मानव शरीर के लिए मुद्राएं क्यों ?
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मुद्रा का अर्थ है स्थिति| साधना में इसका तात्पर्य हाथओं औरउंगलियों की विशेष स्थिति से होता है| योग व तंत्र ग्रंथों के अनुसारमुद्राओं से साधक की आंतरिक स्थिति का ज्ञान होता है| आंतरिकस्थिति की सहज अभिव्यक्ति हुआ करती हैं ये मुद्राएं| साधक जबमुद्राओं द्वारा अर्चन, उपासना या ध्यान आदि क्रियाएं करता है, तोवह बाहर से भीतर की यात्रा करने का प्रयास सिद्ध करता है| प्रयोगों से सिद्ध हो चुका है जिसप्रकार सूक्ष्म स्थितियों का प्रभाव स्थूल क्रियाओं पर पड़ता है, उसी प्रकार सायास स्थूल क्रियाओंसे सूक्ष्म भी प्रभावित होता है| मानव के शरीर में हाथों का बड़ा महत्व होता है| मानव केमस्तिष्क पर उसका भाग्य, हाथों में उसके कर्म और शरीर के भीतरी चलन की रेखाएं उसके पैरोंमें होती हैं| मानव शरीर की मुद्राएं हाथों द्वारा ही संपन्न कर पाता है| प्रत्येक मुद्रा में शरीर कोउचित समय (तीन से पांच मिनट) तक रखा जाता है| जिसका प्रभाव उस मुद्रा से भीतरी अंग कीक्रियाशैली बढ़ जाएगी| मानव शरीर की उंगलियों हथेली और कलाई में अनेक प्रकार के स्थान हैंजिनका सीधा संपर्क शरीर के भीतरी अंग से हैं| उचित अंग के लिए उचित मुद्रा का विज्ञानशास्त्रों में बताया गया है| मानव पूर्व वैदिक काल में मुद्राओं द्वारा ही संपर्क साधता था| इसकापूर्ण ज्ञान मुद्रा शास्त्र से मानव को प्राप्त होता है| ………………………………………………..हर हर महादेव
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