ज्योतिर्लिंग जय श्री घ्रिश्नेश्वर / घुश्मेश्वर जी
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घुश्मेश्वर को लोग घुसृणेश्वर और घृष्णेश्वर भी कहते हैं। यहाँ पर भी धारेश्वर शिवलिंग स्थित है। यहीं पर श्री एकनाथ जी के गुरु श्री जनार्दन महाराज जी की समाधि भी है।द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है l यह महाराष्ट्र प्रदेश के दौलताबाद से १२ किलोमीटर दूर वेरूल गाँव के पास स्थित है और मतान्तर के अनुसार राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में शिवाड की देवगिरी की पहाड़ियों पर स्थित है |
यहाँ से आगे कुछ दूर जाकर इतिहास प्रसिद्ध एलोरा की दर्शनीय गुफाएँ हैं। एलोरा की इन गुफाओं में कैलास नाम की गुफा सर्वश्रेष्ठ और अति सुन्दर है। पहाड़ को काट-काटकर इस गुफा का निर्माण किया गया है। कैलास गुफा की कलाकारी दर्शकों के मन को मुग्ध कर देती है। यहाँ मात्र हिन्दू धर्मावलम्बी ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लोग एलोरा की कलाओं से आकर्षित होते हैं। एलोरा की रमणीयता को देखकर उससे प्रभावित होगर बौद्ध ,जैन तथा मुसलमान आदि धर्मावलाम्बियों ने भी उसकी सुरम्य पहाड़ियों पर अपने-अपने स्थान बनाये हैं।
कुछ ऐसे भी लोग है, जो एलोरा कैलास मन्दिर को घुश्मेश्वर का प्राचीन स्थान मानते हैं। यहाँ के अति प्राचीन स्थानों में श्री घृष्णेश्वर शिव और देवगिरी दुर्ग के मध्य में स्थित सहस्रलिंग, पातालेश्चर व सूर्येश्वर हैं। इसी प्रकार सूर्य कुण्ड तथा शिव कुण्ड नामक सरोवर भी अति प्राचीन हैं। इस पहाड़ी की प्राकृतिक बनावट भी कुछ ऐसी ही है, जो सबके मन को अपनी ओर खींच लेती है।
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में पुराणों में कथा है कि सुधर्मा नामक एक तपोनिष्ठ ब्राह्मण था जिसकी पत्नी का नाम सुदेहा था, उनके कोई सन्तान न थी l संतान की इच्छा के कारण सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह सुधर्मा के साथ करा दिया उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुयी l सब प्रसन्न थे परन्तु सुदेहा के मन में ये कुविचार पनपने लगे कि यहाँ मेरा कुछ नहीं है सब कुछ घुश्मा का है l उसने एक दिन नवजात पुत्र को मार कर उसी तालाब में फेंक दिया जिसमे घुश्मा पूजनोपरांत पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन किया करती थी l इस बात का पता चलते ही कोहराम मच गया परन्तु घुश्मा रोज़ की भांति पूजन कर शिवलिंग को उसी तालाब में विसर्जित करने गयी तब उसने देखा कि उसका पुत्र उसी तालाब से निकल कर चला आ रहा है l उसी समय भगवान् शिव ने प्रकट होकर घुश्मा से वर मांगने को कहा और वे सुदेहा को मारने पर उद्धत हो गए l तब घुश्मा ने भगवान् शिव से हाथ जोड़कर कहा कि यदि आप प्रभु प्रसन्न है तो हमारी उस अभागिन बहन को क्षमा कर दें और लोक कल्याण के लिए इस स्थान पर सर्वदा के लिए निवास करे l सती शिवभक्ता घुश्मा के अराध्य होने के कारण वे यहाँ घुश्मेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए l.........................................................................................हर-हर महादेव
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घुश्मेश्वर को लोग घुसृणेश्वर और घृष्णेश्वर भी कहते हैं। यहाँ पर भी धारेश्वर शिवलिंग स्थित है। यहीं पर श्री एकनाथ जी के गुरु श्री जनार्दन महाराज जी की समाधि भी है।द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है l यह महाराष्ट्र प्रदेश के दौलताबाद से १२ किलोमीटर दूर वेरूल गाँव के पास स्थित है और मतान्तर के अनुसार राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में शिवाड की देवगिरी की पहाड़ियों पर स्थित है |
यहाँ से आगे कुछ दूर जाकर इतिहास प्रसिद्ध एलोरा की दर्शनीय गुफाएँ हैं। एलोरा की इन गुफाओं में कैलास नाम की गुफा सर्वश्रेष्ठ और अति सुन्दर है। पहाड़ को काट-काटकर इस गुफा का निर्माण किया गया है। कैलास गुफा की कलाकारी दर्शकों के मन को मुग्ध कर देती है। यहाँ मात्र हिन्दू धर्मावलम्बी ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लोग एलोरा की कलाओं से आकर्षित होते हैं। एलोरा की रमणीयता को देखकर उससे प्रभावित होगर बौद्ध ,जैन तथा मुसलमान आदि धर्मावलाम्बियों ने भी उसकी सुरम्य पहाड़ियों पर अपने-अपने स्थान बनाये हैं।
कुछ ऐसे भी लोग है, जो एलोरा कैलास मन्दिर को घुश्मेश्वर का प्राचीन स्थान मानते हैं। यहाँ के अति प्राचीन स्थानों में श्री घृष्णेश्वर शिव और देवगिरी दुर्ग के मध्य में स्थित सहस्रलिंग, पातालेश्चर व सूर्येश्वर हैं। इसी प्रकार सूर्य कुण्ड तथा शिव कुण्ड नामक सरोवर भी अति प्राचीन हैं। इस पहाड़ी की प्राकृतिक बनावट भी कुछ ऐसी ही है, जो सबके मन को अपनी ओर खींच लेती है।
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में पुराणों में कथा है कि सुधर्मा नामक एक तपोनिष्ठ ब्राह्मण था जिसकी पत्नी का नाम सुदेहा था, उनके कोई सन्तान न थी l संतान की इच्छा के कारण सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह सुधर्मा के साथ करा दिया उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुयी l सब प्रसन्न थे परन्तु सुदेहा के मन में ये कुविचार पनपने लगे कि यहाँ मेरा कुछ नहीं है सब कुछ घुश्मा का है l उसने एक दिन नवजात पुत्र को मार कर उसी तालाब में फेंक दिया जिसमे घुश्मा पूजनोपरांत पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन किया करती थी l इस बात का पता चलते ही कोहराम मच गया परन्तु घुश्मा रोज़ की भांति पूजन कर शिवलिंग को उसी तालाब में विसर्जित करने गयी तब उसने देखा कि उसका पुत्र उसी तालाब से निकल कर चला आ रहा है l उसी समय भगवान् शिव ने प्रकट होकर घुश्मा से वर मांगने को कहा और वे सुदेहा को मारने पर उद्धत हो गए l तब घुश्मा ने भगवान् शिव से हाथ जोड़कर कहा कि यदि आप प्रभु प्रसन्न है तो हमारी उस अभागिन बहन को क्षमा कर दें और लोक कल्याण के लिए इस स्थान पर सर्वदा के लिए निवास करे l सती शिवभक्ता घुश्मा के अराध्य होने के कारण वे यहाँ घुश्मेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए l.........................................................................................हर-हर महादेव
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