ध्यान में एक से अधिक शरीरों का अनुभव
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ध्यान करना अद्भुत है। हमारे यूं
तो मूलत: तीन शरीर होते हैं।
भौतिक, सूक्ष्म और कारण, लेकिन इस शरीर के अलावा और भी शरीर होते
हैं। हमारे शरीर में मुख्यत: सात
चक्र हैं। प्रत्येक चक्र से जुड़ा हुआ है एक शरीर। बहुत अद्भुत और आश्चर्यजनक है
हमारे शरीर की रचना। दिखाई देने वाला भौतिक शरीर सिर्फ खून,हड्डी और मांस का जोड़ ही नहीं है इसे चलायमान
रखने वाले शरीर अलग हैं। कुंडलिनी जागरण में इसका अनुभव होता है।
जो व्यक्ति सतत चार से छह माह तक ध्यान करता
रहा है उसे कई बार एक से अधिक शरीरों का अनुभव होने लगता है। अर्थात एक तो यह
स्थूल शरीर है और उस शरीर से निकलते हुए 2 अन्य
शरीर। ऐसे में बहुत से ध्यानी घबरा जाते हैं और वह सोचते हैं कि यह ना जाने क्या
है। उन्हें लगता है कि कहीं मेरी मृत्यु न हो जाए। इस अनुभव से घबराकर वे ध्यान
करना छोड़ देते हैं। जब एक बार ध्यान छूटता है तो फिर मुश्किल होती है पुन: उसी अवस्था में लौटने में।
जो दिखाई दे रहा है वह हमारा स्थूल शरीर है।
दूसरा सूक्ष्म शरीर हमें दिखाई नहीं देता, लेकिन हम उसे
नींद में महसूस कर सकते हैं। इसे ही वेद में मनोमय शरीर कहा है। तीसरा शरीर हमारा
कारण शरीर है जिसे विज्ञानमय शरीर कहते हैं। सूक्ष्म शरीर
ने हमारे स्थूल शरीर को घेर रहा है। हमारे शरीर के चारों तरफ जो ऊर्जा का क्षेत्र
है वही सूक्ष्म शरीर है। सूक्ष्म शरीर भी हमारे स्थूल शरीर की तरह ही है यानि यह
भी सब कुछ देख सकता है, सूंघ सकता है, खा
सकता है, चल सकता है, बोल
सकता है आदि। इसके अलावा इस शरीर की और भी कई क्षमता है जैसे वह दीवार के पार देख
सकता है। किसी के भी मन की बात जान सकता है। वह कहीं भी पल भर में जा सकता है। वह
पूर्वाभास कर सकता है और अतीत की हर बात जान सकता है आदि।
तीसरा
शरीर कारण शरीर कहलाता है। कारण शरीर ने सूक्ष्म शरीर को घेर के रखा है। इसे बीज
शरीर भी कहते हैं। इसमें शरीर और मन की वासना के बीज विद्यमान होते हैं। यह हमारे
विचार, भाव और स्मृतियों का
बीज रूप में संग्रह कर लेता है। मृत्यु के बाद स्थूल शरीर कुछ दिनों में ही नष्ट
हो जाता और सूक्ष्म शरीर कुछ महिनों में विसरित होकर कारण की ऊर्जा में विलिन हो
जाता है, लेकिन मृत्यु के बाद
यही कारण शरीर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है और इसी के प्रकाश से पुनः मनोमय
व स्थूल शरीर की प्राप्ति होती है अर्थात नया जन्म होता है। कारण शरीर कभी नहीं
मरता।
इसी कारण शरीर से कई सिद्ध योगी परकाय प्रवेश
में समर्थ हो जाते हैं। जब व्यक्ति निरंतर ध्यान करता है तो कुछ माह बाद यह कारण
शरीर हरकत में आने लगता है। अर्थात व्यक्ति की चेतना कारण में स्थित होने लगती है।
ध्यान से इसकी शक्ति बढ़ती है। यदि व्यक्ति निडर और होशपूर्वक रहकर निरंतर ध्यान
करता रहे तो निश्चित ही वह मृत्यु के पार जा सकता है। मृत्यु के पार जाने का मतलब
यह कि अब व्यक्ति ने स्थूल और सूक्ष्म शरीर में रहना छोड़ दिया।...........................................................हर-हर महादेव
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