क्या हैं योग अथवा तन्त्र मुद्राएँ ,
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तंत्र के पञ्च मकार का एक "म " मुद्रा
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योग अनुसार आसन और प्राणायाम की स्थिति को मुद्रा
कहा जाता है। बंध, क्रिया और
मुद्रा में आसन और प्राणायाम दोनों का ही कार्य होता है। योग में मुद्राओं को आसन
और प्राणायाम से भी बढ़कर माना जाता है। आसन से शरीर की हडि्डयाँ लचीली और मजबूत
होती है जबकि मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। मुद्राओं
का संबंध शरीर के खुद काम करने वाले अंगों और स्नायुओं से है।
मुद्राओं की संख्या को लेकर काफी मतभेद पाए जाते
हैं। मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ 'घेरण्ड संहिता' है। हठयोग पर आधारित इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है, लेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को
मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएँ हैं।
महामुद्रा, महाबंध, महावेध, खेचरी, उड्डीयान बंध, मूलबंध, जालंधर बंध, विपरीत करणी,बज्रोली और
शक्ति चालन। उक्त 10 मुद्राओं
को सही तरीके से अभ्यास करने से बुढ़ापा जल्दी नहीं आ सकता।
इसके अलावा अलग-अलग ग्रंथों के अनुसार अलग-अलग
मुद्राएँ और बंध होते हैं। योगमुद्रा को कुछ योगाचार्यों ने 'मुद्रा' के और कुछ ने 'आसनों' के समूह में रखा है। दो मुद्राओं को विशेष
रूप से कुंडलिनी जागरण में उपयोगी माना गया है- सांभवी मुद्रा, खेचरी
मुद्रा।
मुद्राओं के प्रकार:
मुख्यत: 6 आसन मुद्राएँ मानी गई हैं- 1.व्रक्त मुद्रा, 2.अश्विनी
मुद्रा, 3.महामुद्रा, 4.योग मुद्रा, 5.विपरीत करणी मुद्रा, 6.शोभवनी
मुद्रा। जगतगुरु रामानंद स्वामी पंच मुद्राओं को भी राजयोग का साधन मानते हैं, ये है- 1.चाचरी, 2.खेचरी, 3.भोचरी, 4.अगोचरी, 5.उन्न्युनी
मुद्रा।
इसी प्रकार मुख्यत: दस हस्त मुद्राएँ मानी गई हैं: उक्त के अलावा हस्त मुद्राओं में प्रमुख दस मुद्राओं का महत्व है जो निम्न
है: -(1)ज्ञान मुद्रा, (2)पृथवि मुद्रा, (3)वरुण मुद्रा, (4)वायु
मुद्रा, (5)शून्य मुद्रा, (6)सूर्य मुद्रा, (7)प्राण मुद्रा, (8)लिंग
मुद्रा, (9)अपान मुद्रा, (10)अपान वायु मुद्रा।
इनके अतिरिक्त पूजन और tantra साधना में विशेष प्रकार की मुद्राओं का उपयोग होता है ,जैसे आवाहन ,स्थिरीकरण ,सम्मुखिकरण आदि
आदि |इनका tantra में अत्यधिक महत्त्व है |साधना
के दौरान विशिष्ट मुद्राएँ बनाने पर सम्बंधित शक्ति की ऊर्जा बढती है ,उससे सम्बंधित चक्र क्रियाशील होता है और साधना
में सफलता बढती है और जल्दी पूर्ण होती है |
हाथों की 10 अँगुलियों
से विशेष प्रकार की आकृतियाँ बनाना ही हस्त मुद्रा कही गई है। हाथों की सारी
अँगुलियों में पाँचों तत्व मौजूद होते हैं जैसे अँगूठे में अग्नि तत्व, तर्जनी अँगुली में वायु तत्व, मध्यमा अँगुली में आकाश तत्व, अनामिका अँगुली में पृथ्वी तत्व और
कनिष्का अँगुली में जल तत्व। अँगुलियों के पाँचों वर्ग से अलग-अलग विद्युत धारा बहती है। इसलिए मुद्रा विज्ञान
में जब अँगुलियों का योगानुसार आपसी स्पर्श करते हैं, तब रुकी हुई या असंतुलित विद्युत बहकर शरीर की शक्ति को पुन: जाग देती है और हमारा शरीर निरोग होने
लगता है। ये अद्भुत मुद्राएँ करते ही यह अपना असर दिखाना शुरू कर देती हैं।
मुद्राओं के लाभ : कुंडलिनी
या ऊर्जा स्रोत को जाग्रत करने के लिए मुद्राओं का अभ्यास सहायक सिद्ध होता है।
कुछ मुद्राओं के अभ्यास से आरोग्य और दीर्घायु प्राप्त की जा सकती है। इससे
योगानुसार अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति संभव है। यह संपूर्ण योग का
सार स्वरूप है।...............................................................................हर-हर महादेव
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