क्या अनुभव हो सकता है ध्यान में [भाग-४ ]
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ईश्वर के सगुण रूप की साधना करने वाले साधकों को, भगवान का वह रूप कभी आँख वंद करने या कभी बिना आँखबंद किये यानी खुली आँखों से भी दिखाई देने का आभास सा होने लगता है या स्पष्ट दिखाई देने लगता है. |उस समयउनको असीम आनंद की प्राप्ति होती है.| परन्तु मन में यह विश्वास नहीं होता कि ईश्वर के दर्शन किये हैं.| वास्तव में यहसवितर्क समाधि की सी स्थिति है जिसमे ईश्वर का नाम, रूप और गुण उपस्थित होते हैं.| ऋषि पतंजलि ने अपनेयोगसूत्र में इसे सवितर्क समाधि कहा है. |ईश्वर की कृपा होने पर (ईष्ट देव का सान्निध्य प्राप्त होने पर) वे साधक केपापों को नष्ट करने के लिए इस प्रकार चित्त में आत्मभाव से उपस्थित होकर दर्शन देते हैं और साधक को अज्ञान केअन्धकार से ज्ञान के प्रकाश की और खींचते हैं|. इसमें ईश्वर द्वारा भक्त पर शक्तिपात भी किया जाता है जिससे उसेपरमानन्द की अनुभूति होती है.| कई साधकों/भक्तों को भगवान् के मंदिरों या उन मंदिरों की मूर्तियों के दर्शन से भी ऐसाआनंद प्राप्त होता है.| ईष्ट प्रबल होने पर ऐसा होता है.| यह ईश्वर के सगुन स्वरुप के साक्षात्कार की ही अवस्था है इसमेंसाधक कोई संदेह न करें | कई सगुण साधक ईश्वर के सगुन स्वरुप को उपरोक्त प्रकार से देखते भी हैं और उनसे वार्ताभी करने का प्रयास करते हैं.| इष्ट प्रबल होने पर वे बातचीत में किये गए प्रश्नों का उत्तर प्रदान करते हैं, या किसीसांसारिक युक्ति द्वारा साधक के प्रश्न का हल उपस्थित कर देते हैं. |यह ईष्ट देव की निकटता व कृपा प्राप्त होने परहोता है. |इसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए. |साधना में आने वाले विघ्नों को अवश्य ही ईश्वर से कहना चाहिए औरउनसे सदा मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करते रहना चाहिए.| वे तो हमें सदा राह दिखने के लिए ही तत्पर हैं परन्तु हम हीउनसे राह नहीं पूछते हैं या वे मार्ग दिखाते हैं तो हम उसे मानते नहीं हैं, तो उसमें ईश्वर का क्या दोष है? ईश्वर तो सदासबका कल्याण ही चाहते है|............................................................................हर-हर महादेव
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