Thursday, 20 June 2019

नटराजस्तोत्रम्

::::::::::-नटराजस्तोत्रम्::::::::::  
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सदञ्चित मुदञ्चित निकुञ्चित पदं झलझलञ्चलित मञ्जु कटकम्
पतञ्जलि दृगञ्जन मनञ्जन मचञ्चलपदं जनन भञ्जन करम् ।
कदम्बरुचिमम्बरवसं परमम्बुद कदम्ब कविडम्बक कगलम्
चिदम्बुधि मणिं बुध हृदम्बुज रविं पर चिदम्बर नटं हृदि भज ॥ १॥
हरं त्रिपुर भञ्जनं अनन्तकृतकङ्कणं अखण्डदय मन्तरहितं
विरिञ्चिसुरसंहतिपुरन्धर विचिन्तितपदं तरुणचन्द्रमकुटम् ।
परं पद विखण्डितयमं भसित मण्डिततनुं मदनवञ्चन परं
चिरन्तनममुं प्रणवसञ्चितनिधिं पर चिदम्बर नटं हृदि भज ॥ २॥
अवन्तमखिलं जगदभङ्ग गुणतुङ्गममतं धृतविधुं सुरसरित्तरङ्ग 
निकुरम्ब धृति लम्पट जटं शमनदम्भसुहरं भवहरम् ।
शिवं दशदिगन्तर विजृम्भितकरं करलसन्मृगशिशुं पशुपतिं
हरं शशिधनञ्जयपतङ्गनयनं परचिदम्बर नटं हृदि भज ॥ ३॥
अनन्तनवरत्नविलसत्कटककिङ्किणिझलं झलझलं झलरवं
मुकुन्दविधि हस्तगतमद्दल लयध्वनिधिमिद्धिमित नर्तन पदम् ।
शकुन्तरथ बर्हिरथ नन्दिमुख शृङ्गिरिटिभृङ्गिगणसङ्घनिकटम्
सनन्दसनक प्रमुख वन्दित पदं परचिदम्बर नटं हृदि भज ॥ ४॥
अनन्तमहसं त्रिदशवन्द्य चरणं मुनि हृदन्तर वसन्तममलम्
कबन्ध वियदिन्द्ववनि गन्धवह वह्निमख बन्धुरविमञ्जु वपुषम् ।
अनन्तविभवं त्रिजगन्तर मणिं त्रिनयनं त्रिपुर खण्डन परम्
सनन्द मुनि वन्दित पदं सकरुणं पर चिदम्बर नटं हृदि भज ॥ ५॥
अचिन्त्यमलिवृन्द रुचि बन्धुरगलं कुरित कुन्द निकुरम्ब धवलम्
मुकुन्द सुर वृन्द बल हन्तृ कृत वन्दन लसन्तमहिकुण्डल धरम् ।
अकम्पमनुकम्पित रतिं सुजन मङ्गलनिधिं गजहरं पशुपतिम्
धनञ्जय नुतं प्रणत रञ्जनपरं पर चिदम्बर नटं हृदि भज ॥ ६॥
परं सुरवरं पुरहरं पशुपतिं जनित दन्तिमुख षण्मुखममुं
मृडं कनक पिङ्गल जटं सनकपङ्कज रविं सुमनसं हिमरुचिम् ।
असङ्घमनसं जलधि जन्मकरलं कवलयन्त मतुलं गुणनिधिम्
सनन्द वरदं शमितमिन्दु वदनं पर चिदम्बर नटं हृदि भज ॥ ७॥
अजं क्षितिरथं भुजगपुङ्गवगुणं कनक शृङ्गि धनुषं करलसत्
कुरङ्ग पृथु टङ्क परशुं रुचिर कुङ्कुम रुचिं डमरुकं च दधतमं ।
मुकुन्द विशिखं नमदवन्ध्य फलदं निगम वृन्द तुरगं निरुपमं
सचण्डिकममुं झटिति संहृतपुरं परचिदम्बर नटं हृदि भज ॥ ८॥
अनङ्गपरिपन्थिनमजं क्षिति धुरन्धरमलं करुणयन्तमखिलं
ज्वलन्तमनलं दधतमन्तकरिपुं सततमिन्द्रमुखवन्दितपदम् ।
उदञ्चदरविन्दकुल बन्धुशत बिम्बरुचि संहति सुगन्धि वपुषं
पतञ्जलिनुतं प्रणवपञ्चर शुकम्पर चिदम्बर नटं हृदि भज ॥ ९॥
इति स्तवममुं भुजगपुङ्गव कृतं प्रतिदिनं पठति यः कृतमुखः
सदः प्रभुपद द्वितयदर्शनपदं सुललितं चरण शृङ्ग रहितम् ।
सरःप्रभव सम्भव हरित्पति हरिप्रमुख दिव्यनुत शङ्करपदं
स गच्छति परं न तु जनुर्जलनिधिं परमदुःखजनकं दुरितदम् ॥ १०॥
॥ इति श्रीपतञ्जलिमुनिप्रणीतं चरणशृङ्गरचित नटराजस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥……………………………………………………….हर-हर महादेव 

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