Thursday, 20 June 2019

सम्प्रदायों की उत्पत्ति

सम्प्रदायों की उत्पत्ति
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प्राचीनकाल में देव, नाग, किन्नर, असुर, गंधर्व, भल्ल, वराह, दानव, राक्षस, यक्ष, किरात, वानर, कूर्म, कमठ, कोल, यातुधान, पिशाच, बेताल, चारण ,मानव आदि जातियां हुआ करती थीं। देव और असुरों के झगड़े के चलते धरती के अधिकतर मानव समूह दो भागों में बंट गए। पहले बृहस्पति और शुक्राचार्य की लड़ाई चली, फिर गुरु वशिष्ठ और विश्‍वामित्र की लड़ाई चली। इन लड़ाइयों के चलते समाज दो भागों में बंटता गया।
हजारों वर्षों तक इनके झगड़े के चलते ही पहले सुर और असुर नाम की दो धाराओं का धर्म प्रकट हुआ, यही आगे चलकर यही वैष्णव और शैव में बदल गए। लेकिन इस बीच वे लोग भी थे, जो वेदों के एकेश्वरवाद को मानते थे और जो ब्रह्मा और उनके पुत्रों की ओर से थे। इसके अलावा अनीश्वरवादी भी थे। कालांतर में वैदिक और चर्वाकवादियों की धारा भी भिन्न-भिन्न नाम और रूप धारण करती रही।
शैव और वैष्णव दोनों संप्रदायों के झगड़े के चलते शाक्त धर्म की उत्पत्ति हुई जिसने दोनों ही संप्रदायों में समन्वय का काम किया। इसके पहले अत्रि पुत्र दत्तात्रेय ने तीनों धर्मों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव के धर्म) के समन्वय का कार्य भी किया। बाद में पुराणों और स्मृतियों के आधार पर जीवन-यापन करने वाले लोगों का संप्रदाय बना जिसे स्मार्त संप्रदाय कहते हैं।
इस तरह वेद और पुराणों से उत्पन्न 5 तरह के संप्रदायों माने जा सकते हैं:- 1. वैष्णव, 2. शैव, 3. शाक्त, 4 स्मार्त और 5. वैदिक संप्रदाय। वैष्णव जो विष्णु को ही परमेश्वर मानते हैं, शैव जो शिव को परमेश्वर ही मानते हैं, शाक्त जो देवी को ही परमशक्ति मानते हैं और स्मार्त जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं। अंत में वे लोग जो ब्रह्म को निराकार रूप जानकर उसे ही सर्वोपरि मानते हैं। हालांकि आजकल सामान्य जन में सब कुछ आपस में मिल चूका है फिर भी मूल सम्प्रदायों के साधक अपनी परम्परानुसार साधनारत भी हैं |इन सम्प्रदायों से अनेक दुसरे सम्प्रदाय उत्पन्न होते गए जिनमे भिन्न सम्प्रदायों की भी बातें मिलती गयी |कुछ विद्वानों के अनुसार शाक्त सम्प्रदाय ,शैव से ही उत्पन्न सम्प्रदाय है और वैदिक सम्प्रदाय से ही वैष्णव सम्प्रदाय अथवा वैदिक से ही वैष्णव उत्पन्न हुआ है |कुछ लोग दो अन्य सम्प्रदायों सौर सम्प्रदाय और गाणपत्य सम्प्रदाय को मिलाकर 5 सम्प्रदाय बताते हैं |सौर सम्प्रदाय में सूर्य मुख्या देवता के रूप में माने जाते हैं और गाणपत्य में गणेश मुख्य देवता हैं |इन दोनों सम्प्रदायों का भी आधार वेद ही है और वहां भी इनसे सम्बंधित प्रकरण मिलते हैं |
हालांकि सभी संप्रदाय का धर्मग्रंथ वेद ही है। सभी संप्रदाय वैदिक धर्म के अंतर्गत ही आते हैं लेकिन आजकल यहां भेद करना जरूर हो चला है, क्योंकि बीच-बीच में ब्रह्म समाज, आर्य समाज और इसी तरह के प्राचीनकालीन समाजों ने स्मृति ग्रंथों का विरोध किया है। जो ग्रंथ ब्रह्म (परमेश्वर) के मार्ग से भटकाए, वे सभी अवैदिक माने गए हैं।अवैदिक मार्ग को तत्काल कुछ महत्त्व भले मिला हो किन्तु समयक्रम में इनका प्रभाव कम होता गया और वैदिक परंपरा अक्षुण रही |वैदिक काल से ही दो तरह की साधना अथवा पूजा पद्धतियाँ रही |कर्मकांड प्रधान और सात्विक पद्धति और योग -तंत्र प्रधान वाम मार्गी पद्धति |यहाँ वाम का अर्थ शक्ति से था |शक्ति दोनों पद्धतियों में पूजित थी किन्तु वाम मार्ग में इसे मुख्य माना गया |शैव मार्ग में इसे अधिक महत्त्व मिला और बाद में इस सम्प्रदाय से एक अलग ही शाक्त सम्प्रदाय का उदय हो गया |यह शाक्त सम्प्रदाय वैदिक सम्प्रदाय या सात्विक सम्प्रदाय में बराबर स्थान पाती गयी और बाद में यही गृहस्थों की मूल उपासना पद्धति हो गयी ,|यद्यपि कर्मकांड में वैदिक पद्धति की ही प्रधानता रही किन्तु उसमे भी शक्ति ने अनिवार्य अंग के रूप में स्थान ले लिया |
शैव ,वैष्णव ,सौर ,गाणपत्य ,स्मार्त सभी सम्प्रदायों की उत्पत्ति वेदों से ही हुई |विष्णु को आराध्य मानने वाले वैष्णव हो गए ,रूद्र को आराध्य मानने वाले शैव हो गए ,श्रुतियों के अनुसार अकेश्वर को मानने वाले स्मार्त हो गए ,सूर्य को मानने वाले सौर और गणपति को आराध्य मानने वाले गाणपत्य हो गए |शैव में शक्ति के अधिक महत्त्व से इससे एक शाखा निकल शाक्त हो गयी |जो शिव और शक्ति की परिकल्पना से उत्पन्न हुई थी |शैव -वैष्णव में झगडे का मुख्य कारण अहम् का टकराव था जिसने बाद में सम्प्रदायों के टकराव का रूप ले लिया और दोनों पक्ष अलग देवताओं की आराधना से जुड़ते गए ,एक -दुसरे के बारे में भारंतियाँ बढती गयी |जो जिसके अनुकूल लगा वह उससे जुड़ता गया |बाद में इसमें कमियां भी उत्पन्न होती गयी |अंततः पूर्ण रूपें शाक्त सम्प्रदाय का उदय हुआ |आज भी शैव सम्प्रदाय को मानने वाले सबसे अधिक हैं पर गृहस्थ और तन्त्रमार्गी शक्ति को अधिक महत्त्व देते हैं |..........................................................हर हर महादेव

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