आपके भीतर ही छिपी है सारी क्षमताएं
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वर्तमान युग वैज्ञानिक युग है। वैज्ञानिक दृष्टि से यह मान लिया गया है कि मनुष्य के प्रत्येक व्यवहार के पीछे एक रसायन होता है। कहीं-कहीं न्यूरोट्रांसमीटर होता है, कहीं-कहीं केमिकल होता है और वह हमारे व्यवहार को नियंत्रित करता है। जब तक हम रासायनिक परिवर्तन की प्रक्रिया को नहीं समझ लेते हैं, यौगिक रासायनिक परिवर्तन को प्रयोग में नहीं लाते हैं तो हमारे व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। जीवन में तीन बातें बहुत जरूरी होती है। जीवन जीने के लिए पहली बात है नियंत्रण की क्षमता। दूसरी बात है- ज्ञान की क्षमता। ज्ञान में उसके सारे पक्ष आ जाते हैं- समझ, अवधारणा आदि-आदि। तीसरी बात है- आनंद की अनुभूति। ये तीन बातें अगर हमारे बौध्दिक विकास के साथ नहीं होती है तो जीवन खतरनाक बन सकता है।
नियंत्रण की क्षमता
बौध्दिक विकास बहुत आवश्यक है- इसे कभी कम मूल्य नहीं दिया जा सकता, किन्तु किसी भी वस्तु को सब कुछ मान लेने से एक भ्रांत धारणा बन जाती है। आज कुछ ऐसा ही हो गया है। चिंतन का एक विपर्याय-सा दृष्टिगत हो रहा है या एक बौध्दिक भ्रांति पैदा हो गई है। मनुष्य को अध्ययन के बाद परिवार में, समाज में, समुदाय में जीना है और उसमें बौध्दिक विकास जितना काम देता है, व्यवहार की अपेक्षा भी कम हो जाती है। हमारे जीवन से दो महत्वपूर्ण शब्द जुड़े हुए हैं- दृष्टिकोण और व्यवहार। आदमी को व्यवहार से पहचाना जाता है। मानसिक संतोष और असंतोष, मानसिक तनाव और मानसिक तनाव से मुक्ति- ये जितने बुध्दि से जुड़े हुए नहीं हैं, उतने हमारे व्यवाहर से जुड़े हुए हैं।
एक स्वस्थ, शान्त और संतुलित जीवन जीने के लिए पहली शर्त है- नियंत्रण का क्षमता को विकसित करें। अपनी नियंत्रण क्षमता को बढ़ाएं। इसे कहीं बाहर से लाने की जरूरत नहीं है। हर व्यक्ति के पास नियंत्रण की क्षमता है। आज के मस्तिष्क-वैज्ञानिक इस बात को प्रतिपादित कर चुके हैं कि क्रोध की प्रणाली हमारे मस्तिष्क में है, तो क्रोध को नियंत्रण करने की प्रणाली भी हमारे मस्तिष्क मे ही हैं। दोनों प्रणालियां साथ-साथ काम कर रही हैं। इस बात को हम स्वयं कभी-कभी अनुभव करते हैं। जब क्रोध करते हैं तो भीतर में ही कहीं आवाज आती है- नहीं! अभी ठहरो। अभी इतना गुस्सा मत करो, इतना क्रोध मत करो। यह आवाज भीतर में कहां से आती है? यह उस प्रणाली से आती है जो नियंत्रण प्रणाली है, जो साथ-साथ नियंत्रण करती चली जाती है। हमारी जितनी वृत्तियां हैं, जितने आवेग हैं, उनके साथ उन सबकी नियंत्रण की प्रणालियां भी काम कर रही हैं।
मस्तिष्क के कुछ विशिष्ट भाग हमारे व्यवहार के नियामक हैं। उन्हें सक्रिय किया जाए तो हमारी नियंत्रण क्षमता बढ़ सकती है। ललाट के मध्य का भाग, जिसे प्रेक्षाध्यान में ज्योति केन्द्र कहा जाता है, हमारे संवेग क्षेत्र का महत्वपूर्ण भाग है। मनोविज्ञान की भाषा में यह कषाय-जागरण का क्षेत्र है। लिंबिक सिस्टम और हाईपोथेलेमस का यह क्षेत्र, जहां हमारी सारी भाव-धाराएं पैदा होती हैं और बढ़ती हैं, अगर इस क्षेत्र पर हमारा नियंत्रण होता है तो हम संवेगों की दृष्टि से, आवेगों की दृष्टि से बहुत आश्वस्त हो सकते हैं। जो व्यक्ति इन पीनियल ग्लैंड के क्षेत्र पर ध्यान करता है, उसकी नियंत्रण की क्षमता बढ़ जाती है। पीनियल ग्लैंड बहुत सारी वृत्तियों पर नियंत्रण करता है।
