Sunday, 7 October 2018

भैरवी तंत्र [कुंडलिनी तंत्र ]और उपयुक्त आयु [Bhairavi Tantra and Age Factor]


कुंडलिनी तंत्र में मानसिक साधना और उपयुक्त आयु
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मानसिक क्रियाओं का शरीर के श्वास और ह्रदय tantra पर विशेष प्रभाव पड़ता है |कोई शुभ समाचार सुनकर हार्ट अटैक हो जाना ,अशुभ समाचार से ब्लड प्रेसर में अंतर हो जाना ,सेक्सी मूड में श्वास गति में वृद्धि हो जाना ,किसी से लड़ाई होते देखकर हाथ पैर फडकना आदि बहुत से उदाहरण इसके प्रमाण है |मानसिक क्रियाओं के नियंत्रण के लिए यम -नियमों के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के अभ्यास अहिंसा ,अस्तेय ,अपरिग्रह ,ब्रह्मचर्य ,अप्रमाद ,संतोष ,स्वाध्याय आदि कराये जाते है |जब धीरे धीरे व्यक्ति अभ्यास द्वारा तन मन दोनों से कुंडलिनी के उपयुक्त हो जाता है तब उसे धारणा ,ध्यान और समाधि की अन्तरंग साधना वाली प्रक्रियाओं में उतारा जाता है |
प्रवृत्ति मार्ग अपनाने वाले साधक को भी यम-नियम ,आसन ,प्राणायाम आदि बहिरंग साधना की उतनी ही तैयारी करनी पड़ती है ,जितनी निवृत्ति मार्ग अपनाने वाले साधक को |प्रवृत्ति मार्ग में एक अंग विशेष की तैयारी और बढ़ जाती है -- जननांग की |जनन tantra की नस नाड़ियाँ ,मांस पेशियाँ प्रवृत्ति मार्ग वालों को निवृत्ति मार्ग वालों की अपेक्षा अधिक स्वस्थ रखनी पड़ती है ,क्योकि मैथुन में इनका सीधा उपयोग होता है |यदि लिंग अथवा योनी किसी भी प्रकार के यौन रोग से पीड़ित है ,अथवा मानसिक या शारीरिक क्लान्ति ग्रस्त है तो दीर्घ रमण नहीं चल सकता ,जो की प्रवृत्ति मार्गी तांत्रिक की मूल आवश्यकता है |यह बात दूसरी है की दीर्घ सम्भोग के लिए तंत्र अयोग्य साधकों को विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक उपचारों के उपयोग की सलाह देता है |
कुंडलिनी योग सीखने की उचित आयु की बात की जाय तो मेरे विचार से वीर्य अथवा रज के क्षरण आरम्भ होने की आयु ही इस विषय को सीखने की उचित आयु है ,जिससे व्यक्ति अनुचित उपायों से अपने जननांगों को खराब करने से पूर्व ,तथा वीर्य की अधोगति का मार्ग खोलने से पूर्व ही उर्ध्व गति का मार्ग सीख ले ,और फिर जीवन भर ओज भण्डार को अपने नियंत्रण में रखकर जब चाहे वीर्य की उर्ध्वगति करे और जब चाहे अधो गति कर परिवार वृद्धि करे |ऐसा व्यक्ति कभी वीर्य नहीं फेकेगा ,क्योकि वह उसका दूसरा उपयोग जान लेगा |कुंडलिनी तंत्र अथवा भैरवी तंत्र में कुंडलिनी साधना की उपयुक्त आयु पुरुष के लिए २१ वर्ष से ४५ वर्ष तक और स्त्री के लिए १६ से ३२ वर्ष तक बताई गई है ,किन्तु आज के बालक इससे पहले ही अपनी स्थिति खराब कर ले रहे हैं अतः इन्हें और पहले ही इस मार्ग की जानकारी उपयुक्त हो सकती है |
आज के बालक वीर्य का उपयोग नहीं करते |वे उसे फेंकते हैं |उचित विधि न मिले तो अनुचित विधियां अपनाते हैं |यही हाल आज की लड़कियों -युवतियों का है |उन्मुक्त यौनाचार इनमे इतनी विसंगतियां ,इतनी समस्याएं पहले ही उत्पन्न कर दे रहा है की यह विवाह उम्र तक आटे आटे विवाह से ही घबराने लगते हैं अथवा इतनी कमियां इनमे उत्पन्न हो जाती हैं की यह क्षमता खोने लगते हैं और जीवन में फिर बहुत साड़ी समस्याएं पाते हैं |कितने ही संत उपर से ब्रह्मचारी होने का ढोंग करते हैं और अन्दर महा व्यभिचारी होते हैं |कारण इनके तन और मन एक नहीं होते |जो मनसा ,वाचा ,कर्मणा एक नहीं होता ऐसा बगुला भगत कभी भी धार्मिक नहीं बन सकता ,धार्मिक होने का ढोंग भले कर ले |
आज धार्मिक सभाओं में बच्चे और युवकों से अधिक बूढ़े लोग पाए जाते हैं |यह बूढ़े जो कुछ क्रियात्मक करने लायक नहीं रहे |वह तो सामर्थ्य के अभाव में पहले ही अहिंसक हो चुके हैं ,महाधार्मिक हो चुके हैं |ऐसे व्यक्तियों के लिए सत्संग और धार्मिक सभाएं क्रियात्मक रूप से वास्तव में अर्थहीन हैं |इन सभाओं की आवश्यकता उन किशोरों और युवकों को है जो जीवन में धर्म और अधर्म के चक्कर में जाने वाले हैं |पाप और पुण्य के जाल में फंसने वाले हैं ,उन्हें नीर क्षीर निर्णय करने की बुद्धि की आवश्यकता है ,जो शरीर के ओजवर्धन से प्राप्त होती है |दुनिया के किसी टानिक ,पूजा अथवा यन्त्र -tantra से यह निर्णय बुद्धि नहीं प्राप्त होती |ओज्वर्धन किशोरों और युवकों के अपने हाथ है |इस विषय में सारे धर्म एक मत हैं और सारे विज्ञान एक मत हैं |......................................................हर-हर महादेव


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