नागा साधू बनने की प्रक्रिया.
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नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती है। नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूँ ही रहते हैं। कोई भी अखाड़ा अच्छी तरह जाँच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को ही प्रवेश देता है। पहले उसे लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है। अन्तिम प्रक्रिया महाकुम्भ के दौरान होती है जिसमें उसका स्वयं का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार आदि शामिल होता है।
[2] ऐसे होते हैं 17 श्रृंगार(नागा साधू) बातचीत के दौरान नागा संत ने कहा कि शाही स्नान से पहले नागा साधु पूरी तरह सज-धज कर तैयार होते हैं और फिर अपने ईष्ट की प्रार्थना करते हैं। नागाओं के सत्रह श्रृंगार के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि लंगोट, भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या फिर चांदी का कड़ा, अंगूठी, पंचकेश, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप, कुंडल, हाथों में चिमटा, डमरू या कमंडल, गुथी हुई जटाएं और तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, बदन में विभूति का लेप और बाहों पर रूद्राक्ष की माला 17 श्रृंगार में शामिल होते हैं।
नागा साधू सन्यासियों की इस परंपरा मे शामील होना बड़ा कठिन होता है और अखाड़े किसी को आसानी से नागा रूप मे स्वीकार नहीं करते। वर्षो बकायदे परीक्षा ली जाती है जिसमे तप , ब्रहमचर्य , वैराग्य , ध्यान ,सन्यास और धर्म का अनुसासन तथा निस्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं। फिर ये अपना श्रध्या , मुंडन और पिंडदान करते हैं तथा गुरु मंत्र लेकर सन्यास धर्म मे दीक्षित होते है इसके बाद इनका जीवन अखाड़ों , संत परम्पराओं और समाज के लिए समर्पित हो जाता है,
अपना श्राद्ध कर देने का मतलब होता है सांसरिक जीवन से पूरी तरह विरक्त हो जाना , इंद्रियों मे नियंत्रण करना और हर प्रकार की कामना का अंत कर देना होता है कहते हैं की नागा जीवन एक इतर जीवन का साक्षात ब्यौरा है और निस्सारता , नश्वरता को समझ लेने की एक प्रकट झांकी है । नागा साधुओं के बारे मे ये भी कहा जाता है की वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं , कन्दराओं मे कठोर ताप करते हैं । प्राच्य विद्या सोसाइटी के अनुसार “नागा साधुओं के अनेक विशिष्ट संस्कारों मे ये भी शामिल है की इनकी कामेन्द्रियन भंग कर दी जाती हैं”। इस प्रकार से शारीरिक रूप से तो सभी नागा साधू विरक्त हो जाते हैं लेकिन उनकी मानसिक अवस्था उनके अपने तप बल निर्भर करती है ।
सनातन धर्म योग, ध्यान और समाधि के कारण हमेशा विदेशियों को आकर्षित करता रहा है लेकिन अब बडी तेजी से विदेशी खासकर यूरोप की महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ता जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर चल रहे महाकुंभ मेले में विदेशी महिला नागा साधू आकर्षण के केन्द्र में हैं। यह जानते हुए भी कि नागा बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से गुजरना होता है विदेशी महिलाओं ने इसे अपनाया है।
आमतौर पर अब तक नेपाल से साधू बनने वाली महिलाए ही नागा बनती थी। इसका कारण यह कि नेपाल में विधवाओं के फिर से विवाह को अच्छा नहीं माना जाता। ऐसा करने वाली महिलाओं को वहां का समाज भी अच्छी नजरों से भी नहीं देखता लिहाजा विधवा होने वाली नेपाली महिलाएं पहले तो साधू बनती थीं और बाद में नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया से जुड़ जाती थी।
जूना के अखाड़े के संतों द्वारा तीनों योगों- ध्यान योग , क्रिया योग , और मंत्र योग का पालन किया जाता है यही कारण है की नागा साधू हिमालय के ऊंचे शिखरों पर शून्य से काफी नीचे के तापमान पर भी जीवित रह लेते हैं, इनके जीवन का मूल मंत्र है आत्मनियंत्रण, चाहे वह भोजन मे हो या फिर विचारों मे |............................................................................हर-हर महादेव
