Sunday, 7 October 2018

भैरवी विद्या [कुंडलिनी तंत्र ] और परम तत्व [ Bhairavi Tantra and Parambrahma]


परमब्रह्म /परमात्मा /सदाशिव /परमतत्व 
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जब सृष्टि नहीं होती ,तो केवल एक ही तत्व का अस्तित्व होता है |वह है सदाशिव ,जिन्हें वैदिक ऋषि परमात्मा अर्थात परम्सार कहते हैं |उपनिषदों में इसे परमतत्व कहा गया है |इसे परब्रह्म एवं परादेव ,आदिनाथ ,आदिदेव ,देवाधिदेव भी कहा जाता है ,क्योकि सबकी उत्पत्ति इसी ें है ,इसी के कारण इसी से होती है और इसी अमृत तत्व से सबका जीवन चक्र चलता है |जिसे वेद परब्रह्म [परमात्मा ] कहता है ,उसे ही शैव मार्गी शिव के नाम से जानते हैं |उसके पांच गुण हैं |वह सर्वज्ञ है ,सभी कृत्यों को करने में समर्थ है ,वह सर्वेश्वर है ,वह मलरहित निर्विकार है ,वह अद्वय है ,अर्थात उसके सिवा दूसरा कोई भी नहीं है |इस प्रकार सभी आध्यात्मिक रहस्यों के बाद ज्ञात होता है की कुछ बन रहा है , ही नष्ट हो रहा है |सब इसी तत्त्व में चल रहा है |सारी सृष्टि इसी तत्त्व का अनंत फैलाव मात्र है |समस्त सृष्टि इसी तत्व की धाराओं से बना परिपथ है और यह चक्रवात की भाँती उत्पन्न होकर विशालतम होती चली जाती है |
सदाशिव की कोई आकृति नहीं है |इनकी जो छवि कैलेंडरों एवं मूर्तियों में दिखाई देती है ,वे इनके विभिन्न गुणों को प्रदर्शित करने वाली छवियाँ हैं |सदाशिव एक तत्व का नाम है ,जो परम सूक्ष्म ,परम विरल .अनश्वर ,सर्वत्र व्याप्त रहने वाला एक तेजोमय तत्व है |एक ऐसा तत्व जो सांसारिक नहीं है |इस सृष्टि में उस जैसा कुछ भी नहीं है |यह अजन्मा है अर्थात इसकी उत्पत्ति नहीं होती |यह सदा शाश्वत है |इसी प्रकार यह तत्व नष्ट भी नहीं होता [यह आत्मा नहीं है ,आत्मा भी इसी से अस्तित्व बनाती है ]|यह सांसारिक नहीं है पर इस प्रकृति और संसार की उत्पत्ति इसी से होती है |इसमें जीवन नहीं है ,पर यह सभी के जीवन को उत्पन्न करके पोषित करता है और जीवित रखता है |इसमें चेतना नहीं है किन्तु समस्त चेतना की उत्पत्ति इसी से होती है |यह कोई जीव नहीं है ,पर यह सब कुछ जानता है |इसमें भूत ,भविष्य और वर्त्तमान का सभी कुछ छिपा [अव्यक्त ] रहता है |यह अनंत तक फैला हुआ एक विचित्र और अद्भुत तत्व है |अजब लीला है इस तत्व की ,जिसको जानने के बाद वैदिक ऋषियों के मुह से निकला --हम नहीं कह सकते इसके बारे में |इस लीला का वर्णन नहीं किया जा सकता |यह समस्त ज्ञान ,बुद्धि और चेतना का हरण कर लेती है |हम कैसे कहें ? वाणी ,ज्ञान ,बुद्धि ,चेतना और सवेदना भी तो इसी से उत्पन्न होते हैं ,इससे स्थूल हैं |इन्ही से इसका वर्णन किस प्रकार किया जा सकता है |........[क्रमशः ]............................................हर-हर महादेव 

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