Sunday, 25 March 2018

ध्यान कैसे लगाएं


कैसे करें ध्यान 
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कैसे करें ध्यानयह महत्वपूर्ण सवाल अक्सर पूछा जाता है। यह उसी तरह है कि हम पूछें कि कैसे श्वास लेंकैसे जीवन जीएंकैसे जिंदा रहें या कैसे प्यार करें। आपसे सवाल पूछा जा सकता है कि क्या आप हंसना और रोना सीखते हैं या कि पूछते हैं कि कैसे रोएं या हंसेसच मानो तो हमें कभी किसी ने नहीं सिखाया की हम कैसे पैदा हों। ओशो कहते हैं कि ध्यान हमारा स्वभाव हैजिसे हमने संसार की चकाचौंध के चक्कर में खो दिया है।
ध्यान करने के लिए शुरुआती तत्व- 1.श्वास की गति, 2.मानसिक हलचल 3. ध्यान का लक्ष्य और4.होशपूर्वक जीना। उक्त चारों पर ध्यान दें तो तो आप ध्यान करना सीख जाएंगे।
 श्वास की गति का महत्व : योग में श्वास की गति को आवश्यक तत्व के रूप में मान्यता दी गई है। इसी से हम भीतरी और बाहरी दुनिया से जुड़े हैं। श्वास की गति तीन तरीके से बदलती है- 1.मनोभाव, 2.वातावरण, 3.शारीरिक हलचल। इसमें मन और मस्तिष्क के द्वारा श्वास की गति ज्यादा संचालित होती है। जैसे क्रोध और खुशी में इसकी गति में भारी अंतर रहता है।
 श्वiस की गति से ही हमारी आयु घटती और बढ़ती है। श्वास को नियंत्रित करने से सभी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसीलिए श्वास क्रिया द्वारा ध्यान को केन्द्रित और सक्रिय करने में मदद मिलती है। ध्यान करते समय जब मन अस्थिर होकर भटक रहा हो उस समय श्वसन क्रिया पर ध्यान केन्द्रित करने से धीरे-धीरे मन और मस्तिष्क स्थिर हो जाता है और ध्यान लगने लगता है। ध्यान करते समय गहरी श्वास लेकर धीरे-धीरे से श्वास छोड़ने की क्रिया से जहां शरीरिक और मानसिक लाभ मिलता हैवहीं ध्यान में गति मिलती है।
 मानसिक हलचल : ध्यान करने या ध्यान में होने के लिए मन और मस्तिष्क की गति को समझना जरूरी है। गति से तात्पर्य यह कि क्यों हम खयालों में खो जाते हैंक्यों विचारों को ही सोचते रहते हैं या कि ‍विचार करते रहते हैं या कि धुनकल्पना आदि में खो जाते हैं। इस सबको रोकने के लिए ही कुछ उपाय हैं-पहला आंखें बंदकर पुतलियों को स्थिर करें। दूसरा जीभ को जरा भी ना हिलाएं उसे पूर्णतस्थिर रखें। तीसरा जब भी किसी भी प्रकार का विचार आए तो तुरंत ही सोचना बंदकर सजग हो जाएं। इसी जबरदस्ती न करें बल्कि सहज योग अपनाएं।
 ध्यान और लक्ष्य :
निराकार ध्यानध्यान करते समय देखने को ही लक्ष्य बनाएं। दूसरे नंबर पर सुनने को रखें। ध्यान देंगौर करें कि बाहर जो ढेर सारी आवाजें हैं उनमें एक आवाज ऐसी है जो सतत जारी रहती हैजैसे प्लेन की आवाज जैसी आवाजफेन की आवाज जैसी आवाज या जैसे कोई कर रहा है ॐ का उच्‍चारण। अर्थात सन्नाटे की आवाज। इसी तरह शरीर के भीतर भी आवाज जारी है। ध्यान दें। सुनने और बंद आंखों के सामने छाए अंधेरे को देखने का प्रयास करें। इसे कहते हैं निराकार ध्यान।
 आकार ध्यानआकार ध्यान में प्रकृति और हरे-भरे वृक्षों की कल्पना की जाती है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि किसी पहाड़ की चोटी पर बैठे हैं और मस्त हवा चल रही है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि आपका ईष्टदेव आपके सामने खड़ा हैं। 'कल्पना ध्‍यानको इसलिए करते हैं ताकि शुरुआत में हममन को इधर उधर भटकाने से रोक पाएं।
 होशपूर्वक जीनाक्या सच में ही आप ध्यान में जी रहे हैंध्यान में जीना सबसे मुश्किल कार्य है। व्यक्ति कुछ क्षण के लिए ही होश में रहता है और फिर पुनयंत्रवत जीने लगता है। इस यंत्रवत जीवन को जीना छोड़ देना ही ध्यान है।
 जैसे की आप गाड़ी चला रहे हैंलेकिन क्या आपको इसका पूरा पूरा ध्यान है कि 'आपगाड़ी चला रहे हैं। आपका हाथ कहां हैंपैर कहां है और आप देख कहां रहे हैं। फिर जो देख रहे हैं पूर्णतहोशपूर्वक है कि आप देख रहे हैं वह भी इस धरती पर। कभी आपने गूगल अर्थ का इस्तेमाल किया होगा। उसे आप झूम इन और झूम ऑउट करके देखें। बस उसी तरह अपनी स्थिति जानें। कोई है जो बहुत ऊपर से आपको देख रहा है। शायद आप ही हों।.....................................................................हर-हर महादेव 

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