Sunday, 25 March 2018

छठी इन्द्रिय [सिक्स्थ सेन्स ]


:::::::::::::::::::::::छठी इन्द्रिय [सिक्स्थ सेन्स ] :::::::::::::::::::::
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हम सभी की चाहत रहती है कि जीवन में आने वाली घटनाओं को जान सकें। इसके लिए ज्योतिषी एवं भविष्यवक्ता से संपर्क करते हैं। लेकिन विज्ञान कहता है कि हम सभी भविष्य और भूत की घटनाओं को दर्पण की तरह देख सकते हैं। मानव के अंदर एक ऐसा जीन छुपा रहता हैजिससे उसे भावी घटनाओं का पता चल सकता है। लेकिन व्यावहारिक रूप से वह पता नहीं कर पाता। अब वैज्ञानिकों ने यह रहस्य खोल लिया है। मानव अपने मस्तिष्क के जरिये भविष्य की घटनाओं का पता आसानी से लगा सकता है। आम तौर पर हमें आज और अभी या अपने आसपास की घटनाओं की ही जानकारी होती है। आने वाले या बीत गए समय की अथवा दूरदराज की घटनाओं का पता नहीं चलतालेकिन कोई विलक्षण शक्ति हैजो व्यक्ति को समय और दूरी की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए उपयोगी सूचनाएं देती हैजो भूतभविष्य अथवा वर्तमान में झाँकने की क्षमता रखती है। भविष्य में होने वाली घटना का पहले से संकेत मिलना ही पूर्वाभास है।यह छठी इंद्री या सेन्स का काम होता है | कुछ लोगों में यह अतीन्द्रिय ज्ञान काफी विकसित होता है तो कहा जाता है की उनका छठी इन्द्रिय या सिक्स्थ सेन्स विकसित है |पूर्ण जाग्रत अवस्था में यह तीसरा नेत्र है | छठी इन्द्रिय या सिक्स्थ सेन्स द्वारा अतीन्द्रिय ज्ञान होता है अर्थात वह ज्ञान जो सामान्य इन्द्रियों की समझ और पकड़ से परे हो |सामान्यतः हम पाँच ज्ञानेन्द्रियों के जरिए वस्तु या दृश्यों का विवेचन कर पाते हैंपरंतु कभी-कभी या किसी में बहुधा छठी इन्द्रिय जागृत हो जाती है। इस कपोल-कल्पित इन्द्रिय को विज्ञान ने अतीन्द्रिय ज्ञान (एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शनका नाम देते हुए अपनी बिरादरी में शामिल कर लिया है।
इंद्रिय के द्वारा हमें बाहरी विषयों - रूपरसगंधस्पर्श एवं शब्द - का तथा आभ्यंतर विषयों - सु: दु: आदि-का ज्ञानप्राप्त होता है। इद्रियों के अभाव में हम विषयों का ज्ञान किसी प्रकार प्राप्त नहीं कर सकते। इसलिए तर्कभाषा के अनुसारइंद्रिय वह प्रमेय है जो शरीर से संयुक्तअतींद्रिय (इंद्रियों से ग्रहीत  होनेवालातथा ज्ञान का करण हो (शरीरसंयुक्तंज्ञानं करणमतींद्रियम्) बाह्य इंद्रियाँ क्रमशगंधरसरूप स्पर्श तथा शब्द की उपलब्धि मन के द्वारा होती हैं | सुख दु: आदि भीतरी विषय हैं। इनकी उपलब्धि मन के द्वारा होती है |मन हृदय के भीतर रहनेवाला तथा अणु परमाणु से युक्त माना जाता है | इंद्रियों की सत्ता का बोध प्रमाणअनुमान और अनुभव से होता है, प्रत्यक्ष से नहीं सांख्य के अनुसार इंद्रियाँ संख्या में एकादश मानी जाती हैं जिनमें ज्ञानेंद्रियाँ तथा कर्मेंद्रियाँ पाँच पाँच मानी जाती हैं | ज्ञानेंद्रियाँ पूर्वोक्त पाँच हैं |कर्मेंद्रियाँ मुखहाथपैरमलद्वार तथा जननेंद्रिय हैं जो क्रमशबोलनेग्रहण करनेचलनेमल त्यागने तथा संतानोत्पादन का कार्य करती है | संकल्पविकल्पात्मक मन ग्यारहवीं इंद्रिय माना जाता है |
पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने अतीन्द्रिय क्षमताओं को चार वर्गों में बाँटा है :
परोक्ष दर्शनअर्थात वस्तुओं और घटनाओं की वह जानकारी, जो ज्ञान प्राप्ति के बिना ही उपलब्ध हो जाती है।
भविष्य ज्ञानयानी बिना किसी मान्य आधार के भविष्य के गर्भ में झाँककर घटनाओं को घटित होने से पूर्व जान लेना।      
भूतकालिक ज्ञानबिना किसी साधन के अतीत की घटनाओं की जानकारी। 
टेलीपैथीअर्थात बिना किसी आधार या यंत्र के अपने विचारों को दूसरे के पास पहुँचाना तथा दूसरों के विचार ग्रहण करना। इसके अलावा साइकोकाइनेसिस, सम्मोहन, साइकिक फोटोग्राफी आदि को भी परामनोविज्ञानियों ने अतीन्द्रिय शक्ति में शुमार किया है। 
विल्हेम वॉन लिवनीज नामक वैज्ञानिक का कहना है हर व्यक्ति में यह संभावना छिपी पड़ी है कि वह कभी-कभार चमक उठने वाली इस क्षमता को विकसित कर पूर्वाभास को सामान्य बुद्धि की तरह अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लेता है। इस तरह की क्षमता अर्जित कर सकता हैजब चाहे दर्पण की तरह अतीत या भविष्य को देख सके। हर व्यक्ति में यह संभावना छिपी पड़ी है कि वह अपनी अन्तर्प्रज्ञा को जगाकर भविष्य काल को वर्तमान की तरह दर्पण में देख ले।
अतीन्द्रिय ज्ञान को वैज्ञानिक आधार देते हुए केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक भौतिकी विद्वान एड्रियन डॉन्स ने फरमाया था, 'भविष्य में घटने वाली हलचलें वर्तमान में मानव मस्तिष्क में एक प्रकार की तरंगें पैदा करती हैंजिन्हें साइट्रॉनिक वेवफ्रंट कहा जा सकता है। इन तरंगों की स्फुरणाओं को मानव मस्तिष्क के स्नायुकोष (न्यूरान्सपकड़ लेते हैं। इस प्रकार व्यक्ति भविष्य-कथन में सफल होता है। उनके मुताबिक मस्तिष्क की अल्फा तरंगों तथा साइट्रॉनिक तरंगों की आवृत्ति एक-सी होने के कारण सचेतन स्तर पर जागृत मस्तिष्क द्वारा ये तरंगें सहज ही ग्रहण की जा सकती हैं।
डरहम विश्वविद्यालय इंग्लैंड के गणितज्ञ एवं भौतिकीविद् डॉगेरहार्ट डीटरीख वांसरमैन का कथन है, 'मनुष्य को भविष्य का आभास इसलिए होता रहता है कि विभिन्न घटनाक्रम टाइमलेस (समय-सीमा से परेमेंटल पैटर्न (चिंतन क्षेत्रके निर्धारणों के रूप में विद्यमान रहते हैं। ब्रह्मांड का हर घटक इन घटनाक्रमों से जुड़ा होता हैचाहे वह जड़ हो अथवा चेतन।
एक्सप्लोरिंग साइकिक फिनॉमिना बियांड मैटरनामक अपनी चर्चित पुस्तक में डी स्कॉट रोगो लिखते हैं, 'विचारणाएँ तथा भावनाएँ प्राणशक्ति का उत्सर्जन (डिस्चार्ज ऑफ वाइटल फोर्सहैं। यही उत्सर्जन अंतःकरण में यदा-कदा स्फुरणा बनकर प्रकट होते हैं। जब यह दो व्यक्तियों के बीच होता है तो टेलीपैथी कहा जाता है और यदि यह समय-सीमा से परे सुदूर भविष्य की सूचना देता है तो पूर्वाभास | इसका आधारभूत कारण कॉस्मिक अवेयरनेस यानी ब्राह्मी चेतना होता है।इस चेतना का जिक्र आइंस्टीन के सापेक्षवाद के सिद्धांत में मिलता है। उन्होंने लिखा है, 'यदि प्रकाश की गति से भी तीव्र गति वाला कोई तत्व हो तो वहाँ समय रुक जाएगा। दूसरे शब्दों मेंवहाँ बीते कलआज और आने वाले कल में कोई अंतर न रहेगा।'…

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