Sunday, 7 October 2018

कुंडलिनी तंत्र और गृहस्थ जीवन [Kundlini Tantra and Familier Life]


कुंडलिनी तंत्र और गृहस्थ जीवन
================[[ भाग - २]]
कुंडलिनी tantra अत्यंत सरल ,स्पष्ट ,प्रत्येक गृहस्थ के उपयुक्त क्रियात्मक विषय है ,जिसे हमारे दार्शनिक व्याख्याकारों ने अत्यंत जटिल और उलझा हुआ बनाकर इस स्थिति तक पहुंचा दिया है की जन साधारण उसे अगम्य ,अपार और मुक्त पुरुषों के मतलब का समझ कर उससे अलग -थलग बना रहने को बाध्य हो गया है |
कुंडलिनी tantra प्रक्रिया वर्षों पूर्व महेश्वर रूद्र [शिव शंकर ]द्वारा "आत्म यज्ञ संस्कृति "के रूप में प्रारम्भ की गई थी जो शनैः शनैः लुप्तप्राय हो गई और इस संस्कृति के अवशेष रूप शिवलिंग तथा अर्धनारीश्वर मूर्ती एवं प्राचीन मंदिरों के ध्वन्शावशेष को हम लकीर के फ़कीर बने पूजते रह गए |उसी प्राचीन आत्मयज्ञ संस्कृति को पुनः जनमानस के सामने लाने का प्रयत्न मैंने किया है |चूंकि यह संस्कृति किसी भी धर्म या संस्कृति की बपौती नहीं है ,अतः प्रत्येक व्यक्ति के काम की है |इस साधना में व्यक्ति अपनी पत्नी को संतुष्ट रखने की ऐसी कला सीख जाता है की वह जंगल में रहने वाले अवधूत पति के साथ भी पार्वती के सामान पूर्ण प्रसन्न रहते हुए ,गृहस्थी के सुख को इतना बढाती है की सारे अभाव उसी में समाहित हो जाते हैं |प्रत्येक व्यक्ति ऐसी गृहणी की कामना करता है परन्तु कितने पति ऐसे हैं जो अपनी पत्नी को इतना सम्मानपूर्ण प्रेम दे पाते हैं की वह पति में रम जाए ? यदि पत्नी इतनी नहीं रमती तो निश्चय ही आपका रमण अधूरा रहेगा |पत्नी को ऐसी रमणी बनाना पति का कर्त्तव्य है |
अन्य तांत्रिक प्रक्रियाओं में परिस्थिति अनुसार पत्नी के अलावा अन्य साधिकाओं से रमण की बातें मिलती हैं ,परन्तु इस प्रक्रिया में विशेष रूप से एक ही साधिका के साथ रहने की विशेषताओं का उल्लेख किया गया है और अपनी साधना के साथ साथ पत्नी के साधना स्तर को उठाने की बात की है |जहाँ अन्य तंत्रों में नारी को मात्र भैरवी अथवा एक साधन के रूप में उपयोग करने की बात है वहीँ इस प्रक्रिया में नारी साधन नहीं ,स्वयं साधिका बनती है ,और वह मात्र संतानोत्पन्न करने वाली पत्नी न होकर साधक की शक्ति धर्म पत्नी बनती है |सांसारिक भोग के दृष्टिकोण से यदि इस साधना विधि पर विचार करें तो आप पायेंगे की ,सेक्स और काम में तो व्यक्ति फंसा हुआ ही है ,उसे घृणित काम से उबारकर अपनी ऊर्जा को संचित रखते हुए ,स्वस्थ काम का आनंद लाभ देने में यह क्रियाएं बड़ी उत्तम हैं |आध्यात्मिक स्तर पर यह साधना प्रक्रिया व्यक्ति को ऐसी काम तुष्टि प्रदान करती है की साधक सम्भोग की लालसा से मुक्त होकर लम्बे समय तक सच्चे अर्थों में ब्रह्मचारी रह पाता है और धारणा और ध्यान के अभ्यासों से आत्मा को बंधन मुक्त करने में सक्षम बनता है |
बहुत से व्यक्ति इस प्रक्रिया को असंभव कहते हैं |यह वाही लोग हैं जिन्होंने प्रक्रिया विधि या इसके बारे में मात्र पढ़ा है और अनुमान लगाया है ,स्वयं क्रियात्मक रूप से करके नहीं परखा |यदि एक दो बार क्रियात्मक भी किया तो इन्द्रिय संयम न होने के कारण स्खलित हो गए |ऐसे कच्चे मन के व्यक्ति जो स्वयं इन्द्रिय के दासत्व से मुक्त न हो सके ,वे इस प्रक्रिया को कैसे सभी व्यक्तियों के लिए असंभव कह सकते हैं |क्षमता रहित व्यक्तियों के लिए तंत्र बहुत सि प्राकृतिक चिकित्साओं ,यौगिक अभ्यासों और औषधियों आदि की व्यवस्था करता है |काम कला विलास ही व्यक्ति को पूर्ण पुरुष बनाता है |ऐसा व्यक्ति ही कुंडलिनी के षड्चक्र भेदन में निपुण हो सकता है |कुछ लोगों की धारणा है की योगी और पूर्ण काम व्यक्ति को सांसारिक कार्यकलापों में रमने की आवश्यकता नहीं है |यह लोग योगेश्वर कृष्ण की बातें याद करें |राजा जनक को याद करें ,राजा भर्तृहरि को याद करें ,महेश्वर शिव शंकर को याद करें और उनकी कार्य प्रणाली को समझें |यह सभी महँ योगी और कुंडलिनी साधक थे किन्तु सभी गृहस्थ थे |अधूरी और भ्रामक धारणा पाले व्यक्तियों से मेरी प्रार्थना है की वे अपने अतीत को समझें ,वर्त्तमान का प्रयोग करें और भविष्य के लिए साधना रत हों |टीका टिपण्णी में समय नष्ट न करें |.........................................................................हर-हर महादेव

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