Thursday, 20 June 2019

दसनामी सम्प्रदाय ,नागा साधू और शंकराचार्य


दसनामी सम्प्रदाय ,नागा साधू और शंकराचार्य
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दशनामी संन्यासी हिन्दू शैव तपस्वियों का एक सम्प्रदाय हैजिसकी स्थापना आठवीं शताब्दी के प्रसिद्ध दार्शनिक शंकराचार्य द्वारा की गई थी। इस सम्प्रदाय के संन्यासी विशेष प्रकार के गेरुआ वस्त्र धारण करते हैं। दशनामी संन्यासी कट्टर स्वभाव के होते हैं और प्रायनिर्वसन का जीवन व्यतीत करते हैं। 'दशनामी संन्यासीशंकराचार्य द्वारा स्थापित 10 सम्प्रदायों ('दशनाम'- 10 नामसे संबंधित हैं। 10 सम्प्रदाय निम्नलिखित हैंअरण्य ,आश्रम ,भारती ,गिरी ,पर्वत ,पूरी ,सरस्वती ,सागर ,तीर्थ ,वन
प्रत्येक सम्प्रदाय शंकराचार्य द्वारा भारत के उत्तरदक्षिणपूर्व और पश्चिम भाग में स्थापित चार मठों के साथ संबंधित हैं। ये मठ हैंज्योति (जोशीमठ (हरिद्वार के निकत बद्रीनाथउत्तरांचलश्रंगेरी मठ (कर्नाटकगोवर्धन मठ (पुरीउड़ीसाशारदा मठ (द्वारकागुजरातमठों के प्रमुखों को 'महंतकहते हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि 'श्रंगेरी मठके प्रमुख को 'जगद्गुरुकहा जाता है। सिद्धांतों के बारे में महंतों से परामर्श किया जाता है और आम हिन्दू तथा उनके अनुयायी तपस्वी उन्हें सर्वाधिक सम्मान देते हैं। 'दशनामी संन्यासीविशेष प्रकार के गेरुआ वस्त्र पहनते हैं और यदि प्राप्त कर सकें तो अपने कंधे पर बाघ या शेर की खाल का आसन रखते हैं। वह माथे तथा शरीर के अन्य भागों पर श्मशान की राख से तीन धारियों का तिलक लगाते हैं और गले में 108 रुद्राक्षों की माला पहनते हैं। वे अपनी दाढ़ी बढ़ने देते हैं और बाल खुले रखते हैंजो कंधों तक आते हैं या उन्हें सिर के ऊपर बांधते हैं।
कुछ कट्टर दशनामी निर्वसन का जीवन व्यतीत करते हैं। उन्हें नागा (नग्नसंन्यासी कहा जाता हैं और वह तपस्वियों में सबसे अधिक उग्र होते हैं। पुराने समय में नागा संन्यासी अन्य मतोंहिन्दुओं और मुसलमानों  दोनों के साथ युद्ध में उलझ जाया करते थे। एकदण्डी शंकराचार्य द्वारा स्थापित दस्नामी सन्यासियों में से एक हैं। 'दसनामी सन्न्यासियोंमें से प्रथम तीन (तीर्थआश्रम एवं सरस्वतीविशेष सम्मानीय माने जाते हैं। दसनामी सन्न्यासियों के प्रथम तीन में केवल ब्राह्मण ही सम्मिलित हो सकते हैं। शेष सात वर्गों में अन्य वर्णों के लोग भी सकते हैंकिन्तु दंड धारण करने के अधिकारी ब्राह्मण ही हैं। इन सन्न्यासियों का दीक्षाव्रत इतना कठिन होता है कि बहुत से लोग दंड के बिना ही रहना पसन्द करते हैं। इन्हीं सन्न्यासियों को 'एकदण्डीकहा जाता है। एकदण्डी सन्न्यासियों के विरुद्ध श्रीवैष्णव संन्यासीजिनमें केवल ब्राह्मण ही सम्मिलित होते हैं, 'त्रिदण्डधारण करते हैं। दोनों सम्प्रदायों में अन्तर स्पष्ट करने के लिए इन्हें 'एकदण्डीतथा 'त्रिदण्डीनामों से पुकारा जाता है।........................................................हर हर महादेव 

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