आत्मा की अलौकिक शक्ति
==================
हमारे शरीर में आत्मा वह केंद्र है जिसे शक्ति भी कहते
हैं। उसके अप्रकट रहने का कारण है कि हमारा शरीर उसके केंद्र से संपर्क नहीं रखता
जहाँ से सब कुछ सनातन काल से संचालित हो रहा है। वस्तुतः जीवन धारा के प्रतिकूल
प्रवाह से उस केंद्र में निष्क्रियता बनी रहती है। जबकि आवश्यक है कि वह विशिष्ट
शक्ति शरीर के सभी अंगो तक पहुँचे। यदि वह एक अंग पर भी नहीं पहुँचती तो वह अंग बेकार हो जाता है। इसलिए
मनुष्य द्वारा प्रयत्न यह किया जाना चाहिए कि उसके सभी अंग सुपुष्ट रह सकें। उसके
अंदर सर्वशक्तिमान परमात्मा की समस्त शक्तियों का समग्रता व परिपूर्णता से संचार
हो सके।
इसके लिए हमें उसके प्रकाश को पहचानना होगा, जहाँ सत्य का अपने बुनियादी स्वरूप में
निवास रहता है। उसी प्रकाश को जानने से हम परमात्मा को जान सकते हैं। उसको जाने
बिना मोक्ष का द्वार कभी नहीं खुल सकता। उसे समझे बिना हम उस आनंद को नहीं समझ
सकते, उस आनंद को वाणी के
द्वारा अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। कोई भी शक्ति, कोई भी
ऊर्जा तभी लाभदायक सिद्ध होती है जब उसका सही ढंग से उपभोग किया जाए। किसी भी
ऊर्जा के सही प्रयोग की आवश्यकता होती है। विद्युत को ही लीजिए उसका सही प्रयोग न
हो तो वह प्राणांतक सिद्ध होती है। उसका प्रयोग निर्माण और नाश दोनों में ही किया
जा सकता है। इसी प्रकार की ऊर्जा हमारे पास भी विद्यमान है। यदि हम उसका सदुपयोग
करना चाहें तो सहज ही कर सकते हैं।
हमारे शरीर के अंदर अवस्थित आत्मा अनेकानेक अलौकिक
शक्तियों से युक्त है। फिर भी उनकी जानकारी न होने तथा प्रयोग का सही तरीका न
जानने की वजह से अधिकांश लोग उसका लाभ उठाने से वंचित रह जाया करते है। किंतु साधन
होते हुए भी उनका उपयोग न कर पाना अपनी ही कमी कही जाती है। जरा सोचिए, जिसके पास नेत्र हैं और वे न देखें तो
इसमें अपराध किसका कहा जाएगा?............................................................हर-हर महादेव
No comments:
Post a Comment