Sunday, 25 March 2018

मानव शरीर के लिए मुद्राएं क्यों ?


मानव शरीर के लिए मुद्राएं क्यों ?
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मुद्रा का अर्थ है स्थितिसाधना में इसका तात्पर्य हाथओं औरउंगलियों की विशेष स्थिति से होता हैयोग  तंत्र ग्रंथों के अनुसारमुद्राओं से साधक की आंतरिक स्थिति का ज्ञान होता हैआंतरिकस्थिति की सहज अभिव्यक्ति हुआ करती हैं ये मुद्राएंसाधक जबमुद्राओं द्वारा अर्चनउपासना या ध्यान आदि क्रियाएं करता हैतोवह बाहर से भीतर की यात्रा करने का प्रयास सिद्ध करता हैप्रयोगों से सिद्ध हो चुका है जिसप्रकार सूक्ष्म स्थितियों का प्रभाव स्थूल क्रियाओं पर पड़ता हैउसी प्रकार सायास स्थूल क्रियाओंसे सूक्ष्म भी प्रभावित होता हैमानव के शरीर में हाथों का बड़ा महत्व होता हैमानव केमस्तिष्क पर उसका भाग्यहाथों में उसके कर्म और शरीर के भीतरी चलन की रेखाएं उसके पैरोंमें होती हैंमानव शरीर की मुद्राएं हाथों द्वारा ही संपन्न कर पाता हैप्रत्येक मुद्रा में शरीर कोउचित समय (तीन से पांच मिनटतक रखा जाता हैजिसका प्रभाव उस मुद्रा से भीतरी अंग कीक्रियाशैली बढ़ जाएगीमानव शरीर की उंगलियों हथेली और कलाई में अनेक प्रकार के स्थान हैंजिनका सीधा संपर्क शरीर के भीतरी अंग से हैंउचित अंग के लिए उचित मुद्रा का विज्ञानशास्त्रों में बताया गया हैमानव पूर्व वैदिक काल में मुद्राओं द्वारा ही संपर्क साधता थाइसकापूर्ण ज्ञान मुद्रा शास्त्र से मानव को प्राप्त होता है| ………………………………………………..हर हर महादेव 

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