Friday, 14 June 2019

ज्योतिर्लिंग श्री विश्वेश्वर (काशी विश्वनाथ) जी [Kashi Vishwanath]


ज्योतिर्लिंग जय श्री विश्वेश्वर (काशी विश्वनाथजी
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श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी [काशी ] नगर में अवस्थित है। कहते हैंकाशी तीनों लोकों में न्यारी नगरी हैजो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है। इसे आनन्दवनआनन्दकाननअविमुक्त क्षेत्र तथा काशी आदि अनेक नामों से स्मरण किया गया है। काशी साक्षात सर्वतीर्थमयीसर्वसन्तापहरिणी तथा मुक्तिदायिनी नगरी है। निराकर महेश्वर ही यहाँ भोलानाथ श्री विश्वनाथ के रूप में साक्षात अवस्थित हैं। इस काशी क्षेत्र में स्थित
  1. श्री दशाश्वमेध
  2. श्री लोलार्क
  3. श्री बिन्दुमाधव
  4. श्री केशव और
  5. श्री मणिकर्णिक
ये पाँच प्रमुख तीर्थ हैंजिनके कारण इसे ‘अविमुक्त क्षेत्र’ कहा जाता है। काशी के उत्तर में ओंकारखण्डदक्षिण में केदारखण्ड और मध्य में विश्वेश्वरखण्ड में ही बाबा विश्वनाथ का प्रसिद्ध है। ऐसा सुना जाता है कि मन्दिर की पुनस्थापना आगि जगतगुरु शंकराचार्य जी ने अपने हाथों से की थी। श्री विश्वनाथ मन्दिर को मुग़ल बादशाह औरंगजेव ने नष्ट करके उस स्थान पर मस्जिद बनवा दी थीजो आज भी विद्यमान है। इस मस्जिद के परिसर को ही 'ज्ञानवाणीकहा जाता है। प्राचीन शिवलिंग आज भी 'ज्ञानवापीकहा जाता है। आगे चलकर भगवान शिव की परम भक्त महारानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी से कुछ हटकर श्री विश्वनाथ के एक सुन्दर मन्दिर का निर्माण कराया था। महाराजा रणजीत सिंह जी ने इस मन्दिर पर स्वर्ण कलश (सोने का शिखरचढ़वाया था। काशी में अनेक विशिष्ट तीर्थ हैंजिनके विषय में लिखा है
विश्वेशं माधवं ढुण्ढिं दण्डपाणिं भैरवम्।
वन्दे काशीं गुहां गंगा भवानीं मणिकर्णिकाम्।।
अर्थात ‘विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग बिन्दुमाधवढुण्ढिराज गणेशदण्डपाणि कालभैरवगुहा गंगा (उत्तरवाहिनी गंगा), माता अन्नपूर्णा तथा मणिकर्णिक आदि मुख्य तीर्थ हैं।काशी क्षेत्र में मरने वाले किसी भी प्राणी को निश्चित ही मुक्ति प्राप्त होती है। जब कोई मर रहा होता हैउस समय भगवान श्री विश्वनाथ उसके कानों में तारक मन्त्र का उपदेश करते हैंजिससे वह आवगमन के चक्कर से छूट जाता हैअर्थात इस संसार से मुक्त हो जाता है।
 इस नगरी का प्रलयकाल में भी लोप नहीं होता l उस समय भगवान् शिव अपनी वास भूमि इस पवित्र नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं l पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग के सम्बन्ध में कथा है ---भगवान् शिव पार्वतीजी के साथ विवाह कर कैलाश पर्वत पर रह रहे थे लेकिन वहां पिता के घर में विवाहित जीवन बिताना पार्वती जी को अच्छा  लगा l एक दिन उन्होंने भगवान् शिव से कहा कि आप मुझे अपने घर ले चलिए यहाँ अच्छा नहीं लगता l सारी लड़कियां शादी के बाद पति के घर जाती हैं l मुझे पिता के घर रहना पड़ रहा है l भगवान् शिव ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली और पार्वती जी को साथ लेकर पवित्र नगरी कशी में  गये l यहाँ आकर विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गये l इसे काशी विश्वनाथ के नाम से भी जाना जाता है l
जो मनुष्य श्री काशी विश्वनाथ की प्रसन्नता के लिए इस क्षेत्र में दान देता हैवह धर्मात्मा भी अपने जीवन को धन्य बना लेता है। पंचक्रोशी (पाँच कोस कीअविमुक्त क्षेत्र विश्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध एक ज्योतिर्लिंग का स्वरूप ही जानना और मानना चाहिए। भगवान विश्वनाथ काशी में स्थित होते हुए भी सर्वव्यापी होने के कारण सूर्य की तरह सर्वत्र उपस्थित रहते हैं। जो कोई उस क्षेत्र की महिमा से अनजान है अथवा उसमें श्रद्धा नहीं हैफिर भी वह जब काशीक्षेत्र में प्रवेश करता है या उसकी मृत्यु हो जाती हैतो वह निष्पाप होकर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। यदि कोई मनुष्य काशी में रहते हुए पापकर्म करता हैतो मरने के बाद वह पहले 'रुद्र पिशाचबनता है, 'उसके बाद उसकी मुक्ति होती है’
