भैरवी साधना का भ्रम और युवकों युवतियों का शोषण
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आज के समय में तंत्र विद्या की ओर बहुत अधिक लोग आकर्षित हो रहे हैं |यह गोपनीय विद्या आज सोसल मीडिया और जनसामान्य में प्रचारित हो रही है |आकर्षण का कारण इसके द्वारा होने वाले चमत्कार ,असंभव को संभव बनाने वाले कार्य ,शीघ्र शक्ति का प्राप्त होना है |इन्ही कारणों से वैदिक पूजा पद्धतियों में भी तंत्र की पद्धतियों का समावेश हो गया है ,यहाँ तक की अब विदेशों में भी इनका बहुत अधिक क्रेज और आकर्षण बढ़ गया है |वहां से यद्यपि आते तो पहले से भी रहे हैं पर आजकल बहुत से विदेशी इसे सीखने समझने आ रहे हैं |tantra साधना में अधिकतर का रुझान अब पंचमकार अथवा भैरवी साधना की ओर हो रहा है जो की वाम मार्गीय साधनाएं हैं |कारण एक तो इनसे सफलता अधिक और शीघ्र मिलती है दुसरे इनका ऐसा प्रचार हो रहा की यह आधुनिक युवाओं और पाश्चात्य सभ्यता के अधिक अनुकूल लगता है |अधिकतर की चाह भोग के साथ शक्ति प्राप्ति की होती है जिससे इस क्षेत्र में सीखने के इच्छुक की बाढ़ आई हुई है |इसका लाभ ढोंगी गुरु और लालची साधक उठाते हैं और नए युवकों युवतियों का खूब शोषण करते हैं |वर्षों के भ्रम के बाद भी उनके साथ कुछ नहीं लगता फिर भी tantra के भय से वहा मिह नहीं खोल पाते |
अधिकतर महिलायें सात्विक साधना ही पसंद करती हैं किन्तु शीघ्र और अधिक सफलता की चाह में यह भी अधिक वाम मार्ग में आ रही है |यहाँ इन्ही का सबसे अधिक शोषण भी होता है और जो सोचकर आती हैं अधिकतर को बाद तक वह कुछ मिल नहीं पाता |अधिकतर को तो कुछ भी नहीं मिलता |वह किसी ओर की नहीं होती |न शक्ति मिलती है और न उनकी पवित्रता ही बचती है |लुटा पिटाकर भी वह चुप रहने को विवश होती हैं ,क्योकि एक तो tantra शक्ति और साधक का डर और दूसरा समाज में अच्छी नजर से न देखे जाने का भय |हमारे पास ऐसी बहुत सि महिलाओं के फोन आते हैं अथवा बहुत सि ऐसी महिलायें मिलती हैं जिन्होंने भैरवी साधना ,पंचमकार साधना ,वाम मार्गी साधना अथवा शक्ति साधना के नाम पर कुछ पाने की इच्छा में इस क्षेत्र में प्रवेश किया किन्तु अंततः उनके हाथ कुछ नहीं लगा और वे सब कुछ गंवाकर किसी लायक नहीं रही |जब साधना में थी तो इस भ्रम में रही की वे साधिका हैं और उनसा कोई अन्य नहीं ,वे विशेष हैं ,वे खुद की और दूसरों की समस्या हल कर सकती है ,किन्तु समय के साथ उनका यह भ्रम टूट गया |कुछ हाथ नहीं आया |कुछ को कुछ शाबर आदि मन्त्रों की सिद्धियाँ करवा दि गयी जिससे वे समाज में अपने को भैरवी अथवा अघोर साधिका घोषित करके लूटने का काम करने लगी ,क्योकि उनके पास कोई विकल्प ही नहीं था ,उन्होंने तो अपना सबकुछ गँवा दिया था और उम्र के साथ समय भी निकल चूका था ,ऐसे में पेट भरने अथवा भौतिक सिखों की चाह में वे खुद को प्रचारित करने लगी ,कोई मैथ आश्रम खोल कर बैठ गई कोई पैसे के बल पर धर्म की ठेकेदार बन गई और अधिकतर चुपचाप रोने को विवश हो गई |