आयुर्विज्ञान में पिच्यूटरी ग्लैंड को मास्टर ग्लैंड माना गया है। विज्ञान के क्षेत्र में पीनियल ग्लैंड पर अभी काम हो रहा है। हमारा यह स्पष्ट अनुभव है कि पीनियल, पिच्यूटरी की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली है। भारतीय योगविद्या में इस स्थान को बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है। पिच्यूटरी की अपेक्षा भी पीनियल को अधिक महत्व दिया गया है। जितना नियंत्रण और जितनी शक्ति पीनियल के साथ है उतनी पिच्यूटरी के साथ नहीं है। अगर यह स्थान नियंत्रित होता है,तो वृत्तियों पर सहज नियंत्रण हो जाता है।
दस-बारह वर्ष के बच्चे में नियंत्रण की क्षमता ज्यादा होती है और सत्तर वर्ष के बूढ़े में नियंत्रण की शक्ति कम हो जाती है। बूढ़ा जितना चिड़चिड़ा होता है, बच्चा उतना चिड़चिड़ा नहीं होता। नाड़ी-तंत्र और ग्रंथि-तंत्र कमजोर होता है तो गुस्सा ज्यादा आने लगता है, व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है। वह नियंत्रण कम कर पाता है। इसका कारण बतलाया गया- दस बारह वर्षों तक पीनियल ग्लैंड बहुत सक्रिय रहती है और वह सारे ‘हारमोन्स’ के स्रवण पर नियंत्रण भी रखती है। इसके बाद वह निष्क्रिय होना शुरू हो जाती है। उसकी निष्क्रियता कुछ समस्याएं पैदा करती हैं। यदि हम नियंत्रण की क्षमता को बढ़ा सकें तो हमारे जीवन का एक पक्ष बहुत अच्छा बन जाता है।
बौध्दिक विकास
जीवन का दूसरा पक्ष है ज्ञान। ज्ञान केवल बौध्दिक विकास पर ही आधारित नहीं है। हमारे मस्तिष्क में दो भाग हैं-दायां पटल और बांया पटल। बायां पटल, जिसे उपनिषद् मे अपराविद्या कहा गया- भाषा, गणित, तर्क आदि के लिए जिम्मेवार है और मस्तिष्क का दूसरा हिस्सा जिसे परविद्या कहा गया- अंतर्दृष्टि, चरित्र आदि के लिए जिम्मेवार है। आज के शिक्षा संस्थानों में बायां भाग तो बहुत सक्रिय हो जाता है, किन्तु दायां भाग सोया का सोया रह जाता है। इस असंतुलन ने अनेक समस्याएं पैदा कर दीं। आज सबकी शिकायत है कि हिंसा बहुत बढ़ रही है। अपराध बहुत बढ़ रहे हैं,आक्रमक वृत्ति बहुत बढ़ रही है। एक छोटा बच्चा भी आक्रामक हो रहा है। आक्रामकता सीधी झलक रही है, बढ़ रही है,हिन्दुस्तान में ही नहीं, पूरे विश्व में बढ़ रही है।
यह इसलिए हो रहा है कि दूसरे पक्ष की तरफ हमारा ध्यान नहीं है। नियंत्रण की तरफ हमारा ध्यान नहीं है। ज्ञान को जो दूसरा पक्ष है- अन्तर्दृष्टि को जगाना, अपनी अतीन्द्रिय चेतना को जगाना, उस ओर हमारी गति ही नहीं है। हमारे पास बहुत अतीन्द्रिय चेतना है। उसे जगाना आवश्यक है।
तीसरी बात है- आनंद। आज महाविद्यालयों के परिसर में मादक पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति बहुत ज्यादा बढ़ रही है। समाज में भी इसका प्रचलन बढ़ रहा है। यह प्रवृत्ति क्यों बढ़ रही है? इसके पीछे एक आकर्षण है। बिना आकर्षण कोई भी चीज नहीं बढ़ सकती। मनुष्य का इसमें आकर्षण नहीं है, जितना सिगरेट पीने में आकर्षण है। आज सगरेट और शराब जैसी चीजें तो गौण हो गई हैं, बहुत छोड़ी पड़ गई हैं। उसके स्थान पर बहुत से ‘ड्रग्स’ और हेरोइन जैसे पदार्थ आ गए हैं। सिगरेट उनके सामने कुछ भी नहीं है। यह नशे की प्रवृत्ति इतनी क्यों चल रही है? इसका कारण है- आनंद की खोज। आदमी आनन्द चाहता है, मस्ती चाहता है। मनुष्य अपने जीवन में मस्ती के क्षण चाहता है। वे उसे नहीं मिलते हैं तो वह नशा करता है, जिससे कुछ समय तक वह मस्ती में डूब जाता है। यह बहुत बड़ा आकर्षण है, जिसमें खिंचा वह नशे की चीजों का प्रयोग करता है।
विकल्प हमारे भीतर है