श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग किसी मनुष्य की पूजातपस्या आदि से प्रकट नहीं हुआबल्कि यहाँ निराकार परब्रह्म परमेश्वर महेश्वर ही शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में साक्षात प्रकट हुए। उन्होंने दूसरी बार महाविष्णु की तपस्या के फलस्वरूप प्रकृति और पुरुष (शक्ति और शिवके रूप में उपस्थित होकर आदेश दिया। महाविष्णु के आग्रह पर ही भगवान शिव ने काशी क्षेत्र को अविमुक्त कर दिया। उनकी लीलाओं पर ध्यान देने से काशी के साथ उनकी अतिशय प्रियशीलता स्पष्ट मालूम होती है। इस प्रकार द्वादश ज्योतिर्लिंग में श्री विश्वेश्वर भगवान विश्वनाथ का शिवलिंग सर्वाधिक प्रभावशाली तथा अद्भुत शक्तिसम्पन्न लगता है। माँ अन्नापूर्णा (पार्वतीके साथ भगवान शिव अपने त्रिशूल पर काशी को धारण करते हैं और कल्प के प्रारम्भ में अर्थात सृष्टि रचना के प्रारम्भ में उसे त्रिशूल से पुनभूतल पर उतार देते हैं।
'परमेश्वर शिव ने माँ पार्वती के पूछने पर स्वयं अपने मुँह से श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा कही थी। उन्होंने कहा कि वाराणसी पुरी हमेशा के लिए गुह्यतम अर्थात अत्यन्त रहस्यात्मक है तथा सभी प्रकार के जीवों की मुक्ति का कारण है। इस पवित्र क्षेत्र में सिद्धगण शिव-आराधना का व्रत लेकर अनेक स्वरूप बनाकर संयमपूर्वक मेरे लोक की प्राप्ति हेतु महायोग का नाम 'पाशुपत योगहै। पाशुपतयोग भुक्ति और मुक्ति दोनों प्रकार का फल प्रदान करता है। भगवान शिव ने कहा कि मुझे काशी पुरी में रहना सबसे अच्छा लगता हैइसलिए मैं सब कुछ छोड़कर इसी पुरी में निवास करता हूँ। जो कोई भी मेरा भक्त है और जो कोई मेरे शिवतत्त्व का ज्ञानी हैऐसे दोनों प्रकार के लोग मोक्षपद के भागी बनते हैंअर्थात उन्हें मुक्ति अवश्य प्राप्त होती है। इस प्रकार के लोगों को तो तीर्थ की अपेक्षा रहती है और विहित अविहित कर्मों का प्रतिबन्ध। इसका तात्पर्य यह है कि उक्त दोनों प्रकार के लोगों को जीवन्मुक्त मानना चाहिए। वे जहाँ भी मरते हैंउन्हें तत्काल मुक्ति प्राप्त होती है। भगवान शिव ने माँ पार्वती को बताया कि बालकवृद्ध या जवान होवह किसी भी वर्णजाति या आश्रम का होयदि अविमुक्त क्षेत्र में मृत्यु होती हैतो उसे अवश्य ही मुक्ति मिल जाती है। स्त्री यदि अपवित्र हो या पवित्र होवह कुमारी होविवाहिता होविधवा होबन्ध्यारजस्वलाप्रसूता हो अथवा उसमें संस्कारहीनता होचाहे वह किसी भी स्थिति में होयदि उसकी मृत्यु काशी क्षेत्र में होती हैतो वह अवश्य ही मोक्ष की भागीदार बनती है।
काशी में स्वयं परमेश्वर ने ही अविमुक्त लिंग की स्थापना की थीइसलिए उन्होंने अपने अंशभूत हर (शिवको यह निर्देश दिया कि तुम्हें उस क्षेत्र का कभी भी त्याग नहीं करना चाहिए। यह पंचक्रोशी लोक का कल्याण करने वालीकर्मबन्धनों को नष्ट करने वालीज्ञान प्रकाश करने वाली तथा प्राणियों के लिए मोक्षदायिनी है। यद्यपि ऐसा बताया गया है कि ब्रह्मा जी का एक दिन पूरा हो जाने पर इस जगत् का प्रलय हो जाता हैफिर भी अविमुक्त काशी क्षेत्र का नाश नहीं होता हैक्योंकि उसे भगवान परमेश्वर शिव अपने त्रिशूल पर उठा लेते हैं। ब्रह्मा जी जब नई सृष्टि प्रारम्भ करते हैंउस समय भगवान शिव काशी को पुनभूतल पर स्थापित कर देते हैं। कर्मों का कर्षण (नष्टकरने के कारण ही उस क्षेत्र का नाम काशी’ हैजहाँ अविमुक्तेश्वरलिंग हमेशा विराजमान रहता है। संसार में जिसको कहीं गति नहीं मिलती हैउसे वाराणसी में गति मिलती है। महापुण्यमयी पंचक्रोशी करोड़ों हत्याओं के दुष्फल का विनाश करने वाली है। भगवान शंकर की यह प्रिय नगरी समानरूप से भोग ओर मोक्ष को प्रदान करती है। कालाग्नि रुद्र के नाम से विख्यात कैलासपति शिव अन्दर से सतोगुणी तथा बाहर से तमोगुणी कहलाते हैं। यद्यपि वे निर्गुण हैंकिन्तु जब सगुण रूप में प्रकट होते हैंतो शिव’ कहलाते हैं।............[ अगला अंक - आठवा ज्योतिर्लिंग - श्री त्रयम्बकेश्वर जी ]......................................................हर-हर महादेव 

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