Sunday, 25 March 2018

क्या अनुभव हो सकता है ध्यान में [भाग -१ ]


क्या अनुभव हो सकता है ध्यान में [भाग -]
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ध्यान ,साधकों के बीच एक जाना -पहचाना नाम है |यह साधना का मूल है |ध्यान अथवा ध्यानस्थ होना अथवा किसी भाव -गुण में डूबना अथवा किसी ईष्ट पर एकाग्र हो जाना ,परम तत्त्व -परमात्मा की प्राप्ति की और मुख्या कदम है |यही वह मार्ग है जिससे साधना क्षेत्र में सब कुछ संभव है अर्थात इसके बिना कुछ भी संभव नहीं |
 साधकों को ध्यान के दौरान कुछ एक जैसे एवं कुछ अलग प्रकार के अनुभव होते हैं.|हर साधक की अनुभूतियाँ भिन्न होती हैं |अलग साधक को अलग प्रकार का अनुभव होता है |इन अनुभवों के आधार पर उनकी साधना की प्रकृति और प्रगति मालूम होती है |साधना के विघ्न-बाधाओं का पता चलता है | साधना में ध्यान में होने वाले कुछ अनुभव निम्न प्रकार हो सकते हैं |
ध्यान की शुरुआत में जब सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ता है तो अंग भी फड़क सकते हैं ,जो कभी शुभ तो कभी अशुभ के अथवा नकारात्मकता का भी संकेत देते हैं | शिव पुराण के अनुसार यदि सात या अधिक दिन तक बांयेंअंग लगातार फड़कते रहें तो मृत्यु योग या मारक प्रयोग (अभिचारक प्रयोगहुआ मानना चाहिए.| कोई बड़ी दुर्घटना याबड़ी कठिन समस्या का भी यह सूचक है.| इसके लिए काली की उपासना करेंदुर्गा सप्तशती में वर्णित रात्रिसूक्तम वदेवी कवच का पाठ करें.| माँ काली से रक्षार्थ प्रार्थना करें.| दांयें अंग फड़कने पर शुभ घटना घटित होती है,| साधना मेंसफलता प्राप्त होती है.| यदि बांया  दांया दोनों अंग एक साथ फडकें तो समझना चाहिए कि विपत्ति आयेगी परन्तुईश्वर की कृपा से बहुत थोड़े से नुक्सान में ही टल जायेगी|एक और संकेत यह भी है कि कोई पूर्वजन्म के पापों के नाशका समय है इसलिए वे पाप के फल प्रकट तो होंगे किन्तु ईश्वर की कृपा से कोई विशेष हानि नहीं कर पायेंगे.| इसकेअतिरिक्त यह साधक के कल्याण के लिए ईश्वर के द्वारा बनाई गई योजना का भी संकेत है |
साधना के दौरान ध्यान में होने पर कभी भौहों के बीच आज्ञा चक्र में ध्यान लगने पर पहले काला और फिर नीला रंगदिखाई देता हैफिर पीले रंग की परिधि वाले नीला रंग भरे हुए गोले एक के अन्दर एक विलीन होते हुए दिखाई देते हैं.एक पीली परिधि वाला नीला गोला घूमता हुआ धीरे-धीरे छोटा होता हुआ अदृश्य हो जाता है और उसकी जगह वैसा हीदूसरा बड़ा गोला दिखाई देने लगता हैइस प्रकार यह क्रम बहुत देर तक चलता रहता हैसाधक यह सोचता है की यहक्या हैइसका अर्थ क्या है ? इस प्रकार दिखने वाला नीला रंग आज्ञा चक्र का एवं जीवात्मा का रंग हैनीले रंग के रूप मेंजीवात्मा ही दिखाई पड़ती हैपीला रंग आत्मा का प्रकाश है जो जीवात्मा के आत्मा के भीतर होने का संकेत हैइस प्रकारके गोले दिखना आज्ञा चक्र के जाग्रत होने का लक्षण हैइससे भूत-भविष्य-वर्तमान तीनों प्रत्यक्षा दीखने लगते है औरभविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के पूर्वाभास भी होने लगते हैंसाथ ही हमारे मन में पूर्ण आत्मविश्वास जाग्रत होताहै जिससे हम असाधारण कार्य भी शीघ्रता से संपन्न कर लेते हैं
 कभी-कभी साधक का पूरा का पूरा शरीर एक दिशा विशेष में घूम जाता है या एक दिशा विशेष में ही मुंह करके बैठने परही बहुत अच्छा ध्यान लगता है अन्य किसी दिशा में नहीं लगतायदि अन्य किसी दिशा में मुंह करके बैठें भीतो शरीरध्यान में अपने आप उस दिशा विशेष में घूम जाता हैऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपके ईष्ट देव या गुरु का निवासउस दिशा में होता है जहाँ से वे आपको सन्देश भेजते हैंकभी-कभी किसी मंत्र विशेष का जप करते हुए भी ऐसा महसूसहो सकता है क्योंकि उस मंत्र देवता का निवास उस दिशा में होता हैऔर मंत्र जप से उत्पन्न तरंगें उस देवता तक उसीदिशा में प्रवाहित होती हैंफिर वहां एकत्र होकर पुष्ट (प्रबलहो जाती हैं और इसी से उस दिशा में खिंचाव महसूस होताहै|

.कई बार साधकों को भ्रम उपस्थित हो जाता हैउदाहरण के लिए कोई साधक गणेशजी को इष्ट देव मानकर उपासनाआरम्भ करता है.| बहुत समय तक उसकी आराधना अच्छी चलती हैपरन्तु अचानक कोई विघ्न  जाता है जिससेसाधना कम या बंद होने लगती है.| तब साधक विद्वानोंब्राह्मणों से उपाय पूछता हैतो वे जन्मकुंडली आदि केमाध्यम से उसे किसी अन्य देव (विष्णु आदिकी उपासना के लिए कहते हैं.| कुछ दिन वह उनकी उपासना करता हैपरन्तु उसमें मन नहीं लगता.| तब फिर वह और किसी के पास जाता हैवह उसे और ही किसी दुसरे देव-देवी आदि कीउपासना करने के लिए कहता है|तब साधक को यह लगता है की मैं अपने ईष्ट गणेशजी से भ्रष्ट हो रहा हूँइससे  तोगणेशजी ही मिलेंगे और  ही दूसरे देवता और मैं साधना से गिर जाऊँगा.| यहाँ साधकों से निवेदन है की यह सही है कीवे अपने ईष्ट देव का ध्यान-पूजन बिलकुल नहीं छोड़ेंपरन्तु वे उनके साथ ही उन अन्य देवताओं की भी उपासना करें.|साधना के विघ्नों की शांति के लिए यह आवश्यक हो जाता है.| उपासना से यहाँ अर्थ उन-उन देवी देवताओं के विषय मेंजानना भी है क्योंकि उन्हें जानने पर हम यह पाते हैं की वस्तुतः वे एक ही ईश्वर के अनेक रूप हैं (जैसे पानी ही लहर,बुलबुलाभंवरबादलओलाबर्फ आदि है). इस प्रकार ईष्ट देव यह चाहता है कि साधक यह जाने.| इसलिए इसे ईष्ट भ्रष्टता नहीं बल्कि ईष्ट का प्रसार कहना चाहिए |.....................................................................हर-हर महादेव 

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