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ब्रह्मचर्यं :::::::::::::::::::::
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जो भोजन पचता है उसका पहले रस बनता है |भोजन से रस बनने में ५ दिन लगते हैं और ५ दिन तक उसका पाचन होकर रक्त बनता है |पांच दिन बाद रक्त से मांस |उसमे से ५-५ दिन के अंतर भेद से मेद, हड्डी, मज्जा और अंत में मज्जा से वीर्य बनता है |स्त्री में जो यह धातु बनती है उसे रज कहते हैं |इस प्रकार वीर्य बनने में करीब ३० दिन और ४ घंटे लगते हैं |वैज्ञानिक बताते हैं की ३२ किलो भोजन से ८०० ग्राम रक्त बनता है और ८०० ग्राम रक्त से लगभग २० ग्राम वीर्य बनता है |वीर्य के संयम से शरीर पुष्ट होता है और अद्भुत आकर्षण शक्ति उत्पन्न होती है |जिसे प्राचीन वैद्य धन्वन्तरी ने ओज कहा है |यही ओज मनुष्य को परम लाभ -आत्म दर्शन कराने में सहायक बनता है |आप जहाँ जहाँ भी किसी के जीवन में कुछ विशेषता ,चेहरे पर तेज ,वाणी में बल ,कार्य में उत्साह पायेंगे ,वहां समझो वीर्य रक्षण का ही चमत्कार है |परमात्मा द्वारा अपनी सारी शक्ति बीज रूप में मनुष्य को दी गयी है |यह शक्ति कुंडलिनी कहलाती है |आधुनिक परमाणु विज्ञान की भाषा में कुंडलिनी एटामिक रिएक्टर है |मूलाधार चक्र में कुंडलिनी महाशक्ति अत्यंत प्रचंड स्तर की क्षमताएं दबाये बैठी है |पुरानो में इसे महाकाली के नाम से पुकारा गया है |काम शक्ति का अनुपयोग ,सदुपयोग ,दुरुपयोग किस प्रकार मनुष्य के व्यक्तित्व को प्रभावित करती है इसे आध्यात्मिक काम विज्ञान कहा जाता है |इस शक्ति का सूझ बूझ से उपयोग किया जाना चाहिए |यही ब्रह्मचर्य का तत्व ज्ञान है |बिजली की शक्ति से अगणित प्रयोजन पूरे किये जाते हैं और लाभ उठाये जाते हैं ,पर यह तभी होता है जब उसका ठीक तरह प्रयोग करना आये |अन्यथा चूक करने वाले के लिए तो वाही बिजली प्राणघातक सिद्ध होती है |................................................................हर-हर महादेव
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