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नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती है। नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूँ ही रहते हैं। कोई भी अखाड़ा अच्छी तरह जाँच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को ही प्रवेश देता है। पहले उसे लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है। अन्तिम प्रक्रिया महाकुम्भ के दौरान होती है जिसमें उसका स्वयं का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार आदि शामिल होता है।
[2] ऐसे होते हैं 17 श्रृंगार(नागा साधू) बातचीत के दौरान नागा संत ने कहा कि शाही स्नान से पहले नागा साधु पूरी तरह सज-धज कर तैयार होते हैं और फिर अपने ईष्ट की प्रार्थना करते हैं। नागाओं के सत्रह श्रृंगार के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि लंगोट, भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या फिर चांदी का कड़ा, अंगूठी, पंचकेश, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप, कुंडल, हाथों में चिमटा, डमरू या कमंडल, गुथी हुई जटाएं और तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, बदन में विभूति का लेप और बाहों पर रूद्राक्ष की माला 17 श्रृंगार में शामिल होते हैं।
नागा साधू सन्यासियों की इस परंपरा मे शामील होना बड़ा कठिन होता है और अखाड़े किसी को आसानी से नागा रूप मे स्वीकार नहीं करते। वर्षो बकायदे परीक्षा ली जाती है जिसमे तप , ब्रहमचर्य , वैराग्य , ध्यान ,सन्यास और धर्म का अनुसासन तथा निस्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं। फिर ये अपना श्रध्या , मुंडन और पिंडदान करते हैं तथा गुरु मंत्र लेकर सन्यास धर्म मे दीक्षित होते है इसके बाद इनका जीवन अखाड़ों , संत परम्पराओं और समाज के लिए समर्पित हो जाता है,
अपना श्राद्ध कर देने का मतलब होता है सांसरिक जीवन से पूरी तरह विरक्त हो जाना , इंद्रियों मे नियंत्रण करना और हर प्रकार की कामना का अंत कर देना होता है कहते हैं की नागा जीवन एक इतर जीवन का साक्षात ब्यौरा है और निस्सारता , नश्वरता को समझ लेने की एक प्रकट झांकी है । नागा साधुओं के बारे मे ये भी कहा जाता है की वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं , कन्दराओं मे कठोर ताप करते हैं । प्राच्य विद्या सोसाइटी के अनुसार “नागा साधुओं के अनेक विशिष्ट संस्कारों मे ये भी शामिल है की इनकी कामेन्द्रियन भंग कर दी जाती हैं”। इस प्रकार से शारीरिक रूप से तो सभी नागा साधू विरक्त हो जाते हैं लेकिन उनकी मानसिक अवस्था उनके अपने तप बल निर्भर करती है ।
सनातन धर्म योग, ध्यान और समाधि के कारण हमेशा विदेशियों को आकर्षित करता रहा है लेकिन अब बडी तेजी से विदेशी खासकर यूरोप की महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ता जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर चल रहे महाकुंभ मेले में विदेशी महिला नागा साधू आकर्षण के केन्द्र में हैं। यह जानते हुए भी कि नागा बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से गुजरना होता है विदेशी महिलाओं ने इसे अपनाया है।
आमतौर पर अब तक नेपाल से साधू बनने वाली महिलाए ही नागा बनती थी। इसका कारण यह कि नेपाल में विधवाओं के फिर से विवाह को अच्छा नहीं माना जाता। ऐसा करने वाली महिलाओं को वहां का समाज भी अच्छी नजरों से भी नहीं देखता लिहाजा विधवा होने वाली नेपाली महिलाएं पहले तो साधू बनती थीं और बाद में नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया से जुड़ जाती थी।
जूना के अखाड़े के संतों द्वारा तीनों योगों- ध्यान योग , क्रिया योग , और मंत्र योग का पालन किया जाता है यही कारण है की नागा साधू हिमालय के ऊंचे शिखरों पर शून्य से काफी नीचे के तापमान पर भी जीवित रह लेते हैं, इनके जीवन का मूल मंत्र है आत्मनियंत्रण, चाहे वह भोजन मे हो या फिर विचारों मे |............................................................................हर-हर महादेव
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