आज का युवा विभिन्न तरह के तनावों ,परेशानियों ,अभावों और संघर्षों से गुजर रहा है ,जिसके कारण वह अपनी समस्या के हल के तलाश में तांत्रिको ,पंडितों के संपर्क में आता है ,मूल्य चुकाता है और किसी किसी को लाभ भी होता है तो किसी को नहीं भी होता | इसे देखकर उसके मन में इच्छा उठती है की वह भी ऐसी विद्या सीखे जिससे उसकी समस्या हल हो सके |कुछ tantra की शक्ति और भौतिकता की चाह में इस ओर आकर्षित होते हैं तो कुछ लुटने के बाद इसे अच्छा धंधा मानकर इस ओर् का रुख करते हैं |कुछ भोग विलास ,मांस मदिरा ,स्वच्छंद यौनाचार के आकर्षण में इस ओर आते हैं ,इन्हें प्रेरणा विदेशी देशी वेबसाईट और मीडिया देती है और आकर्षण उत्पन्न करती है जिस पर विदेशी देशी यौनाचार सम्बंधित tantra सामग्रियां और उलटे सीधे प्रचार भरे पड़े होते हैं |इन सबका एक लक्ष्य होता है की जल्दी से जल्दी शक्ति प्राप्त करना ,सिद्धि पाना ,सफलता पाना और भौतिक रूप से सुखी होना ,,लाखों में कोई एक वास्तविक साधना करना चाहता है |इसीलिए ये अधिकतर अघोर मार्ग ,भैरवी साधना ,कौल मार्ग आदि शाबर मंत्र पद्धतियों की ओर आकर्षित होते हैं |लाखों में कोई एक वास्तविक tantra साधना महाविद्या साधना की ओर जाता है और करोड़ों में कोई एक कुंडलिनी की तंत्रोक्त साधना कर पता है |इन लालचों में इनका खूब शोषण होता है |इन्हें ऐसे ऐसे गुरु मिलते हैं जो फोन पर अथवा आनलाइन लैपटाप पर अथवा समूह में अथवा चलते फिरते पैसे लेकर मंत्र देते हैं |ये पैसे चूका कर मंत्र ले लेते हैं और रटने लगते हैं |न गुरु से संपर्क ,न पद्धति का पता ,न उच्चारण मालूम ,न नाद की समझ ,न पदार्थों का ज्ञान ,न न्यास आया ,न मूल नियम का पता ,बस रटते रहे और अंता में सालों बाद कुछ हाथ नहीं आया |फिर गुरु की तलाश और फिर सालों |अंततः भटककर या तो खुद लुटेरे हो गए या tantra को बदनाम करने का ठेका ले लिया |
कुछ साधक यौनाचार के आकर्षण में भैरवी साधना या ओशो की पद्धति की ओर बढ़ते हैं |कभी कभी कोई गुरु भी मिल जाता है और मंत्र दे देता है |उसके बाद भैरवी की तलाश में भटकते हैं ,मिले तो ठीक नहीं तो यहाँ वहां वशीकरण मंत्र पूछते फिरते हैं जिससे किसी को फसाया जाए और भैरवी साधना के नाम पर अपनी काम तृप्ति की जाए |भाग्य से कोई मिल गई तो उसको मूर्ख बना दिया की तुम सिद्ध होवोगी और उसके साथ खिलवाड़ करने लगे |खुद पद्धति और नियम समेत कोई ज्ञान नहीं और मूर्ख उसे भी बनाया |न खुद कुछ मिला न उसे |लेकिन उसका तो सबकुछ गया ,इनका तो काम हो गया |अधिकतर साधकों की भी यही स्थिति है ,कुछ भी पता नहीं होता और खुद को कौल साधक ,कौलाचार्य ,भैरवी साधक कहते हैं |ऐसे में यह जो भी करेंगे वह सही तो होगा नहीं |इनके चक्कर में फंसकर लड़के लड़कियां बर्बाद ही तो होंगे |
भैरवी साधना मूलतः कापालिक सम्प्रदाय से उत्पन्न हुई ,जब उसका उद्देश्य कुंडलिनी जागरण द्वारा शिव और शक्ति का मिलन कर मोक्ष प्राप्ति थी |यह अत्यंत पवित्र और संसार की सबसे कठिन साधना है |कापालिक मत से यह बौद्धों में गई और वज्रयान के उदय के साथ इसमें विकृतियाँ आने लगी |कापालिक से कौल सम्प्रदाय निकला यहाँ भी कुछ सही रास्ते पर थे तो कुछ ने मूल पद्धति से छेड़छाड़ कर विकृत किया अर्थात यहाँ भी विकृतियाँ शुरू हो गई |इनमे कुछ मूल कुंडलिनी साधना से जुड़े रहे तो कुछ शक्तिपीठों के आराध्य हो पद्धति में बदलाव कर लिया |कामाख्या यहाँ मूल ईष्ट हो गई जबकि मूल स्थिति में