह अपनी शक्तियों का आगे चलकर दुरुपयोग तो नहीं
करेगा |इस सोच और अन्तरदृष्टि के कारण ही क्रमशः सक्षम शिष्यों में कमी आती गयी और
योग्य सक्षम गुरु आज नहीं मिल रहे |
शक्तिपात से व्यक्ति की शक्ति
जाग उठती है |इसमें विशेषता यह होती है की बिना परिश्रम के ही शिष्य में गुरु कृपा
से शक्ति का जागरण हो जाता है |शक्तिपात होने पर यौगिक क्रियाओं की अपेक्षा नहीं
रहती है ,वह साधक की प्रकृति के अनुरूप रूप लेने लगती हैं |प्रबुद्ध कुंडलिनी
ब्रह्मरंध्र की और प्रवाहित होने के लिए छटपटाती है ,इसी से सभी क्रियाएं स्वतः
होने लगती हैं |ऐसा भी देखा गया है की जिन साधकों ने कोई अभ्यास नहीं किया था और न
ही विशेष अध्ययन किया था ,वह क्रियाओं को ऐसे करने लगते हैं मानो वे वर्षों से
इनका अभ्यास करते रहे हों ,अर्थात क्रियात्मक ज्ञान भी स्वतः शिष्य में शक्तिपात
होने पर प्राप्त होने लगता है |हठयोग की क्रियाओं में थोड़ी सी भी त्रुटी हो जाने
पर भरी हानि उठाने की संभावना रहती है ,परन्तु यह साधक के अभ्यास में आ जाती हैं
और आसन-प्राणायाम-मुद्रा आदि वे अपने आप समझने लगते हैं |यह गुरु
कृपा का प्रसाद ही तो है |
शक्तिपात से साधक के आध्यात्मिक
क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाता है |उसमे भगवद्भक्ति का विकास ,चिदात्मा
का प्रकाश होता है |मंत्र की सिद्धि होती है ,श्रद्धा और विश्वास का जागरण होता है
|शास्त्रों का ज्ञान स्वतः हो जाता है |समस्त तत्वों को स्वायत्त करने की सामर्थ्य
उसमे आ जाती है |शारीर भाव पूर्ण हो जाता है |शिवत्व का लाभ होता है ,निर्विकल्प
बोध होता है ,अंततः उसे मुक्ति लाभ होता है |कृष्ण के शक्तिपात से अर्जुन को किस
प्रकार आत्मानुभूति हुई इसका ज्ञान गीता में है |तब भगवान ने अर्जुन को बायाँ हाथ
फैलाकर अपने ह्रदय से लगा लिया ,दोनों ह्रदय एक हो गए ,जो कुछ एक में था वह दुसरे
में उड़ेल दिया ,द्वैत भी बना रहा परन्तु अर्जुन को भगवान ने अपने जैसा बना लिया
|यही गुरु कृपा का विशेष लाभ होता है |इसीलिए महाज्ञानी कबीर वर्षों तक गुरु के
लिए भटकते रहे और अपनी लगन और श्रद्धा से अपने गुरु को अंततः उन्हें शिष्य स्वीकार
करने पर मजबूर कर दिया ,क्योकि वह गुरु का महत्व जानते थे |स्वामी रामकृष्ण परमहंस
ने केवल स्पर्श मात्र से स्वामी विवेकानंद की कुंडलिनी जाग्रत कर दी और उन्हें
महान बना दिया |
शक्तिपात से जब शक्तियों का जागरण होता
है तो ज्ञान का प्रकाश अपने आप फैलता है ,शिष्य को सम्बन्धित योग्यता और गुरु की
इच्छा अनुसार चक्र जागरण अथवा कुंडलिनी जागरण अथवा चक्र क्रियाशीलता अथवा किसी
शक्ति का सानिध्य प्राप्त होता है जिससे उसके लिए ज्ञान और पथ प्रदर्शन के रास्ते
खुलते हैं |स्वयमेव मन में विचार उत्पन्न होते हैं और उस विचार से अपने आप ज्ञान
का स्रोत जुड़ने लगता है |किसी विषय अथवा रहस्य का कारण स्वयमेव पता चलने लगता है
|शक्तिपात से सुरक्षा और सिद्धि के दरवाजे खुल जाते है जिससे साधक निर्भय हो आगे
बढ़ता जाता है |.................................................हर हर महादेव
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