प्रश्न है- क्या इसका विकल्प नहीं है? विकल्प हमारे भीतर है। आनन्द का विशुध्द विकल्प हमारे भीतर है अगर हम भीतर के आनन्द को नहीं जगाएंगे तो नशे में जाना पड़ेगा। कोई उपाय नहीं है। इसे कभी रोका नहीं जा सकता। अगर भीतर के आनन्द को जगा लें, तो फिर नशे में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। अतीत और भविष्य से मुक्त होकर वर्तमान में जीना आनन्द के स्रोत को प्रकट करने का साधन है। भूत और भविष्य- इन दोनों से हटकर आदि वर्तमान की धारा में चल सकें तो इतना आनन्द उद्भूत होगा कि फिर नशा करने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
आप बहुत तेज श्वास लो। सिगरेट का कश खींचते हो, वैसे ही जोर से श्वास लो और बहुत तेजी से श्वास निकालो जैसे धुएं का गुबार निकालते हो। कुछ समय बाद ही आनन्द की अनुभूति होने लगेगी और सिगरेट के प्रति वितृष्णा जाग जाएगा।
आनन्द का स्रोत
श्वास के साथ हमारी चेतना जुड़ जाती है तो हम वर्तमान में जीना सीख जाते हैं। आदमी वर्तमान में जीना सीख लेता है तो आनन्द का भीतरी स्रोत खुल जाता है। जब बाहर से आनन्द लेने की जरूरत बहुत कम हो जाती है तब न सिगरेट की जरूरत होती है और न नियम का अतिक्रमण कर मनोरंजन के साधनों को अपनाने की जरूरत होती है। अपेक्षाएं बहुत कम हो जाती हैं। हम इन मादक पदार्थों के सेवन की बात को कानूनी नियंत्रण या ऊपर के आश्वासन को थोपकर कभी नहीं मिटा सकते, जब तक हम भीतर के आनन्द को नहीं जगा लेते। भीतर का आनन्द जाग सकता है, वर्तमान में जीने के अभ्यास से। जिस व्यक्ति ने वर्तमान के क्षण को देखना शुरू कर दिया, वर्तमान की धारा के साथ अपने आपको प्रवाहित करना सुरू कर दिया, उसे भीतर से इतना आनन्द आएगा कि जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
हमारी नियंत्रण की क्षमता के स्रोत, हमारे अंतज्र्ञानका, अंतर्दृष्टि का स्रोत और हमारे आनन्द का स्रोत-ये तीन स्रोत हमारे भीतर हैं। इन पर आवरण या कूड़ा-करकट जमा हुआ है। अगर हम प्रयोग के द्वारा उस आवरण और कूड़े-करकट के ढेर को हटा सकें और उन स्रोतों को प्रकट कर सकें, तो एक नए जीवन का प्रारंभ हो सकता है, नए व्यापार का निर्माण हो सकता है, नई पीढ़ी का निर्माण संभव हो सकता है। उस पीढ़ी में, उस व्यक्ति में, जीवन की सारी सफलताओं का विकास ही नहीं होगा- सामाजिक स्वास्थ्य और राष्ट्रीय चरित्र का विकास भी होगा। वह व्यक्ति ऐसा बन जाएगा कि बाहर से गर्मी आ रही है, किन्तु कोई प्रभाव नहीं- सर्वथा अप्रभावित अवस्था। हम प्रयोग द्वारा मस्तिष्क को बाह्य वातावरण से अप्रभावित बना सकते हैं।
वर्तमान वैज्ञानिक बताते हैं- एक सामान्य व्यक्ति अपनी मस्तिष्कीय क्षमताओं का सात-आठ प्रतिशत भाग काम में लेता है। शेष सारी मस्तिष्क की क्षमताएं सोई रहती है। थोड़ा बड़ा आदमी होता है तो वह नौ-दस प्रतिशत काम में लेता है, ज्यादा से ज्यादा दस-बारह प्रतिशत काम में ले लेता है। दस-बारह प्रतिशत मस्तिष्कीय क्षमताओं का प्रयोग करने वाला आदमी दुनिया का असाधारण व्यक्ति माना जाता है। हमारी अस्सी-नब्बे प्रतिशत क्षमताएं सोई की सोई पड़ी हैं। अगर हम उन्हें जगा सकें तो दुनिया का नक्शा बदल जाए। उन्हें जगाने का उपाय बाहर नहीं है। उन्हें जगाने के सारे उपाय हमारी भीतर हैं। यह बात जिस दिन समझ में आएगी, हमारे व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास सहज संभव बन जाएगा।............................................................हर-हर महादेव
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