श्री विद्या ईष्ट थी |इसके बाद इसमें से योगिनी कॉल उत्पन्न हुआ जो नाथों ,सिद्धों द्वारा यह मार्ग अपनाने से बना |यहाँ कामाख्या मूल ईष्ट थी और पद्धति पूरी तरह बदल गई और अधिक भौतिक साधना शुरू हो गई |बीज मन्त्रों की जगह शाबर मंत्र स्थान लेने लगे और तात्कालिक शक्तियां प्राप्त करने के लिए स्थानीय छोटी छोटी शक्तियों की आराधना शुरू हो गई |फलतः मूल भैरवी साधना लगभग विलुप्त हो गई क्योकि वह गुरु गम्य और गुरु मुखी साधना थी ,उसके शास्त्र नहीं लिखे जाते थे |बाद के परिवर्तन के समय कॉल मार्ग से सम्बंधित शास्त्र लिखे जाने लगे जिनमे मूल पद्धति ही नहीं थी |मूल साधकों में न रूचि थी लिखने और बताने की न सामाजिक सरोकारों से बहुत मतलब था ,इसलिए विकृत साहित्य और शास्त्र की इस सम्बन्ध में खोजने पर मिलते हैं |
कौल काली के उपासक होते है। उनके अनुष्ठान गुप्त होते है। इन अनुष्ठानों में मद्य, मांस, मीन, मुद्रा एवं मैथुन वर्जित नहीं हैं। उत्तर कौल, कापालिक और दिगंबर स्वयं को भैरव मानते हैं। वे नग्न होकर देवी पूजा करते हैं। कहीं कहीं कन्याओं की योनि के पूजन की भी परंपरा है। इन संप्रदायों का अधिक प्रभाव बंगाल एवं अविजित आसाम के अधिकांश क्षेत्रों में रहा है। शाक्तों में ही पूर्व कौल संप्रदाय के अनुयायी पंचमकार को प्रतीकात्मक मानते हैं। इनकी साधना विधियां भी अधिकतर सौम्य हैं | शक्तों के समयाचारी संप्रदाय में श्रीचक्र का पूजन होता है। उनकी आस्था षट्चक्रों में है। दक्षिण भारत में समयाचारी साधना का प्रचलन रहा है। आदि शंकराचार्य जैसे योगियों ने इसी प्रकार की साधना को अपनाया है और उसे आश्रय प्रदान किया है।
कौल सम्प्रदाय में दो मत हैं ~ उत्तर कौल मत और पूर्व कौल मत ! इनके अपने ~अपने आचार हैं उत्तर कौल मत के आचार को कौलाचार और पूर्व मत के आचार को समयाचार कहते हैं ! उत्तर कौल मत और उसका आचार कौलाचार रजोगुणी और तमोगुणी मिश्रित है , जबकि पूर्व कॉल और उसका आचार समयाचार पूर्णत: सात्विक है ! उत्तर कौल मत के अनुयायिओं का प्रमुख साधना केंद्र कामख्या ( असम ) है और पूर्व कौल के मानने वालों का साधना केंद्र श्रीनगर है ! इन दोनों सिद्धांतों को मिलाकर बाद में एक नया सिद्धांत प्रकाश में आया जिसे ”योगिनी कौल ” कहते हैं ! योगिनी कौल सम्प्रदाय के केंद्र की स्थापना कामख्या में हुई ! कहा भी गया है ~ कामरूप इदं शास्त्रं योगिनीनं गृहे गृहे ! यह वही प्रिय सम्प्रदाय है जिसके गर्भ से आगे चलकर ” हठयोग ” का सर्वाधिक प्रिय नाथ सम्प्रदाय प्रकाश में आया और सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ ! सुप्रसिद्ध चौरासी सिद्ध इस सम्प्रदाय से सम्बंधित थे ! इस देश में 8वीं से 11वीं सदी मध्य तक सिद्ध और नाथ नाम के मुख्य तांत्रिक संप्रदायों का बहुत प्रभाव रहा है। आज भी इन दोनों संप्रदायों के अनेक स्थानों पर बड़े-बड़े सिद्ध पीठ हैं। भारत के ग्राम्य समाज में सिद्ध एवं नाथ संप्रदाय के अनुयायियों की खासी बड़ी संख्या है। लोकभाषाओं में लिखे और बिखरे हुए इन संप्रदायों के विपुल साहित्य के विस्तृत अध्ययन के योजनाबद्ध कार्य की अपेक्षा है। इन दोनों संप्रदायों में अनेक प्रकार की साधनाओं का प्रचलन है। सिद्धों में पंचमकार वर्जित नहीं है लेकिन नाथ संप्रदाय में वर्जित है। भारतीय साहित्य शिल्प और स्थापत्य पर इन संप्रदायों का गहरा प्रभाव पड़ा है।
