योग और तन्त्र में हस्त मुद्रा का
महत्त्व और लाभ :
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मुद्रा संपूर्ण योग का सार स्वरूप है।इसका प्रयोग tantraसाधनाओं में भी एक आवश्यक अंग के रूप में होता है |पञ्च मकार का यह एक म अर्थात मुद्रा है |पूजन में भी मुद्राएँ और उनका ईष्ट के सामने
प्रदर्शन होता है |इनका अपना
आध्यात्मिक महत्व है और इनका शरीर पर सीधा प्रभाव पड़ता है | इसके माध्यम से कुंडलिनी या ऊर्जा के स्रोत को
जाग्रत किया जा सकता है। इससे अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति संभव है।
सामान्यत: अलग-अलग मुद्राओं से अलग-अलग रोगों में लाभ मिलता है। मन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।
शरीर में कहीं भी यदि ऊर्जा में अवरोध उत्पन्न हो रहा है तो मुद्राओं से वह दूर हो
जाता है और शरीर हल्का हो जाता है। जिस हाथ से ये मुद्राएँ बनाते हैं, शरीर के उल्टे हिस्से में उनका प्रभाव
तुरंत ही नजर आना शुरू हो जाता है।
मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला
सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग के इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा
था। घेरंड में 25 और
हठयोग प्रदीपिका में 10मुद्राओं
का उल्लेख मिलता है, लेकिन सभी
योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50से 60 हस्त
मुद्राएँ हैं।
हमारा शरीर पाँच तत्व और पंच कोश से नीर्मित है, जो ब्रह्मांड में है वही शरीर में है।
शरीर को स्वस्थ बनाए रखने की शक्ति स्वयं शरीर में ही है। इसी रहस्य को जानते हुए
भारतीय योग और आयुर्वेद में ऋषियों ने यम, नियम, आसन, प्राणायाम, बंध और मुद्रा के लाभ को लोगों को बताया। इन्हीं में से एक हस्त मुद्रा का
बहुत कम लोग ही महत्व जानते होंगे।
यह शरीर पाँच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है। शरीर में ही पाँच कोश है जैसे अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय
कोश और आनंदमय कोश। शरीर में इन तत्व के संतुलन या कोशों के स्वस्थ रहने से ही
शरीर, मन और आत्मा स्वस्थ
रहती है। इनके असंतुलन या अस्वस्थ होने से शरीर और मन में रोगों की उत्पत्ति होती
है। इन्हें पुन: संतुलित और
स्वस्थ बनाने के लिए हस्त मुद्राओं का सहारा लिया जा सकता है।
अँगुली में पंच तत्व :
-------------------- हाथों की 10 अँगुलियों
से विशेष प्रकार की आकृतियाँ बनाना ही हस्त मुद्रा कही गई है। हाथों की सारी
अँगुलियों में पाँचों तत्व मौजूद होते हैं जैसे अँगूठे में अग्नि तत्व, तर्जनी अँगुली में वायु तत्व, मध्यमा अँगुली में आकाश तत्व, अनामिका अँगुली में पृथ्वी तत्व और
कनिष्का अँगुली में जल तत्व।
अँगुलियों के पाँचों वर्ग से अलग-अलग विद्युत धारा बहती है। इसलिए मुद्रा विज्ञान
में जब अँगुलियों का रोगानुसार आपसी स्पर्श करते हैं, तब रुकी हुई या असंतुलित विद्युत बहकर शरीर की शक्ति को पुन: जाग देती है और हमारा शरीर निरोग होने
लगता है। ये अद्भुत मुद्राएँ करते ही यह अपना असर दिखाना शुरू कर देती है|
अवधि और सावधानी :
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दिन में अधिकतम अवधी 20-30 मिनट तक एक मुद्रा को किया जाए।
इन मुद्राओं को अगर एक बार करने में परेशानी आए तो 2-3 बार में भी कर सकते हैं। मुद्रा करते समय जो अँगुलियाँ प्रयोग में नहीं आ
रही है उन्हें सीधा करके और हथेली को थोड़ा कसा हुआ रखते हैं। हाथों में कोई गंभीर
चोट, अत्यधिक दर्द या रोग हो
तो योग चिकित्सक की सलाह ली जानी चाहिए |
हस्त मुद्रा के
लाभ :
मुद्रा संपूर्ण योग का सार स्वरूप है। इसके माध्यम
से कुंडलिनी या ऊर्जा के स्रोत को जाग्रत किया जा सकता है। इससे अष्ट सिद्धियों और
नौ निधियों की प्राप्ति संभव है। सामान्यत:अलग-अलग मुद्राओं से अलग-अलग रोगों में लाभ मिलता है। मन में सकारात्मक
ऊर्जा का विकास होता है। शरीर
में कहीं भी यदि ऊर्जा में अवरोध उत्पन्न हो रहा है तो मुद्राओं से वह दूर हो जाता
है और शरीर हल्का हो जाता है। जिस हाथ से ये मुद्राएँ बनाते हैं, शरीर के उल्टे हिस्से में उनका प्रभाव
तुरंत ही नजर आना शुरू हो जाता है।…………………………………………………...हर-हर महादेव