कौलिक की परिभाषा करते हुए कुलार्णव तन्त्र कहता है की ,कुल गोत्र को कहते हैं |यह शिव -शक्ति से उत्पन्न होता है |इसके ज्ञानवान को कौलिक कहते हैं |कुल शक्ति है ,अकुल शिव है |कुलाकुल का अनुसंधाता कौलिक कहलाता है |कौल शास्त्र उर्ध्वाम्नाय ईशानमुख से प्रवर्तित रहस्य गर्भ शास्त्र है |शिव को पार्वती जी कुलेश्वर संबोधित करती हैं और शिव उन्हें कुलेश्वरी कहते हैं |यही कुलेश्वर और कुलेश्वरी कुलाचार या कुलमार्ग में दीक्षित कौलिकों के परमाराध्य हैं |कुल मार्ग उर्ध्वाम्नाय माना गया है अर्थात यह मोक्ष मार्ग है |नाम से ही प्रमाणित हो जाता है की यह सर्वोत्तम आम्नाय है जिसे गुरुमुख से ही प्राप्त करना चाहिए |उर्ध्वाम्नाय का पर्मोपास्य बीज श्री प्रासाद्परा मंत्र माना जाता है |
जो गुण शास्त्रीय कौलिकों के माने जाते हैं और जो वास्तविक गुण हैं वह आज देखने को नहीं मिलते |इस मार्ग को सर्वथा गोपनीय रखा जाता है ,किन्तु आज यह मार्ग सोसल मीडिया पर खुलेआम दिख रहा ,वह भी मूल रूप में नहीं अपितु अत्यंत विकृत रूप में |खुद को कौलिक और कौलाचार्य कहने वालों की भीड़ लगी है जबकि वास्तविक कौलिक बताता नहीं की वह कौल साधक है |कौलिक स्वार्थ रहित मोक्ष मार्गी होता है किन्तु आज स्वार्थ और भोग में लिप्त देखा जा रहा |जो भिन्न मार्गी हैं जिन्हें कुछ भी पता नहीं वह भी खुद को कौलिक कहते हैं ||जिसे कौलिकों का मूल मंत्र तक नहीं पता वह खुद को कौलिक बता मूर्ख बता रहा और भैरवी साधना कराने का दावा कर रहा |जो जीवन भर शाबर मंत्र से साधना करते रहे वह कौलिक साधक बने बठे हैं ,जबकि वह मूल कौल न होकर योगिनी कौल के अंतर्गत आते हैं |मूल कौल साधना और योगिनी कौल साधना में भारी अंतर है |इन भ्रमों में युवकों और युवतियों का शोषण भी हो रहा और लूट भी हो रही |कौल साधना अति गोपनीय और कुंडलिनी साधना है जो मोक्ष का लक्ष्य करती है ,जबकि आज भोग लक्ष्य हो रहा |
जो सम्प्रदाय आज तक समाज के लिए सर्वाधिक गोपनीय रहे हैं ,वाही सोसल मीडिया पर आज सर्वाधिक प्रचारित हैं जैसे कौल ,अघोरी ,कापालिक आदि |कौल ,अघोरी ,कापालिक ,नाथ ,योगी आदि अपने नाम के आगे लगाने की परंपरा चल पड़ी है |जबकि यह सब सम्प्रदाय और मार्ग हैं |ऐसा क्यों करते हैं लोग ,क्योकि लोग इनसे प्रभावित हों ,जुड़े और उस प्रभाव का लाभ इन्हें मिले |जो नाम गुरु और आश्रम द्वारा दिया जाता है उसे ही सर्वाधिक सार्वजनिक किया जा रहा |जो कुछ नहीं जानते और किसी सम्प्रदाय से ठीक से दीक्षित नहीं वह भी नाथ ,योगी ,कौल ,अघोरी लगा रहे ,,फर्जी आई डी के भैरव ,अघोरी ,भैरवी की बाढ़ है |क्यों क्योकि नाम से जनमानस इज्जत देता है ,डरता है ,,उसका लाभ उठाया जा सके ,मूर्ख बनाया जा सके |क्या इससे जो वास्तविक साधक और सम्प्रदाय हैं उनकी इज्जत नहीं जा रही ,उनका अपमान नहीं होगा ,जब उनके नाम पर लोग लुटे जायेंगे |लोग कौलिकों ,अघोरियों ,नाथों को गलत बोलेंगे जबकि वास्तविक साधक की कोई गलती नहीं |………………………………………………………हर-हर महादेव
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